RE: Kamukta Story पड़ोसन का प्यार
सुबह प्राची बहुत देर से उठी. वह भी तब जब सुबह दर्शन ने बेल बजाई. उसका अंग अंग टूट रह था. पैरों मे मानों जान ही नही थी. पर मन मे एक अजीब सी तृप्ति और सुख की भावना थी.
दर्शन सुबह अपने मित्र के यहाँ से लौट आया था. अपने फ्लॅट पर ताला देख कर उसे याद आया कि मा शोभा मौसी के यहाँ होगी. उसने शोभा के फ्लॅट की बेल बजाई.
शोभा ने दरवाजा खोला. दर्शन को देखकर मुस्कराई और उसे अपने घर की चाबी दी. कहा कि रात भर उन्होने गप्पें मारी और देर से सोई इसलिए उसकी मा अभी अभी उठी है और अभी आती है.
दर्शन की नज़र शोभा के गाउन पर गयी. ऊपर के दो बटन खुले थे, उनमे से शोभा के उरोजो का ऊपरी भाग दिख रह था. उसने ब्रा भी नही पहनी थी. शोभा मन ही मन मुस्कराई और जान बूझकर नीचे पड़ा न्यूज़ पेपर उठाने को झुकी. उसकी करीब करीब पूरी चून्चिया, निपलों को छोड़कर, दर्शन को दिखाने लगीं. वह बेचारा शरमा कर नज़र हटाकर बोला "शोभा मौसी, मा को आराम करने दो, कोई जल्दी नही है, मैं घर खोलता हूँ, मा को फिर भेज देना.
शोभा कुछ देर उसे देखती रही जब तक वह अपने घर के अंदर नही चला गया. 'बड़ा स्वीट लड़का है, एकदम गोरा और चिकना, प्राची पर गया है. लगता नही है कि इंजिनियरिंग के पहले साल मे होगा, लगता है जैसे हाई स्कूल मे हो. इसे भी फँसाना पड़ेगा, माल है' मन ही मन शोभा ने सोचा.
शोभा ने अंदर जाकर प्राची को बताया कि दर्शन आ गया है. वह वैसे ही नंगी पड़ी थी. शोभा की नज़र अपने बदन पर गाड़ी हुई देखकर शरमा कर उठी और जल्दी जल्दी कपड़े पहनने लगी. शोभा के सामने वह ऐसे शरमा रही थी जैसे रात भर चुदने के बाद कोई नववधू सुबह अपने पति से शरमाये. उसका अंग अंग दुख रह था पर यह पीड़ा भी उसे एक अलग तृप्ति का
एहसास दिला रही थी.
शोभा का एक चुंबन लेकर वह जाने को तैयार हुई. अपना पल्लू संभालते हुए वह बोली "शोभा दीदी, तुमने तो मुझे पूरा निचोड़ लिया, कुछ नही छोड़ा मेरे बदन मे. लगता है कि जान ही नही है पैरों मे."
शोभा उसे दरवाजे पर छोड़ने आई. उसके कान मे बोली "आराम कर मेरी रानी. जल्दी फिर से रस बना अपने शरीर मे. मेरे मूह को स्वाद लग गया है, अब तू मुझसे नही बच सकती." प्रेम और अधिकार से कहे गये इस वासना भरे वाक्य से प्राची का चेहरा लाल हो गया. लज्जा भरी एक मुस्कान शोभा को देकर वह अपने घर मे चली गयी.
वह दिन ऐसे ही बीत गया. दर्शन ने कॉलेज को बंक किया और घर मे ही पढ़ाई करता रहा. इसलिए उस दिन दोनो सखियों की यह कामलीला आगे नही बढ़ सकी. दूसरे दिन भी दर्शन घर मे ही था. प्राची ने दो दिन बस आराम किया, सोई ही रही, बस दर्शन को चाय नाश्ता या खाना बना देने के लिए उठती थी. दर्शन को लगा मा की तबीयत ठीक नही है इसलिए वह भी कुछ नही बोला.
दूसरे दिन दोपहर तक उसके बदन मे फिर ताज़गी लौट आई थी. आराम करने से उसकी थकान दूर हो गयी थी पर कामाग्नि फिर से धधकने लगी थी. उस रात की रति ने जैसे उसकी दबी कामवासना को फिर से सुलगा दिया था. उसे बार
बार लगता था कि जाए और शोभा की बाहों मे खुद को झोंक दे. पर दर्शन घर मे होने से बेचारी कुछ कर नही पा रही थी. इतना अच्छ मौका था, शोभा भी अकेली थी, नेहा भी नही थी. मन मार कर प्राची रह गयी. बस बीच बीच मे गप्पें लड़ाने के बहाने आधे घन्टे को वह शोभा के यहाँ जा आती थी. उस आधे घन्टे मे दोनो औरते चूमा चाटि और स्तनमर्दन कर लेती थीं, पर इससे शांत होने के बजाय प्राची की कामाग्नि और धधक उठी थी. शोभा की मादक भूखी नज़र और नटखट मुस्कान
उसे और परेशान कर रही थी. शोभा खुश थी, वह अपनी वासना पर नियंत्रण रख सकती थी, उसे मज़ा आ रह था कि उसकी यह सहेली कैसे उसके पीछे पागल हो गयी है.
कामदेव शायद प्राची पर मेहरबान थे. उस शाम को दर्शन ने उसे जल्दी खाना बनाने को कहा. खाना खाकर उसने अपनी किताबें उठायि और अपने दोस्त के यहाँ चला गया. प्राची को कह गया की आज रात वह फिर से अपने दोस्त के यही रहकर पढ़ाई करेगा. प्राची की खुशी का पारावार ना रहा. दर्शन के जाते ही वह अपना फ्लॅट बंद करके शोभा के यहाँ जा पहूंची और जल्द ही शोभा के बेडरूम मे उन दो नारियों की रति लीला फिर से शुरू हो गयी.
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