RE: Kamukta Story पड़ोसन का प्यार
शोभा उसे अब समझा रही थी कि ये महँगी ब्रा और पैंटी कैसे धोयि जाती हैं कि खराब ना हों. तभी दर्शन का फोन आया. प्राची ने फोन उठाया.
"मा, आज मैं नही आ रह हूँ, यहाँ कॉलेज मे बहुत काम है. यही होस्टल मे रुक जाऊँगा. कल सुबह आऊंगा. ठीक है ना? तुम अकेली परेशान तो नही होगी?"
प्राची का दिल उत्तेजना से धड़कने लगा. "ठीक है दर्शन बेटे, मैं देखती हूँ. वैसे अकेली कभी रही नही हूँ इस घर मे"
"मा, ऐसा करो, शोभा मौसी को बुला लो, या तुम उसके यहाँ आज रात सो जाओ"
दर्शन के कहने पर प्राची का चेहरा गुलाबी हो गया. अपने आप को संभाल कर वह बोली "ठीक है, मैं ऐसा ही करती हूँ, शोभा मौसी के यहाँ सो जाऊंगी, तू सुबह अगर जल्दी आया तो बेल बजा देना" और फोन रख दिया.
शोभा समझ गयी थी कि फोन पर क्या बाते हुई हैं. उसकी आँखों मे एक नटखट चमक आ गयी. प्राची का हाथ पकड़कर वह बोली "दर्शन नही आ रहा है ना? चलो हम दोनो अकेली हैं. तैयार हो जा प्राची, बाहर चलते हैं घूम कर. मज़ा करेंगे, मस्त डिनर लेंगे कहीं. फिर वापस आकर मेरे यहाँ रत जगा करेंगे. सिर्फ़ गप्पें मारेंगे रात भर और कुछ नही, समझ गयी
ना?" और उसने प्राची को आँख मार दी. फिर मूह पर हाथ रखकर हँसने लगी.
प्राची को समझ मे नही आ रह था कि क्या कहे. शोभा की आँखों मे झलक रही अथाह कामना को देख कर वह फिर शरमा उठी थी.
शोभा तैयार होने अपने घर चली गयी. यहाँ प्राची ने भी तैयारी की. नहाया, नहाकर नई वाली काली ब्रा और पैंटी पहनी. ब्रा टाइट ज़रूर थी पर उसके उरोजो को ऐसा निखार रही थी जैसे बीस साल की युवती हो. आईने मे अपने अर्धनग्न रूप को देख वह खुद से ही शरमा उठी. उसने नया ब्लाउस पहना, साड़ी शोभा ने सिखाया था वैसे बाँधी. एक मोटि वेणि बाँधी, उसमे फूल लगाए. हल्के गुलाबी लिपस्टिक भी लगा ली. आईने मे खुद के रूप को देखकर वह चौंक गयी, यह क्या वही प्राची है, हमेशा की दबी दबी बहनजी प्राची? वह कितनी सुंदर लग रही थी इसका उसे अहसास हुआ.
एक और विचार उसके मन मे चमक गया. आज वह ऐसे तैयार हुई थी जैसे कोई नयी नवेली दुल्हन अपने पति के लिए तैयार होती है, या कोई प्रेमिका अपने प्रेमी से अभिसार करने को जाते समय सिंगार करती है. खुद से ही शरमाते हुए प्राची मन ही मन मे बुदबूदाई "असल मे यही तो बात है, आख़िर मैं अपने चाहने वाले ... वाली ... के लिए तो कर रही हूँ यह सब.
बेल बजाने पर उसने दौड़ कर दरवाजा खोला. शोभा भी पूरी बन ठन कर आई थी. शिफानकी साड़ी, लो काट स्लीवलेस ब्लाउस और पैरों मे ऊँची आईडी के सैंडल्स. आँचल के नीचे से उसके उरोज दो पर्वतों जैसे गर्व से सीना तान कर खड़े थे. शायद शोभा ने ख़ास ब्रा पहनी थी. शोभा का वह रूप देखकर प्राची के मन मे अजीब सी गुदगुदी हो उठी.
उधर प्राची का बदला रूप देखकर शोभा भी दहलीज पर ही खड़ी रह गयी. आज रात को होने वाली रति की कल्पना कर कर के शाम से ही उसकी बुर गीली थी. अब प्राची का मादक सौंदर्य देखकर उसे लगा कि अब पानी तो नही चुहुने लगेगा! पैंटी और साड़ी खराब हो जाएँगी. किसी तरह अपने आप को संभाल कर बोली "प्राची, आज अगर तेरे पति होते तो उनकी खैर नही थी. वे तो बाहर ही नही जाने देते तुझे. खैर वे नही हैं तो ना सही, मैं देखती हूँ कि उनकी जगह मैं तुझे कुछ दिलासा दे सकती हूँ क्या"
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