Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:34 PM,
#58
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं और वो नंगे ही नीचे आ गए, पिस्ता ने एक बोतल निकाली पानी की मैं एक बार में ही आधे से ज्यादा पी गया तब जाकर मेरे गले को थोडा चैन मिला ,बाकी बचा पानी उसने पिया और फिर वो पानी की होदी की तरफ बढ़ गयी मैं भी उसके पीछे पीछे पहूँच गया आधी रात में पानी भी ठंडा कुछ ज्यादा ही हो रखा था पर उसकी ठंडक दूर भाग जानी थी पिस्ता जैसा गरम बम जो कूद पड़ा था पानी में 


पिस्ता और मैं नहाने लगे अपने शरीर से रसमलाई और पसीने को साफ़ करने लगे, हम दोनों एक दुसरे के बेहद करीब ही खड़े थे मेरा लंड बार बार उसके पैरो से रगड़ खा रहा था वो मेरी आँखों में देख रही थी मैं उसकी आँखों में देख रहा था, मैंने पास रखा साबुन उठाया और उसके बोबो पर लगाने लगा जल्दी ही उसकी दोनों छातिया पूरी तरह से झाग में छुप गयी थी ,अच्छे से उसके बोबो पर साबुन लगाने के बाद मैंने पिस्ता को पलट दिया अब उसकी गांड मेरे लंड पर रगड़ खाने लगी थी लंड में फिर से तनाव आने लगा था मैं उसके बोबो को दबाने लगा मसलने लगा 


वो भी अपने हाथ को पीछे ले आयी और मेरे लंड को हिला हिला के खड़ा करने लगी उसकी मुलायम उंगलियों के जादू से जल्दी ही लंड फिर से फुल फॉर्म में आ गया पिस्ता ने पानी का डिब्बा अपने चूचो पर डाला साबुन बह कर नीचे गिरने लगा , मैंने उसके पाँव को थोडा सा खोला और अपने लंड को पीछे से ही चूत की तरफ सरका दिया मैंने आज से पहले पानी में कभी चूत नहीं मारी थी तो , पानी में चूत और लंड का मिलन होना बहुत ही अलग अहसास हो रहा था 


पिस्ता ने अपनी गांड को पीछे की तरफ से पूरी तरह उभार लिया था ताकि मैं मस्त तरीके से उसको चोद सकू उसकी कमर के चारो और अपने हाथो को लपेटे मैं खड़े खड़े ही उसको चोदे जा रहा था हमारे आस पास का पानी बुरी तरह से हिल रहा था पानी की ठंडक अब महसोस नहीं हो रही थी बस एक आग थी जो हमारे जिस्मो में जल रही थी , पुच पुच पुच पुच करते हुए मेरा लंड बार बार पिस्ता की चूत के दरवाजे को खोल रहा था बंद कर रहा था वो बेकरार थी मैं बेताब था 


दनादन दे दनादन मैं उसकी चूत मार रहा था पिस्ता ने खुद को पूरी तरह से मुझे समर्पित कर दिया था और मैंने उसको वो झट से आगे को हुई और मेरी तरफ घूम गयी , वो पानी में ही मेरी गोदी में चढ़ गयी और मैंने फिर से लंड को चूत में सरका दिया पानी में मैं उसको आराम से उठा प् रहा था वो धीरे धीरे करके मेरे लंड पर ऊपर नीचे होने लगी , उसकी गोरी बाहे मेरे गले में पड़ी थी , उसकी नागिन सी जुल्फे गीली होकर कभी उसके चेहरे पर कभी मेरे चेहरे पर पड़ रही थी , छप्प छाप्पक करते हुए मजा ही मजा आ रहा था पिस्ता ने अपने होंठ फिर से मेरे होंठो पर सजा दिए थे 


उसके मोटे मोटे चुत्तद को मजबूती से थामे हुए मैं उसको अपनी बाहों में झुला रहा था साँसे सुलग रही थी ऊपर आसमान में चाँद चमक रहा था जिसका नूर उस पानी में दिख रहा था वो बी हमारे प्रेमलाप को देख कर मुस्कुरा रहा था तभी पिस्ता मेरी बाहों ने एकदम से फिसल कर पानी में जा गिरी 

वो- क्या करते हो 

मैं- बहुत भारी हो गयी हो तुम 

वो- ये क्यों नहीं कहते की तुम कमज़ोर हो गए हो 

मैं- फिसलन है फिसल गयी चल आजा फिर से 

पिस्ता खेली की दिवार पर गांड टिका कर बैठ गयी और टांगो को फैला लिया मैंने उन्हें थमा और अपने कंधे पर रख लिया पिस्ता ने अपने दोनों हाथ दिवार पर मजबूती से जमा दिए और फिर से मेरे लंड को चूत में लेने लगी , चुदाई का खुमार कुछ ऐसा चढ़ा था उस पल की ठन्डे पानी में भी माथे से पसीना टपक रहा था मैं और वो इस सफ़र की मंजिल को फिर से पाने को चल दिए थे बड़ा सुना था की पानी में आग लगा दी आज पता चला था की पानी में आग कैसे लगा करती है 


उसकी कसी हुई चूत की रगड़ाई से मेरे लंड को बहुत आनंद आ रहा था उसके मजे की गवाह तो उसकी वो मादक आवाजे थी जो उसके गले से निकल रही थी ,

पिस्ता- मुझीईए उतार नीचे जल्दी से 

मैं- क्यों 

वो- होने वाला है मेरा जल्दी से उतार 

मैंने उसको उतर और वो थोडा झुक कर चुदने लगी उसके पैर बहुत काप रहे थे उसने एक आह भरी और उसकी चूत का रस खेली के पानी में मिलने लगा मैं उसको सुख अनुभव के लिए पूर्ण प्रतिबद्ध था तो मैं तेज तेज धक्के मारने लगा ताकि वो जोर से झड सके , झड़ने के बाद पिस्ता उकताने लगी चिडचिडी होने लगी वैसे तो मैं छुटने को ही था पर निकल नहीं रहा था पिस्ता की चूत की चिकनाई कम होने से वो झालाने लगी थी 

मैं- होने ही वाला है बस दो मिनट रुक जाना 

पिस्ता- अन्दर मत छोदियो 

मैं- तो कहा पर , मुह में लेगी क्या कभी तो मेरा पानी पि ले 

वो- ठीक है तू कौन सा रोज रोज कहे गा , मुह में ही डाल दे 

मैंने लंड को चूत से निकाल कर उसके मुह में दे दिया और पिस्ता गप्प गप्प उसको चूसने लगी उसकी जीभ की करामत को लंड ज्यादा नहीं सह पाया और मेरा वीर्य उसके मुह में गिरने लगा पिस्ता एक एक बूँद भी चाट गयी जब तक लंड मुरझा नहीं गया वो उसको चूसती ही रही आज की इन दो चुदाई ने , बल्कि तीन चुदाई कहना चाहिए दोपहर को बिमला को भी तो चोदा था मेरा बुरा हाल कर दिया था अब हिम्मत ना रही थी बाकी , चूत मारने के बाद जैसे जी ही निकल गया था मेरा,

पिस्ता ने मुझे तोलिया लाकर दिया मैंने शरीर को साफ़ किया और कपडे पहन लिए पिस्ता ने भी एक पतला सा सूट पहन लिया था बिना ब्रा-पेंटी के ही तो वो और भी माल लगने लगी थी मैं- “एक बार और दो गी क्या ”
वो- ना रे कोई रिकॉर्ड थोड़ी ना बनाना है चुदाई का, और ना ही दुनिया का अंत हो रहा है की आज के बाद लंड नसीब ही ना होगा , अब दूंगी तो फिर सुबह मैं तो खाट से ना उठ पाऊँगी , और वैसे भी अपन तो मिलते ही रहते है फिर कभी कर लेंगे 

मैं- क्या करू यार तू है ही इतनी गजब की मुझसे कण्ट्रोल ही नहीं होता 

वो- अब इतनी भी तारीफ़ ना किया कर मेरी 

मैं- भूख लगने लगी है कुछ खाने को है तो ले आ 

वो- होटल खोल रखा है क्या मैंने, जरा घडी में टाइम देख भूख लगी है 

मैं- नखरे ना कर ज्यादा, साली तेरा मेहमान हूँ कुछ तो खातिर कर मेरी 

वो- खातिरदारी में दो बार चूत दे दी वो क्या कम है , रोटी तो ना पड़ी, नमकीन- बिस्कुट है कहे तो चाय बना दू उसके साथ खा लिए 

मैं- तू तो चुदे भी रसमलाई से हमे चाय दे के तरका रही हो 

वो- ना मेरे राजा, तेरे लिए तो 56पकवान बना दू पर जरा वक़्त की नजाकत को समझो अब कौन रसोई में घुसेगा इस टाइम 

मैं- मुझे ना पता कुछ भी , भूख लगी है तो लगी है घर जाके रसोई खोलूँगा तो कोई जाग जायेगा फिर फ़ालतू दो बात सुन नि पड़ेंगी 

पिस्ता- चल ठीक है , अब तो घना ख़ास दोस्त रह गया , तेरी मनचाही तो करनी ही पड़ेगी आजा रसोई में चलते है आज की रात तो मेरी बर्बाद गयी तेरी रोटियों की तस्सली तो करुँगी ही
मैं और वो रसोई में आ गए वो आलू काटने लगी मैं फ्रिज में देखने लगा तो मुझे मक्खन का डिब्बा मिल गया 

मैं- एक काम कर आलू रहने दे, दो चार रोटिय सेक ले मक्खन है काम चल जायेगा 

वो- ठीक है 

पिस्ता आता लगाने लगी मैं उसके पास खड़ा हो गया बाते करने लगा 

मैं- वैसे तू है मस्त माल यार, चोदके तुझे मजा आ जाता है 

वो- झूठी तारीफे ना करा कर , ये सब चूत लेने के पुराने चून्च्ले है 

मैं- तुझे बड़ा पता है नए पुराने का 

वो- बस पता है 

मैं- तूने कभी चुदाई के सीन वाली फिलम देखि है 

वो- बीअफ़ बोल न सीधे सीधे 

मैं- तुझे पता है 

वो- अनपढ़ समझ ली के 

मैं- कहा देखि तूने 

वो- है मेरे पास , भाई पिछले बार आया था तो वो भूल गया था मैंने चलाई तो फिर मैंने ही रख ली 

मैं- तू भी यार , गजब है एक दम 

वो- कोई शक है तन्ने 

मैं- ना री, 

वो- तो फिर बस रोटिया खा और निकल ले इधर से अब बस बाद में ही मुलाक़ात होगी 

मैं- एक बार और दे देना 

वो-फ़ालतू की जिद ना किया करो तुम, मुझे दिन में काफ़ी काम करने होते है सची कह रही हूँ मेरी तो हिम्मत नहीं है , मैंने कभी तुझे मना किया है क्या कभी जो जिद कर रहे हो 
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