Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:34 PM,
#56
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
कुछ तस्वीरे थी जोधपुर की उनको देखने लगा कुछ अभी बाकी थी धुल्वानी , रति तस्वीर में भी भी इतनी जीवंत लगती थी की जैसे बस अभी के अभी बोल पड़ेगी दिल में बेचैनी सी बढ़ गयी होंठो पर मेरे मुस्कान थी आँखों में कुछ गीलापन सा था , ये भी अजीब हालात होते है जिंदगी में पल में हंसती है पल में रुलाती है , खाने के टाइम पिताजी से लम्बी बात चीत हुई , कुल मिला के बस टाइम कट रहा था मुझे इंतज़ार था था कब घरवाले सो जाये कब मैं चलूँ पिस्ता की तरफ 


टाइम भी कुछ सुस्त सा हो गया कटे ही ना , तीन बार मैंने चेक किया की सब सो गए है नींद में फिर धीरे से दरवाजा खोला और अँधेरी गलियों को पार करते हुए चोर कदमो से चले जा रहे थे पिस्ता का दिल चुराने की कोशिश को , तो पहूँचे उसकी गली में जाना चोबारे में , देखा लाइट जल रही है मतलब जाग रही है पर सवाल वो ही चढू कैसे दीवार पर, पिछली बार टेलेफोन के पाइप से चढ़ा था पाँव में चोट लग गयी थी पर ना जाने कौन सा रिश्ता जोड़ लिया था उस मस्तानी से तो चलो ये परीक्षा भी दे ते है , 

बड़ी मेहनत लगी उसकी दिवार चढ़ने में पर वो मुलाकात ही क्या जिसमे धड़कने तेज ना हो , जिसमे कोई जुस्तुजू ना हो , दिवार पर चढ़ते ही ऐसी फीलिंग आई जैसे कारगिल ही जीत लिया हो अपनी चप्पल वाही दिवार पर राखी ताकि आवाज ना हो और चल पड़ा चोबारे के तरफ पसीना कुछ ज्यादा ही आने लगा था , दरवाजे को जो धुल्काया तो देखा की पिस्ता आराम से बेड पर बैठी टीवी देख रही थी मुझे देख कर मुस्कुराई 

मैं- घरवाले सो गए क्या , 

वो- घर पे मैं बस अकेली ही हूँ 

मैंने माथा पीट लिया , हद है यार ये लड़की भी ना पहले ना बता सकती थी क्या 

मैं- जब तू अकेली थी , तो खेली पे ही ना बता देती खामखा परेशानी करवाई 

वो- तो कौन सा घिस गए तुम , एक दिवार चढ़ने में ही मेरी नानी की तबियत कुछ ठीक नहीं है एडमिट करवाया है उनको तो भाई और माँ को जाना पड़ा ,

मैं- तो फ़ोन कर देती 

वो- तू भी तो कर सकता था नंबर तो मालुम था ना 

मैं- यार, तेरी नाराज़गी अपनी जगह पर मेरी तो सुन ज़रा मैं जोधपुर गया था तो बता कैसे मिलता तुझे 

वो- पता है मुझे 

मैं- किसने बताया 

वो- तलाश, करने वाले तो खुदा को भी तलाश कर लिया करते है तुम तो फिर भी इंसान ही हो 

मैं बेड पर उसके पास बैठ गया पिस्ता सरक आई मेरे पास मैंने उसके हाथ को पकड़ का अपनी छाती पर रख दिया वो मुझे देखने लगी मैं उसको देखने लगा खामोशिया कुछ कहने का प्रयास कर रही थी मैंने उसको थोडा सा झटका दिया और वो मेरे सीने पे आ गिरी .
कुछ देर मेरे साथ लेटी रही वो ना वो कुछ बोल रही थी न मैं फिर एकाएक वो खी हुई और बोली –“कुछ खाओगे ”

मैं- ना 

वो- कुछ पिओगे 

मैं- तुम्हारे होंठो की शबनब 

वो- उसके आलावा 

मैं – तुम्हारे बोबो का दूध 

वो- दूध तो आता नहीं है 

मैं- कुछ नहीं खाना पीना बस तुम दूर ना जाओ मेरे पास आओ बैठो जरा बाते करने आया हूँ तुम्नसे तुम फॉर्मेलिटी में फसी पड़ी हो 

पिस्ता झट से मेरी गोदी में बैठ गयी और अपने होंठो को मेरे होंठो से रगड़ते हुए बोली-“क्या बाते करोगे ”

मैं- कुछ तो बाते करेंगे ही , पर तुम बताओ मेरे बिना क्या किया 

वो- क्या करना था वो ही रोज का काम भाई की सगाई कर दी है, अगले हफ्ते गोदभराई कर देंगे सब ठीक रहा तो , इस दीवाली के बाद ही शादी भी हो जाएगी 

मैं- ये तो ठीक है , वैसे तेरा भाई कब जायेगा ड्यूटी पे 

वो- क्यों तुझे उसके रहने से कोई दिक्कत है क्या 

मैं- ना मुझे क्या दिक्कत होगी बस तुमसे मिलने में थोड़ी कंजूसी होगी और क्या 

वो- वो तो है, वैसे भाई अभी पंद्रह- बीस दिन तो रहेगा ही 

मैं- फिर हम कैसे मिलेंगे 

वो- जैसे अब मिल रहे है, रे पगले, जिनको मिलना होता है ना उनको कोई ना रोक सके है मेरी छोड़ तू बता क्या करके आया जोधपुर 

मैं- कुछ ख़ास नहीं बस ऐसे ही कभी इधर कभी उधर , हां पर इतना जरुर है की कुछ ऐसी यादे लेकर आया हूँ जो हमेशा दिल में रहेंगी 

वो- ओह ओह हो ! ऐसी कौन सी यादे ले आये हो कही दिल तो ना लगा के आये वहा पर 

uffffffffffffffff ये दिलकी बाते ज़ालिम ने चोट भी वहा कर दी थी जहा पर ज़ख्म गहरा था रति का मासूम चेहरा झट से दिल में उतरता चला गाय , खो ही गया था आइने एक बार फिर से उसके आभास में अगर पिस्ता ने मेरा ध्यान ना तोडा होता तो 

मैं- नहीं रे, ये यार व्यार अपने बस का नहीं है और वैसे भी तू भी तो कहती है न की ये राह बहुत मुश्किल है इस्पे चला न जाये तो फिर क्यों अपने को टेंशन लेनी , और वैसे भी अपन कोई सलमान खान तो है नहीं की लाइन ही लगी है प्यार करने वालियों की , 

पिस्ता बोली- एक किताब में पढ़ा था की जो प्रेम होता है ना, वो तो आम लोगो में ही होता है बड़े लोगो का क्या उनकी वो जाने , हम तो अपनी बता सकते ना ,

मैं- तुझसे मेरा क्या छुपा है , कुछ भी तो नहीं एक तू ही तो है जो मेरे अमन को सबसे बेहतर पढ़ती है 

वो- तो फिर बताते क्यों नहीं 

मैं- यार, तुझे क्या लगता है, तू बता हम जिस से भी बोलते है , बात करते है वो प्यार तो नहीं हो सकता ना 

वो- मैं क्या बोलू- 

मैं- चल फिर जाने दे और बता 

वो- और कुछ नहीं 

मैंने उसके सूट को पकड़ा और ऊपर की तरफ कर दिया काली जालीदार ब्रा में कैद उसके सुकोमल उभार बड़े सुन्दर लग रहे थे , उसकी बगलों में जो हलके हलके बाल थे ना मेरे दिल में सुगबुगाहट सी कर रहे थे , उसकी मोरनी सी सुन्दर गर्दन पर जो चूमा मैंने तो एक आह सी निकल पड़ी उसके गले से, उसकी पीठ पर हाथ गया मेरा और ब्रा के हूँक खुल गए, उसकी मुलायम छातिया मेरे कठोर सीने से टकराने लगी 
उसकी ठोड़ी के निचले हिस्से को जो मैंने चूमना शुरू किया तो पिस्ता बरबस ही मेरे आगोश से निकल गयी और बोली-“तुम तो कह रहे थे की बस बाते ही करनी है ”


मैं- हां, बस बाते ही करनी है

वो- तो बाते करो ना 

मैं- ये भी तो बाते ही है 

वो-ना ना 

मैं- आये, है तो काटेंगे एक रात तुम्हारी बस्ती में , चाहोगे तो कर लेंगे दो बात तुम्हारी बस्ती में 
और मन के सूने आँगन में, अगर एक घटा तुम बन जाओगे , कर देंगे बरसात हम भी तुम्हारी बस्ती में 


पिस्ता- ओह ! बातो को इस तरह मोड़ना भी आता है तुम्हे 

मैं- हमे कुछ पता नहीं है , हम क्यों बहक रहे है , राते सुलग रही है दिन भी सुलग रही है 
जब से है तुमको देखा हम इतना जानते है, तुम भी महक रहे हो हम भी महक रहे है””


पिस्ता- आज मूड में हो पुरे 

मैं- तो इर तुम दूर क्यों हो आओ मेरे पास जरा 

पिस्ता मेरे पास आकर खड़ी हो गयी 

मैं- बरसात भी नहीं पर बादल गरज रहे है, सुलझी हुई है जुल्फे और हम उलझ रहे है
मदमस्त एक भंवरा क्या चाहता कलि से, तुम भी समझ रहे हो , हम भी समझ रहे है 
अब भी हसीं सपने आँखों में पल रहे है, पलके है बंद फिर भी आंसू निकल रहे है 
नींदे कहा से आये, बिस्तर पर करवटे है, वहा तुम बदलते हो यहाँ हम बदल रहे है “


पिस्ता बस कातिल अदा दिखाते हुए मुस्कुराने लगी उसके होंठ लरज़ने लगे मैं उसकी तरफ बढ़ा और बिना कुछ कहे बड़ी सादगी से उसके लबो को अपने लबो से जोड़ दिया उसकी शैतान सांसे मेरी साँसों से उलझने लगी थी , उसकी पीठ को सहलाते हुए मैं उसको चूमने लगा सच में पिस्ता को चूमने में बड़ा ही मजा आता था था उसको दरवाजे से लगाये मैं उसको किस पे किस किये जा रहा था थूक हमारे होंठो से नीचे टपक रहा था ना वो कम थी ना मैं 


मैंने उसकी सलवार के नाडे को जो खीचा तो सलवार उसके पांवो में जा गिरी उसकी गोरी गोरी टाँगे बल्ब की रौशनी में चमकने लगी ब्रा की ही तरह उसने कच्छी भी जालीदार ही पहनी हुई थी मैंने जल्दी से अपने कपडे उतार दिए मैं उसमे समा जाने को पूरी तरह से आतुर हो उठा था ,ना कोई रोक थी ना कोई टोक थी बस वो थी मैं था और हमारी अधूरी हसरते थी होंठो पर एक प्यास थी दिल में एक आस थी कुछ जज्बात थे कुछ उल्फ़ते थी मैंने पिस्ता के सर के बालो में लगे रबड़ को खीच कर उसके बालो को आजाद कर दिया और उसके उस निखरे हुए रूप को निहारने लगा
पिस्ता ने मुझे धक्का देकर खुद से परे किया और बोली-“ मैं अभी आती हूँ ”

वो अपनी गांड को मच्काती हुई नीचे चली गयी उसी हालात में मैं अपने खड़े लंड को हिलाने लगा जल्दी ही वो वापिस आ गयी उसके हाथ में एक बाउल था , मैंने देखा उसमे रसमलाई थी 

मैं- ये किसलिए 

वो- मेरे हूँस्न का स्वाद इसमें मिला के चखो मजा आएगा 

मैं मंद मंद मुस्कुराया पिस्ता ने कटोरे से रसमलाई को अपने होठो से लेकर बोबो पर गिराना शुरू किया आज तो क़यामत ही गिराने का इरादा कर रखा था इसने , उसके हलके गुलाबी होंठ पूरी तरह से रस से भीग चुके थे हूँस्न का छलकता हुआ जाम मेरे सामने था देर कितनी थी उसे अपने लबो से लगाने की, मैं पिस्ता के होंठो पर उसके सीने पर पानी जीभी फिराने लगा वो और रसमलाई गिराने लगी मैं बार बार सुको चाटने लगा पिस्ता के बदन में गर्मी बढ़ रही थी जब जब मैं उसकी रस से भीगी चूचियो की कोमल निप्पल को चूसता तो उसकी सिस्कारिया बता रही थी की पिस्ता के तन में कितनी आग भर गयी है 
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