Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:33 PM,
#51
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
फिर थोडा टाइम हम लोग उन तस्वीरों को ही देखते रहे कुछ बेचैनी सी थी कुछ ख़ामोशी थी कुछ बात थी जो लबो तक आने से पहले ही दम तोड़ रही थी, दिल थोडा सा अजीब हो रहा था देखा जाये तो बस कल का ही दिन तो था मेरे पास जो मैं रति के साथ बिता सकता था, एक दिन जयपुर भी देखना था हमे , मैं चाहे लाख कोशिश करू पर नीनू मानेगी ही नहीं उसको वैसे भी घूमना फिरना बड़ा पसंद था और अगर मैं ज्यादा उसको कहता तो मेरी मनोदशा को मुझसे बेहतर समझती थी वो


मैं चुपचाप उठा और अपने गंदे कपड़ो को धोने लगा तयारी जो करनी थी वापसी की पल पल ऐसे लग रहा था की जैसे हाथो से कुछ छुट रहा हो पर जाना तो था ही, रुके भी तो किस हक से
वो रात भी कुछ मचलते अरमानो की सुलगते अरमानो के बीच बीत गयी, मैं रति को उस हद तक प्यार करना चाहता था उस पूरी रात हम दोनों एक पल भी नहीं सोये कभी वो मुझे छेड़े कभी मैं उसे, उसका गदराया जिस्म मेरे उफनते जज्बात, सुबह अपनी लाल आँखों में चढ़ आई नींद से आंखमिचोली होने लगी, पर हम जैसो को सुकून कहा होता हैं 


नाश्ते के बाद मैं अपने बैग को सही कर रहा था तो रति बोली-“नीनू को लेकर आना मुझे मिलना है उस से ”

मैं- ठीक है 

मैं एसटीडी तक गया और नीनू को बताया की रति उस से मिलना चाहती है तो वो मान गयी वैसे भी टाइम बहुत कम था हमारे पास आज शाम को हमे जयपुर के लिए निकलना था ये बिच्दन भी कमाल की होती है मैं पता नहीं क्यों रति से जुदा नहीं होना चाहता था पर वो बस एक मुकाम थी मेरे लिए मेरी मंजिल नहीं थी मेरे मन में कही ना कही एक आस थी उसको अपना बना लेने की पर अफ़सोस ये मुमकिन नहीं था 


करीब घंटे भर बाद नीनू मुझे मैं चोराहे पर मिली मैं उसको साथ लिए लिए रति के मकान की तरफ बढ़ने लगा

नीनू- कौन है वो 

मैं- मेरी एक खास दोस्त 

वो- अजनबी लोगो से दोस्ती ठीक नहीं होती 

मैं- अब अजनबी कहा रही वो 

वो- अच्छा जी ,आज कल तेवर बदल गयी है आप के 

मैं- मुझे भी ऐसा लगता की मैं बदलने लगा हूँ 

वो- और इस बदलाव की वजह जान सकती हूँ मैं

मैं- क्या पता 

बाते करते करते हम लोग रति के कमरे पर पहूँच गए अन्दर गए तो मैंने देखा की रति ने कमरे को सलीके से सजा सा दिया था , बड़े प्यार से मिली वो नीनू से , 

रति- तो आप हो वो जिसकी बाते ये दिन रात करता रहता है 

नीनू- बस शर्मा कर रह गयी 

रति- मेरी चाह थी आपसे मिलने की, वैसे भी आप लोग आज जा रहे हो तो मैंने सोचा मुलाकात हो जाये एक छोटी सी 

नीनू- मैं भी आपसे मिलना चाहती थी 

नीनू का तो स्वभाव ही था बातूनी और ऊपर से जब दो लडकिया आपस में मिल जाए तो फिर उनकी बाते कहा थमने का सोचती है बातो बातो में दोपहर के खाने का टाइम हो गया रति ने हमे खाना परोषा नीनू को उसके हाथ का खाना बहुत पसंद आया , तीन बजने को आये थे नीनू ने कहा – अब मुझे जाना होगा वो क्या हैं की शाम की ट्रेन है तो थोडा टाइम मामा- मामी की साथ भी बिता लुंगी फिर सीधा स्टेशन ही मिलूंगी तुम्हे


वो चलने लगी तो रति ने उसको रोक लिया और बोली- नीनू मुझे तुमसे कुछ कहना है 

नीनू- जी कहिये 

रति- नीनू, बात ये है की मैं जानती हूँ की तुम दोनों दोस्ती से थोडा सा आगे हो , पिछले कुछ दिनों में इसको मैंने बहुत जान लिया है, नीनू मैं नहीं जानती की मेरा ये बात करना ठीक है या नहीं , क्योंकि मैं नहीं जानती की तुम्हारे विचार क्या है तुम किस तरह से सोचती हो पर हां इतना जरुर है की , मुझे लगता हैं तुम दोनों बेस्ट हो एक दुसरे के लिए 


“ तुम इसका हाथ थामे रखा कभी मत छोड़ना तुम दोनों का जो ये बंधन है ना ये ऐसे ही नहींजुड़ा है , पूरक बनोगे तुम दोनों बस इतना ही कहना था तुमसे बाकी तुम खुद भी समझदार हो आसा करुँगी तुम इस बात पर गौर करोगी ”


नीनू को समझ नहीं आया को वो कैसे रियेक्ट करे और ना मुझे समझ आया नीनू बस इतना बोली की- मैं मैं सोचूंगी इस बारे में और घर से बहार निकल गयी कुछ सवाल अपने साथ ले गयी कुछ मेरे लिए छोड़ गयी 
मैं रति से मुखातिब होते हुए बोला- तुमने ऐसा क्यों कहा उस से वो मुझे नहीं चाहती है 

रति- कहना जरुरी था क्योंकि तुम कभी उस से नहीं कह पाते और ना वो बोल पाती पर मैंने तुम्हारे दिल को समझ लिया है और वैसे भी इस से बेहतर तोहफा मैं तुम्हे कहा दे पाती , कम से कम इस बहाने से मैं तुम्हे याद तो आती रहूंगी 

मैं- मेरे दिल में तुमने एक अलग मुकाम बना लिया है चाहे मैं इस दुनिया को भूल जाऊ, इस खुदाई को भूल जाऊ, अपने आप को भूल जाऊ, पर तुमको ना भूल पायेंगे 

रति की आँखों में आंसू आ गए वो आगे बढ़ी और मेरे लबो को चूम लिया उसके चुम्बन से मेरे बदन में सरसराहट दोड़ गयी पर इस चुम्बन में वासना ना होकर एक पवित्रता थी एक निश्चलता थी मुसाफिर को एक बार अपने अनचाहे सफ़र पर निकल पड़ना था रति का मन भी कुछ भारी भारी सा होने लगा था जैसे की वो खुद को रोकने की कोशिश कर रही थी पर कामयाब नहीं हो पा रही थी भावनाए उमड़ रही थी पर जज्बातों पे काबू करना बहुत जरुरी था 


तेरी बाहों की पनाह से दूर हो जाना था मुझे सदा के लिए , काश इस वक़्त पर मेरा कोई जोर चलता तो भर लेता तुझे अपने आगोश में इस कदर, की मेरी रूह तेरी रूह में फ़ना हो जाये मैं अपने दिल का एक टुकड़ा तुम्हारे दिल को सौंप कर जा रहा हूँ, क्या फरक पड़ता है हम रहे ना रहे हमारी यादो की मिठास ज़िन्दगी के हर लम्हे में घुलती रहेगी , तुम मैं हूँ म, मैं तुम हूँ इस जब की बनायीं सब रीतो से सब प्रीतो से परे तेरा मेरा नाता जिसे बस तू जाने या मैं समझू 


ये बिछड़ना तो बस एक बहाना भर है कोई मेरी साँसों से तेरी महक को अलग करके तो दिखाए वो जो सहद की चासनी तेरे लबो ने मेरे होंठो पर लपेटी है वो इस तरह से ज़ज्ब हुई है की क्या कहूँ उस मिठास को अपने दिल में भर कर जा रहा हूँ मैं
रति बस एक तक मेरी तरफ देखे जा रही थी, उसकी आँखों से पानी छलकने को ही था पर ना जाने क्यों किनारे 

पर आकर रुक गया था पता नहीं क्यों मुझे ऐसे लग रहा था की वो कुछ कहना चाहती है पर उसके लबो की वो 

ख़ामोशी टूटी ही नहीं, कमरे का माहोल उमस से भरा था कुछ तो मोसम की गर्मी कुछ दिलो से उठे उस गुबार की 

कुछ बाते थी , कुछ यादे थी और उसकी बाहे थी 

सच्चे दिल में मैं ये चाहता था की वो दोड़ कर आये और मेरे गले लग जाये भर ले मुझे अपनी बाहों में मेरी रूह 

को अपने अन्दर पनाह दे दे वो, चाहत बस वो नहीं होती की किसी को पा ही ले हम लोग , किसी से दूर हो जाना 

भी चाहत होती है , महर्बा तेरी मेहरबानी मुझ पर जो तूने मुझे इसका साथ बख्शा कौन थी ये और कौन था मैं 

जो तूने ये मायाजाल रचा, जी तो रहा तह मैं पहल भी पर जिंदगी क्या होती है इन कुछ लम्हों में जाना था 
मैंने ,मेरे ख्वाबो की तामीर में एक अधुरा ख्वाब और जुड़ गया था धड़कने चीख चीख कर अपना हाल उसको 
बताना चाहती थी पर क्या करूँ मैं, ऐन समय पर होठ दगा दे गए 


फिर भी इस ख़ामोशी को तोडना भी ज़रूरी था मैं-“स्टेशन तक तो आओगी न मुझे अलविदा कहने ”

वो-“नहीं ”

मैं-“अब क्या एक पल में ही पराया कर दोगी ”

वो- ऐसी बात नहीं है अब मैं तुमसे जुदा कैसे, सची कहूँ तो मुझमे इतनी शक्ति नहीं है की तुम्हे अपने से यु दूर जाते हुए देख सकू तो नहीं आउंगी 

मैं-“तो फिर दूर जाने ही क्यों दे रही हो ”

रति- उफ्फ्फ , कैसे समझाऊ तुम्हे , बस इतना समझ लो तुम्हारा और मेरा साथ यही तक था , कभी बेवजह हिचकिया आये तो जान लेना किसी अपने ने याद फ़रमाया है तुम्हे 


कहें भी तो क्या कहे समझे भी तो क्या समझे नादाँ उम्र, ऊपर से ज़माने भर का दुःख हमे, ये तो वो बात हो 
गयी के दर्द भी तुम दो और मरहम भी तुम ही लगाओ, ज़ख्म देकर मेरे दिल को मुस्कुराने को कह दिया अब हम 

अपना शिकवा कहे भी तो किस से, जब खुद किनारे से लहरों ने दूर जाने का सोच लिया, 

मैं- जाने से पहले एक बार गले तो लगालो 

रति ने अपनी बाहे मेरे लिए फैला दी बहुत गजब लम्हा था वो मेरे लिए उसकी आँखों से झरते आंसू बहुत कुछ 
कह रहे थे मुझसे, जो उसके लब ना कह पाए थे , जाना नहीं चाहता था मैं पर मेरे पांवो में भी अनजान बेदिया 
पड़ी थी ,

कुछ आहे थी जिनको मैं .................... खैर , मैंने एक आखिरी बार उसको दिल भर कर देखा और 
अपना बैग उठा कर घर से बाहर निकल पड़ा एक एक कदम ऐसे लग रहा था की जैसे मिलो का सफ़र कट रहा 

हो, मुड़कर पीछे देखने की जरा भी हिम्मत नहीं हुई जिंदगी ने एक बार फिर से हँसा कर रुला दिया था खुद पे 
काबू रखना मुश्किल हो रहा था पर किया क्या जाये कुछ भी तो नहीं, ऑटो वाले को स्टेशन का बोला और एक
नया सफ़र शुरू हो गया 


तेरा सहर जो पीछे छुट रहा कुछ अन्दर अन्दर टूट रहा पर ये भी एक सच्ची बात थी की जाना तो हर हाल में ही 

था शर्ट की आस्तीन से अपनी आँखों के पानी को साफ़ किया मैंने और मुस्कुराने की कोशिश करने लगा स्टेशन 

पहूँच कर टिकेट वगैरा ली और नीनू का इंतज़ार करने लगा , उसके आने में समय था तो वही वेटिंग रूम के पास 

बैग को रखा सिरहाने और लेट गया भीड़ भाड़ में भी मैं अकेला , दिल में उथल पुथल सी थी तो आँख सी लग 
गयी पता नहीं कितनी देर सोया मैं जब आँख कुछ खुली सी तो देखा की पूरा बदन पसीने पसीने हुआ पड़ा है थोडा 

सा पानी पिया और घडी की तरफ देखा मैंने , ट्रेन में अभी भी आधा घंटा भर था फिर मुझे नीनू का ख्याल आया 
तो मैं प्लेटफार्म की तरफ भागा 
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