Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:31 PM,
#35
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
खैर नाहा धोकर हुआ तैयार , 
मैंने रति से पूछा की स्कूल कब जाओगे 
वो- कुछ दिन के लिए छुट्टी ली है और फिर मेरी स्कूटी भी ठीक करवानी है 
मैं- मैं करवा लाता हूँ उसको 
वो- नहीं इधर पास में ही एक ऑटो शॉप है उधर ही हो जायेगा 
मैं- ठीक है और कुछ काम हो तो बताओ कुछ सामान वगैरा मंगवाना हो या कुछ भी 
वो- नहीं सब ठीक ही है वैसे तो मुझे आज मंदिर जाना था पर तुम अपना प्रोग्राम एन्जॉय करो मैं फिर कभी हो आउंगी इतना भी जरुरी नहीं हैं 
मैं- जरुरी क्यों नहीं है जब जाना है तो जाना है तुम फटाफट से तैयार हो जाओ चलते है फिर मेरा क्या हैं मैं तो इधर घुमने ही आया हूँ तुम्हारे साथ घूम लूँगा इसी बहाने क्या पता मेरी भी कोई दुआ कबूल हो जाये 
रति हंस पड़ी और बोली- तुम आखिर हो क्या चीज़ 
मैं- बस एक मुसाफिर 
वो- ठीक है मैं बस यु तैयार हो जाती हूँ 
मैं- हां 
रति बाथरूम में घुस गयी मैंने सोचा की नीनू को फ़ोन करलू तो मैं घर से बाहर आ गया एसटीडी की तरफ मैंने नीनू को किस्सा बताया तो वो काफी नाराज हुई , अब मेरी वजह से उसके प्लान की बैंड जो बजनी थी मैंने उसको समझाया जैसे तैसे करके तो उसने कहा की वो कल नहीं चल पायेगी उसके मामा की छुट्टी है कल तो अब परसों ही मिलेंगे मैंने कहा ठीक है जैसे तुम कहो 

ये ज़िन्दगी कैसे कैसे रंग दिखा रही थी मुझको कहा तो मैं क्या था और अब क्या हो गया था करीब आधे घंटे बाद जब मैं वापिस गया तो रति साडी पहन रही थी उसको उस तरह देख कर फिर से मन में उछल कूद सी होने लगी बिना आँचल के उसके ब्लोउज का कातिल नजारा उसके ठोस संतरे जैसे कह रहे हो दूर क्यों खड़े हो आओ हमारा रस निचोड़ लो मुझे देख कर रति ने अपने पल्लू को ऊपर किया और बोली बस ५ मिनट तैयार हो ही गयी हूँ 

मेरा मन तो कर रहा था की तुम कभी तैयार होना ही मत बस ऐसे ही इस सेक्सी नज़ारे को मुझे दिखाती रहो मेरी धडकनों की सरगोशिया कुछ तेज सी हो गयी थी रति की पतली कमर ऊपर से उसने अपनी साडी को नाभि से थोडा नीचे की तरफ बाँधा हुआ था तो गजब लग रही थी वो ५ फूट के सांचे में ढली वो सुंदर मूरत कही ना कही उसके प्रति मेरी भावनाओ को बहका रही थी मैं चाह कर भी उसके आकर्षण में कैद होने स खुद को बचा नहीं पा रहा था 

कहा खो गए कहा उसने 
मैं- बस तुम्हे ही देख रहा था 
वो- अगर देखना हो गया हो तो अब चले 
मैं- हां चलो 

गहरे गुलाबी रंग की साडी में क्या गजब लग रही थी आज तो जैसे की कोई अप्सरा ही कहर ढाने के मूड में हो उसके गीले बाल जो कमर से भी नीचे तक आकर उसके पुष्ट नितम्बो को जैसे चूम रहे हो मेरा तो मन कर रहा था की हर लाज शर्म छोड़ कर रति को अपनी बाहों में भर लू और जी भर कर प्यार करूँ उसके योवन की झुलसा देने वाली गर्मी से तपने लगा था मेरा क्या करू मैं किस किस को समझाऊ अपने इस भटकते हुए दिल को पेंट के ताने हुए लंड को दोनों की अपनी अपनी हसरते थी 

कहा खो गए चलना नहीं है क्या –कहा उसने 
मैं- हां हां 
बाते करते हुए हम लोग मेन चोराहे तक आये तो रति ने बताया की वो मंदिर ना सहर से करीब १५ किलोमीटर दूर है एक गांवमे पर हैं बहुत अच्छा तुम्हे भा जायेगा 
मैं- अब तुम कह रही हो तो अच्छा ही होंगा न 
हमने बस ली शुकर था की सीट मिल गयी रति खिड़की वाली साइड पे बैठी थी हवा उसकी जुल्फों को चूम चूम कर जा रही थी मैं बस उसको ही निहार रहा था चोर नजरो से पर चोरी तो चोरी होती है कभी भी पकड़ी जाए उसने भी पकड़ ली 

रति- अब इतना भी यु ना देखो मुझे कोई खामखा गलत मतलब निकाल लेगा 
मैं- पता नहीं क्यों मैं खुद को रोक नहीं प् रहा हूँ 
रति- होता है इस उम्र में अट्रैक्शन होता है 
मैं- वो बात नहीं है पर ऐसे लगता हैं की जैसे कोई डोर है जो मुझे तुम्हारी और खीच रही हो 
वो- लाइन मारने का इरादा कर लिया क्या तुमने 
मैं- नहीं , नहीं पर सच कहू तो तुम अच्छी भी लगने लगी हो मुझे 
वो- पर मैं किसी और की अमानत हूँ 
मैं- जानता हूँ पर मान ने को जी नहीं करता 
वो- पर सच हमेशा ऐसा ही होता है और सच तो ये है की कुछ डोर उलझी होती है इस तरह से की वो कभी खुल नहीं सकती बल्कि उलझती ही जाती हैं 
मैं- पर कुछ चीज़े हर बंधन से दूर होती है 
वो- जैसे की 
मैं- जैसे तुम्हारा मेरा रिश्ता 
वो- मुझे नहीं लगा की ऐसा कोई रिश्ता है 
मैं- उसके हाथ को थामते हुए तक़दीर का रहा होगा कुकन हा कुछ तो वास्ता जो तुमसे यु मिला दिया 
वो- मुझे शब्दों के जाल में बांध रहे हो 
मैं- अपना हाल बता रहा हूँ तुम्हे
सफ़र बदस्तूर जारी था वो थी मैं था और कुछ खामोशियाँ थी जो हम दोनों के दरमियान आ कर खड़ी हो गयी थी बीते तीन दिनों में ही रति को अपने बहुत करीब महसोस करने लगा था मैं जैसे की वो मेरा ही कुछ हिस्सा हो उसके मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे छिपे दर्द को महसूस करता था मैं हर पल हमारी हसरते, हमारी आरजुएं ये पागल भटकता हुआ मन बावरा कहा ज़माने के दस्तूर समझता है कुछ भी तो नहीं लगती थी वो मेरी पर फिर भी अपनी सी लगने लगी थी उस सफ़र में हमारी बातो का सिलसिला तो कब का ख़तम हो गया था उसने अपना सर मेरे कंधे पर रख लिया और आँखे मूँद ली बातो को टालने का हूँनर अच्छा था उसका 


पर ये छोटा सा सफ़र भी जल्दी ही ख़तम हो गया और हम अपनी मंजिल की तलाश में चल दिए रति ने मुझे बताया की किस तरफ चलना है , ये कोई गाँव था जिसकी बहरी तरफ में ये मंदिर था सबकुछ अपना सा ही लग रहा था पर अगर कुछ दोष था तो मेरी नजरो में जो रति के जिस्म को अपनी हवस के तीरों से बींध रही थी मैं बहुत कोशिश कर रहा था पर चाह कर भी खुद को रोक नहीं पा रहा था पल पल हर पल उसको पा लेने का मेरे लालच बढ़ता ही जा रहा था उसका मैं क्या जानू पर मेरा हाल ऐसा ही था बस किसी तरह पा लू उसको इतनी हसरत में ही सिमट गया था मैं 


रति ने बताया की ये एक बहुत ही प्रसिद्ध मंदिर है जो भी दुआ दिल से मांगो हमेशा पूरी होती है मैंने कहा - फिर तुम्हारे हिस्से की ख़ुशी कहा है क्यों तुम्हारी दुआ कबूल नहीं होती है 

रति- शायद मेरे में ही कोई कमी होगी 

मैं- ऐसा न सोचो 

रति ने कुछ जवाब नहीं दिया हमने प्रसाद की थाली खरीदी और लाइन में लग गए एक तो गर्मी का मोसम ऊपर से लाइन भी बहुत लम्बी, भीड़ हद से ज्यादा मैं रति के जस्ट पीछे खड़ा था भीड़ में जो कसमसाहट हुई तो मैं उस से बिलकुल चिपक सा ही गया उसकी भारी गांड को मैं अपने अगले हिस्से पर महसूस करने लगा मेरे दिमाग के तार बुरी तरह से झनझना गए उस पल उस अजीब से माहौल में मुझे उसके इस तरह से नजदीक आने का मोका मिल रहा था मेरा दिमाग मुझे रोके बार बार पर मेरा बेचैन दिल मुझे आगे बढ़ने को कहे 



मेरा लंड खड़ा होना शुरू हो गया हालात पे मेरा जोर कहा चलता था वैसे भी मैं जरा सा आगे और सरका और अपने खड़े लंड को रति की गांड से छुआ ने लगा उसके ठोस चूतड बड़े कमाल के पर तभी मुझे लगा की जैसे रति ने अपने कुलहो को खुद पीछे की तरफ किया हो मेरा लंड तो जैसे पेंट की कैद को तोड़कर भागने की फ़िराक में था उस पल को लाइन किसी चींटी की तरह रेंग रेंग कर आगे को बढ़ रही थी मेरा दिल बार बार कह रहा था की इस मोके का पूरा फायदा उठा ये ही रास्ता है रति की चूत तक पहूँचने का और मैं मजबूर इंसान 


तभी भीड़ में पीछे से मुझे धक्का सा लगा तो आप धापी में मैंने बैलेंस बिगड़ने के दर से रति की कमर को पकड़ लिया मक्खन सी चिकनी उसकी कमर पर मेरी पकड़ कस गयी रति को चिकोटी काटने जैसा दर्द हुआ उसने पीछे मुड कर देखा और बस मुस्कुरा कर रह गयी मैंने अपना हाथ उसकी कमर से नहीं हटाया बल्कि धीरे धीरे से कमर को सहलाने लगा एक तो जबरदस्त भीड़ ऊपर से गर्मी जान खाए रति के बदन से आती पसीने की खुशबू मेरे रोम रोम में एक उत्तेजना सी जगा रही थी इधर मेरा लंड जैसे उसकी साडी समेत ही उसकी गांड में घुसने को बेताब हो रहा था मुझे पता था की रति को भी लंड की उसकी गांड पे मोजुदगी का पूरा एहसास होगा पर वो कुछ शो नहीं कर रही थी बस हाथो में पूजा की थाली लिए निश्चिन्त खड़ी थी 
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