RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मुंबई भी लगता था जैसे मेरे सपनो को चकनाचूर करने पर तुली हुई थी. यहाँ जाकर पता करता ज़मीन के भाव मेरे अंदाज़े से कहीं ज़्यादा निकलते. मेरे पास पैसा था, इतना पैसा था कि मैं बड़े आराम से घर खरीद सकता और मगर फिर उसके बाद? मुझे ऐसा इंतज़ाम करना था कि मुझे ना सिर्फ़ घर मिल जाता बल्कि इतने पैसे भी बच जाते कि बाद में, मैं अपना गुज़र बसर कर सकता. कभी कोई आफ़त आ पड़ती तो उसका मुक़ाबला कर सकता.
मगर मेरी किस्मत इतनी भी बुरी नही थी. जब मैं बोम्बे मे जगह जगह घर ढूँढ रहा था तो एक प्रॉपर्टी डीलर ने मुझे सलाह दी कि अगर मैं थोड़े सस्ते रेट पर ज़मीन चाहता हूँ तो मुझे बॉम्बे की सीमा पर बन रही छोटी छोटी कॉलोनियों में भाग्य आज़माना चाहिए. उसकी बात मुझे जॅंच गयी. एक कॉलोनी से दूसरी कॉलोनी में जाता मैं वापस उत्साह मे आने लगा था क्योंकि कॉलोनियाँ अविकसित होने के कारण रेट काफ़ी कम थे. मैने कुछ जगहों को चुना जहाँ पर घर और अपना काम दोनो चला सकता था. लेकिन लगता था मेरे नसीब जाग गये थे.
एक दिन एक कॉलोनी में घर देखता जब मैं एक रोपेर्टी डीलर से बात कर रहा था, तो एक सज्जन उधर से गुज़रते हुए हमारे पास आए, वो उस डीलर के परचित थे. उन्होनो भी मुझसे बातचीत की और मेरे बारे में पूछने लगे कि मैं किधर का हूँ? क्या करता हूँ? व्गारेह, वग़ैरेह..... मैं एहतियात के तौर पर कभी भी अपना असली पता नही बताता था, सो उसे भी दूसरे सहर का पता दिया. काम के बारे मैने उसे खुद का मुर्गिफार्म होने के बारे में बताया. मुर्गिफार्म के बारे मे सुन उसकी आँखे चमक उठी. वो मुझसे मुर्गिफार्म से संबंधित या इस धंधे से संबंधित सवाल पर सवाल पूछने लगा. मुझे थोड़ी हैरत थी मगर मैने उसके सवालों के जबाव अपने ढाई साल के मुर्गिफार्म के तज़ूरबे के आधार पर दिए. मेरे जबाब सुनकर उसने कहा कि मेरी जानकारी अच्छी है, मगर मुझे इस धंधे से संबंधित आधुनिक तौर तरीकों की खबर नही है. मैने जब उसके इस तरह सवाल करने की वजह पूछी तो उसने कहा कि खुद उसके पास एक बहुत बड़ा मुर्गिफार्म है, लेकिन अब वो अपने बच्चो के पास रहने हमेशा हमेशा के लिए विदेश जा रहा था इसलिए उसे मुर्गिफार्म बेचना था. मैने उसकी बात सुनी तो नज़ाने क्यों मेरे दिल ने कहा के एक बार चल कर देखना चाहिए. हालाँकि घर खरीदने से पहले मुर्गिफार्म खरीदने का सोचना पागलपन ही था मगर मन में कुछ कोतुहुल था, मैने सोचा देखने से क्या जाएगा. मैने उसे विनती की तो वो मान गया और हम प्रॉपर्टी डीलर से विदा लेकर उसके मुर्गिफार्म की ओर चल पड़े.
मुर्गिफार्म बहुत बड़ा था, बहुत ज़्यादा बड़ा. मेरी शेड से कम से कम दस गुना बड़ी शेड थी, और उपर से दो मंज़िला. बिल्कुल बढ़िया अवस्था में, बिल्कुल आधुनिक तौर तरीकों से बनी थी लेकिन सबसे बढ़िया बात थी कि उस शेड से दो गुना ज़मीन और खाली पड़ी थी वहाँ. उस मुर्गिफार्म को देख मेरी आँखे उसके कोने कोने को तलाशने लगी. मुझे वो धंधा जमाने की सबसे बढ़िया जगह नज़र आई, मगर मैं जानता था कि मैं उसे खरीद नही सकता था, क्योंकि इतनी बड़ी इमारत और ज़मीन को खरीदता तो घर के लिए कुछ ना बचता. मेरा मन बुझ गया. मैने सेठ से रेट तक नही पूछा क्योंकि मैं जानता था कि वो मेरी पहुँच से बाहर है. सेठ ने मेर चेहरे के भाव पढ़ लिए, पुराना तज़ूरबेकार आदमी था. उसने मुझसे पूछा अगर मैं उसे खरीदने का ख्वाईशमंद हूँ तो? मैने सेठ को अपनी मजबूरी बताई.
सेठ ने मेरी बात सुनी, कुछ पलों के लिए चुप हो गया. फिर वो मुझसे बोला कि मैं उसे कितना दे सकता हूँ. मैने उसे अपनी हद बताई. सेठ फिर से चुप हो गया. फिर बोला कि इतने पैसों की तो खाली ज़मीन ही है. मैं जानता था इसलिए मैने सेठ से विदा माँगी. वहाँ खड़े रहने का कोई फ़ायदा नही था. जब हम सड़क से बाहर आए तो सेठ ने मेरी बाँह पकड़ी और बोला "यह मेरे खून पसीने की कमाई है. मैने जब पँद्रेह साल पहले यहाँ धंधा शुरू किया था तो सभी लोगों ने मुझे पागल कहा था क्योंकि तब यहाँ कुछ नही था, कुछ भी नही. मगर मैने उन्हे दिन रात मेहनत करके ग़लत साबित किया. घर का खरच उठाने से लेकर बच्चों को विदेशों मे पढ़ाने का खरच तक मैने इससे निकाला है. मैं इसे कभी नही बेचता अगर बच्चों की ज़िद ना होती. उन्हे अकेला नही रहना, माँ बाप साथ चाहिए और यहाँ आकर वो रहने के लिए तैयार नही हैं. अब हमे ही उनके पास जाना हैं. इसलिए सब बेचकर उनके पास जा रहे हैं. जितने पैसे तुमने मुझे बताए हैं उससे दुगने मुझे कयि देने का ऑफर कर चुके हैं. मगर मैने उन्हे नही बेचा, जानते हो क्यों? क्योंकि उनके लिए यह सिर्फ़ एक मुर्गिफार्म है जबकि मेरे लिए....मेरी ज़िंदगी के पंद्रह साल, मेरी जिंदगी का एक हिस्सा. इसे मैं किसी ऐसे वैसे के हाथों नही बेच सकता. इसलिए आज तक जितने आए सबको मना कर दिया. मन ही नही मानता. मगर आज तुमसे बातचीत की तो तुमने मुझे उस समय की याद दिला दी जब मैने यह धंधा यहाँ सुरू किया था. तुममे जोश है, दिमाग़ है और मेरा तजुर्बा है तुम मेहनत भी खूब करते हो. क्योंकि तुमने मुर्गिफार्म से संबंधित कुछ एसी बातें बताई हैं जो खुद मुझे नही मालूम. तुम्हारा ग्यान आधुनिक नही है तुम पुराने तरीकों से मुर्गिफार्म का काम करते हो यह मैं देख चुका हूँ मगर फिर भी मैं कह सकता हूँ तुमने अपने तज़ूरबे से बहुत कुछ सीखा है. और ऐसा तज़ूरबा सिर्फ़ मेहनत से आता है"
सेठ कुछ पलों के लिए चुप हो गया. मैं नही जानता वो मुझे यह सब क्यों बता रहा था. कुछ देर बाद वो फिर बोला " सुनो मैं तुम्हे यह मुर्गिफार्म दे सकता हूँ अगर तुम भाव 50% बढ़ा सको तो? और दूसरा तुम्हे वादा करना होगा तुम इसे कभी दूसरे को नही बेचोगे" मैं सेठ का मुँह ताकने लगा. सेठ का ऑफर वाकई में बहुत बड़ा था. मगर फिर भी अगर मैं उतने पैसे भी देता तो भी मेरे पास घर खरीदने के लिए उतने पैसे ना बचते. सेठ ने मुझे सुझाव दिया कि मैं उसका घर भी खरीद लूँ. मैने सेठ को बता दिया कि मेरे पास जमा कुल कितनी रकम है. सेठ ने कहा कि वो मुझे कुछ वक़्त दे सकता है. लेकिन बहुत ज़यादा वक़्त नही क्योंकि तीन महीने बाद उसकी बेटी की शादी है. मैने सेठ से एक साप्ताह का वक़्त माँगा. उसने मुझे वक़्त दे दिया और वादा किया कि वो इस समय में किसी से कोई सौदा नही करेगा और नही मेरे लिए कीमत बढ़ाएगा. इसके बाद हम सेठ के घर गये. घर काफ़ी बड़ा था. आधुनिक था. दो बेडरूम नीचे और एक बेडरूम उपर. कुल मिलाकर तीन बेडरूम, एक ड्रॉयिंग रूम और एक बहुत बढ़िया रसोई थी. मगर उसके घर ने जिस ओर मेरा ध्यान खींचा वो थी घर के एक कोने मे सड़क पर बनी दुकान, जो शायद कभी इस्तेमाल में नही लाई गयी थी. उस दुकान को देख मेरा घर खरीदने का मन और भी पक्का हो गया. मैने सेठ से विदा ली. घर जाते पूरे रास्ते मे पैसे का हिसाब लगाता रहा. मेरे पास कम से कम बीस फीसदी रकम कम थी सेठ को देने के लिए.
सूरत पहुँच मैं घर जाने की बजाय सीधा बहन के पास गया और उसे सब बातें बताई. बॉम्बे का नाम सुन वो थोड़ा खुश हो गई, शायद वो उसकी पसंदीदा जगह थी. उसने जब मेरे मुख से पैसों की समस्या के बारे में सुना तो उसने मुझसे पूछा कि कितने पैसे कम पड़ रहे हैं. मैने उसे बताया तो वो हँसने लगी. मैं उसकी ओर देखकर हैरान रह गया. भला इसमे हँसने की कोन्सि बात थी. उसने मुझे साथ चलने के लिए कहा मगर यह नही बताया कि हम कहाँ जा रहे हैं. लेकिन जल्द ही मुझे अंदाज़ा हो गया जब हमारा रिक्शा उसने एक बॅंक के सामने रुकवाया. बॅंक के गेट पर मैने उसकी बाँह पकड़ ली और उसे कहा कि मैं उसके पैसे नही ले सकता. उसने मेरी ओर देखा और अगले ही पल उसकी आँखे भर आई. उसने कहा कि अब जो कुछ है वो हम दोनो का है. वो खुद चाहती थी कि हम वो घर खरीदे बाद में सेठ का मन बदल गया तो. हालाँकि मेरा मन नही मान रहा था मगर बहन के चेहरे पर दुख के ऐसे भाव देखकर मैने हथियार डाल दिए.
जब बहन ने अपनी बॅंक की पासबूक निकाली और मैने उसका बॅलेन्स देखा तो मैं हैरान हो गया. मेरा मुँह खुला का खुला रह गया. इतना पैसा उसने कैसे जमा कर लिया! उसके पास तकरीबन तकरीबन मेरी जमापूंजी का 50% था. बहन मेरी हालत देख मुस्करा रही थी. उस रकम को जमा करने के लिए उसे कितनी मेहनत करनी पड़ी होगी मैं सोचकर उदास हो गया. अब मुझे समझ आ रहा था कि जब भी मैं उससे मिलने आता था क्यों हमेशा उसने पुराना सूट पहना होता था और वो हमेशा बहाना बनाती थी कि उसी दिन उसने कपड़े धोए हैं. उसने एक एक पैसा बचा कर फॅक्टरी और ब्यूटी पार्लर मे काम करके इतनी रकम जमा की थी. मेरी आँखे भर आई. मगर वो मुस्करा रही थी. उसने कहा कि इसी दिन के लिए तो वो दिन रात मेहनत कर रही थी. इसी दिन के लिए तो वो जी रही थी. बहन के लिए मेरे दिल मे इज़्ज़त इतनी बढ़ गयी कि मेरा सर उसके सामने झुक गया.
जैसी बहन ने सलाह दी थी मैं घर ना जाकर सीधा वहीं से वापस मुंबई को रवाना हो गया. सेठ मुझे दो दिन बाद लौटा देखकर थोड़ा हैरान हो गया. मगर मैने उसे पैसे का इंतज़ाम होने की बात बताई कि मैं उसका घर और मुर्गिफार्म खरीदने के लिए तैयार हूँ.
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