RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
"तुम जानते हो ना सुरू से मैने सिर्फ़ और सिर्फ़ तुमसे प्यार किया है, तुम्हे मालूम है ना?"
"उः.....हा.हाँ जानता हुउन्ण. मैं भी तुमसे बहुत..बहुत.... बहुत प्यार करता हुउन्न्ं"
"मैं जानती हूँ तुम मुझसे बहुत प्यार करते हो. जहाँ मैं इस समय हूँ वहाँ हर पल मैं तुम्हारा प्यार महसूस कर सकती हूँ." वो एक पल के लिए चुप हो गई और फिर धीरे से उसी कोमल नरम स्वर मे बोली " अच्छा अब सो जाओ, मेरे दिलदार, और.....और भूलने की कोशिश करो" उसके होंठ मेरे कान के पास आए और वो और भी धीमे स्वर मे बोली "भूलने की कोशिश करना"
"हुहह?" मैने उसके जबाब का इंतज़ार किया मगर उसके जबाब देने से पहले ही मुझे नींद आ गयी.
मुझे महसूस हुआ मैं जाग रहा हूँ, मगर अब भी कच्ची नींद में था. आधा सोया आधा जागा हुआ था. मेरे चेहरे पर मुस्कान फैलने लगी . मैं उसे फिर से ज़ोर से आलिंगनबद्ध किए हुए था. ऐसा मैं कभी कभी नींद के समय करता था. मगर मुझे कुछ अलग अनुभती हो रही थी, कुछ कोमल सा था. ना मेरा सर ना मेरी बाँह कुछ भी उसकी नंगी त्वचा से स्पर्श नही कर रहा था. शायद मेरे सो जाने के बाद उसने कोई कपड़ा पहन लिया था. मगर वो पहले तो मेरे साथ सोते हुए कपड़े नही पहनती थी. नींद फिर से मेरे उपर हावी हो रही थी. तभी मेरे दिमाग़ मे उसने जो आख़िरी बात बोली थी वो बात गूँज उठी----'भूलने की कोशिस करना' कितनी अजीब बात थी. मैने उसे कस कर अपने से चिमटा लिया. उसका साथ कितना सुखद था, कितना प्यारा था. वो साथ थी तो मुझे दुनिया की कोई परवाह नही थी. मगर........उसकी वो आख़िरी बात कितनी बेहूदा थी. कोई भला ऐसे भी बोलता है? आख़िर उसकी बात का मतलब क्या......
मेरी आँखे झटके से खुल गयी. मैने दीवार पर लगे बिजली के स्विच को ढूँढा मगर वो मुझे ना मिला. मैने उसे बेड मे अपने साथ महसूस किया था, मगर वो वास्तव मे तकिया था. नही! नही! नही! वो उठ गयी थी.........शायद बाथरूम गई...........मेरी साँसे अटकने लगी. ये सच था, वो यहीं थी! नही! ना! वो यहीं थी, वो यहीं है, यह सच था ! वो मुझसे बातें कर रही थी. वो मेरे पास थी, उसके चले जाने की बात एक सपना थी, मगर यह सच था. वो यहीं है!
मैने फिर से दीवार पर लगा बिजली का स्विच ढूँडने की कोशिस की मगर इस कोशिश में बेड की पुष्ट पर रखा अलार्म क्लॉक नीचे गिरा दिया. अंत मेन स्विच मिल गया और मेने उसे जलाया. मेरी नज़र बेड पर पड़ी. वो एक तकिया था. मैने नज़र घूमाकर पूरे रूम में देखा. उसका कहीं कोई नम्मो निशान नही था. वो भयानक, दर्दनाक सच्चाई ने मुझे जड़ से हिलाकर रख दिया. मुझे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी. रात के सन्नाटे ने यातना को और भी बढ़ा दिया था. मुझे लगा जैसे वो मेरे पास थी और मैं चाहकर भी उसे रोक ना सका. वो मेरे सामने से चली गयी और मैं उसे जाते देखता रहा. मैं नही चाहता था माँ को मेरी आवाज़ सुनाई दे. मैं बेड से नीचे उतरा, मुझे मालूम था अब मैं रोउंगा और कितना भी ज़ोर लगा लूँ खुद को रोक नही सकता था. बेड से पीठ लगाकर मैं ठंडे फर्श पर नीचे बैठ गया. अपनी टाँगे मोड़ मैने छाती से लगा ली और अपना बाहें टाँगो पर लपेट अपना सर घुटनो में छिपाकर बैठ गया मेरी आँखो से आँसुओं की बरसात होने लगी. मेरा मुख खुला और मेरे गले से एक मोन चीख निकली. आगे क्या होने वाला था मैने उसे रोकने की कोशिस की. मगर मैं रोक ना सका. मेरे गले से भर्राई आवाज़ में सिसकियाँ निकलने लगी जिन्होने जल्द ही चीखों का रूप ले लिया. रोने, सिसकने , कराहने के बीच मुझसे साँस नही ली जा रही थी. वो चली गयी! वो चली गयी! सब मेरा दोष है! सब मेरी ग़लती का नतीजा है! हे भगवान........मुझे माफ़ करदो! मुझे माफ़ करदो! मेरे भगवान मुझे माफ़ करदो! माफ़ करदो! लौट आओ! लौट आओ! मुझे माफ़ करदो, लौट आओ!,
वो पीड़ा लफ़्ज़ों में बयान नही की जा सकती, लफ़्ज़ों की एक सीमा होती है जिसके आगे वो मूल भावना को ब्यान नही कर सकते. और इस पीड़ा की कोई सीमा नही थे, कोई अंत भी नही था!
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