Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
12-28-2018, 12:43 PM,
#20
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
हम दोनो एक दूसरे पर अपनी कमर धकेलते हुए रगड़ रहे थे. जब मैने लंड थोड़ा सा बाहर निकाला तो उसने अपनी चूत की पकड़ थोड़ी ढीली कर दी. मैं अब लंड को अंदर बाहर कर उसकी चूत को घिसना चाहता था और मैं जानता था वो भी यही चाहती है. जब मैने उसकी टाँगे और भी मोड़ कर बिल्कुल उसकी छाती पर दबाई तो उसने अपनी आँखे खोल दी. मैने चेहरा नीचे झुकाया मेरे होंठ उसके होंठो से मिल गये. हमारी जीभ आपस में उलझ गयी और मैने धीमी रफ़्तार से उसे चोदना सुरू कर दिया. वो अपने कूल्हे हिलाने लगी, कभी कभी जब मेरा लंड पूरी जड़ तक घुस जाता तो वो अपनी चूत से मेरे लंड को कस लेती. मुझे उसका इस तरह करने में बेहद मज़ा आता. मुझे और भी मज़ा आता जब हम कामोउन्माद में थोड़े सनकी हो उठते, जब हमारी चुदाई एक प्रचंड रूप ले लेती. मुझे हर उस चीज़ में मज़ा आता था जो हम दोनो मिलकर करते थे जब मुझे अहसास होता वो मेरे साथ है तब मैं उसके साथ अपने संबंध को अपने नाते को महसूस करता, और अब मुझे वोही अहसास अपनी आत्मा की गहराई में महसूस हो रहा था.

मैने चुंबन तोड़ा, उखड़ी साँसे लेते हुए मैने उसके कंधे को कयि बार चूमा. उसने अपनी गर्दन तान ली, जानती थी अब मैं उसको दिल खोल कर चुमूंगा. जब मैने उसकी गर्दन को चूमना सुरू किया तो उसका मुख खुल गया और वो गहरी साँसे लेने लगी. उसके होंठो पर नन्ही सी मुस्कान थी. मेरे चुंबनो और धक्को की रफ़्तार बढ़ गयी थी. उसके कूल्हे भी मेरे तेज़ धक्को का जवाब धक्कों से देने लगे. उसने मेरे कंधों को मज़बूती से थाम लिया. ताल से ताल मिलाते हमारे धक्कों का वेग और जोश बढ़ गया था. मुझे अब चुदाई के समय उत्पन्न होने वाली वो आवाज़ सुनाई दे रही थी जो मुझे बहुत उत्तेजित करती थी,
पटक.....पटक........पटक........पटक.......पटक....

जब भी वो आवाज़ उत्पन्न होती, जैसे आज रात हो रही थी , तो मैं उस आवाज़ को हमारी एक दूसरे का ख़याल रखने की इच्छा से जोड़ कर देखता, उसे मैं हमारी एक दूसरे को पाने की लालसा से, अभिलाषा से जोड़ कर देखता, उस आवाज़ को में हमारे उस करम से जोड़ कर कर देखता जो हमारे संबंध हमारे नाते को परिभासित करता. 

और अब इस आवाज़ के मायने और भी बढ़ गये थे क्यॉंके मैं जानता था वो मुझसे प्यार करती है. वो अपने कूल्हे नीचे से ज़ोर लगा कर उछालती है. मैं अपनी कमर खींच कर पूरे ज़ोर से उसका जबाब देता हूँ.
पटक......पटक........पटक.......पटक....

"मैं.......अभी...स्खलित नही...होना चाहता" हान्फते हुए उसे मैं बोलता हूँ. 

"मैं तुम्हे अपने अंदर स्खलित होते महसूस करना चाहती हूँ" 

"नही....अभी नही" मैं अपनी गति कम कर लेता हूँ और लंड पूरी गहराई में घुसा कर उसकी कमर पर अपनी कमर रगड़ता हूँ. 
वो अपनी आँखे भिंचे धक्का मारती है और मेरे नीचे मचलती है. वो अपनी चूत के दाने को मेरे लंड पर रगड़ रही थी. "हइईईई.....,हे भगवान...."

मैं उसकी एडियों से हाथ हटा देता हूँ "अपनी टाँगे मेरी कमर पर लपेट लो . चलो....अब कुर्सी पे करते हैं"

वो अपनी आँखे खोलती है. "कुर्सी......कोन्सि कुर्सी?" लगता था वो भी स्खलन के करीब ही थी. 
"अपनी कुर्सी"
वो अपना मुँह घूमाकर कमरे के कोने में पड़ी हमारे पिताजी की आराम करने वाली पुरानी कुर्सी देखती है. उसकी और उसका शायद पहले ध्यान नही गया था. "तुम्हारा दिल नही करता बस ज़ोरों से धक्के मार...."

"मैं अब उस कुर्सी पर करना चाहता हूँ" मैने उसे बीच मे ही टोकते हुए कहा. 

"ठीक है....जैसे तुमाहरी मर्ज़ी"

मैं नीचे झुकता हूँ तो वो अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल देती है और अपनी टाँगे मेरी कमर पर कस देती है. जब मैं खड़ा होता हूँ और उसके चूतड़ो को कस कर दबोच लेता हूँ, तो वो थोड़ा घबराती है और फिर हँसने लगती है. हर एक कदम पर जो मैं कुर्सी की ओर उठाता, मेरा लंड जड़ तक उसकी चूत में घुस जाता और हम दोनो को एक नये रोमांच का अहसास होता. उसे मालूम था कुर्सी पर जाते ही मैं उसे टाँगे खोल दूसरी तरफ घूमने वाला था और फिर अपने उपर आने के लिए बोलने वाला था. जब भी वो ऐसा करती तो मुझे लगता जैसे वो मेरा लंड मरोड़ रही है और कयि बार तो उसने पूछा भी था अगर वो मुझे तकलीफ़ दे रही हो, मैं बस हंस देता.

और इस बार भी बिल्कुल ऐसा ही हुआ. जैसे वो मेरी गोदी मे घूम कर सीधी हुई मेरे हाथ उसके गोल मटोल मम्मो पर कस गये, उन्हे प्यार से दुलारता, सहलाता उसके निप्प्लो से छेड़खानी करने लगा और फिर मैने एक हाथ नीचे ले जाकर उसकी चूत को सहलाया. मेरी उंगली चूत के दाने को सहला रही थी उससे खेल रही थी. मेरी इन हरकतों से वो छटपटाने लगी. उसके चुतड मेरी कमर पर थिरकने लगे. और फिर मेरे मुख से एक गुर्राहट निकली जिसे सुन वो भी लरज उठी.

"उर्र्ररगगगगगघह........उूउउफफफफफफफफ्फ़........लगता है जैसे...........तुम्हारी चूत तो बिल्कुल मेरे लंड का नाप लेकर बनाई गयी है" मैं अपना मुख आगे कर उसके रेशमी बालों में घुसाता हूँ. उसकी गर्दन तन जाती है और मैं उसकी गर्दन पर लगातार कयि गीले मीठे चुंबन अंकित करता हूँ. 

"तुम .....तुम मुझे लगता है....बहुत जल्दी स्खलित कर दोगे" वो सिसकती है

"मैं तुम्हे स्खलित करना चाहता हूँ" मैं मुस्कराता हूँ

"नही, पहले मैं तुम्हे स्खलित करूँगी" वो कुर्सी के हाथों को पकड़ लेती है, अपनी टाँगे मोड़ कर अपने पाँव मेरे कुल्हों के पास रखती है और फिर आगे को झुक जाती है. उसकी कमर उपर उठती है, फिर नीचे आती है, उपर होती है और फिर नीचे आती है और ऐसा बार बार होने लगता है. मेरी उंगली उसकी चूत के दाने को कुरेदना चालू रखती है. उसका बदन झटके खा रहा था और लगता था वो एक बार फिर छूटने के करीब थी. मगर वो चाहती थी हम दोनो एक साथ स्खलित हो. जब भी हम दोनो एक साथ स्खलित होते तो स्खलन का मज़ा दुगना हो जाता था. अगर मैं छूट जाता तो वो भी छूट जाती. इसीलिए उसके धक्कों मे अब पहेल से ज़यादा जान थी. असलियत में वो मेरी गोद में उछल रही थी.
"उम्म्म्मममह......,धीमे.....थोड़ा धीरे करो.....मैं इसे ज़यादा से ज़यादा समय तक खींचना चाहता हूँ.........धीरे करो"

"नही, .....मैं तुम्हे अपने अंदर छूटते महसूस करना चाहती हूँ" हान्फते हुए वो बोलती है और वो अपनी कमर और भी उँची उठती है और फिर मेरे लंड पर पटकती है. "उफफफफफफफ्फ़! नही" दूसरी बार कमर इतनी उँची उठाने पर मेरा लंड बाहर निकल जाता है. मेरी हँसी निकल जाती है. वो अपने कूल्हे उपर करती है और हाथ नीचे लाकर मेरे लंड को जल्दी जल्दी तलासती है.

"नही! चलो बेड पर चलते हैं" 

वो लंड का सिरा अपनी चूत से सटाने की कोशिस करती है मगर मैं कुर्सी पर हिल डुल उसे सफल नही होने देता.

"नही! बस अब यहीं करना है" वो लगभग चीख उठती है.

"नही, मेरी बात तो सुनो. मैं बस कुछ समय के लिए रफ़्तार कम करना चाहता हूँ. और मैं तुम्हारा चेहरा देखना चाहता हूँ. अब मान भी जाओ"

उसने चेहरा मेरी और मोड़ा, उसकी आँखो में कुछ नमी थी. 
मैने उसके गाल से गाल सटा कर उसे प्यार से सहलाया. वो भी शायद यही चाहती थी जब हम दोनो का एक साथ स्खलित हो तो हम एक दूसरे के चेहरे को देखें, एक दूसरे की आँखों में देखें.
"ठीक है जैसी तुम्हारी मर्ज़ी" हम दोनो मुस्कराते हैं. मैं उसके मम्मो को दबाता हूँ और उसके गालों को चूमता हूँ

"यह हुई ना बात........चलो चलते है." मैने उसके कान में धीरे से कहा

वो उठ कर खड़ी हुई, मूडी, मेरा हाथ पकड़ा और मुझे कुर्सी से खींच कर उठाया. मैने उसे अपनी बाहों में लिया और उसके होंठ चूमे. उसका मुख थोड़ा सा खुला और हमारी जीबो का अक्सर होने वाला रोमांचकारी नृत्य सुरू हो गया. उसकी बाहें मेरी गर्दन पर कसने लगी और मैं उसे पकड़े धीरे धीरे बेड की ओर बढ़ने लगा, मेरा मोटा लंड हम दोनो के बीच रगड़ खा रहा था. 

बेड के किनारे पहुँच कर मैने चुंबन तोड़ा "मैं इस बार एक दूसरे का चेहरा देखते हुए करना चाहता हूँ, मगर........पहले, बेड के किनारे झुक जाओ, ठीक है?"

"तुम्हारा मतलब......तुम्हारा मतलब...डॉगी?" 

"हूँ, बिल्कुल ठीक समझी. मुझे.......मुझे तुम्हारी प्यारी सी गंद देखनी है, बस...बस कुछ ही मिंटो के लिए"
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