RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
नज़ाने इन्ही सोचों मे डूबे मुझे कितना वक़्त बीत गया था कि अचानक मुझे कमरे के बाहर किसी के कदमो की आहट सुनाई दी, फिर किसी ने धीरे से दरवाजा खोला. चरमराहट से दरवाजा खुला और एक पतला सा गहरा काला साया कमरे में घुस गया. अंदर आते ही उस साए ने दरवाजा बंद कर दिया. मेरे जिस्म के रोम रोम में सहरान सी दौड़ गयी, मैने अपनी साँस रोक ली. फिर वो दुबला पतला सा साया मेरे बेड की ओर धीरे धीरे बढ़ा.
"कहाँ हो तुम? कहाँ हो? इतना अंधेरा क्यों कर रखा है कमरे में?"
वो वोही थी! वो वोही थी. वो मेरे पास मेरे कमरे में थी. मेरा दिल मेरे सीने में इतने ज़ोरों से धड़क रहा था कि मैं उसकी आवाज़ अपने कानो में सुन सकता था. मैने कुछ गहरी गहरी साँसे ली और खुद को संभालने की कोशिस की.
"क्या हुआ? तुम ठीक तो हो? इतने अंधेरे मैं क्यों बैठे हो?" अंधेरे मैं वो धीरे से फुसफ्साई.
उसने जल्दी जल्दी दीवार पर लगा नाइट बल्ब का स्विच ढूँढा और उसे दबा दिया. उसने मुझे और मैने उसे देखा, नाइट बल्ब की हल्की सी रोशनी में उसका चेहरा पूरी तरह से दिखाई नही दे रहा था. "क्या......क्या यह रात पहली रातों की तरह सुखद होगी?" मेरी बैचैनि बढ़ रही थी.
एक पल के लिए उसके चेहरे पर बल पड़ गये. मगर अगले ही पल मेरी मनोदशा समझ उसके चेहरे के भाव बदल गये. वो धीरे धीरे चलते मेरे पास आई और मेरी टाँगो को चौड़ा कर उनके बीच में थोड़ा झुक कर खड़ी हो गयी. उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन पर लपेट पहले मेरे गाल और फिर मेरे माथे को चूमा. बहुत धीमे और मधुर स्वर में वो मेरे कान में बोली "मेरे प्रियतम! तीन महीने गुज़र चुके हैं. पूरे तीन महीने!. याद है ना हम दोनो ने एक दूसरे से क्या वायदा किया था? कभी भी एक दूसरे को प्यार के लिए तरसने नही देंगे? कुछ अंदाज़ा है तुम्हे ये तीन महीने मैने कैसे गुज़ारे हैं?"
मेरी आँखे भर आई, गला रुंध गया "मुझे माफ़ करदो...............मुझे माफ़ करदो" मैं बड़ी मुश्किल से बोल पाया. मैं अपने अंदर दुख को पसरते महसूस कर रहा था लेकिन इसकी वजह नही जानता था.
"देखो यह सब नही चलेगा" वो धीरे से फुसफसाई. उसने अपना सर पीछे किया और मेरे होंठो पर एक कोमल सा चुंबन दिया, और फिर मेरी गालों पर बहते आँसुओं को अपने होंठो मे समेटने लगी. वो थोड़ा पीछे की ओर झुकी और मेरी आँसुओं से तर आँखो में झाँकते हुए बोली "जानते हो मैं तुम्हारे पास क्यों आई हूँ?"
मैने अपना गला सॉफ किया और सर ना में हिलाया "क्यों?"
"क्यॉंके मैं तुमसे प्यार करती हूँ. इतना प्यार करती हूँ कि उसे लफ़्ज़ों में बयान नही कर सकती"
मेरे चेहरे पर फिर से आँसू बहने लगे. "मुझे मालूम है तुम मुझे प्यार करती हो. मगर.....आज आज तुमने पहली वार इकरार किया है" मैं चेहरा झुका कर हल्के हल्के रोने लगा.
"इसी बात से तुम इतने उदास हो के रो रहे हो?" वो हल्के से मुस्कराई.
"मैं खुश हूँ........मैं बहुत खुश हूँ कि तुम मुझसे प्यार करती हो. मैं भी तुमसे बहुत ....बहुत प्यार करता हूँ" मैं अपने अंदर अब भी वोही उदासी और डर महसूस कर रहा था जिसका कोई कारण मुझे मालूम नही था.
"अछा..... तो फिर तुम मुझसे फिर से प्यार करना चाहोगे?" उसके चेहरे पर वो मुस्कान बनी हुई थी.
"हुउऊउऊँ......क्या तुम.....क्या तुम मुझसे प्यार करना चाहती हो"
"हां मेरे दिलदार, मेरे प्रियतम! हर दिन, हर पल मैं तुमसे प्यार करना चाहती हूँ. मगर......पहले तुम्हे एक काम करना होगा"
"क्या?" मैने पूछा
उसने अपना दुपट्टा उतारा और मुझे देते बोली "पहले कृपया कर अपने आँसू पोंछिए और अपनी नाक सॉफ कीजिए" वो मुँह पर हाथ रख हँसने लगी.
मैं अब थोड़ी राहत महसूस कर रहा था और उससे हंस कर बोला "अगर तुम इतना ज़ोर देती हो तो मैं कर लेता हूँ"
जब मैं नाक सॉफ कर रहा था तो हम दोनो हंस रहे थे.
"अब अच्छा महसूस कर रहे हो?" उसने मेरे होंठो को चूमा
मेने सहमति में सा हिलाया "हुन्न्ं.......मैं तुम्हे पहले वहाँ चूमना, चाटना चाहता हूँ"
वो उठ कर खड़ी हो गयी और अपनी कमीज़ उतारते बोली "नही पहले मैं तुम्हारा मुँह में लेकर चुसुन्गि"
"नही, नही. पहले मैं तुम्हारी चाटूँगा" मैं मुस्कराते बोला "चाहो तो इसे मेरा हक समझ लो. जल्दी करो. कपड़े उतारो"
"जानती हूँ तुम कितने ढीठ हो!"
"तुम्हारा ही छोटा भाई हूँ. अब जल्दी करो, अपनी सलवार भी उतारो जल्दी से. मैने बहुत लंबा इंतज़ार किया है"
वो अपने कपड़े उतारते हुए मुझे कपड़े उतारते देख रही थी. जब वो मेरे निकट आई तो उसने अपना हाथ मेरे लंड की जड़ पर कस दिया "हाए.....कितना बड़ा है, लगता है जैसे पिछले तीन महीनो में और बढ़ गया है"
मैने एक गहरी साँस ली "तुम तो ऐसे कह रही हो जैसे पहली वार देख रही हो"
वो हंस पड़ी "जानती हूँ. चुप करो और मुझे मेरा काम करने दो" वो ज़मीन पर घुटने टिका कर बैठ गयी. उसने अपना मुख पूरा खोला और मेरे मोटे लंड का अग्रभाग अपने होंठो में दबा लिया. उसकी जिव्हा लंड के कोमल्मुख पर घूम रही थी. फिर उसने ज़ोर से गालों को पिचकाते हुए मेरे लंड को चूसना सुरू कर दिया.
"उफफफफफफफफ्फ़.... हाए......" मेरी उंगलियाँ उसके लंबे काले बालों मे घूमते हुए उन्हे उसके चेहरे से हटा रही थीं. मैने उसके बालों को थामते हुए उसके सर पर हाथ रख दिए. मगर ना मेने उसका मुख अपने लंड पर खींचा और ना ही अपना लंड उसके मुँह में धकेला. बहन ने थोड़ा सा मुखरस निकाल कर मेरे लंड पर मल दिया और लंड चूस्ते चूस्ते उसका एक हाथ मेरे लंड पर आगे पीछे होने लगा. जड़ से उपर की ओर जाते हुए उसका हाथ उसके होंठो को टच करता जो मज़बूती से मेरे लंड पर कसे हुए थे.
"हे भगवान....उफफफ्फ़" मेरी आँखे बंद हो गई और मेने अपने कूल्हे थोड़े से आगे को धकेले.
बिना उपर देखे वो जानती थी उस वक़्त मेरी हालत क्या थी. वो जानती थी कि मेरी आँखे बंद थी, वो जानती थी कि उसकी लंड चुसाई मुझे कितना आनंद दे रही थी. मैने उसे पहले कयि बार बताया था कि वो लूंस चूसने में कितनी माहिर है. उसे लगता था कि मैं उसका दिल रखने के लिए कहता हूँ. उसका हाथ लगातार मेरे लंड पर आगे पीछे हो रहा था मगर उसका मुख लंड के अग्रभाग पर रुक गया था जहाँ उसकी खुरदरी जीभ लंड के टोपे को घिस रही थी.
"आआआहह...ज़ोर से चूसो, ज़ोर से चूसो" मेने आँखे और भी ज़ोर से भींच दी थी. "हुउन्न्ञणन्....इसी तरह.......बस इसी तरह" मेरी साँसे उखड़ने लगी थी. मेने नीचे उसकी ओर देखा. मेरे हाथ अभी भी उसके सर पर थे जिनसे मेने उसके सर को पीछे की ओर धकेला और अपने कुल्हो को भी पीछे को खींचा. "बस....बस....इतना ही काफ़ी है....मैं अभी छूटना नही चाहता"
मगर उसका हाथ मेरे लंड पर और भी तेज़ी से आगे पीछे घूमने लगा. वो शायद मुझे ज़यादा से ज़यादा मज़ा देना चाहती थी. वो मुझे अपने मुँह मे स्खलित करना चाहती थी.. उसका मुख तेज़ी से लंड के अग्रभाग पर घूमने लगा और उसकी जिव्हा लंड के टोपे को सहलाने लगी. मैने अपने हाथों का दबाव उसके सर पर बनाया तो उसने "उम्म्म्ममममम" कर विरोध किया.
"बस करो...उफफफफ्फ़...भगवान के लिए. मैं तुम्हारी चाटना चाहता हूँ"
मेरी बात का उस पर कोई असर ना हुआ तो मैने अपने कुल्हों को ज़ोर से पीछे की ओर झटका दिया. "पोप" की आवाज़ से मेरा लंड उसके मुख से बाहर आ गया.
"नही....इधर आओ. मुझे तुम्हारा रस पीना है" वो थूक गटकते गुस्से से चिल्लाई.
मगर मैं पहले ही घुटनो के बल ज़मीन पर बैठ चुका था "मुझे तुम्हारी नन्ही सी, प्यारी सी, मीठी चूत को चखना है.
बहन ने पलकें झपकाई, फिर उसके चेहरे पर शरारती हँसी फैल गयी जैसे वो कुछ छिपा रही थी.
"तुम्हे वाकई मे मेरी चूत चखनी है? कहीं तुम्हारा मूड सीधे अंदर घुसा कर मुझे प्यार करने का तो नही है?"
"तुम्हारे उस नन्हे, प्यारे और स्वादिष्ट फूल को चूमना भी मेरे लिए तुमसे प्यार करने से कम नही है. कितनी दफ़ा मुझे यह बात तुम्हे बतानी होगी?"
"ओह, उः....हा..हो......बड़े अच्छे से याद है मुझे तुम्हारी बात" वो मुस्कराती है. मैं उसकी टाँगे खोलता हूँ तो उसकी गीली चूत की मदमस्त महक मेरे नथुनो से टकराती है. वो पीछे को लेटकर कोहनियों के बल सर तोड़ा उँचा कर लेती है. कमरे में लाइट लगभग किसी दिए जैसे ही थी शायद इसीलिए पहले मेरा ध्यान इस ओर नही गया.
"तुमने चूत पे शेव की है" मैं अशर्यचकित हो गया था.
मेरे चेहरे पर हैरत देख कर उसका चेहरा खिल उठता है "हूऊऊओन..........तुम्हे अच्छा...."
मेने उसके चुतड़ों को पकड़ उसे उपर को उभारा और अपना चेहरा नीचे उसकी चूत से सटा दिया. मेरी गरम जीभ उसकी चूत को और उसके आसपास के शेव्ड कोमल हिस्से को नहला रही थी. चूत चटाई से उसकी हालत एकदम से पतली होने लगती है. उसकी अति कोमल और संवेदनशील चूत में घूमती मेरी खुरदरी जीभ से जो मज़े की ज़बरदस्त लहरें उठना सुरू होती हैं तो वो अपने कंधे और सर को नीचे गिरा देती है.
"हाए....हाए...उफफफफ्फ़" वो सीस्या उठती है. उसकी सांसो की रफ़्तार बढ़ जाती है. मैं अपनी जीभ को चूत के दाने पर घिसता हूँ तो उसका पूरा जिस्म उस अनोखे मज़े के कारण काँपने लगता है.
मैं चेहरा उपर उठाकर उसकी चूत को निहारता हूँ और चूत के मोटे होंठो पर गरम गर्म चुंबन लेता हूँ और फिर उसे बोलता हूँ "अपनी टाँगे मोड़ कर अपनी छाती से लगा लो" मैं फिर से एक बार चेहरा नीचे करता हूँ और अपनी जीभ उसकी गुलाबी चूत मे डुबोता हूँ.
जैसे मैने उसे कहा था उसने वैसा ही किया. वो अपनी टाँगे मोड़ती है और पीछे को करती है. अपने हाथों से अपनी एडीया पकड़े वो अपनी टाँगे मोड़ कर अपनी छाती सेलगा लेती है. इससे उसकी चूत खुल कर मेरे सामने आ जाती है. हमारे संबंध की शुरुआत में जब मैने उसे ऐसा करने के लिए बोला था तो उसने सॉफ मना कर दिया था, क्योंकि ऐसा करने में उसे बद्चल्नी करने जैसा महसूस होता था मगर जाहिर था अब उसे ऐसा करने में कोई एतराज़ नही था. मैं अपनी जीभ फिर से उसकी चूत में घुसाता हूँ और उसे घुमा घुमा कर मरोड़ कर उसकी चूत को चाटता हूँ. वो अपना सर गद्दे मे दबाती है और उसकी गर्दन तन जाती है. "उफफफफफफ्फ़ हााईयईईईईईई" वो कराह उठती है. मेरी जीभ चूत के दाने को घिसती है, रगड़ाती है, अपनी जिव्हा की नोंक से मैं उस गुलाबी फूल को इधर उधर घुमाता हूँ, उसे अपनी जिव्हा से ढँक देता हूँ, कभी उसे फिर से सहलाता हूँ और फिर से रगड़ता हूँ. बहन की संकुचित होती चूत से जाहिर था वो अब मंज़िल के करीब है, इतनी करीब कि वो होंठ और आँखे भिंचे चीख रही थी.
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