RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मेरी हालत थोड़ी अजीब सी थी. एक तरफ तो मैं घर नही जाना चाहता था क्योंकि जो आनंद मुझे कल माँ ने दिया था वो लफ़्ज़ों में भी बयान नही किया जा सकता था और मैं उस आनंद को एक रात तक सिमट ना रखकर कयि दिनो बल्कि कयि हफ्तों तक खींचना चाहता था. मगर ऐसा संभव तो नही था.
उधर दूसरी तरफ मुझे घर जाने की जल्दबाज़ी भी हो रही थी, मुझे ना जाने क्यों बहन की बहुत चिंता हो रही थी. वो कल रात से अकेली थी. हम माँ बेटा जब उस अनैतक मिलन मे संलग्न थे तो वो बेचारी शायद हमारी चिंता में घुल रही होगी. बहन के साथ नाता जुड़ने के बाद जब मेरे दिल में माँ के बारे में ख़याल आता तो मुझे लगता की मैं बहन के साथ दगा कर रहा हूँ. जब माँ से मेरी नज़दीकियाँ बढ़ गयी तो मुझे बहन का ख़याल आने से लगता कि मैं माँ से दगा कर रहा हूँ, हालाँकि माँ और मेरे बीच उस समय असलियत में माँ बेटे के सिवा और कुछ भी नही था. और आज जब मैं अपनी ज़िंदगी की सबसे सीन रात बिताकर घर लौट रहा था तो मेरा दिल ना जाने क्यों बैचैन होता जा रहा था. जब भी मुझे ख़याल आता कि जब मैं कल रात माँ के साथ कितना आनंदमयी समय बिता रहा था और बहन बिल्कुल तन्हा बिल्कुल अकेली सूने घर में हमारे आने की राह देख रही होगी तो मेरे दिल पर आरी सी चल जाती. बहन का चेहरा रह रहकर मेरी आँखो के सामने आ जाता और मुझे ऐसा लगता जैसे कल मैने जिंदगी का जो सुख पाया था उसका बदले मुझे कोई भारी कीमत देनी थी.
जैसे जैसे गाँव नज़दीक आता जा रहा था मेरी धड़कन बढ़ती जा रही थी. मैं अपने मन को तस्सली दे रहा था कि बहन के साथ मेरे रिश्ते में कुछ भी ग़लत नही था और जो ग़लती मेने उससे दूरी बनाकर की थी उसे मैं आज एक ही दिन में दूर कर दूँगा, कि आज दिन और पूरी रात मैं उसे इतना प्यार करूँगा कि वो पिछले दिनो की तन्हाई भूल जाएगी, मैं उसे इतना प्यार करूँगा कि मुझे उसे छोड़ने के लिए बोलेगी तो भी उसे नही छोड़ूँगा. उसे इतना प्यार करूँगा, इतना प्यार करूँगा........
हम घर में दाखिल हुए तो देखा बहन घर पर नही थी. शायद दुकान पर थी. मगर इतनी सुबह सुबह हम दुकान नही खोलते थे और वो भी ऐसे मौसम में? हमारे कपड़े बारिश से पूरी तरह भीग गये थे, माँ कपड़े बदलने लगी और मुझे कहने लगी कि बहन को दुकान से बुला लाऊ. वैसे भी ऐसे मौसम में कुछ खास कमाई नही होती थी. मैं दुकान की ओर चल पड़ा. मैं तेज़ तेज़ कदम उठा रहा था. मेरी उस समय एक ही ख्वाहिश थी कि जल्द से जल्द उसका खूबसूरत चेहरा देख लूँ, तभी मेरे दिल को सकुन आने वाला था. मगर दुकान पर पहुँचते ही मेरे पैर ठिठक गये. दुकान बंद थी. मुझे घबराहट होने लगी. शायद किसी सहेली को मिलने गयी होगी. मैं बैचैन मन को तस्सली देता घर को वापस चल दिया. शायद वो अब घर लौट भी आई होगी. मैं घर पहुँचा और माँ को आवाज़ दी, उसे बताया कि बहन दुकान पर नही थी. पर माँ ने कोई जबाब नही दिया. मैं अपने और बहन के कमरे से होकर माँ के कमरे में गया, पर वो वहाँ नही थी. शायद वो रसोई में थी. मैं रसोई की और गया देखा माँ वहीं थी और एक कुर्सी पर बैठी हुई थी, मेरी ओर उसकी पीठ थी. मैने रसोई की ओर जाते हुए फिर से माँ को पुकारा मगर वो चुप रही, उसने पीछे मुड़कर भी नही देखा. मैं थोड़ा हैरान था, ये माँ को अचानक क्या हो गया. रसोई में दाखिल हुआ तो देखा माँ के कंधे ज़ोरों से हिल रहे थे, जैसे वो हंस रही थी. तभी माँ ने ज़ोरों से हिचकी ली और धीरे से अपना चेहरा मेरी ओर घुमाया. मेरे कदम वहीं ठिठक गये, दिल बैठने लगा. माँ का चेहरा आँसुओं से तर था, वो रो रही थी. उसके हाथ में काग़ज़ का एक बड़ा सा टुकड़ा था
"वो चली गयी....,.,वो चली गयी....... वो हमें छोड़ कर चली गयी"
"वो चली गयी........हमे छोड़ कर चली गयी" मुझे एकदम से कुछ समझ में ना आया. ये माँ को हो क्या गया है. किसके बारे में बात कर रही है, कौन, कहाँ चली गयी है, माँ ऐसे रो क्यों रही है.
माँ के इस तरह सूबक सूबक कर रोने से, उसके हाथों में उस काग़ज़ के टुकड़े से और बहन की घर में अनुपस्थिति से मुझे मालूम था कि वो किसके बारे में बात कर रही है. मगर दिल ने उस बात को पूरी तरह से नकार दिया. ऐसे हो ही नही सकता था. भला वो हमे छोड़ कर क्यों जाएगी, किस लिए छोड़ेगी हमे. वो और हमें छोड़ कर चली जाए.....नही...नही...नही. ये संभव नही था. शायद माँ को ग़लती लगी है. लगता है उसने कोई मज़ाक किया है. और हमारे हमारे सिवा दुनिया में उसका है कौन. यहाँ मेरा दिमाग़ इसके चले जाने की बात मानने से इनकार कर रहा था, अपने तर्क दे रहा था, वहीं दिल में दर्द की लहरें उठ रही थी. मुझे साँस लेने में तकलीफ़ हो रही थी. लगता था जैसे अंदर कुछ टूट रहा था. एक पल के लिए मैने कल्पना की कि माँ की बात सच है और वो वाकई हमे छोड़ कर.......नहिंन्नननननणणन्.......ऐसा नही हो सकता.....ऐसा कतयि नही हो सकता. कल्पनामात्र से मेरे रोम रोम मे सहरान दौड़ गयी, दिल में चीखो पुकार मचने लगी. मैं अपनी अंतरात्मा में भगवान के आगे प्रार्थना करने लगा कि यह बात झूठ हो.
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