Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
12-28-2018, 12:39 PM,
#7
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
अगले दिन मैं दोपेहर को बहुत जल्दी घर लौट आया. मैने उसे उसी कमरे में पंखे के नीचे बैठे पाया. उसने पिछले दिन वाला वोही ब्लाउस और स्कर्ट पहना हुआ था, मैं जब खेतों के लिए घर से निकला था तो वो धो कर तार पर सूखने के लिए डाले हुए थे. मैने कुर्सी उठाकर उसके पीछे रखी तो उसने मूड कर उसे दूर हटा दिया. फिर उसने मुझे उसके पीछे बिना कुर्सी के नीचे बैठने का इशारा किया. 

मैं फटाफट उसके पीछे बैठ गया. उसने अपनी टाँगे सीधी फैला कर उन्हे घुटनो से मोड़ कर थोड़ा उपर उठाया और फिर मेरी जाँघो के दोनो और हाथ रखते हुए पीछे को थोड़ा झुकते हुए उसने अपना सिर मेरी ओर बढ़ाया ताकि मुझे कंघी करने में आसानी हो सके नतीजतन उसकी छाती सामने से उभर गई. उसके भारी मम्मे ब्लाउस के उपर से अपना आकार दिखा रहे थे. मेरे घुटने उसके चुतड़ों की साइड्स को टच कर रहे थे और मैं उसके कोमल और जलते जिस्म को अपनी जाँघो के बीच महसूस कर रहा था. 

"ये अभी नही तो कभी नही" का मौका था.

मेरी साँसे भारी हो चली थी, मैं अपनी बाहें उसकी पीठ के दोनो और से आगे ले गया और अपने काँपते हाथ उसके ठोस मम्मों पर रख दिए. 

वो एक दम से स्थिर हो गयी, बिना हिले डुले उसी तरह बैठी रही. मैं धीरे धीरे सावधानी पूर्वक उसके मम्मों को दबाने लगा, दुलार्ने लगा. वो बस थोड़ा सा कसमसाई. मेरा उत्साह बढ़ गया और मैने उसके ब्लाउस में हाथ डाले और उपर करते हुए उसके नंगे मम्मों को पकड़ लिया. मेरे हाथ नग्न मम्मों को छूते ही उसका जिस्म लरज गया उसने छाती को आगे से उभार दिया. त्वचा से त्वचा का स्पर्श होने पर मेरी साँसे उखड़ रही थी. मैं लाख कोशिस करने पर भी ज़िंदगी भर उस अविश्वसनीय एहसास की कल्पना नही कर सकता था जो एहसास आज मुझे असलियत में उसके मम्मे अपने उत्सुक हाथों में थामने पर हुआ था. उसकी साँसे भी मेरी तरह उखड़ी हुई थी और वो मेरे हाथो मे मम्मे दिए तड़प रही थी. 

जितनी तेज़ी से मैने अपनी कमीज़ उतारी उतनी ही तेज़ी से उसका ब्लाउज उतर गया. वो मेरी ओर घूमी और घुटनो के बल खड़ी हो गयी, मैं भी उसके सामने घुटनो के बल हो गया और उसके जिस्म को अपनी बाहों में भर लिया. उसके मम्मे मेरी नग्न छाती पर और भी सुखद और आनंदमयी एहसास दिला रहे थे. हमारे भूखे और लालायित मुँह ने एक दूसरे को ढूँढ लिया और हम ऐसे जुनून से एक एक दूसरे को चूमने और आलिंगंबद्ध करने लगे कि शायद हमारे जिस्मो पर खरोन्चे लग गयी थी. हमारा जुनून हमारी भावनाएँ जैसे किसी ज्वालामुखी की तरह फट पड़ी और हम एक दूसरे के उपर होने के चक्कर में फ़राश पर करवटें बदल रहे थे. 

हमारी साँसे इस हद तक उखड़ चुकी थी कि हमें एक दूसरे से अलग होना पड़ा ता कि हम साँस ले सके. मुझे बहुत तेज़ प्यास भी महसूस हो रही थी और मुझे पानी पीना था. इतना समय काफ़ी था हमारी दहकती भावनाओं को थोड़ा सा ठंडा होने के लिए और वापस ज़मीन पर आने के लिए.

हम ने फिर से एक दूसरे को चूमना और सहलाना चालू कर दिया, पहले कोमलता से मगर जल्द ही हम उत्तेजना के चरम पर पहुँच गये. हम एक दूसरे की जीभों को काटते हुए चूस रहे थे. हम ने अपनी भावनाएँ अपने जज़्बातों को इतने लंबे समय तक दबाए रखा था कि अब सिर्फ़ चूमने भर से हमें राहत नही मिलने वाली थी. हमें अपनी भावनाएँ अपना जुनून व्यक्त करने के लिए कोई प्रचंड, हिंसक रुख़ अपनाना था. हमें अपने अंदर के उस भावनात्मक तूफान को प्रबलता से निकालने की ज़रूरत थी.

उसकी स्कर्ट मेरी पेंट के मुक़ाबले कहीं आसानी से उतर गयी. जब तक मैं कपड़े निकाल पूरा नंगा हुआ, वो फर्श पर टाँगे पूरी चौड़ी किए लेटी हुई थी. मैं जैसे ही उसकी टाँगो के बीच पहुँचा तो उसने एक हाथ आगे बढ़ा मेरा लंड थाम लिया और उसे अपनी चूत के मुँह पर लगा दिया. उसकी चूत अविश्वसनीय हद तक गीली थी और मेरा लंड किसी लोहे की रोड की तरह सख़्त था और मैं कामोत्तेजना के चरम पर था. मैने अपनी बेहन के कंधे पकड़े और पूरा ज़ोर लगाते हुए लंड अंदर घुसेड़ने लगा. जैसे जैसे मेरा लंड अंदर जा रहा था उसके चेहरे पर पीड़ा की लकीरे उभरती जा रही थी. कुछ दूर जाकर मेरा लंड रुक गया, मैने आगे ठेलना चाहा मगर वो जा नही रहा था, जैसे बीच में कोई अवरोध था. लंड थोड़ा पीछे खींचकर मैने एक ज़ोरदार धक्का मारा और मेरा लंड उस अवरोध को तोड़ता हुआ आगे सरकता चला गया. मेरी बेहन जिसके हाथ मेरे कुल्हों पर थे, उस धक्के के साथ ही उसने मेरे कंधे थाम लिए. उसके मुख से एक घुटि सी चीख निकल गयी. वो सर इधर उधर पटक रही थी. 

"क्या हुआ? दर्द हो रहा है? अगर ज़्यादा दर्द है तो मैं बाहर निकाल लूँ" 

"बाहर नही निकालना" वो मेरी बात काटते हुए लगभग चिल्ला पड़ी "पूरा अंदर डाल दो, रुकना नही" उसके होंठ भिंचे हुए थे जैसे वो असीम दर्द सहन करने की चेस्टा कर रही थी. मैने जो थोड़ा सा बाकी लंड था वो भी उसकी चूत में उतार दिया. जितना शारीरिक तौर पर संभव हो सकता था मैं उसकी चूत के अंदर गहराई तक पहुँच चुका था. जल्दी ही मैने उसकी चूत में ज़ोरदार धक्के लगाने शुरू कर दिए. बेहन की चूत जितनी टाइट थी उतनी ही वो गीली थी. कुछ पलों बाद उसके चेहरे से दर्द के भाव धीरे धीरे कम होने लगे. उसके हाथ वापिस मेरे कुल्हो को थाम कर अपनी ओर खींचने लगे ता कि मैं पूरी गहराई तक उसके अंदर अपना लंड डाल सकूँ. उस रात मैने उसे पूरी कठोरता से चोदा. उसे मैने पूरी गहराई तक चोदा. मैने उसे खूब देर तक चोदा. मैने उसे ऐसे चोदा जैसे वो हमारी ज़िंदगी का आख़िरी दिन हो. उसकी चूत से रस निकल निकल कर मेरे लंड को भिगोते हुए फर्श पर गिर रहा था और वो मेरे लंड के ज़ोरदार धक्के खाती आहें भरती, सिसकती मेरे नीचे किसी जल बिन मछली की तरह मचल रही थी. 

मैं नही जानता उसका सखलन कब हुआ, हुआ भी या नही हुआ. मगर मैं इतना जानता हूँ मुझे सखलित होने में काफ़ी समय लग गया हालांकि उसकी चूत में लंड डालते ही मुझे अपने लंड पर ऐसी तपिश महसूस हुई कि मुझे लगा मैं उसी पल झड जाउन्गा. मैं उसे इतनी देर तक तो चोद सका कि उसकी अति सन्करी चूत मे अपने लंड के घर्सन से होने वाली सनसनी का आनंद ले सकूँ. 

मेरा स्खलन प्रचंड वेग से आया. जब मेरा स्खलन शुरू हुआ तो मैं जितनी कठोरता और जितनी तेज़ी से धक्के लगा सकता था मैने लगाए. आनंद और दर्द से मेरा शरीर कांप रहा था, हिचकोले खा रहा था जब मैने अपनी बेहन की चूत के अंदर मन भर वीर्य निकाला और वो मुझसे कस कर चिपकी हुई थी. 

बुरी तरह थका मांदा मैं अपनी बेहन के उपर लेट गया. मेरी साँसे उखड़ी हुई थी. उसने मेरी टाँगो के गिर्द अपनी टाँगे कस कर मुझे अपनी गिरफ़्त में ले लिया और मेरी पीठ सहलाते हुए मुझे शांत करने लगी ताकि मैं वापस धरती पर आ जाऊं. आख़िर में जब मैं उसके उपर से हटा और अपने लंड की ओर देखा तो मुझे एहसास हुआ कि मेरी बेहन को इतनी पीड़ा क्यों हो रही थी. मेरे लंड और उसकी चूत के मुख पर खूब सारा खून लगा हुआ था. मैने अपनी बेहन का कौमार्य भंग किया था. मैने कभी नही सोचा था कि वो अब तक कुँवारी होगी. एक तरफ तो मैं अपनी बेहन को हुई तकलीफ़ के लिए थोड़ा शर्मसार हो गया मगर वहीं मुझे अपने पर गर्व महसूस हुआ कि मैं वो पहला मर्द था जिसने उसे भोगा था जिसने किसी अप्सरा से भी बढ़ कर उस औरत का प्यार पाया था. मेने अपने होंठ अपनी बेहन के होंटो पर रख दिए और जब तक हमारी माँ न आ गयी मैं उसे चूमता रहा, उसे सहलाता रहा, उसे दुलारता रहा. 

वो रात और उसके बाद की रातें हमारी रातें बन गयी. जब मेरी माँ शाम को शोभा के घर चली जाती तो मैं और मेरी बड़ी बेहन किताब में दिखाए उन विभिन्न आसनो या संभोगिक मुद्राओं को आज़माते. हम दोनो ने भी कयि नये आसनो को खोजा मगर रात का अंत या तो मेरी पसंदीदा पोज़िशन में चुदाई करते होता या फिर उसकी पसंदीदा पोज़िशन में

जब मैने और मेरी बेहन ने एक साथ सोना शुरू किया तो नियमित तौर पर शारीरिक ज़रूरतें पूरे होने का फ़ायदा मुझे पहले हफ्ते में दिखाई देने लगा. मैं अब तनावग्रस्त नही था और मेरे अंदर मचलने वाला वो कोलाहल अब मुझे परेशान नही करता था. बेहन से चुदाई करके मैं जैसे एक नयी तरह की उर्जा महसूस करने लगा था. मैं पूर्णतया संतुष्ट था, ना सिर्फ़ शारीरिक तौर पर संतुष्ट था बल्कि भावनात्मक तौर पर भी ---और मेरी बेहन भी. हम दोनो हर तरह से खुश थे. हमारे चलने में खाना खाने में हर काम में उत्साह होता था जिसे मेरी माँ ने भी महसूस किया था. यकायक हमें अपने गाँव जैसी उस घटिया जगह में भी संतोष की अनुभूति होने लगी थी. यहाँ तक कि मैं सुबह को जल्दी उठने लगा था क्योंकि मुझसे दिन चढ़ने का इंतज़ार नही होता था. 

शुरुआत में हमारा संभोग थोड़ा अटपटा होता था. एक तो हम दोनो नये थे और दूसरा एक दूसरे को समझने की कोशिस कर रहे थे. हम हद से ज़्यादा जोश से भरे थे और अक्सर इसी जोश में संभोग के समय हम गड़बड़ा जाते . एक दूसरे के जिस्म को कैसे छूना है कैसे प्यार जताना है, कैसे शुरुआत करनी है, कैसे आगे बढ़ना है इन सब बातों का हमे पूर्ण ज्ञान नही था इसलिए हर नयी खोज में विस्मय के साथ हमारा फूहड़पन भी शामिल होता. मगर जब लावा पूरी तरह फूट कर हमारे अंदर से बाहर आ गया तो हम दोनो शांत होने लगे थे. जब सब कुछ एकसाथ जल्दी जल्दी कर लेने का जोश थोड़ा ठंडा पड़ने लगा तो हम ने कुछ बातों पर ध्यान देना शुरू किया. बिस्तर में हमारा तालमेल सुधरने लगा और हम एक दूसरे के साथ एसी हरकतें करने लगे जिससे हमारा संभोग अत्यंत आनंदमयी होने लगा. अब एक दूसरे के साथ समय बिताना बेहद मज़ेदार और रोमांचित होता था. 

बहुत जल्द हम एक दूसरे के बदन की सुगंध, एक दूसरे की पसंद-नापसंद और आदतों के आदि हो गये थे. मुझे वो अति स्वादिष्ट या रुचिकार लगती थी. हमारे अंतरंग पलों में उसका साथ कितना सुखद कितना आनंदमयी होता था, मैं बयान नही कर सकता. मुझे उसे अपनी बाहों में भर कर सीने से लगाना, उसके भारी मम्मों को अपनी छाती पर महसूस करना बहुत अच्छा लगता था, सबसे ज़यादा मुझे अच्छा लगता था जब मेरा लंड उसकी चूत के अंदर होता था. कई बार एसा होता था जब मैं उसके पसंदीदा आसान में बैठकर अपना लंड उसकी चूत में गहराई तक उतार देता और हम दोनो सुबह होने तक एक दूसरे को चूमते और सहलाते रहते. चरम पर पहुँचने की कोई जल्दबाज़ी ना होती जब तक धीरे धीरे गरम होता पानी उबलने ना लग जाता, हम अपने अंदर गहराई में वो कम्मोतेजना का चरम बिंदु महसूस करते. और फिर जब भी मैं उसके अंदर छूटता तो इतने ज़ोरदार तरीके से मेरी भावनाओं का उफान बाहर आता और मुझे उस समय ऐसा मज़ा ऐसा आनंद आता जिससे बढ़कर दुनिया में कोई मज़ा कोई आनंद नही हो सकता था, इससे बढ़कर दुनिया में कुछ सुंदर नही हो सकता था. 

मेरी बड़ी बेहन पर उत्तेजना के उस चरम का प्रभाव अविश्वसनीय था. संभोग से पहले और संभोग के समय वो बहुत स्नेह बहुत प्यार जताती मगर चरम हासिल करने के बाद तो वो इबादत की, अति प्रेम की आराधना की जिंदा मिसाल बन जाती. वो इतना प्यार इतना स्नेह, इतनी इज़्ज़त देती कि मैं हैरान हो जाता. मैं उन पलों का खूब आनंद लेता, खुद पर गर्व महसूस करता कि उसे उस खास रूप में ढालने वाला मैं था. मुझे ख़ुसी महसूस होती कि मैं ना सिर्फ़ उसे चरम सुख देने में सफल होता था या इस बात का कि खुद आलोकिक आनंद लेते हुए वो इस बात का भी ध्यान रखती थी कि मैं भी उसी आलोकिक आनंद को महसूस कर सकूँ, बल्कि मुझे असल खुशी तब महसूस होती जब मैं उसके मुख से निकलने वाली संतुष्टि की उन आवाज़ों को सुनता जब उसका जिस्म उसकी देह जैसे किसी जादू की तरह मेरे जिस्म के नीचे मचलती. कई बार चरम सुख के आनंद से अविभूत उसकी आँखो में आँसू आ जाते और वो रो पड़ती. उन खास मौकों पर मैं उसे अत्यधिक समय तक अपने सीने से चिपटाये रखता और हम एक दूसरे को देर तक दुलारते और सहलाते रहते. 

पूरे संसार की नज़रों से बचते हुए हम एक पति पत्नी की तरह रह रहे थे. वो मेरी प्रेमिका थी, मेरी पत्नी थी, मेरी हमसाया थी. मैं उसका साथी था, उसका प्रेमी था, उसका मर्द था. हम दोनो पति पत्नी की तरह रहते हुए घर के काम काज किसी पति पत्नी तरह करते थे. हमारी माँ भी उसी घर में रहती थी मगर वो हमारे आड़े नही आती थी क्यॉंके उसका ज़्यादातर समय सोभा के साथ कटता था. जब भी वो हमारे साथ होती तो हम वापस उसके बेटा बेटी बन जाते और उसी तेरह पेश आते मगर जैसे ही वो वहाँ से जाती, वो हमारे मिलन का समय होता, हमारे एक दूसरे के प्रति उस दिली प्यार को एक दूसरे के लिए उन इच्छाओं को दिखाने का समय होता.

मेरी बहन संभोग को मेरे से ज़्यादा नही तो कम सा कम मेरे जितना तो पसंद करती थी. वो सब काम जल्द से जल्द निपटाने की कोशिश करती ताकि ज़्यादा से ज़्यादा समय हम एक दूसरे के साथ बिता सके. पहले पहल हमारा ज़्यादातर समय प्यार करते हुए बीतता. मगर जब हम ने उस कामनीय भूख पर विजय पा ली तो हालत कुछ सामान्य होने लगे, जब हमें इस बात का यकीन हो गया कि यह सब असलियत है, हमारा रिश्ता, हमारा प्यार असलियत है, हमारा साथ असलियत है और हम जब तक चाहे अपना रिश्ता कायम रख सकते हैं तो हमारा मिलन चुदाई तक सिमट ना रहकर एक दूसरे के प्रति असीम प्यार दर्शाने की निरंतर गतिबिधि बन गया. हम एक दूसरे को ज़्यादा से समय तक छेड़ छाड़ करने पर ध्यान देते, एक दूसरे को ज़्यादा से ज़्यादा कामोत्तेजित करते, ना कि जल्दी जल्दी चूत में लंड डाल कर चुदाई करने की.

और अब मैं अपने सामने सब कुछ सॉफ देख सकता था, समझ सकता था.

अब मेरा पूरा समय संभोग के बारे में सोचते हुए नही गुज़रता था और ना ही सोभा, अपनी बहन या अपनी माँ के बारे में कल्पनाएं करते हुए. अब मेरा मन अपने पिता की उस गुप्त किताब में दिखाए आसनो को किसी के साथ आज़माने के लिए नही तरसता था . अब मैं यह सब अपनी बड़ी बहन के साथ असलियत में कर रहा था और इससे मेरी भूख पूरी तरह मिट रही थी. पहले मैं खेतों में खाली बैठकर बिना कुछ किए समय ब्यतीत करता था. मेरे बदन में लबालब भरा वीर्य जो बाहर निकलने के लिए उबलता रहता था जैसे मेरा ध्यान किसी और चीज़ की ओर जाने ही नही देता था. अब वो वीर्य नियमित तौर पर मेरे शरीर से बाहर निकल रहा था और इसलिए मेरे दिमाग़ ने उन सब दूसरी चीज़ों की ओर भी ध्यान देना शुरू किया जो ज़िंदगी में मायने रखती हैं. सबसे अद्भुत बात यह थी कि अपनी पूरी ऊर्जा अपनी बहन के अंदर खाली करने के बाद भी मैं अपने को ज़्यादा फुर्तीला, ज़्यादा ताकतवर महसूस करता. यहाँ तक कि मैं बहुत मेहनती होने लगा था. 

अब मैने अपनी जीवन की ओर ध्यान देना शुरू कर दिया था..यह किस ओर जा रहा था. मैं इसे कैसे सुधार सकता था और किस तरह मेरा और मेरी बड़ी बेहन का भविष्य उज्वल हो सकता था. 

बदक़िस्मती से हमारे गाँव में कोई ऐसा मौका नही मिलने वाला था जिससे हमारा भविष्य सुधर सकता और किसी दूसरी जगह जहाँ हमें कोई ऐसा मौका मिलता, जाने के लिए हमारे पास पर्याप्त साधन नही थे. मैं बहुत कुछ करना चाहता था मगर वहाँ कुछ करने के लिए ही नही था. मैं यात्रा पर निकलने के लिए तैयार था मगर मंज़िल कोई नही थी. मैने और बेहन ने इस मुद्दे पर बहुत विचार विमर्श किया मगर हम कुछ नतीजा ना निकाल सके. हमें कुछ भी सूझ नही रहा था. बिना किसी बदलाव के हमें वोही ज़िंदगी वैसे ही चालू रखनी थी. मगर उस बात ने मुझे हताश नही किया जैसे अक्सर पहले ऐसे हालातों में मेरे साथ होता था. वो हमेशा मेरे साथ होती थी और उसका साथ मुझे ना सिर्फ़ निराशा से बचाता था बल्कि मेरा हौसला भी बढ़ाता था. 

मैं सुबह बहन के साथ उठकर तैयार हो जाता, वो दुकान पर चली जाती और मैं खेतों को. पहले मेरा जल्दी जाने का इरादा इसलिए होता था कि मैं जल्द से जल्द पशुओं को चारा पानी डाल दूं, और उसके बाद जल्द से जल्द घर वापुस आ जाऊं ताकि अपनी बेहन के साथ ज़्यादा से ज़्यादा वक़्त गुज़ार सकूँ उससे अच्छी बात यह होती थी कि मैं अपना दिन बहन के साथ शुरू करता और उसकी साथ अंत करता. मगर इतनी सुबह जाने की हानि यह हुई कि मेरी माँ ने जब मुझे खेतों में इतनी सुबह जाते देखा तो उसने खेतों में जाना बंद कर दिया जैसे वो सुबह के समय करती थी. वो उस समय को भी सोभा के साथ बिताने लगी जबकि अब उसके हिस्से का काम मुझे करना पड़ता या कुछ और काम भी जो करना ज़रूरी होता. 

जब मैं खेती संबंधी काम करने लगा तो मुझे खेतों के बारे में जानकारी होने लगी. चाहे यह मूर्खता लग सकती है मगर यह सच था. मैने ज़िंदगी मे पहली बार खेतों में एक नाला खोदा ता कि बारिश का पानी ज़्यादा होने पर निकाला जा सके और हमारी थोड़ी बहुत होने वाली फसल बचाई जा सके. इससे पहले मैने कभी ध्यान नही दिया था कि हमारे पास क्या है. पहले खेतों में जहाँ तक मेरी नज़र जाती थी सिर्फ़ घास और झाड़ियाँ थी मगर अब बरसात शुरू होने वाली थी और मुझे चिंता लगी थी कि मैं कैसे बल्कि कहाँ फसल बोउँगा ताकि हमारे आने वाले साल भर का गुज़ारा चल सके. तब मुझे एहसास हुआ कि इस घास और इन झाड़ियों के नीचे ज़मीन है जो धन के बिना भी बहुत कुछ उगा सकती है. मेरी बेहन हमेशा ताज़ी सब्ज़ियों की कमी के लिए परेशान रहती थी जो वो स्टोर में बेचती थी, मैं उसका पूर्तिकर बन सकता था उसे वो सब सप्लाइ कर सकता था. मैं कुछ फलों के पेड भी लगा सकता था जिनके फल पकने पर बेचे जा सकते थे. हमारी दुकान और हमारी ज़मीन के बीच एक कड़ी थी, एक संपर्क था और यही कड़ी मेरे और मेरी बेहन के बीच थी. हम दोनो मिलकर बेहतर भविशय के लिए काम कर सकते थे ----और एक दूसरे के बिना भी. मैं उसे उन सभी वस्तुओं की पूर्ति कर सकता था जिसे बेचने की उसे ज़रूरत होती और वो वो सब बेच सकती थी जो मैं उसे मुहैया कराता. मैं दुकान में सामान देकर पैसा कमा सकता था और वो उस समान को आगे बेचकर अपने ग्राहकों से कमाई कर सकती थी जो हमेशा ताज़ी सब्ज़ियों, ताज़े फलों, ताज़े दूध और ताज़े मीट की कमी के लिए दुकान को कोसते रहते थे. इसी ज़मीन पर हमारे पशुओं का झुंड चरता था जो हमारे ग्राहकों के लिए ताज़ा दूध और मीट का बंदोबस्त कर सकता था. मैं इस झुंड को बढ़ा सकता था, बहुत ज़यादा बढ़ा सकता था सिर्फ़ गाय ही नही बल्कि भेड़, बकरियाँ और मुर्गियाँ भी पाल सकता था. मैं सिर्फ़ अपनी दुकान को ही नही बल्कि आस पास के गाँव और फिर शहर को भी सप्लाइ कर सकता था!!!!!!
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