RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मुझे कोई ख़ास कोई रहस्यमयी, कोई गुप्त तरीका अपनाना था जिससे कि मैं उससे कोई संकेत कोई इशारा हासिल कर सकूँ कि उसकी पसंदीदा पोज़िशन कोन्सि है. और बिना किसी सीधी बातचीत के बिना किसी तरह सीधे सीधे यह जताए कि मैं क्या पूछना चाहता हूँ यह काम बेहद मुश्किल था. जब मैं इस बात को लेकर हैरान परेशान था कि उसकी पसंदीदा पोज़िशन कोन्सि है तो एक सवाल और भी था जिसने मुझे परेशान किया हुया था वो कैसे कल्पना करती थी या असल में किसके साथ कल्पना करती थी. मेरी तरह उसकी कल्पनाओं का कोई पार्ट्नर इस गाँव से तो कम से कम नही हो सकता था.
मैं तो सोभा के बारे में सोच सकता था मगर उसकी जिंदगी मे तो कोई सोभा का हमउम्र मरद भी नही था जिसके बारे में ख्वाइश कर सके, खुद को उस मरद के साथ उन पोज़ में सोच सके. तो फिर वो किसके साथ खुद की कल्पना करती थी, कॉन था जो उसके ख़यालों में मरद का रोल अदा करता था. अगर यह जानना बेहद मुश्किल था कि उसकी पसंदीदा पोज़िशन कोन्सि है तो यह जानना कि उस पोज़िशन में मरद कॉन होता था, लगभग नामुमकिन था. यह वो समय था जब गुजरात में गर्मी पूरे जोरों पर थी. सूर्य की तेज़ झुलसा देने वाली किरणोसे धरती तप जाती. इस तेज़ धूप में हमारी गाय भैसे खेतो में हमारे पुराने भीमकाय पेड़ो के नीचे छाँव मे बैठी रहती और मैं भी. इन्ही सुस्त दिनो में कयि महीने सोचने के पाश्चामत्त अचानक एक दिन वो विचार मेरे दिमाग़ में कोंधा. मुझे इतने महीनो बाद सुघा के मेरे और मेरी बेहन के बीच बातचीत का एक ज़रिया वो किताब खुद थी. मेरा मतलब मेरी तरह वो भी उस किताब में लिखा हुआ हर शब्द पढ़ती थी. क्या होगा अगर मैं एक बेहद सूक्ष्म, बेहद रहस्यमय, लगभग ना मालूम होने वाला एक इशारा उस किताब के ज़रिए उस को करूँ, बिना कोई संदेह जताए? अगर वो भी मेरी तरह उस किताब में उस गहराई तक डूबी हुई थी जिसकी मुझे पूर्ण आशा थी तो वो मेरे इशारे को ज़रूर भाँप जाती. हालाँकि वो उस इशारे का कोई जबाब देती या ना देती यह अलग बात थी. मगर मैं अपनी तरफ से तो कोशिस तो करने वाला था, कितनी और किस हद तक इसका अंदाज़ा भी मुझे नही था.
मैं अपनी बेहन को अपनी कल्पनाओं में अपनी पार्ट्नर मानता था, इसलिए मैं जानना चाहता था कि उसे सबसे अच्छा क्या लगता है और फिर अपनी कल्पना में वोही करते हुए मैं उसे खुश करना चाहता था. यहाँ पर मेरी पार्ट्नर का मतलब सिर्फ़ मेरी कल्पनाओं की उस युवती से है जिसके साथ मैं कामसूत्र की उन पोज़िशन को आजमाना चाहता था जो मेरी बेहन थी. मगर यहाँ सिर्फ़ मैं अपनी कल्पनाओं की ही बात कर रहा था, असल में हम भाई बेहन के बीच एसा होना संभव ना था.
अपनी कल्पनाओं में मुझे वो काम करने माएँ ज़्यादा मज़ा आता जो मेरी बेहन को पसंद था, ना कि वो काम अपनी बेहन से करवाने में जो मुझे पसंद था. आप सोच सकते हैं कि अगर हमारी सोचों और कल्पनाओं में समानता थी तो मेरी बेहन ज़रूर समझ जाती कि मैं उसे क्या संदेश भेज रहा हूँ और वो भी बिना किसी हिचकिचाहट से उसका जवाब देती. दूसरी तरफ अगर वो मेरा संदेश जान लेने के बाद भी कोई जवाब ना देती तो इसका सीधा मतलब होता वो मुझे अपने काम से मतलब रखने को कह रही है और मुझे ये गंवारा नही था.
अपने काँपते हाथों और धड़कते दिल के साथ मैने पेन्सिल उठाई और अपनी पसंदीदा पोज़िशन या आसान के आगे एक स्टार का निशान बना दिया. मेरे उस स्टार का मतलब उसे यह बताना था कि वो पोज़ मेरा पसंदीदा था. मैं उम्मीद लगाए बैठा था कि वो उस स्टार को देखेगी और उसे बातचीत का ज़रिया मानेगी. मैं एक तरह से हमारे बीच एक संपर्क स्थापित कर रहा था यह बताते हुए कि मेरी पसंदीदा पोज़िशन कोन्सि है और उम्मीद कर रहा था कि वो उत्तर में अपनी पसंदीदा पोज़िशन के आगे स्टार का निशान लगा कर इस बातचीत को आगे बढ़ाएगी. इस तरह हम बिना किसी परेशानी के बिना कोई ख़तरा मोल लिए एक दूसरे को अपनी पसंद नापसंद बता सकते थे. अगर हम मे से कोई उस बातचीत को नापसंद करता तो दूसरा बड़ी आसानी से अंजान बन कर उस निशान की मोजूदगी की जानकारी से इनकार कर सकता था. मैने सुबह वो किताब उसी जगह वापस रख दी. अब मुझे रात तक इंतज़ार करना था, और यह इंतज़ार बहुत ज़्यादा मुश्किल था. मैने पूरे दिन कोशिस करी कि अपने आप को बिज़ी रखू और किताब से अपना ध्यान हटा लूँ मगर लाख चाहने पर भी मेरा ध्यान उधर से हट नही पाया. मैं हद से ज़्यादा व्याकुल और अधीर था अपनी बेहन का रेस्पॉन्स देखने के लिए.
अगले दिन शाम को जब मैने किताब उठाई तो मेरे हाथ किसी सूखे पत्ते की तरह कांप रहे थे. मेरी साँस उखड़ी हुई थी. मेरा खून इतनी तेज़ी से नसों में दौड़ रहा था कि मेरे कानो में साय साय की आवाज़ आ रही थी. मैं इतना कामोत्तेजित था जितना शायद जिंदगी मे कभी नही हुआ था. मैं अपनी आँखे किताब के पन्नो पर केंद्रित नही कर पा रहा था जब मैं जल्दबाज़ी में किताब के पन्ने पलटते हुए अपनी बेहन दुबारा लगाए किसी निशान को ढूँढ रहा था. मगर मुझे कोई निशान नही मिला. मुझे अत्यधिक निराशा हुई जिस कारण मेरे दिमाग़ पर सवार कामोत्तेजना थोड़ी कम हो गयी. मैने फिर से बड़े ध्यान से किताब को जाँचा मगर मैं कोई निशान कोई इशारा ढूँडने में नाकामयाब रहा. मैं निराश था और इस निराशा ने मुझे हताश कर दिया था. सच में मैं तनावग्रस्त हो गया था. मैं खुद नही जानता था क्यों मैने अपनी बेहन से कोई इशारा पाने के लिए इतनी उँची उम्मीद लगा रखी थी, जो ना मिलने पर मैं खुद को ठुकराया हुआ महसूस कर रहा था, लगता था मेरी परछाई ने मेरा साथ निभाने से मना कर दिया था.
मेरे दस वार ढूँढने पर भी किताब के पन्नो पर कोई इशारा कोई निशान ना मिला. मुझे लगा शायद उस दिन उसने वो किताब देखी ही नही थी शायद इस लिए उसे मेरे इशारे की जानकारी नही थी. इस से मुझे थोड़ी आस बँधी कि शायद मुझे कल कोई इशारा मिल जाएगा. मगर कयि दिनो के इंतज़ार के बाद भी ना उम्मीदी और हताशा ही हाथ आई. आख़िरकार एक साप्ताह बाद मैने हार मान ली, शायद इस विषय पर हम भाई बेहन आपस में बातचीत नही कर सकते थे. शायद मुझसे बड़ी और अधिक समझदार होने के कारण उसने मुझे बढ़ावा देने की बजाए मुझे चुप करा देने में ही भलाई समझी थी, शायद कोई इशारा ना देकर उसने मुझे उस से दूर रहने का संकेत दिया था. खैर कुछ भी हो अब वो विषय बंद हो चुका था. अंत में जब मैने एक साप्ताह गुजर जाने के बाद बाद उसे किए इशारे की उम्मीद छोड़ी तो मेरा मन कुछ शांत पड़ गया था. मैं अपने सपनो, अपनी रंग बिरंगी काल्पनिक दुनिया में लौट गया जहाँ उसकी मौजूदगी अब बहुत कम हो गयी थी और मैं अब सिर्फ़ सोभा को ही अपनी ख़याली दुनिया में अलग अलग आसनों में चोदता. और यह थोड़ा अच्छा भी था क्यों कि शोभा मुझे दूर रहने को नही बोलती थी, मैं कम से कम ठुकराया हुआ महसूस तो नही करता था.
इसीलिए, शायड, अपनी पसंदीदा तस्वीर के आगे निशान लगाने के दस दिन बाद जब मैने एक दूसरी तस्वीर के आगे एक चेक या सही का निशान देखा तो मैं लगभग उसे नज़रअंदाज़ कर गया. किताब में किसी दूसरे निशान की मौजूदगी जान कर मेरा कलेजा गले को जा लगा. ना जाने क्यों मगर मैने उसी एक पल में अपने अंदर जबरदस्त उत्तेजना महसूस की. किताब के पन्ने वापस पीछे पलटते हुए मैं लगभग उन्हे फाड़ ही रहा था. मुझे वो निशान देखना था. जब वो निशान मेरी आँखो के सामने आया तो एक पल के लिए मुझे यकीन नही आया, मैने अपने हाथ से पोंछ कर देखा तो मुझे यकीन हुआ वाकई वो निशान असली है. खुशी के मारे मेरे मुख से घुटि हुई चीख निकल गयी. मेरा पसंदीदा आसान था जिसमे औरत घोड़ी बन कर खड़ी हो और मरद उसकी कमर थामे उसके पीछे खड़ा हो उसके अंदर पेलने के लिए. मेरी बेहन का पसंदीदा आसन था जिसमे आदमी बेड के बीचो बीच टाँगे सीधी पसार कर बैठा हो, और औरत उसकी कमर के इर्द गिर्द टाँगे लपेटे उसकी गोद में बैठी हो. मर्द का लंड औरत की चूत में घुसा हुआ था और उसके हाथ उसके मॅमन को मसल रहे थे जबकि औरत की बाहें मर्द की गर्दन पर कसी हुई थी और दोनो एक जबरदस्त गहरे चुंबन में डूबे हुए थे.
मेरा तन मन आनंदित हो उठा. मैं इतना खुश था जितना शायद जिंदगी में कभी नही हुआ था. बेहन के जवाब से मेरा जोश कयि सौ गुना बढ़ गया था. हमारे बीच उस किताब के मध्यम से बना संपर्क जीवंत हो उठा था. उस पल घर के किसी हिस्से में बैठी शायद वो मेरे द्वारा उसका जबाब ढूँढे जाने के बारे में सोच रही होगी और जवाब ढूँढने पर मेरी प्रतिक्रिया का अंदाज़ा लगा रही होगी. मैं अंदाज़ा लगा रहा था उसकी प्रतिक्रिया का जब उसने मेरा स्टार उस किताब में देखा होगा. असल में उसके उत्तर का मुझे एहसास था और मैं उसके लिए तैयार भी था मगर वो मेरे छोड़े गये इशारे के लिए तैयार नही थी. उसके लिए तो वो पल बेहद अप्रत्याशित रहा होगा और शायद उसका रोमांच भी मेरे निशान ढूँढने के रोमांच से कहीं ज़्यादा होगा. मुझे थोड़ा ताज्जुब हो रहा था कि मेरा इशारा मिलने के बाद उसके दिमाग़ में क्या चल रहा था. मुझे ताज्जुब हो रहा था क्यों उसने जबाब देने में इतना वक़्त लगाया. शायद उसे ये समझने में वक़्त लगा था कि मैं उस इशारे के मध्यम से उसे क्या कहना चाहता हूँ.
और मेरे दिमाग़ में क्या चल रहा था उसका इशारा मिलने के बाद. मेरे दिमाग़ में उस वक़्त सिर्फ़ एक ही बात थी कि मेरी बेहन मेरी गोद में बैठी हुई है और मेरे हाथ उसके मम्मे मसल रहे हैं और हम एक कभी ना ख़तम होने वाले गहरे चुंबन में डूबे हुए हैं. अब सोभा को मेरे ख़यालों के इर्द गिर्द भी भटकने की इजाज़त् नही थी. वो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरी बेहन थी जिसके ख्यालों में मैं पूरी तरह डूबा हुआ था. मैने कल्पना करने की कोशिस की कि मेरी बेहन असलियत में मेरी गोद में बैठी है और उसके नंगे चूतड़ मेरी जाँघो पर टिके हुए हैं. मेरे हाथ उसके नंगे मम्मों को मसल रहे थे और मेरा नंगा लंड उसकी नंगी चूत में था.
मैने हम दोनो के बीच संपर्क बिंदु स्थापित कर दिया था, बातचीत का एक गुप्त ज़रिया बना लिया था जिसके अस्तित्व से हम दोनो ज़रूरत पड़ने पर सॉफ मुकर सकते थे. मगर अब जब संपर्क स्थापित हो चुका था और उसने मेरे उस जटिल सवाल का जवाब भी दे दिया था तो अब क्या? अब इसके आगे क्या? अब मुझे बातचीत जारी रखनी थी नही तो सारे किए कराए पर पानी फिर जाता. मगर अब मुझे ये नही सूझ रहा था कि मुझे अब उसे क्या कहना चाहिए या इससे आगे कैसे बढ़ाना चाहिए. अपने अगले कदम के बारे में सोचते हुए मैने पूरी रात लगभग जागते हुए निकाली.
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