Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
12-28-2018, 12:38 PM,
#3
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मेरी बेहन मुझसे चार साल बड़ी थी और अपनी एक अलग दुनिया में रहती थी, वो दुनिया जो उन न्यूज़ पेपर और मॅगज़ीन्स के किरदारों से बनी थी जो हम अपनी दुकान मे बेचते थे. दरअसल हम अपनी दुकान मे दो तीन मन्थलि मॅगज़ीन्स और तीन वीक्ली के अख़बार बेचते थे. यह अख़बार एक हाथ से होता हुआ दूसरे तक पहुँचता जाता जब तक पूरा गाँव इसे सुरू से आख़िर तक पढ़ ना लेता. मॅगज़ीन्स और न्यूसपेपर ज़्यादातर अंत मे वापिस हमारी दुकान पर पहुँच जाते जहाँ मेरी बेहन उनसे सिलाई का कोई नया डिज़ाइन बनाने की प्रॅक्टीस करती. मेरी बेहन अपनी इस खून पसीने की कमाई को किसी अग्यात स्थान पर हमारी माँ से छुपा कर रखती. वो उस दिन का इंतज़ार कर रही थी जब उसके पास इतना पैसा हो जाए कि वो हमारे गाँव को छोड़ किसी दूसरी जगह जा सके जहाँ उसका भविष्य शायद उसकी कल्पनाओं जैसा सुखद और आनंदमयी हो. जबकि मैं पूरी तरह बेपरवाह था. स्कूल मैं कब का छोड़ चुका था और किसी किस्म की मुझे चिंता थी नही. मेरा काम सिर्फ़ ये सुनिश्चित करना होता था कि हमारे जानवरों का पेट भरा होना चाहिए ऑर बरसात से पहले खेत जुते हुए होने चाहिए नयी फसल की जुताई के लिए. इसके अलावा मेरा काम था गाँव के बाहर खुले आसमान के नीचे किसी युवा शेर की तरह आवारा घूमना.

किसी कारण वश मैं किताब को वापस उसी जगह रख देता जहाँ मैने उसे खोजा था. अब यह मेरे पिता का छिपाने का गुपत स्थान नही मेरा छिपाने का गुप्त स्थान भी था. वो किताब अब मेरा राज़ थी और उसे मैं हमेशा उसी जगह छिपाए रखता. हर शाम मैं किताब निकालता और हर सुबह वापिस उसी जगह रख देता. मैं ना सिरफ़ अपने राज़ की हिफ़ाज़त करता बल्कि उसे उस जगह मे कैसे कहाँ किस पोज़ीशन मे रखा इस बात का भी पूरी शिद्दत से ध्यान रखता. इसीलिए यह बात मुझसे छिपी ना रह सकी कि मेरे उस गुपत स्थान की किसी और को भी जानकारी है और मेरे उस राज़ की भी. मैं खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा था.

मैं जानता था कि वो मेरी मम्मी नही है जिसे इस जगह की मालूमात हो गयी थी, यह ज़रूर मेरी बेहन थी अथवा वो चीज़ें उस जगह ना रहती. मेरी मम्मी बिना शक उन सब चीज़ों को नष्ट कर देती.

मेरी बेहन किताब के साथ उतनी ही सावधानी वरत रही थी जितनी मैं. मेरे ख्याल से वो इसे दोपहर में देखती होगी जब मैं खेतों में काम कर रहा होता था. मेरे घर लौटने से पहले वो किताब को वापिस उसी जगह रख देती हालाँकि मैं इतना नही कह सकता था कि उसे इस बात की जानकारी थी कि वो किताब मैं भी पढ़ता था. मगर अब समस्या यह थी कि मेरा राज़ अब सिरफ़ मेरा राज़ नही था, अब हम दोनो का राज़ था और यह जानने के बाद कि वो उन्ही तस्वीरों को देखती है जिन्हे मैं देखता था और मेरी तरह यक़ीनन वो भी कल्पना करती होगी खुद को उन संभोग की विभिन्न मुद्राओं में बस फ़र्क था तो इतना कि वो खुद को उन मुद्राओं में औरत की जगह रखती होगी जबकि मैं खुद को मर्द की जगह रखता था. इसका नतीज़ा यह हुआ कि उन पोज़िशन्स को आज़माने के लिए मुझे एक पार्ट्नर मिल गयी थी चाहे वो काल्पनिक ही थी. मगर समस्या यह थी कि वो पार्ट्नर मेरी बेहन थी.

यह कुछ ऐसा था जैसे मैं कहूँ कि मुझे एक आसन या एक पोज़िशन में दिलचपसी थी जिसमे आदमी औरत के पीछे खड़ा होता है और औरत अपने हाथों और पावं पर चौपाया हो खड़ी हो एक घोड़ी की तरह. मेरा लिंग उसकी योनि से एक या दो इंच की दूरी पर हो और उसके अंदर जाने के लिए तैयार हो. अब मेरी कल्पना में वो आदमी मैं था. मैं ही वो था जिसके हाथ उस औरत की कमर को पीछे से ज़ोर से पकड़ते हैं, जिसकी पूरी ताक़त उसकी कमर में इकट्ठा हो जाती है और वो तैयार होता है एक जबरदस्त धक्के के साथ अपने लिंग को उस योनि की जड़ तक पेल देने के लिए. अब इसी पोज़ में मेरी बेहन खुद को उस औरत की जगह देखती होगी जो अपने पीछे खड़े एक तक़तबार मर्द से ठुकने वाली हो जिसका लिंग अविस्वसनीय तौर पर लंबा, मोटा हो. मेरी बेहन उस औरत की तरह ज़रूर मुस्कुराएगी जब उस मर्द का लंबा लिंग उसकी योनि की परतों को खोलता हुआ उसके पेट के अंदर पहुँचेगा और उसका दिल मचल उठेगा.

अब इसे दूसरी तरह से देखते हैं. मान लीजिए मेरी बेहन को वो पोज़िशन पसंद है जिसमे मर्द पीठ के बल लेटा हुआ है और औरत उसके सीने पर दोनो तरफ़ पैर किए हुए उसके लिंग पर नीचे आती है और उस लिंग को अपनी योनि की गहराइयों में उतार लेती है. मेरी बेहन की कल्पना मे वो खुद वोही औरत है जो मर्द के उपर झुकती है और उसके लिंग को अपनी योनि में समेट लेती है. अब मेरी कल्पना में वो सख्स मैं था जो उसकी चुचियों को मसल रहा था और जिसका लिंग उस गीली, गरम और अत्यधिक आनंदमयी योनि में डूबा हुआ था. किताब की उस तस्वीर मे मेरी कल्पना अनुसार मैं वो जीता जागता मर्द था जो उस तस्वीर की औरत की योनि के अंदर दाखिल होता है. उसी तस्वीर मे मेरी बेहन की सोच अनुसार वो खुद वो जीती जागती औरत थी जिसके अंदर किताब का वो मर्द दाखिल होता है. मैं उस औरत के अंदर अपना लिंग डालता हूँ और वो मर्द मेरी बेहन के अंदर अपना लिंग डालता है. मैं अपना लिंग डालता हूँ और जबकि मेरी बेहन डलवाती है. इस तरह मैं अपनी बेहन के अंदर दाखिल होता हूँ. अपनी बेहन के बारे में ऐसे विचार ऐसे ख़यालात अविस्वसनीय तौर पर कामुक थे और इन विचारों के साथ होने वाला अपराध बोध भी अविस्वसनीय था. उस अपराध बोध के बिना अपनी बेहन के अंदर दाखिल होने की मैं कल्पना नही कर सकता था क्यॉंके मैं अपनी बहन के साथ ऐसा नही कर सकता था. अपनी बेहन, अपनी सग़ी बेहन के अंदर दाखिल होने का आनंद किसी दूसरी औरत जैसे सोभा के अंदर दाखिल होने से कहीं ज़्यादा था. मेरी बेहन जैसी किसी जवान, खूबसूरत और अल्लहड़ लड़की से संभोग की संभावना शोभा जैसी किसी प्रौढ़ उमर की औरत से कहीं ज़्यादा उत्तेजित करने वाली थी. और अगर मैं सोभा के साथ संभोग कर सकता था तो निश्चय ही अपनी मम्मी के साथ भी कर सकता था. आख़िर उन दोनो की उमर और सूरत सीरत में ज़्यादा फरक नही था. मुझे फिर से अपराधबोध का एहसास हुआ और खुद पर शरम आई जब मैने कामसूत्र की उन पोजीशंस मे अपनी मम्मी की कल्पना की. मुझे अपनी कल्पनाओं के साथ होने वाला वो अपराध बोध अच्छा नही लगता. पहले मैं संभोग की उन विभिन्न मुद्राओं को किसी एसी औरत के साथ भोगने की कल्पना करता जिसके जिस्म की कोई पहचान नही थी, जो अंतहीन थी, जिसका कोई वजूद संभव नही था मगर अब जो मेरी कल्पनाओं में थी वो एक काया थी, एक देह थी, जिसका वजूद था और उस काया के लिए मेरी कल्पनाएं अदुभूत आनंदमयी होने के साथ साथ बहुत दर्द देने वाली भी थी. मुझे इस समस्या का जल्द ही कोई हल निकालना था. 
• 
• अंत मैं मेने एक हल ढूंड निकाला. मैं अपनी कल्पनायों में अपनी बेहन के जिस्म पर सोभा का सिर रख देता इससे मेरे अंदर का अपराधबोध का एहसास कम होता. अब मैं उस औरत को अपनी एक साइड पर लेटे हुए देखता जिसकी एक टाँग हवा में लहरा रही होती तो कैंची के उस पोज़ में उसके साथ संभोग करने वाला मर्द मैं होता. मेरी कमर के नीचे या मेरे कंधे पर रखी टाँग मेरी बेहन की होती, बेड पर लेटी नारी की देह मेरी बेहन की होती मगर उसकी चूत, उसका चेहरा शोभा का होता. इस तरह मैं बिना किसी पाप बिना किसी आत्मग्लानी के उस रोमांच उस आनंद को महसूस करता. जब मैं कुर्सी पर बैठा होता और वो मेरे सामने अपने घुटनो पर खड़ी मेरे लंड को अपने मुँह मे लिए कामुकता और मदहोशी से मेरी आँखो में झाँकती तो वो जिस्म मेरी बेहन का होता मगर वो मुख सोभा का होता जिसके अंदर मैं अपना वीर्य छोड़ता. सीधे लेटे हुए मेरी बेहन की टाँगे मेरी कमर के गिर्द कसी होती मगर मेरा लंड सोभा की चूत के अंदर होता. मैं अपनी बेहन को सहलाता, चूमता मगर चोदता सोभा को. 

यही एक तरीका था जो मुझे मेरे दिमाग़ ने सुझाया था उस आत्मग्लानि को दूर करने का. मैं अपनी बेहन को छू सकता था, चूम सकता था , मगर उसे चोद नही सकता था. कई बार मैने सिर्फ़ रोमांच के लिए सोभा के जिस्म को भोगने की कोशिस की जिस पर चेहरा मेरी बेहन का होता, मगर मैं अपनी बेहन की आँखो मे नही देख सकता था और शर्म से अपना चेहरा घुमा लेता. इसी तरह मेने जाना कि मैं सोभा के जिस्म को चोदते हुए अगर मैं अपनी मम्मी का चेहरा उसके जिस्म पर लगाऊ तो मुझे वो पापबोध महसूस नही होता. मगर मुझे सबसे अधिक रोमांच और मज़ा तभी आता जब मैं सोभा के जिस्म पर अपनी बेहन का चेहरा लगा कर कल्पनाओं मे उसे चोदता. मगर जल्द ही सोभा का चेहरा भी गुम होने लगा, अब मेरे ख्यालों में सिर्फ़ मेरी बेहन का जिस्म होता जिसका चेहरा किसी नक़ाब से ढका होता. यह सबसे बढ़कर रोमचित कर देने वाली कल्पना थी क्यॉंके इसमे मैं सोभा या किसी और के बिना सीधा अपनी अपनी बेहन के साथ संभोग करता. नक़ाब के अंदर वो चेहरा मेरी बेहन का भी हो सकता था या किसी और का भी मगर ढका होने की वजह से मुझे कोई चिंता नही थी. अब मेरी कल्पनाओं में अगर कभी मेरी बेहन का मुस्कराता चेहरा मेरी आँखो के सामने आ जाता तो मैं अपनी शरम को नज़रअंदाज़ कर देता, अब मैं अपनी बेहन को एक नयी रोशनी में देख रहा था. 
• 
और यह जानकर कि मेरी बेहन उन्ही तस्वीरों को देखती है जिन्हे मैं देखता था और शायद मेरी तेरह ही वो भी उन पोज़ो मैं खुद की कल्पना करती थी, मैं एक तरह से यह जानने के लिए हद से ज़्यादा व्याकुल हो उठा था कि वो किन पोज़िशन्स या मुद्राओं में खुद को चुदवाने की कल्पना करती थी. मैं अधीर था यह जानने के लिए कि कामसूत्र की उस किताब में उसकी सबसे पसंदीदा पोज़ीशन कॉन सी है. मेरी इच्छा थी कि मेरी कल्पनाएं बेकार के अंदाज़ों मे भटकने की बजाए ज़्यादा ठोस हों और ज़्यादा केंद्रित हो और यह तभी मुमकिन था जब मुज़े यह पता चलता कि उसके ध्यान का केंदर बिंदु कॉन सी पोज़ीशन है ताकि मैं भी उसी पोज़ीशन पर ज़्यादा ध्यान दूं, उस पोज़िशन पर ज़्यादा समय ब्यतीत करूँ औरों की तुलना में. 

पर अब समस्या यह थी कि मैं सीधे मुँह जाकर उससे तो पूछ नही सकता था कि बेहन तुम किस आसान में चुदवाने के सपने देखती हो. असलियत में तो हमे यह भी मालूम नही होना चाहिए था कि दूसरा हमारे राज़ को जानता है. मैं जानता था कि वो भी ज़रूर उस किताब को पढ़ती थी, इसी तरह शायद वो भी इस बात से अंजान नही थी कि मैं भी उस किताब को पढ़ता था. मगर यह बात हम एक दूसरे के सामने मान नहीं सकते थे, कबूल नही कर सकते थे, यह बहुत ही शर्मशार कर देने वाली बात होती.

क्रमशः.........
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RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें - by sexstories - 12-28-2018, 12:38 PM

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