RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
कहते हैं जीत की ख़ुसी या गम सबसे ज़्यादा आप के करीबी को ही होता है. जहाँ एक ओर वासू, रीति की इस जीत पर बेहद खुश नज़र आ रही थी, वहीं इंदु और सैली, रीति की इस जीत पर अंदर ही अंदर पूरा जल-भुन गयी थी. ये जलन, रीति के प्रति ईर्ष्या का रूप ले चुका था, और वक़्त ने अपनी साजिस रचनी शुरू कर दी थी... सबकी जिंदगी की एक अंजान रहें......
इंदु काफ़ी तेवर मे थी इस बात को लेकर और मौका देख कर सबसे पहले उसने विक्की को फोन लगाई.....
विक्की.... क्या हुआ इंदु...
इंदु.... वो कैसे फर्स्ट आ सकती है ?
विक्की.... देखो मुझे बहुत सारे काम हैं, और मैं बार-बार नही पुच्छने वाला कि क्या हुआ, अब पूरी बात सॉफ-सॉफ बताओ.
इंदु.... विक्की तुमने कहा था मेरा डिजाइन टॉप करेगा, पर कॉलेज वालों ने किसी गँवार का डिजाइन टॉप किया है.
विक्की.... वो गँवार तुम से होशियार होगी. मैं कॉलेज के डिजाइन मे कोई इंटरफायर नही करता. कई सुपरस्टार्स के बेटे को यही लगता है कि वो भी सुपरस्टार बनेगा, पर टॅलेंट वाले उसे कहाँ पिछे छोड़ देते हैं पता भी नही चलता. हम ग्लॅमर फील्ड से हैं, और यहाँ मेहनत और अकल वालों की सदा कदर होती है....
इंदु.... तो क्या मुझ मे कोई टॅलेंट नही, और वो लड़की तो अपनी जीत पर ऐसे इतरा रही है जैसे मिस वर्ल्ड हो.
विक्की.... तुम्हे हेल्प चाहिए थी, हेल्प किया. लेकिन कॉलेज टॅलेंट खुद चुनती है, और हमारा नाम है. यहाँ से अगर स्टूडेंट अच्छे नही निकले तो कॉलेज का रेप्युटेशन खराब होगा. वैसे भी तुम क्यों चिंता करती हो, ये जितने टॅलेंटेड हैं, आगे जाकर गिने चुने ही अपना मुकाम बनाते हैं... काम इनका नाम किसी और का. तुम अभी नही समझोगी ये सब बात. वैसे उस लड़की से तुम्हे दोस्ती कर लेनी चाहिए क्योंकि आगे तुम्हे बहुत मदद मिलेगी.
इंदु, गुस्से मे विक्की का फोन कट कर दी और वापस चली आई हॉस्टिल. इधर, सैली गुस्से मे तमतमाई गौरव से कहने लगी..... इन कॉलेज वालों को ज़रा भी अकल नही है, किसी को भी टॉप करवा देते हैं. उस रीति को ज़रा भी ज्ञान है फॅशन का, और उसे टॉप करवा दिए.
गौरव... अब छोड़ो भी, फाइनल असाइनमेंट तो बाकी है ना, हम और मेहनत करेंगे, और देखना इस बार तुम टॉप करोगी.
सैली... नेक्स्ट टाइम माइ फुट, जब वो रीति की बच्ची हँसती है तो कलेजे मे आग लग जाती है. उसे तो मैं बताती हूँ.
इतना कहती हुई सैली वहाँ से चली आई. दो दिन बाद की बात है, कॉलेज मे रीति एक प्रोफ़ेसर से हाथ मिला रही थी, और वो प्रोफ़ेसर भी हँसते हुए बात कर रहा था. उस प्रोफ़ेसर से बात करते हुए जब सैली ने देखा तो इंदु को टोकती हुई.... देख-देख, ये वही प्रोफ़ेसर है ना जो हमारे डिजाइन चेक कर रहा था.
इंदु... हां ये प्रोफ़ेसर तो वही है, पर ये रीति इस से ऐसे क्यों हंस-हंस के बात कर रही है. मुझे तो दाल मे कुच्छ काला नज़र आता है.
सैली... समझी नही इंदु, ठीक से बता ना क्या कहना चाहती है.
इंदु.... मुझे लगता है रीति ने वन नाइट ऑफर किया था, जिस के चक्कर मे आकर इस प्रोफ़ेसर ने उसे टॉप करवा दिया.
सैली.... क्या बक रही है, रीति ऐसा कुछ नही कर सकती.
इंदु.... जान यहाँ जो दिखता है वो होता नही, शायद तुम्हारी बातें भी सच्चाई हो, मगर इस बात को झुठलाया नही जा सकता, कि वो किसी भी एंगल से टोपर नही लगती, फिर भी टॉप की.
सैली के दिल ने इंदु की बात को सच मान लिया पर वो दिखावा करती .... जाने दे अब जो हो गया उसमे क्या कर सकते हैं, आख़िर रात बिता कर काम निकलवाना भी तो टॅलेंट ही है, चल चलते हैं.
अंदर की जलन नफ़रत, और नफ़रत से दिमाग़ की कल्पना ने वो चिंगारी भड़काई, कि रीति अब सैली को एक छलावा नज़र आने लगी. सैली ने अब पूर्ण मनसा बना ली कि मुझे रीति को हर हाल ने नीचा दिखाना है, और वो कैसे होगा ये उसके दिमाग़ ने रास्ता बनाना शुरू कर दिया था.
उस रात चारो लड़कियाँ कॅंटीन मे खाने के टेबल पर बैठी थी, तभी अमर और नीरज उनके पास आए और रीति को बधाइयाँ देने लगे ... अमर ने रीति के कॉंप्लिमेंट मे इतना तक कह दिया.... "ब्यूटी विद ब्रेन, ओ' इंदु पागलपन मे दिमाग़ लगाने से अच्छा होता थोड़ा सा रीति के पास बैठ कर कुछ सीख लेती".
इंदु तो ज़हर का कड़वा घूँट पी कर चुप रही, पर सैली को बर्दास्त नही हुआ और वो कहने लगी.... "अमर ये हाइ-क्लास बातें है, रीति ने प्रोफ़ेसर साब का ऐसा दिल जीता, कि उन्हे रीति के डिजाइन से अच्छा किसी का डिजाइन लगा ही नही"... और इतना बोल कर खा जाने वाली नज़रों से घूर्ने लगी रीति को.
रीति उसके टोन को भाँप गयी थी कि ये टॉंट कर रही है, पर उसकी बातों का मतलब नही समझ पाई, बात आगे ना बढ़े इसीलिए मुस्कुराती हुई दोनो का आभार प्रकट कर, "थॅंक्स" कहने लगी.
लेकिन वासू को सैली का टोन ज़रा भी पसंद नही आया, और वो सैली को घुरती हुई कहने लगी..... सैली कम से कम उस प्रोफ़ेसर को टॅलेंट की कदर तो है, तुम और इंदु ने तो हमारे डिजाइन देखी तक नही. वैसे भी रीति को अपनी बहन के साथ बूटिक़ मे काम करने का अनुभव है, उसको फैशन के बारे मे ज्ञान, हम सब से ज़्यादा है.
वासू की बात सुनकर जैसे सैली के दिल मे छेद हो गया हो, अपने चिर परचित गुस्से वाले अंदाज़ मे कहती हुई.... मुझे मत सिख़ाओ फैशन का ज्ञान वासू, मुझे मालूम है फैशन क्या होता है. तुम दोनो को ज़्यादा ज़रूरत है सीखने की.
वासू हँसती हुई....... वो तो डिजाइन एग्ज़िबीशन मे ही दिख गया, किसका ज्ञान कितना है. वैसे भी तुम क्यों इतनी ओवर रिक्ट कर रही हो रीति के टॉप करने पर, उसकी खुद की लगन और मेहनत थी, लेकिन तुम्हारी डिजाइन मे दो लोगों की मेहनत थी, और एक का तो कॉपी डिजाइन था.
वासू की इस बात पर जैसे इंदु को मिर्ची लगी हो.... वासू कॉपी करवाना भी एक टेलेन्ट होता है, वैसे तुम लोगों को फैशन का पता होगा मगर इस फील्ड का नही. सपनो की दुनिया मे हो, बाहर निकल आओ. बड़े बड़े डिज़ाइनर के तलवे चाट'ते हैं ये टॅलेंट वाले और उनके काम पर उन नाम-चीन डिज़ाइनर का मोहर लगता है. मुझे थोड़े ना किसी के तलवे चाटने है, मैं तो इन टॅलेंट वालों से काम करवाउन्गी. जैसा कि अभी मैने करवाया, समझ गयी तुम.
कोल्ड वॉर छिड़ चुका था, और बहस का दौर चालू. नफ़रत ऐसी पैदा हो गयी, कि जो साथ रहते थे उनका शकल तक देखना पसन्द नही रहा. रीति को बहुत दुख हुआ इस बात का और वो अफ़सोस करने लगी कि उसके ही दोस्त उसकी पोज़िशन आने पर ऐसी व्यंग भारी बातें कर रहे हैं.
बात तीन लोगों के बीच हो रही थी, लेकिन उसमे बार-बार रीति को गँवार और मूर्ख कहा गया. बात को ख़तम ना होता देख रीति आधे खाने पर से ही उठ कर चली आई. रीति के बाहर आते ही वासू भी उसके पिछे-पिछे चली आई....
"रीति-रीति, पागल सुनती भी है या अपनी धुन मे चली जा रही है"... वासू, रीति को पिछे से आवाज़ देती हुई.
रीति अपनी जगह रुक गयी, वासू भी साथ हुई उसके.... क्या हुआ, तुम ऐसे क्यों चली आई ?
रीति.... देखी नही क्या आप, दूसरे लोग आकर बधाइयाँ देते हैं, और जो साथ रहते हैं, उनके दिल मे कैसे-कैसे विचार भरे पड़े हैं.
वासू.... दिल छोटा क्यों करती है, जिसकी जैसी फ़ितरत होती है वैसा ही सोचता हैं, उसके लिए तुम क्यों उदास हो रही हो.
रीति... पर यार मैने तो अपना किया, और उन्होने अपना. मैं यदि टॉप नही करती और मेरी जगह वो टॉप करती तो क्या मैं बैर पालती. मुझे यदि टॉप करने की ख्वाइश होती तो मैं उस से ज़्यादा महन्त करती और कॉंपिटेशन देती उसे, ना कि उसके लिए मन मे ऐसे विचार लाती.
वासू.... अब जब जान गयी है, तो रोती क्यों है, तुम हँसती रहो, जिसे जलना है वो जलते रहेंगे. एक काम करती हूँ, कल रूम भी चेंज करवा लेती हूँ, ताकि तुम्हे उसकी शकल ना देखनी पड़े.
रीति... ये भी सही है वासूउुुुउउ .... वासूउउउ वो बाहर्र... वूऊ
वासू.... क्या हो गया तुझे अचानक कोई भूत देख ली क्या ?
रीति.... भूत नही, वो अभी यहाँ से दौड़ता गया......
वासू.... तो खड़ी क्यों है, तेरे वो मिल गये, चल चल कर देखते हैं ....
दोनो तेज़ी से भागी उसी ओर जिस ओर वो लड़का भागा था, दोनो आधा किलोमेटेर चली आई उसके पिछे-पिछे. पर आँखों के सामने जो मंज़र था वो अलग ही कहानी बयान कर रही थी..... दिल की पहली नज़र की चाहतों के बावजूद मन ने यही कहा रीति का .... इसके लिए मैं पागलों की तरह इंतज़ार कर रही थी.
मंज़र काफ़ी खौफनाक था, रीति और वासू जब पहुँची उस जगह पर तो ज़ोर से चिल्लाने की आवाज़ आई. दोनो उस आवाज़ की दिशा मे चल दी, जो एक काउन्स्टरक्षन बिल्डिंग की साइट से आ रही था. दोनो जब पहुँची तो देखी, खून से लथपात एक आदमी यही कोई 45-46 साल का रहा होगा, और उसका गिरेवान पकड़े वही लड़का था जिसकी तलाश ना जाने कितने महीनो से थी रीति को.
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