RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
रोज की तरह रीति अपनी मोम के साथ मार्केट निकली, हल्की-फुल्की खरीददारी और एक वॉक के लिए. सब्जी की एक दुकान पर जब दोनो मान-बेटी खरीद डारी कर रही थी, पिछे से एक लड़के की आवाज़ आई.... "हेलो मेम, हाउ आर यू"
रीति'स मोम.... कौन हो बेटा तुम.
राजीव.... जी आंटी मैं, मेम का जूनियर हूँ और इनके ही कॉलेज मे पढ़ता हूँ.
रीति.... राजीव आप ऐसे सड़कों पर नही टोका कीजिए, मुझे अच्छा नही लगता. ओके बाइ, अब हम चलते हैं.
दोनो वहाँ से थोड़े आगे निकलने के बाद रीति की मोम कहने लगी.... "कौन था ये, लगता है यहाँ नया आया है क्या"
रीति.... पता नही मोम, आज मिला था कॉलेज मे, आचर्या सर उसे हमारी हेल्प के लिए भेजे थे.
मोम.... कहीं तुम्हारा पिच्छा तो नही कर रहा था. दूर रहना...
रीति आँखें दिखाती .... मोममम ! तुम भी ना, वो कॉलेज मे मिला था, अब क्या कोई मार्केट मे मिल जाए तो पिच्छा ही कर रहा था क्या ? कुछ भी सोचने लगती हो. वैसे भी आचर्या सर ने हेल्प के लिए कहा था, तो अब वो कुछ सोच कर ही कहेंगे ना.
मोम.... अच्छा ठीक है बेटा, चल अब घर चलते हैं.
रीति.... नही, पहले सुमित भैया की दुकान चलते हैं, फिर घर चलते हैं.
मोम वहाँ जाना तो नही चाहती थी पर रीति की ज़िद, जाना ही पड़ा.
सुमित.... नमस्ते आंटी, कैसी है रीति.
रीति.... अच्छी हूँ भैया, मोहित सर का कोई सॉंग आया क्या ?
सुमित.... अर्रे तुम्हे पता नही, मोहित अभी नहन मे ही है.
रीति.... साची... कब, कहाँ पर हैं वो. मुझे भी मिलना है.
रीति का एक्सप्रेशन देख दोनो, सुमित और रीति की मोम, दोनो ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे, उन्हे हस्ता देख रीति का छोटा सा मुँह हो गया और वो समझ चुकी थी कि सुमित उसे छेड़ रहा था.
बस इतनी सी ही बात थी, और रीति वहीं रोना शुरू.... "क्या मिलता है रुला कर, जब देखो तब एक ही बात लेकर छेड़ते रहते हो, जाओ मैं किसी से अब बात नही करती"
काफ़ी समझाने के बाद शांत हुई, जाते-जाते पता नही मोम को क्या सूझा और उसने सुमित को ये कह दी ..... "कि कोई लड़का रीति का पिछा कर रहा था". रीति अपनी मोम पर आँखे गुर्राती, फिर से "बस एक संयोग" बता कर सबको शांत कर दी.
पर किसी के दिल मे क्या है ये कौन जानता था, और आने वाला वक़्त कितना भयावना था या मात्र एक संयोग.......
अगले दिन कॉलेज मे तीनो सहेलियाँ लग गयी आन्यूयल डे फंक्षन की तैयारी मे. रीति & फ्रेंड्स के पास स्टेज होस्टिंग का काम था, रीति के पास सारे लोगों को को-ऑर्डिनेट कर के उनको स्टेज पर भेजने की टाइमिंग मॅनेज करना था, वहीं प्रिया और लाडली को आंकरिंग करनी थी.
तीन दिन बाद ये फंक्षन ऑर्गनाइज़ होना था और इन तीनो का काम लगभग समाप्त था. आज भी तीनो कॉलेज के बाद सभी पार्टिसिपेंट से मिल रही थी और सब मॅनेज कर रही थी.
सब फंक्षन हॉल के स्टेज पर बैठे थे, और रीति सब के पार्फमेन्स की नुंब्रिंग और टाइमिंग को मॅच कर रही थी, विचार विमर्श काफ़ी गहराई से चल रहा था इतने मे वहाँ पर कल वाला वो लड़का स्टेज पर चला आया.
अचानक से उसे देख कर, रीति और उसके दोस्त हैरान रह गये, और उसकी हरकतें भी काफ़ी अजीब थी. वो तेज़ी से हॉल मे आया था और सीधा रीति के पास जाकर खड़ा हो गया.
वहाँ जितने भी स्टूडेंट थे, सबको लगा कि रीति का कोई रिलेटिव है, जो यहाँ आया है. अब महॉल कुछ ऐसा था कि राजीव, रीति के पास सिर झुकाए खड़ा था, रीति काफ़ी हैरानी से उसे देख रही थी, और कॉलेज के बाकी स्टूडेंट चुप उन्हे ही देख रहे थे.
रीति.... तुम फिर आ गये, बोली थी ना की कोई हेल्प होगी तो मैं तुम्हे याद कर लूँगी.
राजीव.... लेकिन मैं, मुझे लगा कहीं आप को मेरी हेल्प की ज़रूरत होगी और आप के पास मेरा नंबर नही होगा, और कॉंटॅक्ट ना होने से आप मुझे ढूंदेंगी कहाँ, इसलिए आ गया.
रीति को उसके हाव-भाव कुछ ठीक नही लगे, पर वो कोई तमाशा नही चाहती थी, इसलिए .. "थॅंक्स" कह कर उसे अपना नंबर देने के लिए बोली. जब वो अपना नंबर दे दिया तब फिर रीति उससे से कही ..... "ठीक है अब है आप का नंबर मेरे पास, कोई काम होगा तो कॉल कर लूँगी.
राजीव ख़ुसी से अपना नंबर लिख कर रीति को दे तो दिया पर वहाँ से गया नही, इस पर रीति चिढ़ गयी, और चिढ़ती हुए कहने लगी ... कहीं तो जाओ, अब यहाँ मूरती की तरह क्यों खड़े हो.
राजीव... मैं, आपने तो अपना नंबर दिया ही नही.
अब क्या करे रीति, जितना बात को टालने की कोशिस कर रही थी, राजीव उतना ही पिछे पड़ा था. चिंता से भरा रीति का चेहरा सॉफ देखा जा सकता था. राजीव अब भी वहीं पर चुप-चाप खड़ा था, और सभी स्टूडेंट अब समझाने की कोशिस कर रहे थे, "कि ये कौन है, और यहाँ हो क्या रहा है".
रीति..... कोई आचर्य सर को बुलाएगा.
वहाँ बैठे स्टूडेंट मे से एक ने पुच्छ दिया..... क्या हुआ, और ये लड़का कौन है.
इधर आचर्य सर का नाम सुनकर वो लड़का वहाँ से जाने लगा. तब रीति ने "कल की हेल्प" वाली बात बता दी सबको. थोड़ी ही देर मे आचार्या सर भी चले आए थे और पुच्छने पर पता चला, उन्होने किसी को नही भेजा.
आचर्या सर ने सबकॉ उस लड़के को ढूंड कर लाने को कहे, लेकिन पूरे कॉलेज मे उसका कोई नामो-निशान नही था. रीति को उस लड़के द्वारा की गयी हिमाकत पर बड़ा ही गुस्सा आ रहा था.
कॉलेज ख़तम होने के बाद, अपनी सहेलियों के साथ वो घर निकल गयी. शाम को अपने रूटीन के हिसाब से जब तैयार हो रही थी, तभी उसके मोबाइल पर एक अंजाना कॉल आया.
रीति कॉल पिक करती.... हेलो, कौन है
दूसरी ओर से कोई जबाव नही.
रीति.... हेल्लूऊ
दूसरी ओर से फिर कोई आवाज़ नही.
इसी तरह 4/5 बार हेलो की होगी, पर कोई जबाव नही आया. इतने मे मोम भी चली आई, और पुच्छने लगी "कौन है बेटा"
रीति.... पता नही माँ, उधर से कोई बोल ही नही रहे, लगता है नेटवर्क प्राब्लम है.
इतना कह कर दोनो वहाँ से बाजार निकल गये, मार्केट किया और वापस अपने घर पर. रात को रीति अपनी पढ़ाई मे लगी थी, तभी उसके मोबाइल पर एक के बाद 3 मेसेज लगातार आए.
पहला मेसेज.....
एक ख्वाब सी आँखों मे बसी हो
जब से देखा दीवाने हुए हैं
रह गयी आशिक़ी अपनी बज़ुबान
एक नज़र करम हम पर भी करो
दूसरा मेसेज.....
बहुत प्यारी आवाज़ है .... जी करता है पूरा दिन सुनता ही रहूं, पर ये क्या तुम केवल हेलो, हेलो ही करती रही.
तीसरा मेसेज.....
तुम बहुत खूबसूरत हो तुम से मिलने को दिल करता है, प्लीज़ एक बार मिलना मुझ से.
सारे मेसेज चेक करते करते रीति के चेहरे पर चिंता की सिकान सॉफ नज़र आ रही थी, उसे समझ मे नही आ रहा था क्या करे .... उसने वो तीनो मेसेज प्रिया को सेंड कर दी... थोड़ी देर बाद प्रिया का कॉल आया... "रीति, ये कैसे मेसेज भेजे हैं"
रीति..... प्रिया, ये मेसेज मेरे पास अभी अभी आए हैं, पता नही कौन भेज रहा है.
प्रिया.... ओह्ह ! ये बात है, पर ये तो अच्छी खबर है डार्लिंग, लगता है तेरे सपनो का राजकुमार मेसेज कर रहा है, कब मिलवा रही है.
रीति.... तू पागल है क्या, यहाँ मुझे कुछ समझ मे नही आ रहा और तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है.
प्रिया.... अर्रे पसंद है तो हां कर नही तो इग्नोर कर, लड़कियों को ऐसे मेसेज आते रहते हैं.
रीति.... ह्म्म्मर ! ये भी ठीक है, इग्नोर करना ही सही रहेगा. वैसे मैं क्या सोच रही थी भैया को बता दूं, ताकि उसकी अच्छी खबर ले.
प्रिया.... पागल है क्या, इसमे भाई को बीच मे लाने की क्या ज़रूरत है.
रीति.... ठीक है, मैं नंबर चेंज कर लेती हूँ कल. ना रहेगा नंबर और ना ही मुझे वो तंग करेगा.
इस एक छोटे से सल्यूशन के बाद रीति पढ़ाई कर के सो गयी. अगले दिन सुबह भी कयि मेसेज आए थे, रीति बिना देखे सब को डेलीट कर दी, और कॉलेज जाते वक़्त उस सिम को डिसकार्ड कर के नयी सिम ले ली.
पर इन सब से होने क्या वाला था, क्योंकि ये किसी लड़के की आम फॅंटेसी नही थी, रीति के पिछे तो कोई सायको पड़ा हुआ था, और ये कोई और नही वही लड़का राजीव था. दिन भर जब उसे कोई कॉंटॅक्ट नही हुआ रीति से, तब वो कॉलेज ओवर होने के टाइम पर बाहर उसके रास्ते मे इंतज़ार कर रहा था.
तीनो सहेलियाँ बस दो दिन बाद के फंक्षन के बारे मे बात कर रही थी, तभी अचानक से राजीव उनके सामने खड़ा हो गया, और सीधा रीति से पुच्छने लगा... "आप ने अपना नंबर बंद क्यों रखा है, इतना ट्राइ किया पर हर बार स्विच ऑफ ही सुन ने को मिला"
रीति तो उसके हाव-भाव देख सहमी खड़ी थी, जबाव क्या दे वो तो बहुत दूर की बात थी. प्रिया मोर्चा संभालते उसे जबाव देने लगी, पर एक वो था कुछ भी सुन ने को तैयार नही, वो तो बस अपनी ही राग अलापता रहा और कहता रहा.... प्ल्ज़ आप सब मेरी बात सुन ने की कोशिस करो.
कोई नतीजा नही निकला, उस से बात करना ही व्यर्थ था, अंत मे तीनो उसे वहीं छोड़कर चली गयी. आलम ये था कि अब वो रीति को हर जगह मिलने की कोशिस करता, कभी घर के बाहर नज़र आता, कभी कॉलेज जाने के रास्ते पर तो कभी मार्केट मे चुपके से.
इस बात को बीते 20 दिन से उपर हो गये थे, अभी तक इसके बारे मे सिर्फ़ तीन लोगों को ही पता था, और जितना रीति उसे इग्नोर करने की कोशिस करती वो उतना ही पिछे पड़ा था.
अंत मे तीनो सहेलियों ने फ़ैसला किया कि रीति को एक बार उस से अकेले मिल कर उसे समझाना चाहिए. तीनो मे सहमति तो बन गयी, पर अंदर से रीति काफ़ी डरी हुई थी.
रीति अपने साथ हो रही परेशानियों के बारे मैं सोच कर बेचारी गुम्सुम बैठी थी, उसका छोटा भाई सोनू उसके पास बैठ'ते हुए सीधा पुच्छने लगा "क्या बात है, इतनी उदास क्यों बैठी हो". पहले तो वो सोनू को टालती रही, फिर अंत मे उसने वो सब बता दी, जो भी उसके साथ पिच्छले कयि दिनो से हो रहा था.
सोनू एक समझदार लड़का था, उसने बात की गहराई को समझ ते हुए बस इतना कहा.... ठीक है उस से मिल लो और बात कर के प्राब्लम सॉल्व कर लो.
रीति को कुछ समझ मे नही आया कि "क्या करना चाहिए, और क्या नही". अपने भाई के बात पर हामी भरती उसने मिलने का फ़ैसला कर लिया,
अगले दिन कॉलेज से वो अकेली लौटी, और वो बस अपने रास्ते चलती चली गयी. दिमाग़ मे काई ख़याल आ रहे थे, और क्या होगा बस इसी की चिंता सता रही थी. अंदर जैसे एक घुटन सी हो रही हो.
अपने झूझते ख़यालों मे वो बस चली ही जा रही थी, और जैसा कि उम्मीद किया जा रहा था, रीति को अकेला देख राजीव बिल्कुल उसके सामने आ गया. आया और बस चुप-चाप खड़ा रहा...
रीति.... तुम क्यों परेशान कर रहे हो, तुम्हारी वजह से मैं ठीक से जी नही पा रही हूँ.
राजीव... और मैं ठीक से मर नही पा रहा. तुम मुझे देखती तक नही, और ये ज़िंदगी बिना तुम्हारे कुछ भी नही.
रीति.... देखो ये ज़बरदस्ती है, मुझे अभी पढ़ाई करनी है, अपना कॅरियर बनाना है, और शादी का डिसिशन मेरे फॅमिली का है, फिर क्यों तुम मेरा पिच्छा करते हो.
राजीव... तुम्हे कॅरियर बनाना है बनाओ, मैं इंतज़ार कर लूँगा, शादी का डिसिशन आप की फॅमिली का है वो भी चलेगा, पर एक बात रह गयी ... इन सब मे जो एक लड़का होगा वो मैं ही हूँ.
रीति.... आप समझते क्यों नही, मुझे चिढ़ हो रही है, आप क्यों मेरा पिछा कर रहे हैं. भूल जाइए मुझे और अपने काम मे ध्यान दीजिए.
राजीव... आसान नही है रीति, मैने जब से तुम्हे देखा है, ठीक से सो नही पाया और आप मुझे भूल जाने के लिए कहती हैं.
कोई फ़र्क नही पड़ने वाला था राजीव को, ये कैसा प्यार था जो पागलपन की सीमा पार कर चुका था, और उसे अपने प्रियासी की परेशानियों का ज़रा भी अंदाज़ा नही था. जब किसी भी बात का कोई असर नही हुआ तो रीति वहाँ से अपने कदम आगे बढ़ा दी.
पर राजीव ने ऐसा होने नही दिया, वो तेज़ी से उसके आगे आकर उसका हाथ पकड़ लिया और अपनी ज़िद पर अड़ गया.... "कह दो कि तुम भी मुझे चाहती हो, प्लज़्ज़्ज़ कह दो ना. देखो एक बार कह दोगि तो मैं फिर तुम्हारे पिछे कभी नही आउन्गा. कहो ना प्लज़्ज़्ज़. तुम कुछ कहती क्यों नही, तुम रो क्यों रही हो"
बहुत कोशिस की, पर रीति सहमी सी बस उसकी बातें सुन कर सिसक रही थी, दिमाग़ जैसे सुन्न पर गया हो, और हाथ पाँव कांप रहे थे. इधर जब रीति ने कोई जबाव नही दिया तो गुस्से मे आकर वो अपना सिर एक पत्थर पर खुद ही पटकने लगा.
सिर इतना ज़ोर टकराया कि खून की धारा सिर से होती हुई पूरे चेहरे पर आने लगी, और इस खून को देख रीति को चक्कर आ गया. उसके बाद क्या हुआ उसे याद नही पर जब आँख खुली तो वो अपने घर मे थी.
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