RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
वासू तो कहीं नही जाना चाहती थी पर अनु के इन्सिस्ट करने पर वासू मान गयी, अड्मिशन की सारी रेस्पोंसिबिलिटी अनु ने अपने ज़िम्मे लिया और मेनेजमेंट कोटा पर अड्मिशन दिलवाया तोड़ा जुगाड़ लगाकर.
वासू अपने बीते दिनो की यादें समेटे वाराणसी से देल्ही की ओर निकली अपने एक अंजान से सफ़र पर.
सपने जो आँखों ने देखे थे वो सच होने जा रहे थे. श्रयलीन राजधानी एक्सप्रेस मे, अपने एक प्यारे दोस्त के साथ बैठी बस अपने आने वाले दिनो के बारे मे सोच रही थी, और उसकी कल्पना कर रही थी.
ईन्दोर के एक बिज़्नेसमॅन की बेटी, जो हाइ-सोसाइटी से बिलॉंग करती थी, काफ़ी इनडिपेंडेंट और कॉन्फिडेंट लड़की थी. अपने माँ बाप की एकलौती बेटी और स्वाभाव से काफ़ी चंचल. माँ बाप की एकलौती बेटी थी इसलिए स्वाभाव से थोड़ा जिद्दी और थोड़ी घमंडी भी थी.
नैन नक्श कभी आकर्षित करने वाले थे उसके और श्रयलीन के नखरे हज़ार. खाने से लेकर ड्रेस हर चीज़ मे काफ़ी चूज़ी थी शायद इसलिए अब तक कोई इसे मिस्टर परफ़ेक्ट नही मिला था. खुले विचार की थी और फॅशन डेज़ाइनिंग इसका सपना.
श्रयलीन का सपना था कि फेशन डेज़ाइनिंग मे इसका भी अपना एक नाम हो, बेरी-बेरी ब्रॅंड्स की कंप्रोमाइज़ के ऑफर्स भी इसके पास आए.
श्रयलीन का ये सपना शुरू उसके कॉलेज के दिनो से हुआ. 12थ पास कर चुकी थी और ग्रॅजुयेशन के लिए सारे दोस्त एक ही कॉलेज मे दाखिला करवा चुके थे. पहला दिन श्रयलीन के कॉलेज का.
"उफ़फ्फ़ ! क्या पहना जाए, स्कर्ट-टॉप, या जीन्स पहनु या फॉरमल सा कुछ"
पिच्छले आधे घंटे से श्रयलीन चूज़ नही कर पा रही थी कि क्या पहन कर जाए. तभी हॉल से आवाज़ आई ....
"सैली .... सैली ... आज ही कॉलेज जाना है, जल्दी करो"
श्रयलीन के स्कूल का दोस्त जो घर के ही पास रहता था, अंकित ... उसे आवाज़ देते हुए.
श्रयलीन.... रुक जा मोटू कितनी जल्दी रहती है तुझे कहीं भी जाने की, तैयार तो हो जाने दे
अंकित.... मैं तेरा खून कर दूँगा यदि कॉलेज मे तूने मुझे मोटू कहा तो, और तू क्या शादी मे जा रही है जो इतना समय लगा रही है.
श्रयलीन फाइनली एक जीन्स और टॉप अपने उपर डाल चुकी थी और तैयार होकर बाहर आई, अब तक अंकित के बुलाने के 15 मिनट हो चुके थे. अंकित फूला सा मुँह लेकर सोफे पर इंतज़ार कर रहा था.
"हो गया चल"
अंकित... ना ना, अभी तो मेक-अप बंकी है वो भी कर ले, और ये क्या हाथों मे नेल पोलिश नही लगाई ये तो रह ही गया.
श्रयलीन ने अपने नाख़ून को देखी और अपना हाथ अपने माथे पर मारती .. ओह्ह्ह्ह ! ये तो रह ही गया, थॅंक्स मोटू रुक मैं अभी आई.
अंकित पूरा चिढ़ गया, "अन्ह्ह्ह्ह ! पागल लड़की" करते बैठ गया सोफे पर, श्रयलीन नेल पोलिश लगा कर वापस आई. इस बार अंकित ने कुछ नही बोला, अपने मुँह को बंद ही रखने मे भलाई समझा.
दोनो बाइक पर चल दिए अपने नये कॉलेज की तरफ जहाँ इनके स्कूल के कुछ और दोस्तों ने भी आदमिशन लिया था.
"अच्छा सुन मोटू आज पहला दिन है, हमारी रगिन्ग तो होगी ना, बहुत तैयारियाँ कर रखी है रगिन्ग के लिए"
अंकित... तू क्या पागल है, रगिन्ग की तैयारी, हद है यार, ऐसा कुछ नही होने वाला है. सरकार. ने बॅन किया है रगिन्ग, और मैने पता कर लिया है उस कॉलेज मे ऐसा कुछ नही होता.
श्रयलीन.... क्यों ? आख़िर क्यों बॅन किया सरकार. ने, बच्चों की खुशी नही देखी जाती. कितने सारे सपने सजाए थे, कि फिल्मों की तरह सीनियर्स हमारी रगिन्ग लेंगे. मुझे कुछ उल्टा कहेंगे, मैं गुस्से मे आ जाउन्गी, फिर तुम लोगों की लड़ाई होगी, कॉलेज दो ग्रूप मे बँट जाएगा, आए दिन कोल्ड वॉर होता रहेगा, कभी कभी मारा-मारी भी.
अंकित... पागल, चुप हो जा, तूने क्या दंगे करने की ठानी है. इतनी लंबी प्लॅनिंग. तू ना एक काम कर, उस पोल के पास मैं बाइक रोकता हूँ, तू ना उसपे अपना सिर पटक शायद कुछ अकल आ जाए. ये तो मार करवाने के ख़याल से कॉलेज जा रही है.
श्रयलीन... चुप कर मोटू मेरे अरमानो पर यहाँ पानी फिर गया और तुझे मज़ाक सूझ रहा है. रोक जल्दी, बाइक रोक.
अंकित... पर हुआ क्या जो बाइक रोकने के लिए कह रही है.
श्रयलन.... हुआ कुछ नही बस बाइक रोक अभी, नही तो मैं कूद जाउन्गी.
अंकित, श्रयलीन को कोस्ता अपनी बाइक रोका...
श्रयलन.... हॅट तू ज़रा साइड
अंकित चुप-चाप साइड हो गया, श्रयलीन जा कर आगे की सीट पर बैठ गयी और अंकित को पिछे बैठने के लिए बोली.
अंकित.... पागल हो गयी तू सैली, फिर तुझे भूत चढ़ा बाइक चलाने का. पिच्छली बार जो गिराई थी वो कम नही था क्या, जो फिर मारने पर लगी है, उतर जल्दी तू नही चलाएगी बाइक.
श्रयलन.... नही मैने बोल दिया बस, मैं ही चलाउन्गी, तू पिछे बैठ. डर मत मैने बहुत प्रॅक्टिसस की है.
अंकित.... ठीक है तू जा बाइक से, मैं ऑटो से आ जाउन्गा. रास्ते मे कहीं गिरी-पड़ी मिली तो अड्मिट भी करवा दूँगा, लेकिन मैं बाइक पर नही बैठूँगा.
श्रयलन.... फटतू, मोटू. अब बैठता है बाइक पर या मैं आंटी को बता दूं, कि तू सिगरेट भी पीने लगा है.
हा-ना, हाँ-ना होते होते अंत मे अंकित को पिछे बैठना ही पड़ा. भगवान का नाम लेकर अंकित पिछे बैठ गया और श्रयलीन बाइक ड्राइव करने लगी. जान बुझ कर काफ़ी तेज अक्सीलेटर ले कर चला रही थी, बाइक की स्पीड देख कर अंकित बस भगवान का ही नाम ले रहा था.
सुरक्षित दोनो कॉलेज पहुँचे, गाड़ी पार्किंग मे लगी और कुछ स्टूडेंट्स ने जब ये नज़ारा देखा तो अंकित को देख कर हंस रहे थे. दोनो वहाँ से प्रिन्सिपल ऑफीस गये और बी.कॉम फर्स्ट एअर की क्लास और टाइम शेड्यूल का पता कर, अपने क्लास की ओर चले गये.
क्लास मे पहुँचते ही दोनो का स्वागत उनके तीन और मित्रों ने किया. विवेक, सीमा और अर्चना ये तीन और दोस्त थे जो इनके साथ थे स्कूल के दिनो मे थे.
श्रयलीन पूरे ग्रूप से... यार बोरिंग जगह है, बड़ा ठंडा महॉल है इस कॉलेज का
अंकित... ये पागल फिर शुरू हो गयी
सीमा... चुप कर मोटू, क्या हुआ सैली आज पहले दिन ही इतना अब्ज़र्वेशन कॉलेज का
अंकित.... सिर फोड़ दूँगा, यदि किसी ने मुझे मोटू कहा तो. और तू खुद की तो हालत देख हवा महल, ऐसा लगता है जैसे हॅंगर मे कपड़ा टंगा है.
विवेक... पागलों, आते ही शुरू ना हो जाओ, सुन तो लो सैली बोल क्या रही है.
अर्चना.... मतलब क्या है सैली, कहना क्या चाह रही है
श्रयलीन... अर्रे तुम सब भी ना ज़रा चुप करो. यार सच ही तो कही ये वैसा कॉलेज नही जैसा हम सोच कर आए थे.
सब ने जब ये सुना तो सबके दिमाग़ मे बस यही ख्याल आया कि इस कॉलेज का रेप्युटेशन ज़्यादा अच्छा नही, और सब की नज़रें श्रयलीन पर टिक गयी...
श्रयलीन अपनी बात पूरी करती....
"ना तो यहाँ एक कपल दिखा और ना ही यहाँ हमारा किसी ने रगिन्ग लिया, ये कैसे कॉलेज मे अड्मिशन दिला दिया तुम लोगों ने"
श्रयलीन की बातें सुन'ने के बाद सबने खूब दुतकारा, और इतना कह कर माथा पीट लिया सबने ... "सैली तेरे ये पागल ख़यालात"
कॉलेज का पहला दिन, सब काफ़ी उत्साहित थे. ये ऐसा वक़्त था जब यूथ अपने आगे के पड़ाव की ओर बढ़ते हैं, और कॉलेज की लाइफ जीते हैं. पहला एअर मे अक्सर स्टूडेंट अपने लड़कपन मे ही रहते हैं, कॅरियर का ख्याल तो दूसरे एअर या उसके बाद आता है.
ये पाँचों भी अपने कॉलेज का पहला दिन एंजाय कर रहे थे. इनकी तरह कयि और स्टूडेंट थे जिन्होने अपने मित्रों के साथ अड्मिशन लिया था, वो सब भी कॅंटीन और कॉलेज को एंजाय कर रहे थे. कॉलेज का पहला एअर और पहला दिन एक प्यारा सा अनुभव था सब के लिए.
पाँचो दोस्तो मे चार पहले से आपस मे बँधे थे.... दोनो "ए" अपने राशि के हिसाब से इज़हार-ए-मोहब्बत कर चुके थे, यानी कि अंकित और अर्चना, विवेक और सीमा का भी लव बाउंड हो गया था और सब अधिकारिक रूप सब से गर्लफ्रेंड/बाय्फ्रेंड घोषित थे. रह गयी थी तो बस श्रयलीन.
ऐसा नही है कि श्रयलीन पर कोई फिदा नही हुआ या श्रयलीन का कोई बाय्फ्रेंड नही बना. वास्तविकता ये थी कि जितनी शार्लीन लड़को को आकर्षित करती थी उतना कसिस किसी के पास नही था. एक खूबसूरत हुस्न की मल्लिका.
कई प्रपोज़ल आए श्रयलीन के पास, उसके स्कूल के दिनो मे जब वो 11थ, 12थ मे थी. कितनो को सॅंडल से जबाव दी, तो फॅंटेसी मे दो तीन को हाँ भी कही .. केवल इस ख्याल से कि चलो एक बाय्फ्रेंड मेरा भी हो. लेकिन कोई भी रीलेशन 5 दिन से ज़्यादा नही टिका, कारण था श्रयलीन के तेवर, जो किसी से संभले ही नही.
अब तक जिंदगी ने उसे सब कुछ दिया था, माँ बाप का प्यार, काफ़ी अच्छे दोस्त, सिर उठा कर जीने का तरीका, एक व्हौक हृदय जिसमे प्यार था अपनो के लिए और उसके लिए कुछ भी ग़लत ना होते देखने की चाह. पर कहते है ना कोई पूर्ण नही होता, वही हाल श्रयलीन का भी था. श्रयलीन की सारी खूबियाँ उसके कुछ अव-गुण के कारण बिल्कुल पिछे रह जाती थी.
उसका गुस्सा, किसी की बात को ना सुन'ना, नतीजा गलतफहमी और उस ग़लतफहमी मे कुछ भी बोल देना. सुन'ना उसे बिल्कुल भी पसंद नही था, हां दोस्तों मे थोडा बर्दास्त कर लेती, लेकिन थोड़ा ही, ज़्यादा होने पर फिर तो शामत आई.
हर दिन कुछ नया नही होता, घटनाए रोज-रोज नही होती, और आप के हर ग़लत अव-गुण को किसी ना किसी दिन जबाव ज़रूर मिलता है. श्रयलीन का गुस्सा भरा तेवर, और ना बर्दास्त कर पाने वाली भाव किसी से छिपि नही थी, पर जब कभी भी कोई मसला होता तो उसके दोस्त और परिवार संभाल लेते थे. लेकिन आने वाला वक़्त किसने देखा, जिंदगी कब किस मोड़ पर उलझ जाए.
मार्च 2008, थियेटर मे क्राइम थ्रिल रिलीस हुई थी "रेस", और सारे दोस्तों का प्रोग्राम बना इस पिक्चर को देखा जाए. पीवीआर मे सबकी बुकिंग हुई और कॉलेज से सारे दोस्त उस पिक्चर देखने गये.
सभी जोड़े एक वर्गीकरण श्रेणी मे बैठे थे, अंकित, उसके दाहिने अर्चना फिर विवेक और सीमा और सबसे आखरी मे श्रयलीन. श्रयलीन को मूवी के दौरान चिट-चॅट पसंद नही थी, इसलिए वो आखरी मे बैठी थी, बाकी दोस्त मूवी को लेकर आपस मे विचार-विमर्श वहीं पर करते थे.
श्रयलीन के साइड से दो लड़के बैठे थे, और फिर रो ख़तम. मूवी चल रही थी और सारे दोस्त एंजाय कर रहे थे, तभी मूवी मे एक हॉट सॉंग प्रदर्शित हुआ, बिपसा वासू और सैफ अली ख़ान का, बगल के दोनो लड़के मे से एक ने हूटिंग सुरू कर दी, हूटिंग इतनी ज़ोर की थी और इनडाइरेक्ट शब्दों से भरी की श्रयलीन चिढ़ गयी.
खैर, उस समय तो चुप ही रही पर मूवी के एंड मे जब सब निकले तो श्रयलीन ठीक उन दोनो के पिछे थी और बाकी के उसके दोस्त आगे बीच मे दोनो लड़के ... सिनिमा हॉल से बाहर निकलते ही श्रयलीन..... "हेलो, मिस्टर ज़रा सुनिए"
दोनो लड़के पिछे मुड़े, एक काफ़ी सोफिस्टिकाटेड लड़की को यूँ पुकारते सुना, फिर आगे मूड गये, उन्हे लगा शायद किसी और को पुकार रही है .... श्रयलीन, इस बार थोड़ी तेज आवाज़ मे बोली ...... "तुम दोनो से ही कह रही हूँ"
इस बार दोनो को वाकई लगा, इतनी मस्त लड़की हमे ही पुकार रही है, दोनो अंदर ही अंदर काफ़ी खुश हुए, तेज आवाज़ ने श्रयलीन के दोस्तों का भी ध्यान अपनी ओर खींचा.
स्थिति कुछ ऐसी थी कि, श्रयलीन खड़ी थी, उसके सामने दोनो लड़के खड़े थे और पिछे से चारो दोस्त शरलीन की ओर मुड़े, देखने लगे मामला क्या है.
दोनो मे से एक लड़के ने श्रयलीन की बातों का जबाव देते हुए कहा .... हेलो मिस, आप ने मुझ से कुछ कहा क्या ?
श्रयलीन.... हां गटर छाप, तुम से ही कही
ऐसी भाषा, वो भी इतनी सुंदर लड़की के शब्दो मे, बेज़्जती सी महसूस हुई उस लड़के को, वो तो आश्चर्य मे अपनी आँखे बड़ी किए, समझने की कोशिस करने लगा कि आख़िर हुआ क्या है, मामला क्या है...
श्रयलीन अपनी बातों को और तूल देती और उसे आगे बढ़ती हुई कहने लगी....
"ठर्कि कहीं के, घर मे लोगों ने संस्कार ही नही दिया हैं, कमिने, ऐसे सीन एंजाय कर रहे थे जैसे बिपासा और सैफ के साथ ये भी वहाँ माजूद हो. शरम नही आती तुम को, इस तरह से हूटिंग करते, ये भी नही देखते कि तुम्हारी वजह से दूसरे डिस्ट्रब होते हैं"
अंकित.... सैली, अब क्या हुआ, कुछ किया क्या इसने, बोल तो अभी बताता हूँ
इतना बोल कर अंकित ने उस लड़के का कॉलर पकड़ लिया जो खड़ा सुन रहा था, और उस पर अपना गुस्सा दिखाते हुए.... हरामजादे, तू सिनिमा हॉल लड़की छेड़ने आता है, रुक तुझे मैं अभी बताता हूँ.
इतनी बातें हुई ही थी .. कि साथ खड़ा उस लड़के का दूसरे साथी ने अंकित को धक्का देकर हटाया, और काफ़ी गुस्से मे बोलते हुए ..... सुन ओये, जो तू कर रहा है ना उसमे बहुत बच्चा है, कोई चुप है इसका मतलब वो ग़लत नही, लड़की के सामने हीरो मत बन नही तो औकात सामने ला दूँगा. ये हमारी सराफ़त है कि छोड़ रहा हूँ नही तो इस बदतमीज़ी के लिए तुम्हारे हाथ तोड़ देता और जबड़े की बत्तीसी बाहर लाकर उसी टूटे हाथ मे थमा देता.
|