RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
ये एहसास दोनो का, अनु अंदर से इतना उत्तेजित था कि उसे लगा पूरा ज़ोर डाले, और बस करता ही रहे. वहीं वासू को जब पहला अनुभव हुआ अपनी योनि पर अनु का लिंग तो वो फडफडा गयी. वासू को ऐसा लगा जैसे ये पल ऐसे ही रहे सदा और कभी ये ना रुके इतना मज़ा.... आहह ! पहले क्यों नही किया ये.
पर दोनो का पहला अनुभव था, जोश को अनु कंट्रोल नही कर पाया, पहला झटका इतने जोरो का था कि वासू को पेन फील होने लगा, जो मज़ा था वो गायब हो गया .. और "अनुउऊुुुउउ" कहती वो चिहुक उठी.
दर्द की शिकन चेहरे पर साफ देखी जा सकती थी, अनु ने जब चेहरा देखा वासू का तो वो रुक गया, उसे थोड़ा अफ़सोस हुआ कि मैं तो मज़े कर रहा हूँ ये दर्द मे है, एक ख़याल उसे अपने पार्ट्नर के लिए आया और वो खुद पर काफ़ी संयम बढ़ाते हुए रुका.
अनु.... वासू सॉरी जान, दर्द हो रहा है क्या ?
वासू ने आँखों की सहमति दी. अनु उसी स्थिति मे रुका रहा और प्यार से वासू के माथे को चूम लिया. प्यार की इसी फीलिंग के साथ उसने वासू के होंठों को चूमा और धीरे से हाथ वासू के बदन पर फिराने लगा, उसके अंगों से खेलने लगा.
पर अनु की हालत बहुत ही खदाब थी, उस से रुक पाना बहुत ही मुश्किल हो रहा था इसलिए मन को थोड़ा मारते, बिल्कुल स्लो मोशन मे अंदर डालने लगा.
उपर वासू के बदन से खेल रहा था और नीचे बिल्कुल हौले से वो अपना काम कर रहा था. धीरे धीरे कुछ ही पलों मे वासू को अपनी योनि मे लिंग के होने का एहसास मज़ा देने लगा. मस्ती फिर से जोरों पर थी. वासू की कमर खुद ही उपर की ओर पुश करने लगी वो भी बड़े बड़े झटकों मे.
अनु भी आउट ऑफ कंट्रोल हुआ ... आहहें चारों ओर गूंजने लगी और स्पीड बिल्कुल बुलेट ट्रेन की तरह हो गयी. आलम ये था कि अब यदि दोनो मे से कोई एक रुकता तो दूसरा उसका खून कर देता.
उत्तेजना से भरी एक काम लीला उस जंगल मे चल रही थी. थोड़े ही देर मे, दोनो अपनी काम क्रिया से संतुष्ट होकर एक दूसरे के उपर निढाल लेट गये.
एक अलग ही शांति का प्रवाह दोनो के सरीर मे हो रहा था और दोनो बिल्कुल खुमारी मे एक दूसरे के उपर लेटे रहे. काफ़ी समय दोनो सुकून के साथ पड़े रहे वहीं उस जंगल मे.
अनु, वासू के सिर पर हाथ फेरते .... वासू उठो ना चलो
वासू.... अनु, अच्छा लग रहा है थोड़ी देर और
अनु.... बेबी हमे चलना चाहिए, प्लीज़ उठ जाओ हम खुले मे पड़े हैं
जैसे ही "खुले" शब्द वासू के कान मे पड़े, उसकी घंटी बजी दिमाग़ की, आँख घुमा कर चारों ओर देखी और हड़बड़ा कर उठी.
बिना कुछ बोले जल्दी से पानी मे गयी, बाल को बचा करा खुद को साफ की, अनु अब भी वासू को ही देख रहा था ... वासू का ध्यान जब अनु की ओर गया तो तेज चिल्लाते हुए...
"अनु दूसरी ऑर घुमो, और मुझे घूर्ना बंद करो"
अनु हंसते हुए .... बेबी अब हमारे बीच छिपाने लायक कुछ बचा कहाँ
वासू... तुम घूमते हो या मैं खून कर दूं तुम्हारा
अनु हंसता हुआ दूसरी ओर घूम गया. वासू बाहर निकली पानी के, पर उसके पास अब दो समस्याएँ थी.... एक तो टवल नही था और दूसरी की उसके भींगे इन्नरवेअर ज़मीन पर थे और पूरा काम उसी के उपर हो गया तो वो पहन'ने के लायक नही बचे.
वासू खुद को कोस्ती .. "कि ये पागलपन मे कहाँ कौन सी घटना हो गयी" और इधर उधर देखने लगी. कुछ ना मिला तो वो अनु की टी-शर्ट ही अपने बदन को पोछने मे इस्तेमाल कर ली. और अपने कपड़े पहन कर रेडी हो गयी. वासू के कपड़े पहनते ही जल्दी ही अनु भी नहा धो कर रेडी हो गया. दिन ढलना शुरू हो चुका था, दोनो फिर वहाँ से निकले वापस वाराणसी के लिए.
वासू की अभी की मनोदशा थोड़ी सी लज्जा भरी और थोड़ा संतुष्टि भरी थी. जहाँ अभी कुछ देर पहले हुए अपने इस सेक्स के लिए खुद मे थोड़ी खिली-खिली महसूस कर रही थी वहीं दूसरी ओर जगह को देख कर उसे रोना आ गया कि "ये कहाँ मैने क्या कर दिया. मुझे खुद पर तो कंट्रोल रखना था"
खैर वासू अपनी ग़लती को एक प्यारी सी भूल समझ कर उसके एहसासों मे डूब गयी. अनु का साथ उसे अच्छा लग रहा था. आज इतने दिनो मे पहली बार कोई एमोशन्स थे अनु को लेकर बसु के दिल मे थे.
वासू, अनु के साथ वाराणसी शाम के 5 बजे तक पहुँचे. थोड़ी खिली थोड़ी खोई, आज उसे शॉपिंग मे भी मज़ा नही आ रहा था. बस कुछ ज़रूरत का समान खरीदा, खुद के हुलिए को परफ़ेक्ट किया और वापस आ गयी अपने घर.
घर आकर लेट गयी बिस्तर पर, आज हुई प्यारी सी घटना के बारे मे सोच कर मुस्कुराने लगी. वासू का दिन खुश्मय बीतने लगा, अनु का साथ उसे बहुत अच्छा लगने लगा था, वहीं अनु की चाहत भी वासू के प्रति कम ना हुई.
ऐसे ही एक शाम वाशु मोबाइल पर ऑनलाइन चेक कर रही थी, और अपनी रश्मि की प्रोफाइल से ऑनलाइन थी. इनबॉस मे कयि मेसेज जीत के थे वो एक-एक कर के पढ़ने लगी.
जैसे-जैसे वो मेसेज पढ़ती गयी, उसे बड़ा फन्नी लगा ये बंदा और वासू ने उसे रिप्लाइ मेसेज कर दिया ..."यू आर फन्नी"
मसेज करने के तुरंत बाद वासू के मोबाइल पर मेसेज आया .... थॅंक्स मिस, मुझे तो लगा आप का कभी रिप्लाइ नही आएगा.
रश्मि .... ह्म्म्म ! अभी तो आ गया
जीत... जी शुक्रिया आप की इस नज़रें इनायत का, वैसे तस्वीर की जो लड़की हैं वो आप ही हैं क्या ?
रश्मि.... हहे, आप जान कर पुच्छ रहे है ना, जानते नही ये हेरोइन है.
जीत... जी मन मे तो आप की ऐसी ही तस्वीर बनी है ना, आप बिल्कुल काजल अगरवाल की तरह होंगी.
रश्मि... लोल, पर मैं वैसी बिल्कुल भी नही आवरेज दिखती हूँ
जीत... वॉववव ! फिर तो मेरा काम बन गया
रश्मि... कैसा कम
जीत.... अर्रे वही कि आप अभी सिंगल होंगी और मेरा कोई तो चान्स बनता है.
रामी.... ओह्ह्ह हूओ फ्लर्टिंग, बट मुन्ना, मेरा पहले से बाय्फ्रेंड है
जीत.... नहियिइ, नहिी ... ये क्या हो गया .... वो किसी और, किसी और से मिलकर आ रहे है , फिर भी हम उनका इंतज़ार कर रहे हैं.
काफ़ी ज़ोर से हँसी वासू, जीत की इस अल्हड़ अदा पर, हस्ती हुई वासू ने रिप्लाइ दिया....
"हहे, बस करो, मैं हँसते हँसते कहीं गिर ना जाउ"
जीत.... आप क्या छत की बौंड्री पर बैठ कर मेसेज कर रही हैं क्या, जो गिर जाएँगी.
वासू... जी नही, ओके बाइ जीत जी, बाद मे बात करती हूँ.
जीत से बात कर के वासू काफ़ी हँसी, उसके लिए काफ़ी फन्नी था वो. वासू फिर लग गयी अपने कामो मे. दिन ख़ुसनूमा था वासू का कहीं कोई शिकन नही किसी बात की. अपनी जिंदगी से जो कल्पना की थी वो लगभग पूरी ही थी.
बात सिर्फ़ एक खेल से शुरू हुआ था वासू के लिए अनु का पुर्पिसल, पर अनु से वो एमोशनली अटॅच हो गयी. अनु भी काफ़ी केरिंग था और प्यार करता था वासू से. वासू का एक अंजान रीलेशन राकेश के साथ भी था जिसे वो कभी छोड़ नही पाई.
वासू ने दोनो को एक दूसरे के बारे मे बता दिया. राकेश जब अनु से मिला तो उसका चेहरा उतर गया क्योंकि अब तक राकेश इसी आशा मे था कि वासू कभी ना कभी तो उसे पसन्द करेगी ही, पर वो सहारा भी ना रहा.
राकेश उस दिन काफ़ी मायूस था, वासू, राकेश को देख कर समझी कि...... उसे इस बात का बुरा लगा कि मैने उस से पहले कही थी मेरा बाय्फ्रेंड पहले से है, और अनु की एंट्री इस वाकये के बाद हुई थी.
राकेश की मायूसी थोड़ी सी खाटकी, पर कुछ दिनो बाद जब एक दिन कॉलेज जाने के लिए राकेश के साथ गयी तो उसे वापस लौटाने के बदले अपने साथ कॉलेज मे ले आई. राकेश उसके साथ गया, दोनो कॉलेज के ग्राउंड मे बैठे थे, राकेश थोड़ा शांत-शांत सा था...
वासू... राकेश हद्द है, तुम तो मेरे दोस्त हो ना फिर अनु के लिए ये रियेक्शन क्यों.
राकेश... मैं थोड़े ना कोई हूँ, मैं तो बस एक ड्राइवर हूँ जो तुम्हे रोज कॉलेज ड्रॉप करता है, इस से ज़्यादा कुछ नही.
वासू... क्या बोला राकेश, ज़रा फिर से कहना
राकेश... यही कि मैं बस तुम्हे कॉलेज ड्रॉप करने वाला एक लड़का हूँ बस इस से ज़्यादा कुछ नही.
वासू... ठीक है तुम जा सकते हो फिर, कल से कोई ज़रूरत नही मुझे कॉलेज छोड़ने की.
वासू की बात सुनकर अपना रोया सा मुँह लेकर राकेश चला गया. राकेश की उदासी छिपि नही थी, पर यदि आप किसी को अपना मानो तो उसकी बात भी ज़्यादा चुभती है. राकेश की जलाने वाली बात पर वासू को काफ़ी गुस्सा था और गुस्से मे वो भी उसे जाने के लिए बोल दी.
पर जाते वक़्त का उसका चेहरा देख कर वासू को थोड़ा अफ़सोस भी हुआ. काफ़ी उखड़ी सी थी वासू, कॉलेज के बाद जब अनु उसे पिक करने आया तो अनु के साथ भी नही गयी वासू.
वासू के अचानक ऐसा चेंज अनु के समझ से परे था. अनु भी परेशान हो गया कि आख़िर ऐसा हुआ क्या जो वासू इतनी भड़की थी, मैने तो कुछ किया भी नही.
तीन चार दिन ऐसे ही गुजर गये, पर वासू का बिहेवियर बदला ही रहा. अंत मे अनु ने ही वासू से पुछ दिया, आख़िर बात क्या है आज कल वो गुम्सुम क्यों रहती है, क्यों वो उसके साथ आना नही चाहती.
वासू ने बड़ा अजीब तरह का आन्सर दिया अनु को .... "कुछ नही जान, बस अब अच्छा नही लगता कोई मुझे कॉलेज ड्रॉप करे और पिक करे"
इतनी ही बात हुई और वासू वापस लौट गयी अपने घर. पर जाते जाते हिंट कर गयी कि ये बात राकेश से जुड़ी है. वैसे तो राकेश को लेकर कभी भी अनु के मन मे सेकेंड थॉट नही आया, लेकिन वो जानता था कि वासू का ये एक अच्छा दोस्त है जिसके लिए ये परेशान हो जाती है.
और पता भी क्यों ना हो, जब भी कभी अनु मज़ाक मे कुछ ऐसा बोलता तो वासू चिढ़ जाती, उसपर काफ़ी गुस्सा हो जाती थी. इसलिए अनु को अपनी सुखी प्यार भरे जीवन के लिए राकेश और वासू का कम्प्रोमाइज करवाना ज़रूरी था.
अनु ने राकेश को, सनडे को ठीक उसी समय इन्वाइट किया जब वासू उसके साथ होती है. राकेश जब रेस्टोरेंट मे आया तो वासू को देख कर थोड़ा मायूस हो गया, और वासू ने जब राकेश को देखी तो चिढ़ गयी, क्योंकि उस दिन की बात का गुस्सा आज भी था.
राकेश बैठ ते हुए पहले वासू को ही पुच्छ दिया ... "कैसी हो वासू"
वासू... मैं मरूं या जियुं, इस से किसी लड़के को क्या फ़र्क पड़ने वाला है
अनु... हद है दोनो इतने सालों को एक दूसरे को जानते हो फिर भी ऐसे लड़ रहे हो.
राकेश... लड़ थोड़े ना रही है, ये तो सच बोल रही है. मैं हूँ ही कौन जो सच बताती.
अनु... कैसा सच राकेश
राकेश ... कुछ नही अनु, जाने दो बात को
वासू... उस दिन ग्राउंड मे मैं वही बताने बैठी थी, पर तुमने उस से पहले अपनी सोच बता दी, भाड़ मे जाओ मुझे कोई मतलब नही.
इतना सुन'ने के बाद राकेश उठ कर जाने लगा, लेकिन अनु ने हाथ पकड़ कर रोक लिया राकेश का. वासू की बात सुनकर राकेश की आँखें छलक आई, और वो किसी से नज़र नही मिला पा रहा था.
एक बार फिर से वासू को वही फील हुआ, गुस्से मे कुछ भी बोल गयी और राकेश को उदास देख गिल्टी फील करना. अनु, वासू की ओर देखते ही बोल पड़ा...
"अनु बहुत ही रूड बोल गयी तुम, तुम्हे ऐसा नही बोलना था, अब बताओगी हुआ क्या है"
वासू ने फिर शुरू से बात बताई कि कैसे राकेश ने उसे प्रपोज किया, फिर राकेश से झूट कहना, अनु का मोहल्ले मे मिलना, झगड़ा और बाद मे अनु के साथ लव रीलेशन का राकेश को बताना.
अंदाज-ए-बयाँ कौन क्या करेगा. जो दर्द राकेश का था उसे समझे कौन. राकेश तो दुखी अपने प्यार को लूट जाने से था, पर बहाना तो झूट बोलने का कर रहा था अपनी मायूसी को लेकर.
बड़ी मुश्किल से ही सही पर दोनो का आपस मे कम्प्रोमाइज हुआ. सारी बातें क्लियर हुई, यहाँ तक कि वासू ने अपने व्यवहार के लिए सॉरी भी कही, उधर राकेश ने भी कम्प्रोमाइज कर लिया, झगड़े से नही अपने मन के रीलेशन से क्योंकि वासू अब उसकी जिंदगी नही थी.
धीरे धीरे सब नॉर्मल हो गया. राकेश के साथ क्या जुड़ाव था वासू का इसका जस्टिफिकेशन कर पाना काफ़ी मुश्किल होगा, क्योंकि वो दोस्त से बढ़कर था पर प्यार नही था, और ना ही वासू के अंदर कभी फीलिंग रही ऐसी.
वासू की बाहरी लाइफ मे कुल चार लोग थे, उसकी बेस्ट फ्रेंड नीमा, राकेश, उसका प्यार अनु जिसे वो दिल से चाहती थी और एक फन्नी बॉय जीत जो कि फ़ेसबुक पर मिला था.
वासू अपने फाइनल एअर मे थी, तब अनु को वाराणसी से निकल कर 4 साल को विदेश पढ़ने जाना था. और ये वही वक़्त था जब किस्मत वासू को देल्ही लेकर आई और उसे नॅशनल इन्स्टिट्यूट ऑफ फेशन डेज़ाइनिंग देल्ही जाय्न करने पर मजबूर किया.
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