RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
रूम मे गये तकरीबन एक घंटा हुआ होगा, वैसवी भी अब नॉर्मल हो चुकी थी, तभी दरवाजे से उसकी माँ अंदर आकर वैसवी के पास बैठ गयी, वैसवी के सिर पर हाथ फेरती हुई ...
"वासू किस बात को लेकर परेशान सी घर पहुँची मेरी बच्ची"
वैसवी.... कुछ नही माँ बस घूमते घूमते थोड़ा थक गयी थी.
माँ.... अच्छा ला तेरा पाँव दबा दूं
वैसवी.... माआआ, क्या कर रही हो छोड़ो
माँ.... देख बेटा मैं तेरी माँ हूँ, मुझ से नही बताएगी तो किसे बताएगी अपनी परेशानी.
वैसवी थोड़ी सी खुद मे खोती हुई बोल पड़ी.... माँ जब भी आती हूँ वो चौराहे पर कुछ लड़के हमेशा कॉमेंट करते हैं, मुझे अच्छा नही लगता.
माँ.... ओह्ह्ह्ह ! तो ये बात है, रुक कल ही उनकी खबर लेती हूँ, आने दे तेरे पापा को फिर वही इलाज़ करेंगे उन लड़को का.
वैसवी... जाने दो माँ, अब नही करेंगे. मैने भी आज उनको एक थप्पड मारा और वॉर्निंग दे दी "आईएंदा यदि ऐसी कोई हरकत की तो मुझ से बुरा कोई नही होगा"
माँ.... क्या !!!! नही वासू तुम्हे आवारा लड़कों के मुँह नही लगना चाहिए, उनका तो काम ही यही होता है दिन भर आते जाते लड़कियों पर कॉमेंट करना.. भगवान ना करे, पर यदि कहीं उसने कोई उल्टी सीधी हरकत कर दी तो हम कहीं मुँह दिखाने के काबिल नही रहेंगे.
वैसवी... माँ ये तुम मुझे हौसला दे रही हो या डरा रही हो. तुम ही बताओ आख़िर कब तक सहते रहे हम, आख़िर सुन'ने की भी कोई हद होती है.
माँ... बेटा कीचड़ मे पाँव डालॉगी तो कीचड़ मैला नही होगा, बल्कि तुम्हारे पाँव ही गंदे होंगे.
वैसवी... माँ आप ये देहाती वाली सोच बदलो, कोई कीचड़ और कोई मैला नही होता. आज छोड़ दिया तो कमिने कल से वही हरकत करेंगे.
माँ.... पागल हो गयी है तू, यदि तू अपनी सोच नही बदली तो आज से तेरा घर से निकलना बंद, तेरे पापा तुझे कॉलेज छोड़ आएँगे और फिर टाइम होने पर वापिस भी.
वैसवी बिल्कुल गुस्से से लाल होती हुई बोली .... माआअ ! करे कोई भरे कोई, इस से अच्छा होता मेरे पैदा होते ही मार ही देती, जिंदा क्यों रखा. ये नही करो, वहाँ मत जाओ, जैसे सारे नियम क़ानून हमारे लिए बने है, उन आवारा लड़को को तो कोई कुछ नही कहता.
माँ अपनी बेटी का गुस्सा देखते हुई उसे शांति से समझाने लगी.... देख वासू तू कितनो को मारती रहेगी, तुम्हे हर चौराहे पर ऐसे आवारा मिलेंगे. इस से अच्छा है कि या तो तू बाहर ही मत जा, या फिर उनकी बात को नज़र अंदाज़ करती हुई अपना काम कर. मैं ये नही कहती कि वो ग़लत नही पर हम कर भी क्या सकते हैं.
वैसवी.... हुहह ! हम कर भी क्या सकते हैं, अर्रे यही बोल बोल कर के तो घर की बिल्ली बना कर रख दी हो, खैर जाने दो मैं उनके लिए तुम से क्यों बहस कर रही हूँ, ठीक है सबको जैसे पहले इग्नोर कर रही थी वैसा ही करूँगी, अब तो हंस दो.
वैसवी की बात सुनकर उसकी माँ को स्ंतुष्टि भी थी और खुशी भी की उसके कहने से उसकी बेटी ने बात मान ली, लेकिन अपनी माँ के जाते ही वैसवी मन ही मन हँसने लगी ..... "माँ तुम्हारी ख़ुसी के लिए वही बोली जो तुम सुन'ना चाहती थी पर करूँगी वही जो दिल करेगा, तुम्हे पता चलेगा तो ना कोई बात होगी"
रात बीतने के बाद जब भोर हुआ तो आज भी वैसवी का वही रुटीन इंतज़ार कर रहा था, भाग दौड़ के साथ तैयार होना और राकेश के साथ कॉलेज जाना. जल्दी जल्दी जब वैसवी भागम भाग मे थी तब उसकी नज़र उस गिफ्ट पॅकेट पर गयी, जो उस लड़के ने वैसवी को कल दिया था, पर वैसवी इतनी जल्दी मे थी कि वो उसे वहीं छोड़ कॉलेज के लिए घर से निकल गयी.
पर वैसवी को क्या पता था कि उसके साथ एक अजीब सी घटना आगे रास्ते मे इंतज़ार कर रही है, वैसवी जैसे ही उस चौराहे के पास पहुँची जहाँ उसने कल शाम उस लड़के को थप्पड़ मारी थी, उसकी आँखें बड़ी हो गयी और कुछ पल तक वो वैसी हो खड़ी रही.....
वैसवी की नज़र जब सामने गयी तो कल शाम वाला वही लड़का खड़ा था अपनी कार के साथ. जब उस लड़के ने वैसवी को यूँ मूर्ति की तरह खड़ा देखा तो खुद ही उसके पास चला गया... और "हाई" कह कर विश किया.
एक ही पल मे वैसवी को कल हुई घटनाए याद आ गयी, कि कैसे इस लड़के ने सड़क पर वैसवी को पकड़ा था. वैसवी थोड़ी घबरा गयी उस घटना को याद कर के, पर अपनी घबराहट को वो छिपाती हुई, बिना उसके "हाई" का कोई रिप्लाइ किए अपने रास्ते चलने लगी.
"अजी यूँ बेरूख़े होकर कब तक तड़पाईएगा"
"हुजूर अब तो जहाँ जाइएगा हमे पाईएगा"
"अर्रे सुनिए तो मिस, कम से कम अपना नाम ही बताते जाइए, जबतक आप से दोस्ती नही होती तबतक आप के नाम को ही जपा करेंगे, शायद तपस्या के बाद जैसे भगवान मिल जाते हैं, आप भी मिल जाएँ"
वैसवी अब बिना बोले नही रह पाई. वैसवी, जो बिना बोले आगे आगे चल रही थी, वो पिछे मूडी और उस लड़के के सामने खड़ी होकर, उस पर बरसना शुरू हो गयी....
"तुम खुद को समझते क्या हो, हयंन्न ! यदि तुम ने मेरा पिछा नही छोड़ा तो मैं पोलीस मे कंप्लेन कर दूँगी, और खुद को इतने बड़े तौप समझते हो तो कल माल मे रुके क्यों नही भाग क्यों गये"
एक सांस मे वैसवी ने अपनी पूरी बात उस लड़के के सामने रख दी. वो लड़का भी बस वैसवी की बातों को सुन रहा था और मुस्कुरा रहा था... उस लड़के का मुस्कुराना तो जैसे वैसवी के गुस्से को और हवा दे दी हो ... कुछ देर शांत रही और उसे मुस्कुराता देख .... "कुत्ता, कमीना, हरामज़ादा" कहती हुई फिर से अपने रास्ते चल दी.
लेकिन वाह रे भूत चाहत का जो पता लगाकर, सिर्फ़ एक शाम मे उसके घर की गली तक पहुँचा, वो ऐसे कैसे पीछा छोड़ देता, वो भी पिछे-पिछे बढ़ा, पर यहाँ तो एक अनार और दो बीमार थे.
उस लड़के के सामने से बिल्कुल राकेश आकर खड़ा हो गया और उसके कंधे पर सामने से हाथ रखते हुए .... "ओईए ये क्या तुच्छ वाली हरकतें है, चुपचाप चले जाओ यहाँ से वरना यहाँ मजनुओ का हाल कुछ अच्छा नही होता"
वो लड़का.... कंधे से हाथ हटाओ, वो निकल जाएगी. तुम्हे जो भी हाल करना है वो बाद मे कर लेना मैं यहाँ आ जाउन्गा. पर प्लीज़ इस वक़्त रास्ता ना रोको.
अब भले वैसवी ने राकेश को रिजेक्ट कर दिया हो लेकिन राकेश की चाहत तो अब भी वैसवी ही थी, तो अब भला राकेश से कहाँ बर्दास्त हो इतनी बड़ी बात. राकेश ने उस लड़के की बात सुन कर उसका कॉलर पकड़ लिया और खींच कर एक घूँसा मारा.
घुसा सीधे नाक पर लगा और उस लड़के की नाक से खून निकलने लगा. खून देख कर ही वैसवी की हालत खराब हो गयी, उसका मन अजीब सा होने लगा. राकेश को कंधे से पकड़ कर साइड करती हुई, वैसवी ने तुरंत अपना रुमाल निकाला और दूर से ही उस लड़के की ओर बढ़ा दी.
वैसवी दूसरी ओर नज़रें घुमाए ही उस लड़के की तरफ रुमाल बढ़ाए हुए थी, और वो लड़का तो बस वैसवी को ही देख रहा था. कुछ समय तक जब उस लड़के ने रुमाल नही लिया तो वैसवी अपनी नज़रें उस लड़के की ओर करती हुई रुमाल थामने का इशारा की.
नज़रों से नज़रें मिलाए ही उस लड़के ने एक हाथ से रुमाल लेकर अपने नाक पर लगा लिया. उसके रुमाल लेते ही वैसवी, राकेश का हाथ थामी और कॉलेज चलने के लिए कहने लगी. राकेश भी एक बार उस लड़के को गुस्से मे घूरते हुए वैसवी के साथ निकल गया...
पर जैसे ही पिछे मुड़े दोनो की उस लड़के ने फिर से एक कॉमेंट कर दिया... "अर्रे सिनॉरीटा ये तो बताओ आज शाम को क्या वहीं मिलोगि जहाँ तुम टकराई थी"
राकेश मुड़ा ही था उसे मारने के लिए कि वैसवी ने उसका हाथ पकड़ लिया और चिढ़ती हुई कहने लगी ... "एनफ राकेश, अब प्लीज़ सड़क पर तमाशा मत करो"
वैसवी की बात सुनकर राकेश गुस्से का घूँट पी गया और बाइक स्टार्ट कर दोनो कॉलेज के लिए निकल गये.
राकेश .... वाशु ये क्या है, तुम बीच मे क्यों आई, और उस कमीने को रुमाल क्यों दी अपना.
वैसवी... चिल राकेश, हो तो गया नाक तो तोड़ दिया उसका, अब क्या जान ले लेगा.
राकेश... वासू, उसकी हिम्मत तो देख मेरे सामने तुम्हे छेड़ रहा था, जान से मार दूँगा उसे.
वैसवी... आह हाअ हा हा, ज़रा उसकी पर्सनालटी देखा भी है, लगता है कुछ ज़्यादा ही शांत बंदा है, नही तो तुझे धूल चटा देता. बात करता है जान से मार देगा.
राकेश.... उड़ा ले मज़ाक मेरा तू, तू ये बता मेरी साइड है या उसके. मतलब वो मुझे मारेगा तो तुम्हे मज़ा आएगा.
वैसवी... जान से ना मार दूं उसको, जो मेरा सामने तुझे छु भी लिया तो. वैसे अच्छा किया तूने मेरे दिल को कुछ तसल्ली तो हुई.
इसी मुद्दे पर बात करते करते दोनो कॉलेज पहुँच गये. आज, वैसवी की बातों ने राकेश को एक बार फिर सोचने पर मजबूर कर दिया कि आख़िर कहीं ना कहीं वैसवी की दिल मे भी कुछ है. राकेश ख़ुसी से उछल्ता हुआ अपने कॉलेज चला गया. आज तो जैसे राकेश के पाँव ज़मीन पर नही पड़ रहे थे.
शाम को वैसवी घर लौटी और रूटीन अनुसार अपना काम करके, सीधा अपने रूम मे अपने मोबाइल के साथ बिज़ी हो गयी. कहानी पढ़ते पढ़ते वैसवी का ध्यान अचानक ही उस पॅकेट पर गया जो उस लड़के ने वैसवी को दिया था.
ज़िग्यासा वश वैसवी उस पकेट को जल्दी से खोली. उपर का रॅपार हटाते ही अंदर एक डब्बा और डब्बे के उपर एक लेटर था. वैसवी ने लेटर को साइड टेबल पर रखा और अंदर का समान देखने के लिए वो डब्बा खोली.
Room me gaye takareeban ek ghanta hua hoga, Vaisvi bhi ab normal ho chuki thi, tabhi darwaje se uski maa andar aakar Vaisvi ke pass baith gayi, Vaisvi ke sir par hath ferti huyi ...
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