RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
*** मैं क्या करूँ? ***
मैं 21 वर्षीया स्नातक लड़की हूँ, पिता जी का व्यवसाय है एवं माँ गृहणी हैं, हमारे पास का मकान कई सालों से खाली पड़ा है।
स्नातिकी करने के बाद मेरे पिता ने मुझे आगे पढ़ाना इसलिए मुनासिब नहीं समझा कि फिर ज्यादा पढ़े-लिखे लड़के मिलने मुश्किल हो जाते हैं और लड़की की शादी में परेशानी आ जाती है। इसलिए मैं छोटे मोटे कोर्स कर के अपना समय व्यतीत करती रही हूँ। खाली समय में माँ के साथ रसोई में हाथ बटा देती हूँ, खाना भी ठीक-ठाक पका लेती हूँ। पिताजी अक्सर नौ बजे घर से निकलते हैं और रात को नौ बजे घर लौटते हैं।
एक दिन अचानक ही पास वाले खाली पड़े मकान में हलचल नजर आने लगी, कोई किरायेदार वहाँ पर रहने के लिए आने वाले थे इसलिए मकान मालिक उसे साफ़ करवाने आया था। मकान मालिक का इसी शहर में एक और मकान है जिसमें वो अपने परिवार के साथ रहते हैं।
दो दिन बाद ही उसमे एक छोटा सा परिवार रहने आ गया, पति-पत्नी के अतिरिक्त उनका बीस-बाइस साल का एक लड़का भी है। पड़ोस का घर होने से कुछ हाय-हेलो हुई। माँ और पड़ोसन में कुछ जान पहचान आगे बढ़ने लगी। लड़का इंजीनियरिंग के अन्तिम साल में पढ़ रहा है, देखने में ठीक ठाक है, बुरा नहीं लगता, कद काठी भी अच्छी है।
हमारा शहर ज्यादा बड़ा तो नहीं है लेकिन छोटा भी नहीं है, मनोरंजन के साधन पर्याप्त रूप से उपलब्ध हैं। मैं कभी कभी अपनी सहेलियों के साथ फिल्म भी देख लेती हूँ। समय जैसे तैसे कट रहा है। अब पड़ोस का लड़का शाम के समय अक्सर अपनी छत पर समय काटता है।
मैं भी अपनी शाम कई बार छत पर बैठ कर गुजारती थी। अब जब भी मैं छत पर जाती तो पड़ोस का लड़का मुझे देखा करता और कभी कभी हाय-हेलो किया करता लेकिन मैं हाय-हेलो का जवाब देकर आगे की बातचीत गोल कर देती थी क्योंकि अक्सर यह फंडा लड़कियों को पटाने का होता है। हालाँकि मैं पढ़ी-लिखी हूँ लेकिन पारंपरिक रूप से मन पर भारतीय वातावरण ही छाया हुआ है इसलिए मैं इस प्रकार की दोस्ती पर ज्यादा ध्यान नहीं देती। वो कई बार मुझसे बात करने की कोशिश किया करता लेकिन मेरे बर्ताव को देखकर उसे आगे बढ़ने के रास्ते बंद से नजर आने लगे। उसके व्यवहार से लगता था कि वो मुझसे प्रभावित है और मेरे बर्ताव से व्यथित जरूर है लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी है।
कभी कभार वो हमारे घर आ भी जाया करता है जब उसकी माँ अचानक खत्म होने पर उसे कोई सामान लेने हमारे घर भेज दिया करती है।
यह सब रूटीन का काम था। अक्सर लड़कों की निगाहों का सामना करती रही हूँ इसलिए मैं जानती हूँ कि इनको जवाब ना देना ही इनको टालने का सबसे अच्छा प्रयास है। धीरे धीरे छः-आठ महीने नि़कल गए। सब कुछ ऐसा ही चलता रहा। जान पहचान का बार बार मिलते और देखते रहने से बढ़ना लाजमी होता है। मेरी माँ और पड़ोसन अक्सर दोपहर के खाली समय में एकसाथ बैठकर गपशप किया करती। कभी कभार मैं भी बैठ जाया करती लेकिन उनकी इधर उधर की लल्लो चप्पो मुझे कम ही पसंद आती थी।
मेरी दो सहेलियों की शादी हो चुकी थी इसलिए मुझसे सेक्स का भी थोड़ा बहुत ज्ञान था लेकिन मैं उस तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देती हूँ इसलिए मेरी सेक्स में रूचि अधिक जागृत नहीं है। जब शादी होगी तब पति की पहल पर देखा जायेगा वाली मानसिकता से मैं सराबोर हूँ।
अभी एक सप्ताह पहले की बात है कि मेरे मामाजी की लड़की की शादी के लिए माँ को पहले ही बुला लिया गया तो वो सात दिन पहले ही मुझे घर अच्छे से सम्हालने की हिदायत देकर घर से मामाजी के यहाँ प्रस्थान कर गई ताकि मामाजी के यहाँ घर में शादी का सा माहौल लगे और छोटे मोटे काम काज मम्मी सम्हाल सके। मुझे और पापा को शादी के एक दिन पहले मामाजी के यहाँ जाना था.
अब मैं सुबह शाम का खाना बना कर दिन में खाली रहती थी। टीवी देखती रहती ... दो दिन निकल गए।
तीसरे दिन दोपहर लगभग १२ बजे दरवाजे की बेल बजी, मैंने अचंभित होकर दरवाजा खोला तो पड़ोस का लड़का खड़ा था। मैंने सोचा कि कोई सामान लेने आया होगा सो एक तरफ होकर उसे रास्ता दिया, वो अंदर आ गया।
मुझे वो थोड़ा अपसेट सा लगा, मैंने उसके कुछ बोलने का इंतजार किया लेकिन वो सोच में डूबा हुआ कुछ बोल नहीं पा रहा था तो मैंने कहा- बोलो क्या बात है?
फिर भी वो जवाब नहीं दे रहा था, बस मेरी तरफ देखे जा रहा था, मेरे दो तीन बार पूछने पर वो बोला- मैं कुछ कहूँ तो आप बुरा तो नहीं मानेंगी ?
मैंने कहा- ऐसी क्या बात है जो मैं बुरा मान सकती हूँ ?
उसने कहा- नहीं, पहले आप मुझसे वादा कीजिये कि आप बुरा नहीं मानेंगी .....
अब मेरी असमंजस की बारी थी कि ऐसी क्या बात है जो मुझे इतना बुरा लग सकती है और जो यह कह नहीं पा रहा है .....
हम एक दूसरे को देखे जा रहे थे, फिर अंत में मैंने हिम्मत करके कहा- चलो, मैं बुरा नहीं मानूंगी ! तुमको जो कहना है कहो...
तो वो कुछ कहने की कोशिश करता, फिर चुप हो जाता तो मैंने उसे हिम्मत बंधाते हुए कहा- मैंने कहा ना कि मैं बुरा नहीं मानूंगी, तुम जो कहना चाहते हो वो कह सकते हो ..
उसके मुह से निकला- मैं .. फिर अटक गया,
तो मैंने कहा- हाँ तुम.. आगे बोलो ..
वो: मैं ... मैं... बहुत असमंजस में हूँ....
मैं: हाँ तो कहो ना किस असमंजस में हो....
वो: अब क्या कहूँ..., कैसे..
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