Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
12-26-2018, 10:45 PM,
#13
RE: Hindi Kamukta Kahani हिन्दी सेक्सी कहानियाँ
बेचैन निगाहे
मेरी शादी हुए दो साल हो चुके हैं। मेरी पढ़ाई बीच में ही रुक गई थी। मेरे पति बहुत ही अच्छे हैं, वो मेरी हर इच्छा को ध्यान में रखते हैं। मेरी पढ़ाई की इच्छा के कारण मेरे पति ने मुझे कॉलेज में फिर से प्रवेश दिला दिया था। उन्हें मेरे वास्तविक इरादों का पता नहीं था कि इस बहाने मैं नए मित्र बनाना चाहती हूँ। मैं कॉलेज में एडमिशन लेकर बहुत खुश हूँ। मेरे पति बी.एच.ई.एल. में कार्य करते हैं। उन्हें कभी कभी उनके मुख्य कार्यालय में कार्य हेतु शहर भी बुला लिया जाता है। उन दिनों मुझे बहुत अकेलापन लगता है। कॉलेज जाने से मेरी पढ़ाई भी हो जाती है और समय भी अच्छा निकल जाता है। धीरे धीरे मैंने अपने कई पुरुष मित्र भी बना लिए हैं।
कई बार मेरे मन में भी आता था कि अन्य लड़कियों की तरह मैं भी उन मित्रों लड़को के साथ मस्ती करूँ, पर मैं सोचती थी कि यह काम इतना आसान नहीं है। ऐसा काम बहुत सावधानी से करना पड़ता है, जरा सी चूक होने पर बदनामी हो जाती है। फिर क्या लड़के यूँ ही चक्कर में आ जाते है, हाँ, लड़के फ़ंस तो जाते ही है। छुप छुप के मिलना और कहीं एकान्त मिल गया तो पता नहीं लड़के क्या न कर गुजरें। उन्हें क्या ... हम तो चुद ही जायेंगी ना। आह !फिर भी जाने क्यूँ कुछ ऐसा वैसा करने को मन मचल ही उठता है, शायद नए लण्ड खाने के विचार से। लगता है जवानी में वो सब कुछ कर गुजरें जिसकी मन में तमन्ना हो। पराये मर्द से शरीर के गुप्त अंगों का मर्दन करवाना, पराये मर्द का लण्ड मसलना, मौका पाकर गाण्ड मरवाना, प्यासी चूत का अलग अलग लण्डों से चुदवाना ...। फिर मेरे मस्त उभारों का बेदर्दी से मर्दन करवाना ...
धत्त ! यह क्या सोचने लगी मैं? भला ऐसा कहीं होता है ? मैंने अपना सर झटका और पढ़ाई में मन लगाने की कोशिश करने लगी। पर एक बार चूत को लण्ड का चस्का लग जाए तो चूत बिना लण्ड लिए नहीं मानती है, वो भी पराये मर्दों के लिए तरसने लगती है, जैसे मैं ... अब आपको कैसे समझाऊँ, दिल है कि मानता ही नहीं है। यह तो आप सभी ही समझते हैं।
मेरी कक्षा में एक सुन्दर सा लड़का था, उसका नाम संजय था, जो हमेशा पढ़ाई में अव्वल आता था। मैंने मदद के लिए उससे दोस्ती कर ली थी। उससे मैं नोट्स भी लिया करती थी।
एक बार मैं संजय से नोट्स लेकर आई और उसे मैंने मेज़ पर रख दिए। भोजन वगैरह तैयार करके मैं पढ़ने बैठी। कॉपी के कुछ ही पन्ने उलटने के बाद मुझे उसमें एक पत्र मिला। उसे देखते ही मेरे शरीर में एक झुरझुरी सी चल गई। क्या प्रेम पत्र होगा... जी हाँ... संजय ने वो पत्र मुझे लिखा था। मेरा मन एक बार तो खुशी से भर गया।
जैसा मैंने सोचा था ... उसमें उसने अपने प्यार का इज़हार किया था। बहुत सी दिलकश बातें भी लिखी थी। मेरी सुन्दरता और मेरी सेक्सी अदाओं के बारे में खुल कर लिखा था। उसे पढ़ते समय मैं तो उसके ख्यालों में डूब गई। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था कि कोई मुझसे प्यार करने लगेगा और यूँ पत्रों के द्वारा मुझे अपने दिल की बात कहेगा।
मेरे जिस्म में खलबली सी मचने लगी। चूत में मीठा सा रस निकल आया। फिर मुझे लगा कि मेरे दिल में यह आने लगा ... मैं तो शादीशुदा हूँ, पराये मर्द के बारे में भला कैसे सोच सकती हूँ। पर हे राम, इस चूत का क्या करूँ। वो पराया सा भी तो नहीं लग रहा था।
तभी अचानक घर की घण्टी बजी। बाहर देखा तो संजय था ... मेरा दिल धक से रह गया। यह क्या ... यह तो घर तक आ गया, पर उसके चेहरे पर हवाईयाँ उड़ रही थी।
"क्या हुआ संजय?" मैं भी उसके हाल देख कर बौखला गई।
"वो नोट्स कहाँ हैं शीला?" उसने उखड़ती आवाज में कहा।
"वो रखे हुए हैं ... क्यों क्या हो गया?"
वो जल्दी से अन्दर आ गया और कॉपी देखने लगा। जैसे ही उसकी नजर मेज़ पर रखे पत्र पर पड़ी ... वो कांप सा गया। उसने झट से उसे उठा लिया और अपनी जेब में रख लिया।
"शीलू, इसे देखा तो नहीं ना ... ?"
"हाँ देखा है ... क्यूँ, क्या हुआ ...? अच्छा लिखते हो !"
"सॉरी ... सॉरी ... शीलू, मेरा वो मतलब नहीं था, ये तो मैंने यूँ ही लिख दिया था।" उसका मुख रुआंसा सा हो गया था।
"इसमें सॉरी की क्या बात है ... तुम्हारे दिल में जो था... बस लिख दिया...। अच्छा लिखा था ... कोई मेरी इतनी तारीफ़ करे ... थैंकयू यार, मुझे तो बहुत मजा आया अपनी तारीफ़ पढ़कर !"
"सॉरी ... शीला !" उसे कुछ समझ में नहीं आया। वो सर झुका कर चला गया।
मैं उसके भोलेपन पर मुस्करा उठी। उसके दिल में मेरे लिए क्या भावना है मुझे पता चल गया था। रात भर बस मुझे संजय का ही ख्याल आता रहा। हाय राम, कितना कशिश भरा था संजय... काश ! वो मेरी बाहों में होता। मेरी चूत इस सोच से जाने कब गीली हो गई थी।
संजय ने मेरे स्तन दबा लिए और मेरे चूतड़ो में अपना लण्ड घुस दिया। मैं तड़प उठी। वो मुझसे चिपका जा रहा था, मुझे चुदने की बेताबी होने लगी।
'क्या कर रहे हो संजू ... जरा मस्ती से ... धीरे से...'
मैंने घूम कर उसे पकड़ लिया और बिस्तर पर गिरा दिया। उसका लण्ड मेरी चूत में घुस गया। मेरा शरीर ठण्ड से कांप उठा। मैंने उसके शरीर को और जोर से दबा लिया। मेरी नींद अचानक खुल गई। जाने कब मेरी आँख लग गई थी ... ठण्ड के मारे मैं रज़ाई खींच रही थी ... और एक मोहक सा सपना टूट गया। मैंने अपने कपड़े बदले और रज़ाई में घुस कर सो गई। सवेरे मेरे पति नाईट ड्यूटी करके आ चुके थे और वो चाय बना रहे थे। मैंने जल्दी से उठ कर बाकी काम पूरा किया और चाय के लिए बैठ गई।
कॉलेज में आज संजय मुझसे दूर-दूर भाग रहा था, पर कैन्टीन में मैंने उसे पकड़ ही लिया। उसकी झिझक मैंने दूर कर दी। मेरे दिल में उसके लिए प्रेम भाव उत्पन्न हो चुका था। वो मुझे अपना सा लगने लगा था। मेरे मन में उसके लिए भावनाएँ पैदा होने लगी थी।
"मैंने आप से माफ़ी तो मांग ली थी ना?" उसने मायूसी से सर झुकाए हुए कहा।
"सुनो संजय, तुम तो बहुत प्यारा लिखते हो, लो मैंने भी लिखा है, देखो अकेले में पढ़ना !" मैंने उसकी ओर देख कर शर्माते हुए कहा।
उसे मैंने एक कॉपी दी, और उठ कर चली आई। काऊन्टर पर पैसे दिए और घूम कर संजय को देखा। वो कॉपी में से मेरा पत्र निकाल कर अपनी जेब में रख रहा था। हम दोनों की दूर से ही नजरें मिली और मैं शर्मा गई।
उसमें मर्दानगी जाग गई ... और फिर एक मर्द की तरह वो उठा और काऊन्टर पर आकर उसने मेरे पैसे वापस लौटाए औए स्वयं सारे पैसे दिए। मैं सर झुकाए तेजी से कक्षा में चली आई। पूरा दिन मेरा दिल कक्षा में नहीं लगा, बस एक मीठी सी गुदगुदी दिल में उठती रही। जाने वो पत्र पढ़ कर क्या सोचेगा।
रात को मेरे दिल की धड़कन बढ़ गई, मैं अनमनी सी हो उठी। हाय ... उसे मैंने रात को क्यों बुला लिया ? यह तो गलत है ना ! क्या मैं संजय पर मरने लगी हूँ? क्या यही प्यार है? हाय ! वो पत्र पढ़ कर क्या सोचेगा, क्या मुझे चरित्रहीन कहेगा? या मुझे भला बुरा कहेगा। जैसे जैसे उसके आने का समय नजदीक आता जा रहा था, मेरी दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थी। मुझे लगा कि मैं पड़ोसी के यहाँ भाग जाऊँ, दरवाजा बन्द देख कर वह स्वतः ही चला जायेगा। बस ! मुझे यही समझ में आया और मैंने ताला लिया और चल दी।[
जैसे ही मैंने दरवाजा खोला तो दिल धक से रह गया। संजय सामने खड़ा था। मेरा दिल जैसे बैठने सा लगा।
"अरे मुझे बुला कर कहाँ जा रही हो?"
"क्... क... कहां भला... कही नहीं ... मैं तो ... मैं तो ..." मैं बदहवास सी हो उठी थी।
"ओ के, मैं कभी कभी आ जाऊँगा ... चलता हूँ !" मेरी चेहरे पर पड़ी लटों को उंगली से एक तरफ़ हटाते हुए बोला।
"अरे नहीं... आओ ना... वो बात यह है कि अभी घर में कोई नहीं है..." मैं हड़बड़ा सी गई। सच तो यह था कि मुझे पसीना छूटने लगा था।
"ओह्ह ... आपकी हालत कह रही है कि मुझे चला जाना चाहिए !"
मैंने उसे अन्दर लेकर जल्दी से दरवाजा बन्द कर दिया और दरवाजे पर पीठ लगा कर गहरी सांसें लेने लगी।
"देखो संजू, वो खत तो मैंने ऐसे ही लिख दिया था ... बुरा मत मानना..." मैंने सर झुका कर कहा।
उसका सर भी झुक गया। मैंने भी शर्म से घूम कर उसकी ओर अपनी पीठ कर ली।
"पर आपके और मेरे दिल की बात तो एक ही है ना ..." उसने झिझकते हुए कहा।
मुझे बहुत ही कोफ़्त हो रही थी कि मैंने ऐसा क्यूँ लिख दिया। अब एक पराया मर्द मेरे सामने खड़ा था। मुझे बार बार कुछ करने को उकसा रहा था। उसकी भी भला क्या गलती थी। तभी संजय के हाथों का मधुर सा स्पर्श मेरी बाहों पर हुआ।
"शीलू जी, आप मुझे बहुत अच्छी लगती हो...!" उसने प्रणय निवेदन कर डाला।
यह सुनते ही मेरे शरीर में बर्फ़ सी लहरा गई। मेरी आँखें बन्द सी हो गई।"य... यह ... क्या कह रहे हो? ऐसा मत कहो ..." मेरे नाजुक होंठ थरथरा उठे।
"मैं ... मैं ... आपसे प्यार करने लगा हूँ शीलू जी ... आप मेरे दिल में बस गई हो !" उसका प्रणय निवेदन मेरी नसों में उतरता जा रहा था। वो अपने प्यार का इजहार कर रहा था। उसकी हिम्मत की दाद देनी होगी।
"मैं शादीशुदा हूँ, सन्जू ... यह तो पाप... अह्ह्ह्... पाप है ... " मैं उसकी ओर पलट कर उसे निहारते हुए बोली।
उसने मुझे प्यार भरी नजरों से देखा और मेरी बाहों को पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया। मैं उसकी बलिष्ठ बाहों में कस गई।
"पत्र में आपने तो अपना दिल ही निकाल कर रख दिया था ... है ना ! यही दिल की आवाज है, आपको मेरे बाल, मेरा चेहरा, सभी कुछ तो अच्छा लगता है ना?" उसने प्यार से मुझे देखा।
"आह्ह्ह ... छोड़ो ना ... मेरी बांह !" मैं जानबूझ कर उसकी बाहों में झूलती हुए बोली।
"शीलू जी, दिल को खुला छोड़ दो, वो सब हो जाने दो, जिसका हमें इन्तज़ार है।"
उसने अपने से मुझे चिपका लिया था। उसके दिल की धड़कन मुझे अपने दिल तक महसूस होने लगी थी। पर मेरा दिल अब कुछ ओर कहने लगा था। यह सुहानी सी अनुभूति मुझे बेहोश सी किए जा रही थी। सच में एक पराये मर्द का स्पर्श में कितना मधुर आनन्द आता है ... यह अनैतिक कार्य मुझे अधिक रोमांचित कर रहा था ... । उसके अधर मेरे गुलाबी गोरे गालों को चूमने लगे थे। मैं बस अपने आप को छुड़ाने की जानकर नाकामयाब कोशिश बस यूँ ही कर रही थी। वास्तव में मेरा अंग अंग कुचले और मसले जाने को बेताब होने लगा था। अब उसके पतले पतले होंठ मेरे होंठों से चिपक गए थे।
आह्ह्ह्ह ...... उसकी खुशबूदार सांसें ...
उसके मुख से एक मधुर सी सुगंध मेरी सांसों में घुल गई। धीरे धीरे मैं अपने आप को उसको समर्पण करने लगी थी। उसके अधर मेरे नीचे के अधर को चूसने लगे थे। फिर उसकी लपलपाती जीभ मेरे मुख द्वार में प्रवेश कर गई और मेरी जीभ से टकरा गई। मैंने धीरे से उसकी जीभ मुख में दबा ली और चूसने लगी। मैं तो शादीशुदा थी... मुझे इन सेक्सी कार्यों का बहुत अच्छा अनुभव था... और वो मैं कुशलता से कर लेती थी। उसके हाथ मेरे जिस्म पर लिपट गए और मेरी पीठ, कमर और चूतड़ों को सहलाने लगे। मेरे शरीर में बिजलियाँ तड़कने लगी। उसका लण्ड भी कड़क उठा और मेरे कूल्हों से टकराने लगा। मेरा धड़कता सीना उसके हाथों में दब गया। मेरे मुख से सिसकारी फ़ूट पड़ी। मैंने उसे धीरे से अपने से अलग कर दिया।
"यह क्या करने लगे थे हम ...?" मैं अपनी उखड़ी सांसें समेटते हुई जान करके शर्माते हुए नीचे देखते हुए बोली।
"वही जो दिल की आवाज थी ... " उसकी आवाज जैसे बहुत दूर से आ रही हो।
"मैं अपने पति का विश्वास तोड़ रही हूँ ना ... बताओ ना?" मेरा असमंजस चरम सीमा पर थी, पर सिर्फ़ उसे दर्शाने के लिए कि कहीं वो मुझे चालू ना समझ ले।
"नहीं, विश्वास अपनी जगह है ... जिससे पाने से खुशी लगे, उसमें कोई पाप नहीं है, खुशी पाना तो सबका अधिकार है ... दो पल की खुशी पाना विश्वास तोड़ना नहीं होता है।"
"तुम्हारी बातें तो मानने को मन कर रहा है ... तुम्हारे साथ मुझे बहुत आनन्द आ रहा है, पर प्लीज संजू किसी कहना नहीं..." मैंने जैसे समर्पण भाव से कहा।
"तो शर्म काहे की ... दो पल का सुख उठा लो ... किसी को पता भी नहीं चलेगा... आओ !"
मैं बहक उठी, उसने मुझे लिपटा लिया। मेरा भी उसके लण्ड को पकड़ने का दिल कर रहा था। मैंने भी हिम्मत करके उसके पैंट की ज़िप में हाथ घुसा दिया। उसका लण्ड का आकार भांप कर मैं डर सी गई। वो मुझे बहुत मोटा लगा। फिर मैं उसे पकड़ने का लालच मैं नहीं छोड़ पाई। उसे मैंने अपनी मुट्ठी में दबा लिया। मैं उसे अब दबाने-कुचलने लगी। लण्ड बहुत ही कड़ा हो गया था। वो मेरी चूचियाँ सहलाने लगा ...
एक एक कर के उसने मेरे ब्लाऊज के बटन खोल दिये। मेरी स्तन कठोर हो गए थे। चुचूक भी कड़े हो कर फ़ूल गए थे। ब्रा के हुक भी उसने खोल दिए थे। ब्रा के खुलते ही मेरे उभार जैसे फ़ड़फ़ड़ा कर बाहर निकल कर तन गये। जवानी का तकाजा था ... मस्त हो कर मेरा एक एक अंग अंग फ़ड़क उठा। मेरे कड़े स्तनाग्रों को संजू बार बार हल्के से घुमा कर दबा देता था।
मेरे मन में एक मीठी सी टीस उठ जाती थी। चूत में से धीरे धीरे पानी रिसने लगा था। भरी जवानी चुदने को तैयार थी। मेरी साड़ी उतर चुकी थी, पेटिकोट का नाड़ा भी खुल चुका था। मुझे भला कहाँ होश था ... उसने भी अपने कपड़े उतार दिए थे। उसका लण्ड देख देख कर ही मुझे मस्ती चढ़ रही थी।
उसके लण्ड की चमड़ी धीरे से खोल कर मैंने ऊपर खींच दी। उसका लाल फ़ूला हुआ मस्त सुपाड़ा बाहर आ गया, मैंने पहली बार किसी का इस तरह लाल सुर्ख सुपाड़ा देखा था। मेरे पति तो बस रात को अंधेरे में मुझे चोद कर सो जाया करते थे, इन सब चीज़ों का आनन्द मेरी किस्मत में नहीं था। आज मौका मिला था जिसे मैं जी भर कर भोग लेना चाहती थी।
इस मोटे लण्ड का भोग का आनन्द पहले मैं अपनी गाण्ड से आरम्भ करना चाहती थी, सो मैंने उसका लण्ड मसलते हुए अपनी गाण्ड उसकी ओर कर दी।
"संजय, 19 साल का मुन्ना, मेरे 21 साल के गोलों को मस्त करेगा क्या?"
"शीलू ... इतने सुन्दर, आकर्षक गोलों के बीच छिपी हुई मस्ती भला कौन नहीं लूटना चाहेगा, ये चिकने, गोरे और मस्त गाण्ड के गोले मारने में बहुत मजा आयेगा।"
मैं अपने हाथ पलंग पर रख कर झुक गई और अपनी गाण्ड को मैंने पीछे उभार दिया। उसके लाल सुपाड़े का स्पर्श होते ही मेरे जिस्म में कंपकंपी सी फ़ैल गई। बिजलियाँ सी लहरा गई। उसका सुपाड़े का गद्दा मेरे कोमल चूतड़ों के फ़िसलता हुआ छेद पर आ कर टिक गया। कैसा अच्छा सा लग रहा था उसके लण्ड का स्पर्श। उसके लण्ड पर शायद चिकनाई उभर आई थी, हल्के से जोर लगाने पर ही फ़क से अन्दर उतर गया था। मुझे बहुत ही कसक भरा सुन्दर सा आनन्द आया। मैंने अपनी गाण्ड ढीली कर दी ... और अन्दर उतरने की आज्ञा दे दी। मेरे कूल्हों को थाम कर और थपथपा कर उसने मेरे चूतड़ों के पट को और भी खींच कर खोल दिया और लण्ड भीतर उतारने लगा।
"शीलू जी, आनन्द आया ना ... " संजू मेरी मस्ती को भांप कर कहा।
"ऐसा आनन्द तो मुझे पहली बार आया है ... तूने तो मेरी आँखें खोल दी है यार... और यह शीलू जी-शीलू जी क्या लगा रखा है ... सीधे से शीलू बोल ना।"
मैंने अपने दिल की बात सीधे ही कह दी। वो बहुत खुश हो गया कि इन सभी कामों में मुझे आनन्द आ रहा है।
"ले अब और मस्त हो जा..." उसका लण्ड मेरी गाण्ड में पूरा उतर चुका था। मोटा लण्ड था पर उतना भी नहीं मोटा, हाँ पर मेरे पति से तो मोटा ही था। मंथर गति से वो मेरी गाण्ड चोदने लगा। उजाले में मुझे एक आनन्दित करती हुई एक मधुर लहर आने लगी थी। मेरे शरीर में इस संपूर्ण चुदाई से एक मीठी सी लहर उठने लगी ... एक आनन्ददायक अनुभूति होने लगी। जवान गाण्ड के चुदने का मजा आने लगा। दोनों चूतड़ों के पट खिले हुये, लण्ड उसमें घुसा हुआ, यह सोच ही मुझे पागल किए दे रही थी। वो रह रह कर मेरे कठोर स्तनों को दबाने का आनन्द ले रहा था ... उससे मेरी चूत की खुजली भी बढ़ती जा रही थी। चुदाई तेज हो चली थी पर मेरी गाण्ड की मस्ती भी और बढ़ती जा रही थी। मुझे लगा कि कही संजय झड़ ना जाए सो मैंने उसे चूत मारने को कहा।
"संजू, हाय रे अब मुझे मुनिया भी तड़पाने लगी है ... देख कैसी चू रही है..." मैंने संजय की तरफ़ देख कर चूत का इशारा किया।
"शीलू, गाण्ड मारने से जी नहीं भर रहा है ... पर तेरी मुनिया भी प्यासी लग रही है।"
उसने अपना हाथ मेरी चूत पर लगाया तो मेरा मटर का फ़ूला हुआ मोटा दाना उसके हाथ से टकरा गया।
"यह तो बहुत मोटा सा है ... " और उसको हल्के से पकड़ कर हिला दिया।
"हाय्य्य , ना कर, मैं मर जाऊँगी ... कैसी मीठी सी जलन होती है..." मैंने जोर की सिसकी भरी।
उसका लण्ड मेरी गाण्ड से निकल चुका था। उसका हाथ चूत की चिकनाई से गीला हो गया था। उसने नीचे झुक कर मेरी चूत को देखा और अंगुलियों से उसकी पलकें अलग अलग कर दी और खींच कर उसे खोल दिया।
"एकदम गुलाबी ... रस भरी ... मेरे मुन्ने से मिलने दे अब मुनिया को !"
उसने मेरी गुलाबी खुली हुई चूत में अपना लाल सुपाड़ा रख दिया। हाय कैसा गद्देदार नर्म सा अहसास ... फिर उसे चूत की गोद में उसे समर्पित कर दिया। उसका लण्ड बड़े प्यार से दीवारों पर कसता हुआ अन्दर उतरता गया, और मैं सिसकारी भरती रही। चूंकि मैं घोड़ी बनी हुई थी अतः उसका लण्ड पूरा जड़ तक पहुँच गया। बीच बीच में उसका हाथ, मेरे दाने को भी छेड़ देता था और मेरी चूत में मजा दुगना हो जाता था। वो मेरा दाना भी जोर जोर से हिलाता जा रहा था। लण्ड के जड़ में गड़ते ही मुझे तेज मजा आ गया और दो तीन झटकों में ही, जाने क्या हुआ मैं झड़ने लगी। मैं चुप ही रही, क्योंकि वो जल्दी झड़ने वाला नहीं लगा।
उसने धक्के तेज कर दिए ... शनैः शनैः मैं फिर से वासना के नशे में खोने लगी। मैंने मस्ती से अपनी टांगें फ़ैला ली और उसका लण्ड फ़्री स्टाईल में इन्जन के पिस्टन की तरह चलने लगा। रस से भरी चूत चप-चप करने लगी थी। मुझे बहुत खुशी हो रही थी कि थोड़ी सी हिम्मत करने से मुझे इतना सारा सुख नसीब हो रहा है, मेरे दिल की तमन्ना पूरी हो रही है। मेरी आँखें खुल चुकी थी... चुदने का आसान सा रास्ता था ... थोड़ी सी हिम्मत करो और मस्ती से नया लण्ड खाओ, ढेर सारा आनन्द पाओ। मुझे बस यही विचार आनन्दित कर रहा था ... कि भविष्य में नए नए लण्ड का स्वाद चखो और जवानी को भली भांति भोग लो।
"अरे धीरे ना ... क्या फ़ाड़ ही दोगे मुनिया को...?"
वो झड़ने की कग़ार पर था, मैं एक बार फिर झड़ चुकी थी। अब मुझे चूत में लगने लगी थी। तभी मुझे आराम मिल गया ... उसका वीर्य निकल गया। उसने लण्ड बाहर निकाल लिया और सारा वीर्य जमीन पर गिराने लगा। वो अपना लण्ड मसल मसल कर पूरा वीर्य निकालने में लगा था। मैं उसे अब खड़े हो कर निहार रही थी। वो अपने लण्ड को कैसे मसल मसल कर बचा हुआ वीर्य नीचे टपका रहा था।
"देखा, संजू तुमने मुझे बहका ही दिया और मेरा फ़ायदा उठा लिया?"
"काश तुम रोज ही बहका करो तो मजा आ जाए..." वो झड़ने के बाद जाने की तैयारी करने लगा। रात के ग्यारह बजने को थे। वो बाहर निकला और यहाँ-वहाँ देखा, फिर चुपके से निकल कर सूनी सड़क पर आगे निकल गया।
सन्जय के साथ मेरे काफ़ी दिनो तक सम्बन्ध रहे थे। उसके पापा की बदली होने से वो एक दिन मुझसे अलग हो गया। मुझे बहुत दुख हुआ। बहुत दिनो तक उसकी याद आती रही।
]मैंने अब राहुल से दोस्ती कर ली। वह एक सुन्दर, बलिष्ठ शरीर का मालिक है। उसे जिम जाने का शौक है। पढ़ने में वो कोई खास नहीं, पर ऐसा लगता था वो मुझे भरपूर मजा देगा। उसकी वासनायुक्त नजर मुझसे छुपी नहीं रही। मैं उसे अब अपने जाल में लपेटने लगी हूँ। वो उसे अपनी सफ़लता समझ रहा है। आज मेरे पास राहुल के नोट्स आ चुके हैं ... मैं इन्तज़ार कर रही हूँ कि कब उसका भी कोई प्रेम पत्र नोट्स के साथ आ जाए ... जी हाँ ... जल्द ही एक दिन पत्र भी आ ही गया ...।
प्रिय पाठको ! मैं नहीं जानती हूँ कि आपने अपने छात्र-जीवन में कितना मज़ा किया होगा। यह तरीका बहुत ही साधारण है पर है कारगर। ध्यान रहे सुख भोगने से पति के विश्वास का कोई सम्बन्ध नहीं है। सुख पर सबका अधिकार है, पर हाँ, इस चक्कर में अपने पति को मत भूल जाना, वो कामचलाऊ नहीं है वो तो जिन्दगी भर के लिए है।
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