Antarvasna Sex kahani जीवन एक संघर्ष है
12-25-2018, 01:16 AM,
#57
RE: Antarvasna Sex kahani जीवन एक संघर्ष है
सूरज और रेखा जंगल के उसी स्थान पर जाते हैं जहाँ उन दोनों ने लकड़ी काटी थी, सूरज अपनी गाडी खड़ी करके जंगल में घूमने लगते हैं, घूमते घूमते दोनों लोग काफी काफी आगे तक निकल जाते हैं, मौसम भी सुहावना था,बारिश जैसा मौसम बना हुआ था, रेखा बहुत खुश थी इस खुली आज़ादी में घूम कर,सूरज भी खुश था रेखा को देख कर, दोनों माँ बेटे पिछली यादों में इतने खो जाते हैं की रात हो जाती है ।
रेखा-" सूरज ऐसा लगता है जैसे दुनिया की सारी ख़ुशी मुझे मिल गई हो, ये सारी खुशियाँ सिर्फ तेरे कारण हैं" रेखा सूरज को गले लगा लेती है,सूरज भी रेखा को कस कर गले लगता है, आज सूरज को एक अलग ही अहसास होता है,रेखा के बदन की खुशबु सूरज को बड़ी अच्छी लग रही थी, सूरज भी कस कर गले लगाकर रेखा के गालो पर किस्स करने बाला होता है,रेखा भी सूरज के गाल पर किस्स करने के लिए अपना सर घूमाती है,दोनों लोग एक साथ किस्स करने के कारण दोनों के लिप्स एक दूसरे के लिप्स से टकरा जाते हैं, दोनों के जिस्म में करेंट सा दौड़ जाता है, दोनों के होंठ एक दूसरे के होंठ से रगड़ जाते हैं, सूरज और रेखा दोनों को ही अच्छा लगता है,लेकिन शर्म के कारण दोनों लोग एक दूसरे से अलग हो जाते हैं।
सूरज-"सॉरी माँ, गलती से हो गया" 
रेखा-" क्या" 
सूरज-'आपके होंठो पर किस्स"
रेखा-"कोई बात नहीं तू मेरा बेटा, तू तो मुझे किस्स कर सकता है,मुझे अच्छा महसूस हुआ" 
सूरज-" माँ पहले कभी किया है लिप्स किस्स"रेखा शर्मा जाती है यह सुन कर।
रेखा-" नहीं कभी नहीं" सूरज यह सुनकर हैरान रह जाता है।
सूरज-"मतलब पापा रोमांटिक नहीं थे" सूरज हसते हुए बोला, रेखा इस बात से शर्मा जाती है,
रेखा-"हमारे समय में यह सब नहीं चलता था,आज कल फिल्में देख कर लोग यह सब सीख गए हैं" 
सूरज-" हाँ माँ,लेकिन अब तो सुरुआत लिप्स किस्स से ही होती है"अचानक सूरज के मुह से निकल जाता है,रेखा यह सुन कर हैरान रह जाती है,सूरज का मतलब था सेक्स करने से पहले सुरुआत लिप्स किस्स से ही होती है । सूरज भी अपनी कही बात पर शर्मा जाता है ।
रेखा-"कैसी सुरुआत सूरज,समझी नहीं"रेखा जानबूझ कर अनभिज्ञ बनने का नाटक करती हुई बोली,लेकिन सूरज शर्मिंदगी महसूस करता है,क्या बताए अपनी माँ को ।
सूरज-"प्यार की सुरुआत माँ,फिल्मो में ऐसा दिखाया जाता है"सूरज बात घुमा देता है। तभी तेज बारिश होने लगती है
रेखा-" ओह्ह्ह प्यार,अच्छा अब जल्दी चल बहुत देर हो गई है, अँधेरा हो गया,और अब ये बारिश भी होने लगी है" सूरज और रेखा गाडी की तरफ चल देते हैं, वियावान जंगल में अँधेरा हो चूका था, धीरे धीरे बारिश भी बहुत तेज हो गई थी,रेखा की साडी भीग चुकी थी,और बदन पर चुपक गई थी, रेखा सूरज का हाँथ पकड़ कर चल रही थी, तभी तेज बिजली कड़की रेखा डर जाती है, रेखा सूरज का हाँथ कस कर दबा देती है, 
सूरज-'माँ देखो न बारिश में कितना मजा आ रहा है" 
रेखा-" हाँ बारिश में मजा तो बहुत आ रहा है लेकिन मुझे बिजली के कड़कने से डर लगता है" 
सूरज-"अरे माँ डर क्यूँ रही हो,में हूँ न तुम्हारे साथ" रेखा-"तुझे बारिश में मजा आ रहा है,सारे कपडे भीग गए,अब शहर कैसे जाएंगे,और तू तो कपडे भी नहीं लाया है" 
सूरज-'माँ आप तो नायटी पहन कर चली जाओगी,लेकिन मुझे परेसानी है,कोई बात नहीं कोई जुगाड़ कर लूंगा" सूरज मोबाइल की टोर्च जला कर चल रहा था, गाडी के नजदीक आ जाते हैं,रेखा को बहुत तेज पिसाब लगी थी,रोक पाना मुश्किल हो गया था।
रेखा-" सूरज मुझे बहुत तेज पिसाब लगी है" यह सुनकर सूरज के बदन में उत्तेजना महसूस होती है।
सूरज-"में चला जाता हूँ,आप यहीं कर लो"
रेखा-"नहीं सूरज मुझे डर सा लग रहा है,तू यहीं रह" यह सुन कर सूरज को झटका लगता है।
सूरज-"ठीक है माँ कर लो"
रेखा-"अरे मोबाइल की टोर्च तो बंद कर,और पीछे घूम जा" सूरज मोबाइल की टोर्च बंद करके पीछे घूम जाता है,रेखा तुरंत बैठ जाती है और एक तेज सिटी की आवाज़ के साथ मूतने लगती है, सिटी की आवाज़ तेज थी,ऐसा लग रहा था इस वियावान जंगल में किसी ने बांसुरी बजा कर रागिनी छेड़ दी हो,बड़ी ही सुरीली आवाज़ थी,सूरज का लंड भी झटके मारने लगा था ।रेखा को भी शर्म आ रही थी,रेखा को तेज पिसाब आने के कारण रुक रुक कर पिसाब निकलती है और बार सिटी बजती है।
सूरज के मन में आता है,माँ से मजाक किया जाए।
सूरज-"माँ जल्दी चलो,ऐसा लग रहा है जंगल में कोई है" रेखा यह सुन कर घबरा जाती है।
रेखा-"तुझे कैसे पता सूरज,कोई है"
सूरज-"माँ आपने आवाज़ नहीं सुनी,कोई सिटी बजा रहा है"रेखा यह सुनकर शर्मा जाती है ।
रेखा-"ओह्ह सूरज कोई नहीं है,यह तो मेरे पिसाब की आवाज़ है पागल" रेखा हसते हुए बोली,और बोलने के बाद शर्मा जाती है, पहले से रेखा सूरज के साथ खुल चुकी थी ।
सूरज-"ओह्ह माँ इतनी तेज सिटी की आवाज़,ऐसा लगा जैसे किसी ने बांसुरी बजाई हो,में तो चोंक गया था,भला इतनी रात में कौन है जो सुरीली आवाज़ में सिटी मार रहा है", सूरज की बात पर रेखा शर्मा जाती है।
रेखा-"तू बहुत बिगड़ गया है,तेरी बातें सुन कर मुझे बहुत शर्म आती है सूरज" 
सूरज-"अरे माँ सच बोल रहा हूँ" बारिश तेज होने लगती है ।
रेखा-"अब देर हो रही है चलो" सूरज और रेखा दोनों आगे बाली सीट पर बैठ जाते हैं,सूरज गाडी स्टार्ट करता है और लाइट जला देता है, रेखा अभी भी सूरज की कही गई बातों को सोच कर मन ही मन हस रही थी। लाइट जलते ही रेखा सूरज की ओर देखती है तो हँसने लगती है,सूरज को समझ नहीं आ रहा था माँ क्यूँ हस रही है।

सूरज-" माँ क्यूँ हँस रही हो, क्या हुआ"
रेखा-" तेरे होंठो पर मेरी लिपस्टिक लग गई है" रेखा हसते हुए बोली, सूरज फ्रंट शीशे से देखता है,उसके होंठ पर लाल लिपस्टिक लगी हुई थी।
सूरज-" ओह्ह माँ यह किस्स करते समय लग गई"
रेखा-"साफ़ कर ले,किसी ने तुझे देखा तो पता नहीं क्या सोचेंगे", 
सूरज-"क्या सोचेंगें माँ?" रेखा शरमाती हुई बोली।
रेखा-" लोग सोचेंगे,किसी के साथ इसका चक्कर चल रहा है" 
सूरज-" किसी के साथ क्यूँ लोग तो आपके साथ सोचेंगे" 
रेखा-"लेकिन में तो तेरी माँ हूँ" 
सूरज-"लोगों को क्या पता की आप मेरी माँ हो,सब तो यही सोचेंगे की आपके साथ ही मेरा चक्कर चल रहा है" 
रेखा-"पागल ही होगा जो ऐसा सोचेगा,में अधेड़ उम्र की हूँ और तू जवान है" 
सूरज-"माँ आप अधेड़ लगती कहाँ हो,ऐसा लगता है जैसे आप फिर से जवान हो गई हो" रेखा शर्मा जाती है खुद की तारीफ़ सुन कर।
रेखा-" ओह्हो मतलब में अभी जवान लगती हूँ तुझे,चल अब ज्यादा तारीफ़ मत कर और ये लिपस्टिक का दाग साफ़ कर ले" रेखा के इतना बोलते ही सूरज फ्रंट शीशे में देख कर अपनी जीव्ह से होंठो पर लगी लिपस्टिक चाट कर साफ़ कर देता है, यह देख कर रेखा के जिस्म में गुदगुदी होने लगती है । आज पहली बार रेखा को अपनी चूत से रिश्ता हुआ पानी महसूस होता है।
रेखा-'यह क्या किया तूने सूरज" 
सूरज-"माँ बहुत टेस्टी है आपके होंठो की लिपस्टिक" 
रेखा-"तू पागल है सूरज,अब जल्दी चल न,मेरे कपडे भीग चुके हैं,घर चल कर उतारना भी है"
सूरज गाडी दौडा देता है,कुछ ही समय में सूरज और रेखा घर आ जाते हैं,लेकिन बारिश अभी रुकी नहीं थी, बहुत तेजी से पानी बरस रहा था।
रेखा-"ओह्हो ये बारिश भी आज होनी थी"रेखा दरबाजा खोल कर घर में प्रवेश करती है।
सूरज-" माँ कितना तो अच्छा मौसम हो गया है,आज गर्मी भी तो बहुत थी, मेरा तो मन कर रहा है नहा लू बारिस में"सूरज अंदर आकर दरबाजा बंद कर देता है,मोबाइल और पर्स बरामडा में बिछी चारपाई पर रख कर बारिश में भीगने लगता है। मन तो रेखा का भी कर रहा था नहा ले।
रेखा-" बारिश में भीगना तो मुझे भी अच्छा लगता है लेकिन साडी में नहीं,ये बनारसी साडी का बजन बहुत होता है,भीग कर और ज्यादा हो जाता है" रेखा बरामडा में खड़ी थी । 
सूरज-" साडी उतार कर नहा लो माँ,आज बैसे भी हमने नहाया नहीं है"
रेखा-" मुझे शर्म आती है सूरज,तू ही नहा ले"
सूरज-"अरे माँ ब्लाउज और पेटीकोट में कैसी शर्म,और अँधेरा भी है,मुझसे कैसी शर्म माँ" रेखा गहने साडी उतार कर चारपाई पर रख देती है। साडी उतारते ही रेखा का बदन हल्का हो गया था,अब तक ऐसा लग रहा था जैसे किसी कैद में हो, भीगने के कारण 
रेखा का पेटीकोट गांड से चुपक गया था, रेखा आँगन में खड़ी होकर बारिश के तेज पानी में नहाने लगती है,बारिश की बुँदे रेखा के ब्लाउज के अंदर पड़ती तो ऐसा लगता जैसे किसी ने उसके बूब्स को टच किया हो, रेखा के जिस्म में गुदगुदी दी हो रही थी, सूरज रेखा को अँधेरे में महसूस कर पा रहा था, 
रेखा-"सूरज तू कपडे क्यूँ पहना है उतार दे न" 
सूरज-'माँ में सिर्फ शर्ट उतार देता हूँ, पेंट नहीं",सूरज शर्ट उतार देता है,पेंट नहीं उतारता है क्यूंकि अंदर कच्छा नहीं पहना था। 
रेखा-"पेंट भी उतार दे,तू तो कच्छा पहन कर नहा सकता है" 
सूरज-'माँ में आज कच्छा पहनना भूल गया था" रेखा यह सुनकर चोंक जाती है, 
रेखा-"ओह्हो तू तो भुलक्कड़ है,चल कोई बात नहीं,वैसे अगर तू चाहे तो पेंट उतार कर नहा सकता है,अँधेरे में वैसे भी कुछ दिखाई नहीं दे रहा है" 
रेखा खुद अँधेरे का फायदा उठाकर,अपनी जांघे साफ़ कर रही थी पेटीकोट उठाकर,
सूरज-"ठीक है माँ"सूरज अपनी पेंट भी उतार देता है,सूरज का लंड खड़ा था,रेखा को बड़ा अजीव सा लग रहा था,उसका बेटा नग्न हो चूका था, रेखा अँधेरे में सूरज को देखने का प्रयास कर रही थी लेकिन देख नहीं पा रही थी,आज सूरज को उसने मूतते हुए उसका लंड देखा था,तब से उसे एक अलग ही नशा सा था, रेखा आज सूरज की ओर आकर्षित होती जा रही थी,आज उसकी चूत में अजीब सी खुजली मच रही थी, रेखा अपना पेटीकोट उठाकर चूत पर ऊँगली फिराती है,रेखा की चूत गीली थी, रेखा बारिश के पानी से अपनी चूत साफ़ करने लगती है,रेखा समझ नहीं पा रही थी,बेटे की बजह से चूत गीली क्यूँ हो रही है।
सूरज और रेखा मूसलाधार बारिश का मजा ले रहे थे,तभी बिजली कड़कती है और रौशनी हो जाती है।
रेखा अपना पेटीकोट ऊपर किए हुए थी,सूरज की नज़र रेखा की भारी भरकम गांड पर पड़ती है, बाहर निकली हुई गदराई गांड को देख कर सूरज के जिस्म में उत्तेजना बढ़ जाती है,पहली बार सूरज का मन अपनी माँ पर फ़िदा हो जाता है,इधर बिजली कड़कने से रेखा मुड़ जाती है,रेखा की नज़र सीधे सूरज के खड़े लंड पर पड़ती है। रेखा अपना पेटीकोट छोड़ कर सूरज के खूंखार खड़े लंड को तब तक देखती है जब तक बिजली कड़कती है, सूरज तुरंत अपने लंड पर हाँथ रख कर छुपा लेता है, बिजली कड़कना बंद हो जाती है और पुनः आँगन में अँधेरा हो जाता है ।
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