RE: Antarvasna Sex kahani जीवन एक संघर्ष है
सूरज रूम में प्रवेश करते ही सूर्यप्रताप की फोटो देख कर सारा माजरा समझ गया लेकिन अभी भी बहुत से सवाल उसके जहन में गूंज रहे थे जिनके जवाब ढूंढना सूरज के मन की शान्ति के लिए अति आवश्यक थे ।
सूर्यप्रताप के जीवन की कहानी,
गुंडे उसके पीछे क्यूँ पड़े हैं?
अब कहाँ है ?
तान्या की नफ़रत सूर्या के लिए ।
सूरज के परिवार की हकीकत ।
इन्ही सवालो में सूरज खोया हुआ था ।
सूरज ने निश्चय किया की जब तक सूर्या के बारे में पता नहीं कर लेता तब तक स्वयं ही सूर्या बनकर माँ और इस परिवार की रक्षा करेगा । जिस दिन सूर्या मिल जाएगा उस दिन सबको सच बता देगा ।
इस परिवार की रक्षा करना मेरा धर्म है ।
संध्या की आँखों में उसने अपने लिए एक माँ का प्यार देखा है । गाँव में इतना संघर्ष किया है अब थोडा संघर्ष और सही ।
जब तक मुझे और मेरे परिबार को सहारा भी मिल जाएगा ।
तभी सूरज को अपनी माँ और बहनो की चिंता हुई जो मंदिर में उसका इंतज़ार कर रही हैं । सूरज जल्दी से रूम में अटेच बाथरूम में नहाया । पहली बार इतना सुन्दर घर देख कर सूरज भी आश्चर्यचकित था । उसने कभी नहीं सोचा था की इस प्रकार के सुन्दर बॉथरूम में नहाने का मौका मिलेगा । सारी फेसलेटी उस घर में मौजूद थी जिसको अब तक फिल्मो में देखते आया था ।सूरज नहा कर अपने आपको तरोताज़ा महसूस कर रहा था ।
बाथरूम से निकल कर रूम में बनी सुन्दर अलमारी खोली कपडे पहनने के लिए तो उसके तो होश ही उड़ गए ।
सुन्दर कोट पेंट और नई प्रकार की जीन्स की सेकड़ो जोड़ी कपडे उस अलमारी में टंगे हुए थे । उन्ही के नीचे जूते और सेंडल की सेकड़ो प्रकार की जोड़िया रखी हुई थी ।
सूरज उनमे से एक जोड़ी जीन्स और शर्ट निकाल कर पहनता है ।
सूरज आज किसी हीरो की तरह अपने आपको महसूस कर रहा था ।सूरज उस अलमारी के प्रत्येक वस्तु का मुयायना करता है तभी एक अलमारी में बहुत से रुपए की गड्डी की लाइन लगी हुई थी । सूरज ने
इतने पैसे कभी नहीं देखे । सूरज उन रुपए में एक गड्डी निकाल लेता है ।
तक़रीबन एक लाख रुपए की गड्डी लेकर उसने जेब में रखी । और निचे की ओर चल दिया ।
संध्या अभी भी सोफे पर लेटी थी जैसे ही सूरज को देखा मुस्करा गई ।
सूरज संध्या के पास आकर बैठ गया ।
संध्या-" बेटा एक महीने बाद तुझे आज देखा है । इस एक महीने में मुझे क्या तखलिफ् हुई में बता नहीं सकती हूँ ।
तू कहाँ चला गया था ?
क्या तुझे मेरी बिलकुल याद नहीं आई ।
इतना बड़ा कारोबार कौन देखेगा बेटा ?
कब तू इस घर की जिम्मेदारी समझेगा ?""
सूरज को समझ नहीं आ रहा था की इन सवालो का क्या जवाब दे । तभी रूम से तान्या निकल कर आई जो अभी भी मुझे गुस्से से देख रही थी ।मुझे तो देख कर ही डर लगता है तान्या से कहीं एक और तमाचा मेरे गाल पर न मार दे ।
तान्या-" ये क्या बोलेगा माँ इसको इस घर की कब फ़िक्र हुई है । इसको तो सिर्फ दोस्तों के साथ पार्टी और गुंडागर्दी ही पसंद है । इसको कुछ भी बोलना बेकार है बरना फिर से घर छोड़ कर भाग जाएगा ।
संध्या-" तान्या चुप जा बेटा! इतने दिन बाद घर आया है तूने देखा नहीं ये कुछ ढंग से बोला भी नहीं है इसके कपडे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे ये कहीं भाग कर आया है ।जरूर कुछ ऐसा हुआ है जिसके कारण ये चुप है? बोल सूर्या क्या बात है ?
सूरज बेचारा क्या बोले।अगर सच बोला तो इस घर से शायद उसे धक्के मार कर भगा दिया जाएगा । फिर इस घर को गुंडों से कौन बचाएगा । आज तो सूरज मंदिर पर अकस्मात मौजूद था इसलिए संध्या की जान बचा ली ।अगर इस घर से चला गया तो कौन रक्षा करेगा ।
सूरज-" माँ मुझे कुछ याद नहीं आ रहा है ।
जब मुझे होश आया तो में सब कुछ भूल चुका था । शायद मेरे सर में चोट लगने के कारण ऐसा हुआ है माँ ।
मुझे बस इतना याद है की तुम मेरी माँ हो ।
माँ मुझे कुछ याद नहीं है" इतना बोलकर सूरज रोने लगा । सूरज ने यह झूठ जानबूझ कर बोला ताकि उसे सारी सच्चाई पता चले सूर्यप्रताप के जीवन के बारे में पता चले ।
सूरज के इतना बोलते ही संध्या सोफे से उठकर बैठ गई, और तान्या भी आँखे फाड़े सूरज को देख रही थी ।
तान्या मन ही मन सोच रही थी की क्या सच में सूर्या को कुछ याद नही क्या सच में इसकी यादास्त चली गई है ।
तभी उसे हॉस्पिटल में की घटना याद आई जब सूरज को तमाचा मारा तो सूर्या किसी अनजान की तरह उसे देख रहा था, जो सूर्या हमेसा उससे लड़ता रहता था, उसकी खामोशी आश्चर्य में डालने जैसी थी तान्या के लिए ।
संध्या-" ये तू क्या कह रहा है बेटा, तू फ़िक्र मत कर, में तुझे अच्छे से अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाऊंगी,
संध्या के चेहरे पर परेसानी साफ़ पता चल रही थी, जिसने सूर्या की ये हालात की है मन ही मन उसे बददुआ भी दे रही थी ।
एक तरफ सूर्या के घर लौटने की ख़ुशी थी तो दूसरी तरफ सूर्या की यादास्त चली जाने का दुःख भी था ।
तान्या-" क्या तुझे वास्तव में कुछ याद नहीं है? तू इतने दिन से कहाँ पर था?
सूरज-" दीदी में सच कह रहा हूँ मुझे कुछ याद नहीं । बस ऐसे ही भटक ही रहा हूँ ""
सूरज की बात सुनकर तान्या को यकीन हो गया था की वास्तव में सूर्या की यादास्त चली गई है ।
जब से तान्या ने होश सम्भाला है तब से आज तक सूर्या ने तान्या के लिए दीदी" शब्द का प्रयोग नहीं किया ।
सूर्या के मुह से अपने आपको दीदी का सम्बोधन सुनकर तान्या की नफ़रत सूर्या के लिए कुछ कम हुई,
संध्या-" परेसान मत हो हम इस देश के सबसे बड़े हॉस्पिटल में तेरा इलाज कराएंगे । तू अब घर पर ही आराम कर वैसे भी सारा कारोबार तो तान्या ने ही संभाल रखा है""
संध्या माँ की बातो से एक बात और समझ में आ रही थी की इनका कोई बहुत बड़ा कारोबार था । जिसको तान्या दीदी ने संभाल रखा था ।सूरज सब कुछ जानना चाहता था परंतु एक दम नहीं धीरे धीरे ।
सूरज को अपनी माँ की चिंता सता रही थी जो अभी भी मंदिर में मेरे आने का इंतज़ार कर रही थी ।
सूरज-" माँ में थोड़ी देर के लिए मंदिर जाना चाहता हूँ, जल्दी ही वापस आ जाऊँगा""
सूरज विनती करते हुए बोला, जिसे सुनकर संध्या और तान्या को हैरानी हुई जो सूर्या कभी ईश्वर में विस्वास नहीं करता था वह आज मंदिर जाने की बात कह रहा था ।
संध्या-" बेटा मंदिर जा सकते हो लेकिन अकेले नहीं गाडी से जाओ और दो नोकरो को साथ लेकर जाओ ताकि कोई परेसानी न हो"" संध्या को क्या पता था की सूरज अपनी असली माँ और बहनो से मिलने जा रहां था ताकि उन्हें एक घर किराए पर लेकर उन्हें महफूज कर सके ।
सूरज-" माँ में अकेले ही चला जाता हूँ, मुझे सुरक्षा की जरुरत नहीं है माँ, में अकेला ही काफी हूँ अपनी सुरक्षा के लिए""
संध्या-" ठीक है चले जाओ लेकिन गाडी लेकर जाओ बेटा""
सूरज जैसे ही कोठी से बहार निकलता है
तान्या ड्राइवर को आवाज़ लगाती है ।
तान्या-" ड्राइवर सूर्या के साथ मंदिर जाओ और सूर्या का ध्यान रखना ।
तान्या ने जीवन में पहली बार सूर्या की फ़िक्र महसूस हुई थी । इस बात को तान्या भी जानती थी की सूर्या से पहली उसने बात की है और उसकी बात का विस्वास किया है । सूर्या के चेहरे की मासूमियत आज पहली बार तान्या ने देखि जिसके कारण उसका पत्थर जैसा ह्रदय भी पिघल गया था ।
सूरज ड्राइवर को लेकर मंदिर की और निकल जाता है ।
सूरज कोठी से निकलते ही ड्राइवर से मंदिर के लिए बोलता है ।
ड्राइवर उसी दिशा में गाडी चलाने लगता है । सूरज इस हमशक्ल वाली घटना को लेकर बहुत उत्साहित होता है। उसे इतना तो पता थी की इस दुनिया में एक ही शक्ल के सात लोग होते हैं लेकिन अपनी हमशक्ल के कारण उसकी ज़िन्दगी में ऐसा मॉड आएगा पता नहीं था ।जीवन के इस अनोखे सफ़र में सूरज अपने आपको बहुत भाग्यशाली भी मानता था की जैसे जैसे मुश्किलें उसके सामने आती गई ईश्वर ने कोई न कोई रास्ता उसे दिखता गया, सूरज ने ऐसा कभी नहीं सोचा था की एक लकड़ी काटने वाला लकड़हारा जिसे दो वक़्त की रोटी भी नसीब नहीं होती है उसका हमशक्ल सूर्यप्रताप इस शहर का सबसे रहीश व्यक्ति है जिसे परिवार और रुपए की बिलकुल कद्र नहीं है । सूरज ने सूर्या की अलमारी से पैसे तो निकाले अच्छे कार्य के लिए फिर भी वह अपने आपको अपराधी महसूस कर रहा था
वह जानता था की पहले अपने परिवार को अच्छे से सेट्टल कर देता है तभी सूर्या के परिवार की मदद कर सकता है इसलिए उसने पैसे निकाले ।
ड्राइवर के तेजी से ब्रेक मारने पर सूरज एक दम चोंका सामने देखा तो मंदिर पर आ चुका था । सूरज ने ड्राइवर को खड़ा रहने को कहां और तुरंत अपनी माँ और बहनो को ढूंढने के लिए भागा, सूरज तुरंत मंदिर के उसी परिसर की ओर भागता हुआ गया ।उसने जैसे ही मंदिर के फर्स पर अपनी माँ और बहनो को बैठा देखा तो उसकी जान में जान आई । उसकी माँ और बहने ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी की उसके बेटा को कोई काम मिल जाए इसी उम्मीद में बहुत देर से उसके लौटने का इंतज़ार भी कर रही थी ।
दोनों बहनो की निगाहें आते जाते लोगों को की भीड़ को देख रही थी। उन आँखों में भाई के लौटने का इंतज़ार था। जैसे ही सूरज माँ और बहनो के पास पहुचा उसने आवाज़ दी
सूरज-"माँ देखो में आ गया"'
रेखा सूरज को इस नए रूप को पहचान नहीं पाई लेकिन जैसे ही पुनम और तनु में देखा तुरंत ही चिल्ला पड़ी
तनु-" सूरज तू आ गया, ये कपडे किसने दिए तुझे, में तो पहचान ही नहीं पाई तुझे,
क्या तुझे नोकरी मिल गई ? कितनी देर से हम लोग आस लगाए बैठे थे,
सूरज के नए कपडे देख कर माँ और दोनों दीदी हैरान थे, सुबह गया था तब फटे पुराने हरिया के खून से सने कपडे थे, एक दम से ये नई जीन्स और शर्ट देख कर सभी लोग हैरान थे, सूरज के नए रूप को लेकर हज़ारो सवाल रेखा और तनु पूनम के मन में उमड़ पड़े ।
सूरज-" माँ मुझे नोकारी मिल गई, अब हमे कोई परेसानी नहीं होगी, हम किराए के घर में रहेंगे माँ चलो अब यहां से"
सूरज को खुश देख कर रेखा को ख़ुशी हुई और ईश्वर को धन्यवाद देती है ।
रेखा-" चलो बेटा यहां से, लेकिन तुझे नोकारी किसकी मिली है तू यहां कौनसा काम करेगा,कोई गलत काम तो नहीं है बेटा, तेरा तो एकदम हुलिया ही बदल गया है।
सूरज-" माँ फिकर नहीं करो मुझे बहुत अच्छी नोकरी मिली है, जल्दी ही सब कुछ ठीक हो जाएगा।
पूनम-" सूरज अभी हम जा कहाँ रहे है, कोई घर मिल गया है क्या किराए पर?
सूरज-"दीदी घर तो नहीं मिला है किराए का एक दो दिन किसी होटल या लॉज में कमरा किराए पर लेलेंगे तब तक में किसी किराए के घर की व्यवस्था कर लूंगा"'
तनु-" लेकिन भैया होटल में तो बहुत महंगा रूम मिलेगा किराए पर इतने पैसे कहाँ है हम पर?
सूरज-" दीदी पैसे की चिंता नहीं जहां नोकारी मिली है वहां से मुझे नगद रुपए मिल गए हैं ।
तीनो यह बात सुनकर बहुत खुश हो गए हैं तीनो लोग जैसे ही मंदिर के बहार निकले ड्राइवर गाडी लेकर सूरज के सामने लगा देता है।
सूरज-" माँ दीदी गाडी में बैठ जाओ। ये गाडी मेरे मालिक की है ।
पूनम और तनु तो इतनी महंगी और खूबसूरत गाडी देख कर खुश हो जाती है और मन ही मन अपने भाई पर गर्व महसूस करती हैं यही हाल रेखा का भी था ।
तभी ड्राइवर गाडी से निकल कर सूरज के पास आता है ।
ड्राइवर-" मालिक बैठिए गाडी में" ड्राइवर जैसे ही सूरज को मालिक बोलता है तनु सुन लेती है ।रेखा और पूनम दूसरी तरफ होते है इसलिए वो नहीं सुन पाते हैं ।
तनु हैरान थी की इतनी बड़ी और महँगी गाडी चलाने वाला सूरज को मालिक बोल रहा था । तनु दिमाग से सोचने बाली लड़की थी उसे कुछ शक सा होता है । तनु मन ही मन सोचती है सूरज कुछ झूठ बोल रहां है कुछ ही घंटे में इतना बड़ा चमत्कार कैसे हो गया ।सूरज सबको गाडी में बैठा देता है ।
सूरज-" ड्राइवर इधर आओ, सूरज ड्राइवर को बहार बुला कर उससे रहने के लिए किसी सस्ती लॉज या होटल के बारे में जाना चाहता था ।
ड्राइवर-" जी मालिक बोलिए
सूरज-" ये लोग मेरे दोस्त की माँ बहने है।
में भी इनको अपनी माँ और बहन की तरह मानता हूँ, बहुत गरीब हैं ये लोग, इनके लिए एक किराए का घर चाहिए तुम्हारी नज़र में कोई घर हो तो बताओ?
या कोई सस्ती लॉज या होटल में रहने का इंतज़ाम करवाओ ।
सूरज ने सच जानबूझ कर नहीं बताया ताकि किसी अन्य को न पते चले वरना सूर्या के दुश्मन इन पर हमला न करें और वास्तविक सच्चाई संध्या माँ और तान्या दीदी को भी नहीं बताना चाहता था अभी
वक़्त आने पर पता चले ज्यादा ठीक रहेगा ।
ड्राइवर-" मालिक किराए का घर लेने की क्या जरुरत है आपको इस शहर में आपकी 5 पांच कोठियां है किसी एक में से ईनको ठहरने के लिए दे दो । सब की सब कोठी खाली पड़ी हैं, आप कहो तो में इनको शहर के बहार फ़ार्म हाउस वाली कोठी में रहने की व्यबस्था करवा देता हूँ" सूरज को यह सुनकर बड़ी ख़ुशी हुई की सूर्या की इस शहर में पांच कोठी और भी थी ।
सूरज-" चलो फिर फ़ार्म हॉउस वाली कोठी में ही चलो"
सूरज और ड्राइवर तुरंत गाड़ी में बैठ कर कोठी की तरफ चल देते हैं ।
रेखा और दोनों बहने गाडी में बैठकर अपने आपको बहुत अचम्भा महसूस कर रही थी दोनों बहने और माँ गाडी के शीशे से शहर की चकाचौन्ध देख रही थी ।
गाडी एक आलीसान कोठी के बहार पहुचती है । कोठी के बहार बैठा चोकीदार सूरज को देख कर सेल्यूट मारता है और कोठी का दरवाजा खोल देता है । ड्राइवर कोठी के अंदर मुख्य दरवाजे पर गाडी रोकता है ।
सभी लोग गाडी से बहार निकलते है तो सबकी आँखे फटी की फटी रह जाती है बिना पलक झपकाए कोठी की रौनक और उसकी भव्यता देख कर होश उड़ जाते हैं ।
रेखा-" बेटा ये तू कहाँ ले आया ये तो किसी बड़े आदमी की हवेली लगती है ।
पूनम और तनु तो कोठी के बहार गार्डन और उसकी सुंदरता देख रही थी ।ऐसा लग रहा था की मानो कोई सपना देख रही हो ।
ड्राइवर सबको कोठी के अंदर लेकर जाता है ।कोठी में कई कमरे थे ।जरुरत की सारी सुविधाएं मौजूद थी ।
हर कमरे में डबल बेड और टेलीविजन लगा हुआ था ।
पूनम तो कोठी के हर स्थान को बड़े गौर से देख रही थी ।
सूरज-" पूनम दीदी आज से हम लोग यही रहेंगे ।
तनु-" भैया इतनी बड़ी हवेली में सिर्फ हम चार लोग ही रहेंगे या और भी लोग हैं ।
सूरज-" दीदी सिर्फ हम लोग ही रहेंगे ।
हर कमरे में बॉथरूम है आप लोग नहा लीजिए जब तक में कुछ खाने की व्यवस्था करता हूँ ।
सूरज ड्राइवर के पास जाता है जो चोकीदार को समझा रहा था ।
सूरज-" यहां खाने की क्या व्यवस्था है?
चोकीदार-" मालिक खाना बनाने बाली नोकरानी आती है। सुबह शाम को ।
आप चिंता न करे किसी को कोई परेसानी नहीं आएगी । ड्राइवर साहब ने सब समझा दिया है मुझे ।
इस कोठी के बगल में नोकर और ड्राईवर सबके लिए अलग अलग रुम बने हुए थे ।
सुरक्षा की दृष्टि से बिलकुल सुरक्षित थी ।
परिंदा भी पर नहीं मार सकता था ।
इधर पूनम और तनु ने एक कमरा अपने लिए सिलेक्ट कर लिया था और बेड पर लेट कर गद्दे का आनंद ले रही थी ।
रेखा ने भी अपने लिए एक रुम खोल लिया था । नीचे टोटल चार रूम थे और ऊपर 4 ही रूम थे हर कमरे में बाथरूम अटेच था ।
किचेन में खाने के लिए हर प्रकार की सुबिधस थी ।
रेखा तो नरम गद्दे पर लेटते ही सो गई
पूनम और तनु इस कोठी के सामान के बारे में बात कर रही थी ।कोठी थी ही इतनी भव्य और आलिशान की जितनी तारीफ़ करो कम थी ।
सूरज अब अपने आपको हल्का महसूस कर रहा था । मनुष्य की सबसे महत्वपूर्ण चीजे रोटी कपडा और मकान होता है लेकिन सूरज के लिए तो सूर्या का जीवन अनमोल तोहफे के रुप में मिली थी ।
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