RE: Antarvasna Sex kahani जीवन एक संघर्ष है
गांव छोड़ने का दुःख रेखा और सूरज के चेहरे पर उदासी बन कर साफ़ छलक रही थी । जिस गाँव में पूरा जीवन व्यतीत किया, जन्म से लेकर अबतक का सफ़र किसी दृश्य की तरह सभी के दिलो दिमाग पर छाया हुआ था ।
बस में बैठे चारो लोग गुमसुम थे । आगे क्या होगा, शहर में कहाँ रहेंगे? क्या खाएंगे?
ये बातें सब के मन में चल रही थी ।
एक तरफ ध्यान चौधरी और हरिया की खून से लथपथ लाश पर जाता तो सबका मन झकझोर उठता ।
इन्ही बातों को सोचते-सोचते शहर कब आ जाता है पता ही नहीं चलता ।
कंडेक्टर के आवाज़ लगाने पर चारो लोग चोंकते हुए उठते हैं ।
बस से निचे उतरते ही चारो के मन में बस एक ही बात आ रही थी" नया शहर नई ज़िन्दगी" कहाँ जाए? चारो लोग बस से उतरते हैं ।
लेकिन अब जाना कहाँ है, ये किसी को नहीं मालुम ।
तनु-" मम्मी हम शहर तो आ गए लेकिन अब कहाँ रहेंगे,
रेखा-" बेटा जहां ऊपर बाला लेकर जाएगा, ईश्वर जरूर कुछ इंतजाम करेगा।
सूरज-"माँ चलो कुछ न कुछ में इंतज़ाम करता हूँ ।किसी झोपड़ पट्टी में शायद कुछ रहने का इंतज़ाम हो जाए ।
में यहीं कहीं अपने लिए काम ढूंढ लेता हूँ ।
पूनम-" माँ सुबह से किसी ने कुछ खाया भी नहीं है । आपका तो बहुत सारा रक्त भी बह गया । पहले कुछ खा लेते हैं ।
सूरज-" हाँ दीदी चलो पहले कहीं बैठने का इंतज़ाम करते हैं । आप लोग वहीँ बैठना में कुछ खाने का इंतज़ाम कर लूंगा।
सभी लोग शहर की सड़को पर चलते चलते काफ़ी दूर निकल आए ।
रेखा की हालात ठीक नहीं थी, फिर भी अपना दर्द छुपा कर आराम आराम चल रही थी ।
तभी सूरज को एक मंदिर दिखाई पड़ा ।
काफी विशाल और भव्य दिखाई दे रहा था । नव दुर्गा के कारण काफी भीड़भाड़ भी थी ।
सूरज-"माँ चलो इस मंदिर में चलते हैं ।थोड़ी देर विश्राम कर लो ।
पूनम और तनु तो शहर की चका चोंध और बड़ी-बड़ी इमारते देखने में आश्चर्य महसूस कर रही थी । गाँव और शहर की ज़िन्दगी की तुलना उनके मन में चल रही थी ।
सूरज सभी लोगो को मंदिर लेकर जाता है ।
मंदिर इतना बड़ा था की उनका गाँव भी इसके आगे बहुत छोटा लग रहा था ।
पूनम और तनु तो आने वाले लोगो। को देख रही थी । काफी श्रद्धालु मन्नत मागने के लिए ईश्वर के सामने प्रार्थना कर रहे थे ।
पूनम और तनु भी मन ही मन ईश्वर से प्रार्थना कर रही थी की सब कुछ ठीक हो जाए । रहने को घर और खाने को दो वक़्त की रोटी नसीब हो जाए ।
ईश्वर को देख कर लगभग सभी के मन में यही प्रार्थना थी ।
मंदिर के अंदर बहुत बड़ा आलिशान चबूतरा बना हुआ था । रेखा और पूनम, तनु वहीँ वैठ गए ।
सूरज कुछ खाने के इंतज़ाम के बारे में सोच रहा था । तभी मंदिर के दूसरे स्थान पर कुछ लोग भंडारा कर रहे थे ।सूरज तुरंत ही भंडारे की तरफ भाग कर गया, और सभी के लिए भोजन ले आया ।
चारो ने भोजन किया और ईश्वर को धन्यवाद दिया ।
भोजन करने के उपरान्त रेखा पूनम और तनु चबूतरे पर लेट गई ।
सूरज-" माँ में रहने के लिए घर का इंतज़ाम करके आता हूँ और कुछ काम भी ढूंढ लूंगा अपने लिए ।
मुझे आने में समय लग सकता है आप लोग कहीं जाना नहीं ।
रेखा-"बेटा इतने बड़े शहर में कहाँ घर ढूंढेगा । कुछ दिन इसी मंदिर में रह लेते हैं ।खाने के लिए भंडारे की व्यवस्था है ही ।
सूरज-" माँ घर तो ढूँढना ही पड़ेगा। मंदिर में एक दो दिन तो रह सकते हैं ज्यादा दिन नहीं ।
पूनम-" हाँ माँ सूरज सही कह रहा है ।
माँ में भी कुछ काम ढूंढ लुंगी अपने लिए ।
फिर कोई समस्या नहीं आएगी।
सूरज-"नहीं दीदी आपको काम करने की जरुरत नहीं है.आपका भाई सब ठीक कर देगा । दीदी आप माँ और तनु दीदी का ख्याल रखना में रहने का कुछ इंतज़ाम करता हूँ ।
रेखा-" बेटा अपना ध्यान रखना । और जल्दी आ जाना' रेखा चिंतित होती हुई बोली
सूरज वहां से चल दिया। मंदिर से वहार निकलते ही एक बार फिर पलट कर अपनी माँ और दोनों दीदी को देखता है ।सभी लोग सूरज को ही देख रहे थे ।
तीनो लोगों की आँखों में एक उम्मीद और जिम्मेदारी दिखाई दे रही थी सूरज के प्रति ।
सूरज मंदिर से बहार निकला ही था तभी उसने देखा एक सुन्दर सी महिला जो मंदिर में पूजा करने आई थी, देखने से ही अमीर घराने की लग रही थी । वह महिला मंदिर से जैसे ही बहार के लिए निकली दो गुंडे उसे मारने के लिए आए । दोनों गुंडे के हांथो में हॉकी और कमर में तमंचा लगा हुआ था।
जैसे ही उस महिला के सामने दोनों गुंडे पहुंचे महिला डर से इधर उधर भागने लगी।
सूरज बड़े गौर से देख रहा था । सूरज उस महिला को बचाने के लिए जैसे उस गुंडे के सामने गया । दोनों गुंडे सूरज को देख कर चोंक गए ।और आँखे फाड़-फाड़ कर देखने लगे ।
सूरज उस महिला के सामने पंहुचा तो वह महिला भी सूरज को देख कर उसके आँखों में आंसू बहने लगे ।
सूरज भी चकित था की यह लोग मुझे देख कर इतने हैरान क्यों है ?
तभी दोनों गुंडे सूरज पर हॉकी से बार करते हैं ।
एक गुंडा-" तू अभी तक जिन्दा है सूर्य प्रताप"' हमने तो सोचा तू मर गया होगा"
दूसरा गुंडा-" सूर्य प्रताप तू आज नहीं बचेगा । तुझे और तेरी माँ को आज एक साथ मार देंगे । दोनों गुंडे जोर से हस्ते हुए बोले ।
लेकिन सूरज उनकी बातें सुनकर चोंक गया । ये किस सूर्य प्रताप की बात कर रहें हैं ।
तभी वह औरत सूरज के पास आकर बोली
सूर्या बेटा तू कहाँ चला गया था । कितना परेसान थी में । रोजाना मंदिर में आकर तेरे लिए प्रार्थना करती हूँ ।
इतना ही बोल पाई वह औरत तब तक एक गुंडे ने उस औरत के सर पर हॉकी से बार कर दिया ।
सूरज ने तुरंत उस गुंडे के सीने में एक जोर से लात मारी गुंडा सीढ़ीयों से नीचे गिरा ।
दूसरे गुंडे को भी लात मारता है ।फिर हॉकी उठा कर दोनों गुंडे को मार मार कर अधमरा कर देता है ।
सूरज उस औरत के पास आता है जो बेहोस पड़ी थी ।सूरज उस औरत को नीचे लेकर आता है तभी एक फॉर्च्यूनर गाडी सूरज के पास आकर रुकी ।
गाड़ी से ड्रावर बहार निकला ।
ड्रावर-" साहब मालकिन को क्या हो गया है?
सूरज-" कुछ गुंडों ने इनके ऊपर हमला किया था । बेहोस हैं अस्पताल लेकर जाना पड़ेगा"
ड्रावर-" चलो सूर्या भैया गाडी में बैठो। मालकीन को हॉस्पिटल लेकर चलते हैं ।
सूरज तुरंत गाडी में बैठ जाता है । उस महिला को आराम से बीच बाली सीट पर लेटा देता है और खुद आगे आकर बैठ जाता है ।
सूरज बार बार यह सोच रहा था की ये सूर्यप्रताप कौन है ? गुंडे दोनों माँ बेटे को क्यों मारना चाहते हैं ?
मुझे देख कर सभी लोग चोंक क्यूँ गए?
मुझे बार बार सूर्यपताप कह कर क्यूँ पुकार रहें हैं?
इन्ही बातो को लेकर सूरज परेसान था तभी वह ड्रावर से पूछता है ?
सूरज-" ड्रावर भैया ये सूर्यप्रताप कौन है और ये औरत कौन है ?
ड्रावर" हैरान होकर सूरज से बोलता है!" मालिक मज़ाक क्यों कर रहे हो ?
आप ही तो सूर्याप्रताप हो । ये आपकी माँ राधिका प्रताप हैं । आप कहाँ चले गए थे मालिक ?
मालकिन रोज आपके लिए मंदिर में दुआ माँगने आती हैं"""
सूरज बहुत चकित था और परेसान था यह क्या हो रहा है उसके साथ ।
कौन हैं यह लोग और मुझे सूर्यप्रताप कयूँ बोल रहें हैं ।
इन्ही बातों को सोचते सोचते हॉस्पिटल आ जाता है ।
सूरज राधिका के लिए गाडी से बहार निकलता है और इमरजेंसी वार्ड में लेकर भर्ती करवाता है ।
ड्रावर फोन करके परिवार के लोगों को घटना की सुचना देता है ।
डॉक्टर राधिका के लिए तुरंत भर्ती करते हैं और ट्रीटमेन्ट सुरु कर देते हैं ।
सूरज वार्ड के बहार कुर्सी पर आज की पूरी घटनाक्रम के बारे में सोच रहा था ।
गाँव से लेकर हरिया का क़त्ल और चौधरी की पिटाई से लेकर गाँव छोड़कर भागने से अब तक परेसानियां एक एक करके उसके दिमाग में चल रही थी ।
सूर्यप्रताप और राधिका उसके दिमाग़ में अभी भी प्रश्नचिन्ह की तरह बने हुए थे ।
तभी हॉस्पिटल के अंदर एक सुन्दर सी लड़की अंदर की ओर भागती हुई आती है ।
जीन्स और टॉप पहने हुए लगभग 24 वर्षीय होगी ।
लड़की-" डॉक्टर से " मेरी माँ कहाँ है ?
क्या हुआ है उन्हें ? अब कैसी हैं?
डॉक्टर-" आप राधिका जी की बेटी हैं?
लड़की-" जी हाँ डॉक्टर साहब में उनकी बेटी तान्या हूँ" लड़की परेसान सी थी, तभी उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और गुस्से से मेरी तरफ आकर एक जोर से तमाचा मेरे गाल पर मारा । मेरे तो होश ही उड़ गए ।
उस लड़की की आँखों में मेरे लिए नफरत साफ़ दिखाई दे रही थी ।में बूत की तरह सिर्फ उसे ही देखे जा रहा था ।
तभी वह लड़की मेरी और गुस्से से देखती हुई बोली जिसका नाम तान्या था।
तान्या-" आज माँ की यह हालात सिर्फ तेरी बजह से है, तेरी बजह से ही माँ वो लोग माँ की जान के दुश्मन बने हुए हैं ।
जब तू घर से भाग गया तो अब वापिस क्यूँ आया ।
सूरज की समझ में नहीं आ रहा था की आखिर ये हो क्या रहां था ।
तभी डाक्टर उनके पास आया ।
डॉक्टर-"राधिका जी के लिए होश आ गया है । वो बिलकुल ठीक हैं आप उनसे मिल सकते हैं । आप उन्हें घर भी ले जा सकते हैं ।
तान्या और सूरज राधिका के की तरफ जाते हैं ।
राधिका सूरज को देख कर रोने लगती है ।उसकी आँखों से आंसू निकलने लगते हैं ।
राधिका सूरज की ओर देखते हुए
राधिका-" बेटा तू कहाँ चला गया था । एक महीने से तुझे कहाँ -कहाँ नहीं ढूंढा, अब तू कहीं मत जाना मुझे छोड़ कर बेटा ।
सूरज से राधिका के आंसू देखे नहीं गए । वह राधिका के आंसू पोंछता है ।
सूरज-"माँ आप परेसान मत होइए ।
में कहीं नहीं जाऊँगा ।
राधिका सूरज को अपने सीने से लगा लेती है ।
तभी ड्रावर और तान्या राधिका को हॉस्पिटल से छुट्टी कराकर घर के लिए निकलती है ।
सूरज भी आगे वाली सीट पर बैठा अपनी माँ और बहनो के बारे में सोच रहा था ।
उसे मंदिर से निकले लगभग 3 घंटे हो चुके थे ।किराए का घर और अपने लिए काम ढूंढ़ने निकला था ईश्वर ने कैसी मुसीबत में डाल दिया यही सब सोच रहा था ।
अभी गाडी एक आलिशान कोठी पर आकर रुकी ।
ड्रावर-" मालिक घर आ गया उतरो" सूरज को हिला कर बोला जो अपनी सोच में डूबा हुआ था ।
सूरज ने जैसे ही गाडी से उतर कर कोठी की ओर देखा उसकी आँखे चोंधियां गई ।
ये बहुत बड़ी कोठी थी।जिसकी भव्यता देखने लायक थी ।
सूरज ने राधिका को सहारा देकर कोठी के अंदर प्रवेश किया ।कोठी बहुत सुन्दर ओर आलिशान बनी हुई थी । ऐसा लग रहा था जैसे कोई सपना देख रहा हूँ । गाँव की टूटी फूटी चार दीवारों में रहने बाले के लिए किसी चमत्कार से कम नहीं था ये घर ।
राधिका को सोफ़ा पर लेटा कर सूरज खुद दूसरे सोफे पर बैठ गया तभी नोकर सूरज के लिए जूस लेकर आया । सूरज जूस पी कर कोठी का मुयायना कर रहस था।
तभी राधिका-" बेटा अपने रूम में जा कर फ्रेस हो जा, और ये कपडे कितने गंदे पहना है इन्हें उतार कर दूसरे कपडे पहन ले"
सूरज सब कुछ सच बता देना चाहता था ।शायद गलत फहमी का शिकार हुआ हूँ में
इनका बेटा में नहीं हूँ ।
सूरज-' माँ में कुछ बात करना चाहता हूँ आपसे" सूरज इतना ही बोला तभी राधिका बोल पड़ी
राधिका-"बेटा बातें तो मुझे भी तुझसे बहुत सारी करनी है लेकिन अभी नहीं पहले तू फ्रेस हो जा और ये गंदे मैले कपडे उतार दे।
तभी राधिका एक नोकर को सूरज के साथ उसके साथ रूम में भेजती है।
राधिका-" नोकर से! शंकर सूर्या के रूम का ताला खोल दे ।
शंकर सूरज को लेकर ऊपर छत पर बने एक रूम का ताला खोल देता है ।
सूरज जैसे ही उस रूम में प्रवेश करता है एक दम चोंक जाता है ।
रूम बहुत आलिशान बना हुआ था । रूम की दीवार पर सूरज की फोटो लगी हुई थी ।
सूरज पूरा माजरा समझ जाता है की सूर्यप्रताप इनका बेटा है जिसकी सकल मुझसे मिलती है जो बिलकुल मेरी ही तरह था ।
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