Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
12-24-2018, 01:37 AM,
#68
RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
“उसने पुनिया का नाम ले लिया हम सब पकड़े जाएंगे “
आरती रो रही थी लेकिन उसका ममेरा भाई सुरेश अब भी शांत था,वो उसके डर को समझ रहा था लेकिन फिर भी उसे अपने पर भरोषा था,
“कुछ भी नही होगा तुम ऐसे रहो जैसे तुम हमेशा से रहती थी,और रही पुनिया की बात तो वो इतनी पुरानी बात है की किसी का भी ध्यान उसपर नही जाएगा ,इन लोगो ने इतने पाप किये है की इन्हें याद भी नही होगा की कोई पुनिया नाम का व्यक्ति भी है जिसकी इन्होंने जिंदगी बिगड़ दी थी ..”सुरेश का स्वर ठंडा था लेकिन इरादों में गर्मी अभी भी बाकी थी ,आरती सुरेश के कांधो पर हाथ रख देती है और उसके छाती में अपना सर रख देती है,
“तुम ही मेरे एक अपने हो भाई तुम्हारे लिए मैं सबकुछ कर सकती हु लेकिन ,,,,डर लगता है की तुम्हे ही खो ना दु ,ये दुश्मनी हमारे लिए नही है भाई हमने तो अपनी आधी जिंदगी बिता दी है अब और हमे क्या चाहिए हमे एक दूसरे का साथ तो मिल ही रहा है….
आरती अभी सफेद साड़ी में लिपटी हुई थी जो उसके बदन के हर एक करवट का बयान करता था,जवानी में ही वो बेचारी विधवा हो गई थी जिसका दर्द समझने वाला ये सुरेश ही तो था,अपनी बहन के लिए उसने खुद भी शादी नही की थी ,ना ही उसका कोई था ना ही आरती का ,आरती की शादी सुरेश की मर्जी के खिलाफ हुई थी,ऐसे भी किसी की इतनी हिम्मत नही थी की वो तिवारियो के सामने कुछ कह पाए,सुरेश तो अपनी जान भी दे देता लेकिन आरती के पिता ने उसे रोक दिया ,वो जानता था की भले ही आरती का ब्याह सबसे रसूखदार खानदान में हो रहा है लेकिन फिर भी वो लोग कैसे है खासकर आरती का पति,एक नंबर का ऐयास था ,उसकी नजर जब आरती के हुस्न पर पड़ी तो वो उसे पाने को बेताब हो गया,वो अच्छे घर की लड़की थी इसलिए उसने उससे शादी की सोची ,अब तिवारियो को कौन ना कह सकता था,पिता भी मजबूर होकर अपनी बेटी को किस्मत के भरोसे छोड़ दिया …
सुरेश कुछ नही भूल पाया था वो आरती को बेपनाह प्यार करता था लेकिन …..लेकिन वक्त के हाथो मजबूर हो गया था,तभी उसे पुनिया मिला,पुनिया से उसका संबंध बहुत ही पुराना था,जब सुरेश वनः विभाग का कर्मचारी हुआ करता था तब पुनिया भी उस गांव का निवासी था,पुनिया भी ठाकुरो और जमीदारो की दुश्मनी का सताया हुआ एक व्यक्ति था ,लेकिन पुनिया गायब हो चुका था ,जो उसे कुछ ही सालो पहले उसके संपर्क में आया था,पुनिया और सुरेश दोनो का ही मकसद एक ही था ,बस पुनिया की दुश्मनी ठाकुरो से भी थी लेकिन सुरेश की सिर्फ तिवारियो से ,सुरेश अपनी बहन के हालात को देखकर सालो से जल रहा था आज उसे एक उम्मीद दिखी थी,उसने अपनी प्यारी बहन को उस दरिंदे की बीवी बनते देखा था और फिर उसके विधवा हो जाने के बाद उसे तड़फते हुए ,वो जानता था की उसकी बहन के संबंध अपने ही भतीजे से थे ,जिस्म की प्यास में जलते अपनी बहन को वो कह भी क्या सकता था ,और अब विजय …..सुरेश के लिए ये सब सहन करना हमेशा से मुश्किल रहा लेकिन आरती उससे कुछ भी नही छुपाती थी ,सुरेश भी अपनी मजबूरी का घुट पी जाता था ,
आरती उससे चिपकी हुई खुद को बहुत ही हल्का महसूस कर रही थी वही सुरेश भी अपनी बहन को गले से लगाए हुए उसके बालो को सहला रहा था वो कुछ सोच में डूबा हुआ था,
“इतना मत सोचो भाई जो होगा देखा जाएगा बस मुझसे वादा करो की तुम कभी इस लड़ाई में आगे नही आओगे ,जो भी हमारे साथ हुआ वो हो चुका है और हम दोनो ही इससे उबर चुके है ,क्या इतना काफी नही की मैं तुम्हारी बांहो में अपनी जिंदगी बिताऊँ “
सुरेश उसके माथे को चूमता है ,हा उन दोनो की मोहोब्बत सिर्फ जज़्बाती नई जिस्मानी भी थे ,सुरेश के लिए वो बहन से बहुत ज्यादा था वही आरती भी उसके लिए हमेशा खुद को खोले रखती थी लेकिन वो हमेशा तो साथ नही रह सकते थे ,
सुरेश ने उसके चहरे को ऊपर उठाया और उसके होठो में एक चुम्मन झड़ दिया दोनो के होठ मिले उसे एक दूजे के होठो में समा गए,वो काफी देर तक एक दूसरे को चूमते रहे ..आरती की आंखों में आंसू था 
“मुझे बस इतना ही चाहिए ,मैं पूरी जिंदगी बस इतने में ही निकाल दूंगी “
सुरेश उसके आंखों में आये पानी को अपने होठो में समा लेता है,
“क्या क्या सपने थे हमारे,हम एक दूसरे से शादी करना चाहते थे,मैं तुम्हे अपने बच्चे की मा बनाना चाहता था लेकिन …..विजेंदर की मौत के कारण हमे अपने बच्चे को भी गिराना पड़ गया ,उसकी हवस के कारण हम एक नही हो सके आज भी हमे इस भाई बहन के चोले में रहकर एक दूसरे से मिलना पड़ता है ,हम खुलकर एक दूसरे को गले भी नही लगा सकते ,समाज मर्यादा मैं तो सब कुछ तोड़ने वाला था ना आरती लेकिन ,....लेकिन ये दर्द अब नही सहा जाता मैं तुम्हे उनके चुंगुल से आजाद करा देना चाहता हु ,हम कही दूर चले जाएंगे आरती एक दूसरे की बांहो में जिंदगी बिताने “
सुरेश ने फिर से आरती के होठो को अपने होठो से मिला लिया था,आरती के आंखों से बहता पानी उसके होठो तक आता जो सुरेश के जीभ में लगकर एक नमकीन सा अहसास उसे दे रहा था,उसके गुलाबी होठ थोड़े खुले हुए थे वो उसके ऊपरी होठो को चूस रहा था ,जो किसी गुलाब की पंखुड़ियों की तरह नाजुक थे ,उम्र के इस पड़ाव में भी आरती के अंदर वही नाज़ुकता का आभास सुरेश को होता था जो उसके नवयौवन में होता था,सुरेश के हाथ आरती के कमर से होते हुए उसके पुष्ट नितम्भो पर चले गए ,जो मुलायम तो थे लेकिन अभी भी अपनी आकृति नही खोये थे,वो वैसे ही गोल थे जैसे उसकी पहली छुवन में हुआ करते थे,वो आरती को अपनी ओर खिंचता है,
“भाई मुझे अपनाने के लिए तुम्हे किसी समाज की स्वीकृति की जरूरत नही है ,मैं तुम्हारी थी और तुम्हारी ही रहूंगी ,हा ये जिस्म की गर्मी मुझे अपने जिस्म को औरों को सौपने पर मजबूर कर देता है लेकिन यकीन मानो की मैं तुम्हारे अलावा आज तक किसी को भी अपने दिल से नही लगाई हु,मेरे लिए तो तुम ही हो मेरे भाई,और ये कोई भाई बहन का चोला नही ये तो हमारा प्यार है जिसे हमने भाई बहन के रिस्ते का नाम दे दिया है ,प्यार तो हमारा तब भी था जब हम एक दूसरे के साथ बचपन में खेला करते थे,तब भी था जब तुमने पहली बार मुझसे कहा था की मैं बहुत ही सुंदर हु और मैं शर्मा गई थी,तब भी था जब तुम्हारे हाथो ने पहली बार मेरे शरीर को एक मर्द के जैसे छुवा था ,तब भी था भाई जब तुम्हरे होठ पहली बार मेरे होठो से मिले थे,”आरती रोने लगती है लेकिन बोलती जाती है ,
“तब। भी तो था ना भाई जब तुमने पहली बार मेरे यौवन को पाना चाहा था और मुझसे वादा किया था की मैं तुम्हारी ही रहूंगी जिंदगी भर के लिए ,तब भी था जब तुमने पिता जी के सामने मुझे अपनी बीवी बनाने की बात की थी और उन्होंने तुम्हारे हाथ पैर तोड़ दिए थे ,तब भी था जब तुमने मुझे अपना बनाया था ,यही तो कमरा है ना भाई जंहा तुमने मेरा कौमार्य तोड़ा था और मेरे मांग में अपने नाम का सिंदूर डाला था,तब भी था भाई जब मेरे जिस्म को पहली बार मेरे समाज के सामने के पति ने भोगा था,तब भी था जब ये जिस्म राकेश और विजय के नीचे था ,तूने मुझे जब अपना बना लिया था भाई मैं तो तब ही से तेरी हु ,हमारे रिस्ते का नाम चाहे जो हो लेकिन मेरा ये जिस्म और मेरा मन सदा से तुम्हारे लिए ही था है और रहेगा “
आरती का पूरा चहरा आंसुओ से भीग चुका था,वही हाल सुरेश का भी था ,वो उसे अपनी ओर जोरो से खीचकर उसे अपने सीने से लगा लेता है ,
“मैं हर उस आदमी को बर्बाद कर दूंगा जिसके कारण तुम मुझसे अलग हुई ,,जैसे मैंने तुम्हारे पिता को दुनिया से रुखसत किए जैसे मैंने तुम्हारे पति को गोली मारी ,हमारे बीच कोई भी आये मैं उसे नही छोडूंगा ...आरती तुम मेरी हो तुम्हारे जिस्म को भोगने वालो को भी इसका हिसाब देना होगा,राकेश और विजय को भी तुम्हरे जिस्म से खेलने का पूरा हिसाब देना होगा आरती “वो जोरो से उसके होठो को अपने होठो में मिला कर चूसने लगता है,आरती भी अपने भाई के प्यार के उफान अब रोकना नही चाहती थी….दोनो ही बिस्तर में गिरते है और एक दूसरे में डूब जाते है…...
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