RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
वो कमरे के अंदर आयी और अपने पीछे ही कमरे का दरवाजा बन्द कर दिया,सफेद साड़ी जो की इतनी पतली थी की उसके उजोरो की घाटी साफ दिख रही थी,उसके बड़े नितम्भ और पतले कमर की वो लचक ,किसी काम की देवी सी वो लचकते हुए राकेश के पास पहुची और उसके बिस्तर पर बैठ गई ,
“तुम्हारे लिए दूध लायी हु “
उसके हर शब्द से वासना की महक आ रही थी,
“आप तो जानती हो चाची की मुझे दूध कैसे पीना पसंद है,”
राकेश का लिंग उसके पतले निकर को फाड़ रहा था,आरती की नजर उसके अकड़े लिंग में गयी और उसके योनि से भी कुछ रस काम का टपक पड़ा,वो एक खुजली के अहसास से मचल गई,
“पहले ग्लास से तो पी लो ,साथ ही शिलाजीत भी लायी हु “
वो दो गोलिया शिलाजीत की दूध में मिला देती है जो की आसानी से घुल जाता है,राकेश उस दूध को पकड़ता है वो केशर की महक से महक रहा था,राकेश के चहरे पर एक मुस्कान आ गई ,और वो जल्दी से उसे पी गया ,आरती उसके पास आई उसकी सांसे तेज थी ,राकेश की भी सांसे कुछ तेज हो रही थी,
राकेस ने अपने हाथ उसके कमर पर लगाया और वो मचल गई
“आह बेटा “
राकेश फिर से मुस्कुराया और उसे फिर से अपने पास खिंचा उसका जिस्म किसी गर्मी से पसीना छोड़ रहा था ,जिससे आरती एक शरीर गिला हो गया था,उसके नरम त्वचा के अहसास से राकेश के जिस्म पर भी एक झुंझुरी सी दौड़ गई ,
पसीने के गीले पतले साड़ी के कारण जिस्म का कटाव उभर कर आ रहा था,आरती की खुसबू से राकेश के अंगों में अकड़ान बढ़ रही थी,
वासना की आग उम्र और रिस्तो के बंधन को नही मानती वो हर दीवार तोड़ कर उस आग को शांत करना चाहती थी,एक विधवा औरत अपने बच्चे की उम्र के लड़के के साथ आज सबकुछ करने को तैयार थी,शायद ये उनका पहले बार भी नही था,लेकिन आरती करती भी क्या,उसकी शादी नई नई थी की बेचारी का पति पारिवारिक झगड़े के कारण मारा गया,एक अच्छे घर की लड़की जो एक जमीदार खानदान की बहु थी,पढ़ी लिखी थी,समाज के सामने शालीन थी,मर्यादित थी,लेकिन जिस्म की आग जो उसके पति ने उसे लगाई थी लेकिन उम्र के उस दौर में जब ये आग सबसे ज्यादा होती है उसके पति की मौत हो गई,आरती की ये मजबूरी थी की वो अपने को किसी ऐसे के हाथो में सौपे जो की उसकी इज्जत के ना उछाले ,राकेश जब जवान हुआ तब से ही आरती ने उसे सम्हाल लिया,राकेश सबसे ज्यादा प्यार अब आरती को ही करता था,वो उसके लिए पहले मा थी ,बाद में उसकी सबसे अच्छी दोस्त और उसके बाद उसकी गर्लफ्रैंड बन गई,आज भी राकेश के दिल में उसके लिए बहुत प्यार और सम्मान था,लेकिन शायद राकेश को भी उसकी मजबूरी समझ आती थी और वो उससे जिस्म का रिश्ता निभाने में संकोच नही करता ……..
आरती आज बड़े दिनों के बाद फिर से राकेश के साथ थी,आज वो अपनी सभी जलन मिटाना चाहती थी,वो राकेश के होठो के पास आकर उसके आंखों में झांकती है,राकेश की आंखे उससे टकराती और वो अपने होठो को आरती के होठो में मिला देता है,
दोनो एक दूजे के जिस्म से खेलने लगते है और राकेश उसके पल्लू को सरकाकर उसके बड़े बड़े आमो के रस को पीने की कोशिस उनके ब्लाउज़ के ऊपर से ही करने लगता है….
उसकी जीभ का स्पर्श पाकर आरती की आहे निकलने लगती है,
“आह बेटा थोड़ा आराम से ,नही दांत मत गड़ा ना “
“आज तो पूरे मन की करूँगा चाची आप को नही छोडूंगा,इतने दिनों के बाद मिली हो “
राकेश उतेजित था और उसके दन्तो के निशान आरती के उजोरो पर पड़ रहे थे वो उसके बालो को अपने हाथो से कसकर पकड़े हुए थी ,राकेश अपने दांतो को गड़ाता और थूक से उसके ब्लाउज़ को भिगोने लगा,आरती को मजबूरन ब्लाउज़ के बटन खोलने पड़े ,अंदर अंतःवस्तो की कमी के कारण उसके उजाले स्तनों की चोटी के दर्शन राकेश को आसानी से हो गए,और वो अपनी आदत के अनुसार अपने दन्तो और लार से उसे भिगोने लगा,उसके निप्पलों को अपने मुह से भरकर वो उसे पूरी तकत से चूसने लगा,आरती के लिये सहन से बाहर हो रहा था,उसका शरीर मादकता से भरा हुआ था और किसी मर्द के ना छूने के कारण वो जलते तवे सा हो गया था,थोड़े से पानी के छीटे भी धुवा उठा देते थे,
राकेश का इतना सा खेल ही उसे झड़ने को काफी था,वो पागलो की तरह मतवाली से झूमि और एक धार उसके पेंटी को भिगो दी ,राकेश उसकी हालत पर मुस्कुराया ,और आरती उसे झूठे गुस्से से देखने लगी,
“शैतान कही का “और उसके गालो को पकड़ कर उसके होठो को अपने होठो से भिगोने लगी…
माहौल की गर्मी बढ़ रही थी,और दोनो की उत्तेजना भी,और राकेश से और नही सहा गया वो अपनी प्यारी चाची को बिस्तर में लिटा कर सीधे उसके साड़ी को पकड़कर उठाने लगा,एक ही झटके में उसे कमर से ऊपर खिंच दिया राकेश का हाथ पेंटी पर गया ही था,
“अरे इतनी क्या उतावली है मैं उतार देती हु,’
लेकिन खड़ा लिंग किसकी सुनता है,वो उसे उतारा जैसे की वो इसे फाड़ ही देगा,आरती को उसके उतावले स्वभाव को देखकर हँसी भी आ गई,लेकिन उसकी हँसी ज्यादा समय तक नही रही ,क्योकि राकेश ने सीधे ही उसके योनि में अपना लिंग धसा दिया,वो बेचारी एक आह भरकर रह गई,और अपने बांहो के घेरे से राकेश को घेर लिया,वो उसे अपनी पूरी ताकत से धक्के लगाए जा रहा था……..
कमरे में छप छप छप की आवाजे आ रही थी ,आरती ने पहले ही अपना पानी निकल दिया था और वो फिर से उतेजित हो चुकी थी,और राकेश का लिंग पूरी तरह से भीगा हुआ अंदर बाहर हो रहा था,कमर चलता रहा आहे निकलती रही ,और दिल धड़कते रहे ,और वो लावा राकेश के अंदर से निकल कर सीधा आरती के अंदर समा गया….
“सुरेश है ये हमारे काम आ सकता है”
पुनिया आज बहुत खुस दिख रहा था,सुरेश आरती के मामा का लड़का था,और वीरेंद्र की मौत तथा आरती के इस तरह जवानी में ही विधवा हो जाने को लेकर बहुत ही दुखी भी रहता था,वो वन विभाग में एक अधिकारी के पोस्ट में था,और उसकी नफरत ठाकुरो और तिवारियो से हमेशा से थी,ठाकुरो से इसलिए क्योकि उनके कारण वीरेंद्र की जान गई और तिवारियो से इसलिए क्योकि उन्होंने उसके बहन को दूसरी शादी नही करने दिया,कभी सुरेश पुनिया के गांव में ही इंचार्ज हुआ करता था और जग्गू और पुनिया के लिए सहानुभूति भी रखता था,लेकिन सालो से उनका इससे कोई भी मेल मिलाप नही था….
“लेकिन क्या वो मानेगा,खफा होना और दुश्मनी होने में बहुत ही फर्क है ,सुरेश चाहे कितना भी नफरत करता हो वो हमारे साथ आएगा उसकी गुंजाइस थोड़ी कम ही है,”
जग्गू ने नाम तो सुझा दिया था लेकिन वो भी कंफर्म नही था की सुरेश उनकी मदद करेगा की नही ,
“सुरेश क्या कर सकता है मुझे तो आरती की मदद चाहिए वो अगर हमारे साथ आ गई तो काम हो जाएगा,”
जग्गू को नही पता था की पुनिया क्या करने वाला है पर उसे उसपर पूरा भरोसा था,
इधर
ठाकुरो की हवेली में चहलपहल बढ़ गयी थी ,अजय को केशरगढ़ के राज परिवार का वारिस घोषित कर दिया गया था,इस हैसियत से उसे राजा घोषित किया गया उसका राज तिलक हुआ और एक बड़ी पार्टी की गई साथ ही परंपरा के अनुसार वो गरीबो में बहुत सा दान भी दिया. ,वहां के लोग अपने राजा को देखने को दूर दूर से आने लगे रोज ही अखबारों में तस्वीरे वगैरह कुल मिलाकर पूरे इलाके में बात का एक ही विषय था ,अजय का राजा बनना….
इससे उनको कोई आर्थिक मदद नही मिलने वाली थी पर एक सम्मान जो अजय और उसके परिवार का वहां था वो कई गुना बढ़ गया था,
हवेली की रंगत ही कुछ और हो चुकी थी और साथ ही समय पास आ रहा था सुमन और किशन की शादी का...सुमन अब हर दुख को छोड़कर बस किशन को अपना पति बनाने को बेताब थी ,कुछ ही दिनों में उनकी शादी थी ,बाली चाहता था की उससे पहले अजय और विजय की भी शादी हो जाय लेकिन उसे भी पता था की ये मुमकिन नही है,
वक़्त चलता चला गया और चुनाव को भी एक ही साल का समय बचा था,निधि और धनुष बड़े ही ताकत से चुनाव की तैयारी में लगे थे,वही अब अभिषेक निधि से दूर रहने लगा था उसे पता था की उसकी एक छोटी सी गलती उसे कही का नही रहने देगी….निधि को पहले तो ये अजीब लगा लेकिन फिर वो अपने काम में इतनी व्यस्त होने लगी की उसे इसकी सुध भी नही रहती थी………
उस रात बाली अपने कमरे में गया ,वो अब चम्पा के साथ ही सोया करता था,लेकिन अलग अलग बिस्तरों में ,इतने दिनों की दूरी अब भी नही भरी थी ,
“शादी की तैयारीया कैसे चल रही है …”
ऐसे तो वो दोनो बहुत ही कम बात किया करते थे पर जब से किशन की शादी फिक्स हुई थी वो कुछ चीजो के लिए बात कर ही लिया करते थे,
“ठीक है और ये बच्चे मुझे कुछ करने ही कहा देते है,अब तो इनकी ही चलती है अब मैं बुड्ढा हो गया हु “
बाली हँसते हुए कहा,
“आप भी ना अभी तो आप किसी जवान को भी मात दे दे ...अभी भी तो वैसे ही है “
बाली की नजर सीधे चम्पा पर गई वो उसके बदन को ही घूर रही थी ,बाली से नजर मिलते ही उसकी नजर शर्म से झुक गई ,बाली को भी बड़ा अजीब सा लगा,ये सालो की दूरियां जिसने मन के जज़बातों को दफना दिया था,एक हल्की सी आहत ने उसे हिलोरे मारने पर मजबूर कर दिए था.,
दोनो ही चुप होकर सोने की कोशिस करने लगे वो अलग अलग बिस्तर में सोए थे ,चम्पा के दिल की धड़कन बाली तक पहुच रही थी लेकिन वो मूरत बना बस सोया हुआ था,की चम्पा उठी जैसे वो इस आग को बर्दास्त नही कर पाएगी उसके उठने की आहट से बाली भी उसकी ओर देखने लगा ,जैसे ही चम्पा बिस्तर से उठी उसका पल्लू नीचे गिर गया….
वो अभी बेफिक्र थी उसे लगा की हमेशा की तरह बाली दूसरी ओर मुह किया सोया होगा,लेकिन बाली की नजर सीधे ही उसके उजोरो पर गई,आज भी चम्पा की कातिल अदाएं वही थी जो सालो पहले हुआ करती थी,उसके उजोरो के मदमस्त पर्वत ब्लाउज के उस दर्रे से झांक रहे थे,वो मखमली जिस्म का वो हिस्सा बाली के मन को बहकाने को काफी था,सालो से किसी औरत के जिस्म का स्वाद उसे नही मिला था यही हाल कुछ चम्पा का भी था और दोनो एक दूसरे के सामने इस हालत में थे की वो कुछ कर भी नही पा रहे थे और किये बिना रहना भी मुस्किल हो रहा था…..
दूधिया रोशनी में चमकता हुआ चम्पा का जिस्म और उससे आने वाली वो मनमोहक खुशबू,उम्र के इस पड़ाव में वो उसका शरीर और भी गदरा गया था,भारी नितम्भ,उभरे उरोज ,और चहरे पर वही कातिलाना अंदाज,...
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