RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
इधर समारोह पूरे सबाब पर था और इधर दिलो में भी आग सी लगी थी,नितिन खुसबू और सोनल को इशारा करता है,और सोनल विजय को सभी के दिलो की धड़कने बढ़ी हुई थी,सभी विजय के रूम में चले जाते है,विजय जब पहुचता है तब तक सोनाल खुसबू और नितिन पहुच चुके होते है,सभी बैठ कर एक दूजे को देखरहे होते है,शमा गंभीर सा था…..
विजय भी कमरे में आता है,और आते ही सीधे नितिन के गले को पकड़ लेता है….
“साले प्यार के नाम पर तूने इतना बड़ा धोखा दिया…”
सोनल और खुसबू इससे डर गए साथ ही नितिन भी घबरा गया...सोनल दौड़कर विजय के पास पहुचती है,
“विजय ये क्या कर रहा है,”
“इसने …..इसने तेरे प्यार से खेला है सोनल,इसे पता था की तू कौन है और ये….”
“इसे कैसे मालूम होगा की मैं कौन हु और हमे भी कहा पता था की ये कौन है,विजय प्लीज़ मामले को बिगड़ मत …”
विजय सोनल के चहरे पर आये आंसुओ को देखता है और उसका हाथ अपने ही आप ढीला होता जाता है…
वो नितिन को छोड़कर अपने कमरे में एक दराज से विस्की की बोतल निकलता है और 3-4 घुट सीधे ही पी जाता है,उसे भी समझ नही आ रहा था की क्या करे….
“मुझे सचमे नही पता था था विजय की ये कौन है और अब जानने के बाद की ये मेरी बहन है मैं कैसे……..कैसे इस रिस्ते को आगे बड़ा सकता हु,....तुम अगर कहो तो मैं अभी से सोनल की जिंदगी से दूर हो जाऊंगा…”
नितिन अपनी आंखे अभी भी नीचे किये हुए था…
“हा एक को अपनी मर्यादा की पड़ी है और एक को समाज की,,,”खुसबू की बातो में दर्द और व्यंग दोनो था...वो आगे कहती है..
“लेकिन तुम दोनो ने ये पूछा भी की आखिर सोनल क्या चाहती है,उसे क्या चाहिए ….एक लड़की के दिल को समझने की तो किसी को कोई फुरसत ही नही है,ठीक है की अब सोनल नितिन की बहन है पर इसका मतलब क्या हुआ...की जो प्यार वो दोनो एक दूजे से करते है वो खत्म हो जाएगा….नही मुझे पता है ये नही हो सकता,क्योकि मुझे भी प्यार हुआ है…”नितिन खुसबू को घूर कर देखता है उसके लिए ये बात एक आश्चर्य} ही थी अभी तक खुसबू ने उसे कुछ भी नही कहा था….
“हा नितिन मैं अजय से प्यार करती हु,ये बात तो उसे भी नही पता,लेकिन सच यही है और एक सच किसी को भी नही पता….मैं पहले से जानती थी की तुम कौन हो ,”सभी आश्चर्य से खुसबू को देखते है…
“जब सोनल ने पब में मुझे तुम्हारे नाम बताये तब ही मुझे पता चल गया था की तुम लोग कौन हो ,दादा जी ने मुझे तुम्हारे नाम बतलाए थे और मैं दादा जी की बहुत करीबी हु,उन्होंने मुझसे वचन लिया था की मैं दोनो परिवारों को मिलने के लिए जो भी कर सकू करूँगी,लेकिन इत्तफाक देखो मुझे अजय से उसे देखते ही प्यार हो गया,और वो प्यार तो तब भी कम नही हुआ जब दोनो परिवार एक दूजे के खून के प्यासे थे और तुम सोचते हो की अब तुम दोनो एक दूसरे से अलग हो जाओगे तो ये बहुत बड़ी गलती होगी…”
“लेकिन ये दोनो भाई बहन है”विजय चिल्लाता है
“तो क्या हुआ”सोनल विजय को झकझोर देती है,दोनो की आंखे मिलती है और उसे रात का वो शमा याद आ जाता है ,वो प्यार था की एक ग्लानि का भाव या शर्म या और कुछ लेकिन विजय का सर अपने आप ही नीचे हो जाता है उसका सारा गुस्सा जाता रहता है और उसके आंखों में आंसू की बूंदे आने लगती है...सोनल उसे अपने गले से लगा लेती है…
“भाई कुछ भी गलत नही हुआ,जो हमने किया वो भी और जो हम करने वाले है वो भी ,,,...”विजय को ये समझ नही आ रहा था की सोनल अपने और उसके बारे में बोल रही है या अपने और नितिन के बारे में पर जो भी हो उसे कुछ कुछ समझ तो आ रहा था,
“भाई प्यार तो प्यार होता है ना सब भूलकर बस मेरी खुशी देखो ना,मैं खुश हु और खुस रहूंगी मुझे इन रिस्ते के बंधनो में मत बांधो भाई ….”विजय का हाथ उसके बालो पर चला गया वो उसे कसकर पकड़ लेता है …
“चाहे दुनिया वाले कुछ भी कहे पर तेरी शादी होगी तो नितिन से ही होगी ,और वो साला अगर मना करे तो उसे बांधकर मंडप पर बैठूंगा…”
वो नितिन को देखता है जो अभी भी थोड़ा सा सोच में था पर विजय के आखिरी लाइन से वो भी हँस पड़ता है साथ ही विजय खुसबू की तरफ देखता है,
“और आप बनोगी मेरी भाभी …”
खुसबू थोड़ा शर्मा जाती है…
तभी कमरे में मिसेस कव्या सेठ (जो अभी कॉलेज की प्रिंसिपल है) आ जाती है ,
“ओह मुझे माफ करना समझ नही आ रहा था की टॉयलेट कहा पर है,इतना बड़ा घर है तुम लोगो का “
“अरे आप आइए ना मेडम “
सोनल कहती है,
“अरे प्रोग्राम तो वहां चल रहा है और तुम लोग यहां बैठे हो “
“वो मेडम “नितिन कुछ बोलने वाला होता है.तभी सोनल उसका बात काट। देती है.
“मेडम वो सब आप छोड़िए ना और भइया का ही रूम है आप इसका टॉयलेट इस्तेमाल} कर लीजिये …
“ओके “ कव्या विजय को देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ टॉयलेट में घुस जाती है,
“चलो हम सब चलते है ,”
सभी बाहर निकल रहे होते है तो सोनल विजय को रोकती है ,
“अरे आप कहा जा रहे है ,मेहमान आया है यहां कुछ खातिरदारी करो “
विजय के चहरे पर मुस्कान आ जाती है वही नितिन और खुसबू उसे अजीब निगाहों से देखते है…
“मतलब की उन्हें अकेला मत छोड़ो साथ ही आ जाना ना “
“ओके मैं भी रुक जाता हु “नितिन कहता है.
“भइया उसे सम्हाल लेंगे तुम्हे होशियारी दिखाने की कोई जरूरत नही है”सोनल नितिन का हाथ पकड़ती है और खीचकर उसे ले जाने लगती है,साथ ही वो विजय को हल्के से आंख भी मार देती है और साथ ही विजय के चहरे पर एक शैतानी मुस्कान उभर जाती है…
इधर कव्या तो आयी ही विजय से मिलने को थी ,वो जल्दी से निकलती है
“कैसी हो मेडम जी “विजय उसके कमर में हाथ डालकर उसे अपनी ओर खिंचता है,
“भागो तुम ,यहां मैंने खुशी खुशी ट्रांसफर मंजूर किया था की तुम यहां हो ,और एक् तूमहो की हाल चाल पूछने भी नही आये,”
“अरे मेडम जी क्या करे काम ही ऐसे आ गए थे की आपसे मुलाकात ही नही हो पा रही थी ,पर आप फिकर मत करे अब तो आपके लिए पूरा समय है मेरे पास”
“अच्छा तो क्या करोगे”
“जो भी काम उस दिन बच गया था सब आज ही पूरा कर लेते है”
“अच्छा “
कव्या एक घाघरा पहने हुई थी ,मांग में गढ़ा सिंदूर और हाथो में भरी हुई चूड़ियां ,उसके मादक जिस्म में कहर ढहा रहा था,वो ये श्रृंगार भी तो विजय के लिए ही कर के आयी थी
,मादकता में और भी मादक उसके होठो की वो लाली थी जो विजय को उसे चूसने को कह रही थी और विजय ने वही किया ,वो उसे अपने हाथो से उठाकर सीधा ही अपने बिस्तर पर लिटा दिया ,उसने देखा की वो विस्की का ढक्कन अब भी नीचे ही गिरा था,उसने उस बोतल को पकड़ा और दो घुट खुद लगाए फिर कव्या के होठो से लगा दिया ,वो भी दो घुट ऐसे लगा गयी जैसे की कोई पुरानी शराबी हो ,....
उसके ब्लाउज़ से झांकते हुए उसके बेहतरीन उजोरो को वो अपने होठो से महसूस करने लगा और हाथो को पीछे लाकर वो ब्लाउज़ की चैन खोल दिया,कव्या की एक सिसकारी पूरे कमरे में फैली तभी दरवाजा फिर से खुलता है….
“कम से कम दरवाजा तो लगा दिया करो “और एक हँसी पूरे माहौल में गूंज जाती है कव्या जल्दी से अपने को सम्हालने और ढकने में लग जाती है पर विजय के होठो में एक मुस्कान आ जाती है,सामने मेरी खड़ी थी (मेडम मेरी ,डॉ की सेकेट्री )वो एक हल्के रंग की साड़ी पहने सनी लीओन सी लग रही थी ,हाथो में हल्के डिजाइनर चूड़ियां ,और उसका गजब का गदराया बदन ,देखने वाले का मन तो डोल ही जाय,
दोनो औरतें विजय के ताकत की गुलाम और शादीशुदा था,दोनो ही गदराये हुस्न की मलिका थी ,और दोनो को ही विजय चाहिये था ….वप इठलाते हुए बिस्तर की ओर बढ़ती है,
“जानेमन तुम आदमी हो या घोड़े,कितनी औरतों को अपने नीचे लाओगे…”विजय उसे बस मुस्कुराते हुए देखता है और उसे अपने ऊपर डाल देता है,
“बाकियों का तो नही पता लेकिन आज तुम दोनो को “
उसकी इस हरकत और इस बात से कव्या भी सामान्य हो चुकी थी और तीनो एक साथ ही जोरो से हस्ते है…
“अब तो दरवाजा लगा दो या किसी और की राह देख रहे हो “
मेरी हँसते हुए कहती है,विजय जल्दी से दरवाजा लगता है ,उसके टाइट जीन्स से भी उसका अकड़ा हुआ लिंग दिख रहा था जिसे दोनो ही बड़ी कामुक नजरो से देख रही थी ….
विजय उनके पास आता है दोनो ही अपने जीभ पर उंगलिया फिराती है,
आज तक ने ना जाने कितनी लड़कियों के साथ ये खेल खेला था पर आज पहली बार दो लडकिया और वो इतनी हरीभरी और खेली खाई ...विजय जैसा आदमी ही ये रिस्क लेने को तैयार हो सकता था और दोनो को ही खुश करने की गारेंटी भी दे सकता था,विजय जैसे ही बिस्तर पर पहुचा दोनो ही उसपर झपड़ पड़ी जहा कव्या उसके ऊपर के भाग को सम्हाल रही थी वही मेरी ने नीचे के भाग की जिम्मेदारी ले ली थी ,मेरी ने उसे नीचे से नंगा कर दिया और कव्या ने ऊपर दे कव्या अपने होठो को उसके होठो पर भर कर उसका रस चूस रही थी और वही मेरी उसके अकड़े हुए लिंग को अपने होठो से गिला कर रही थी ,विजय की सांसे तेज हो रही थी और उसकी आंखे बंद,आज तक दुसरो के अंगों को निचोड़ने वाले विजय के अंगों को आज कोई दूसरा निचोड़ रहा था और वो बस सोया हुआ था,काव्या ने अपने उजोरो को अपने तने हुए ब्लाउज़ से अलग किया और ब्रा के ऊपर से ही उसे विजय के मुह में घुसेड़ दिया वो कुछ कह पता उससे पहले ही काव्या ब्रा को एक ओर कर अपने उभरे हुए निप्पल को उसके हल्के से खुले मुह में घुसा देती है,विजय भी उस उतेजित निपल को अपने मुह में पाकर खुस हो जाता है और जोरो से चूसने लगता है…
“आह मेरी जान “काव्या विजय के बालो को अपने उंगलियों में फंसा लेती है,वही विजय उसके निप्पल को दांतो से हल्के से काट देता है ,
“हाय कमीने कही के ,बहुत ही शरारती हो तुम ,हाय “
“अभी शरारत दिकहि कहा हो जान “
“मेरे बारे में भी तो कुछ सोचो “मेरी ने अपने मुह से विजय का लिंग निकल कर कहा ,विजय ने उसे मुस्कुराकर देखा और उसके पैर जो उसके सर के पास थे को पकड़कर उसकी साड़ी को ऊपर किया और अपना सर वहां घुसा दिया,हुस्न के दीदारे खयालो में जम गए,मेरे सारे बच्चे रूमालों में जम गए...हुस्न के दीदारे खयालो में जम गए,मेरे सारे बच्चे रूमालों में जम गए...हुस्न के दीदारे खयालो में जम गए,मेरे सारे बच्चे रूमालों में जम गए...हुस्न के दीदारे खयालो में जम गए,मेरे सारे बच्चे रूमालों में जम गए...हुस्न के दीदारे खयालो में जम गए,मेरे सारे बच्चे रूमालों में जम गए...
काव्या का चहरा थोड़ा उतर सा गया,तो मेरी ने उसे अपने पास खिंचा और उसके घाघरे में अपना मुह घुसा दिया,विजय ने मेरी के योनि में दांतो से कलाकारी की वो उचक पड़ी और उतेजना में काव्या के पेंटी से ही उसके योनि को खा गयी …
“आह पागल हो तुम लोग,मार ही डालोगे “काव्या छटपटाई
और जाकर विजय के कमर से चिपकने लगी ,विजय ने अपने हाथ से उसका से अपने लिंग की ओर मोड़ दिया और वो जैसे इशारा समझ गई हो विजय का लिंग अपने होठो में भर लिया…..
सभी एक दूसरे को स्वर्ग की सैर करा रहे थे,जब जब विजय कोई कलाकारी मेरी के योनि से करता ,मेरी उतेजना में आकर काव्या की योनि में घुस कर उसे खा सी जाती और काव्या उतेजना में विजय के लिंग को और जोर से अपने मुह में भिचा लेती,विजय का चहरा पूरी तरहः से मेरी के कामरस से गिला हो चुका था ,वही हाल मेरी का भी था ,वही काव्या के थूक से विजय का लिंग पूरी तरह भीग था चुका,सभी की सांसो की ही आवाज से कमरे में एक हलचल सी हो चुकी थी ,मेरी और काव्या एक जोरो की धार छोड़ते हुए अपनी योनि की आग शांत कर ली ,लेकिन अब विजय की आग अच्छे से बड़ी थी बस बात ये था की इस आग का पहला शिकार कौन होने वाला था…
वो उठकर दोनो को ही अपने ओर खिंच लिया ,सभी एक दूसरे के होठो को,गालो को चुम रहे थे ,सभी के चहरे अब रस से भीगे थे,मेरी और काव्या के कपड़ो की हालत बहुत ही खराब हो चुकी थी ,कोई कुछ कहता उससे पहले ही विजय ने काव्या को अपने नीचे ला लिया और उसके घाघरे का नाडा खोल कर उसे नीचे कर दिया,नीचे उसकी पेंटी पूरी तरहः से उतरी नही थी उसे बस एक तरफ सरकाया गया था,विजय ने उसे उतारने की जहमत भी नही की और अपना तना हुआ लिंग उसके अंदर पेल दिया….ऐसे तो मेरी के थूक ने उसे बहुत चिकना बना दिया था फिर भी वो सालो से किसी मर्द का लिंग अपने अंदर नही ली थी वो चीख ही गई होती अगर मेरी ने उसकी हालत भाप कर उसके होठो पर अपने होठ को नही रख दिया होता,विजय का मूसल एक पिस्टल की तरह अंदर बाहर हो रहा था,काव्या की आंखे फट कर बाहर निकालें को हो गयी थी पर मेरी के सहलाने से और विजय के धक्कों से वो फिर से गीली हो गयी ….
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