RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
जुनून प्यार या हवस,जो भी हो एक रात तो इन सबमे ही चली गई,सुबह सभी को इंतजार था,इंताजर इस पीढ़ी को एक दूसरे से मिलाने का था,वीर ,बाली,गजेंद्र,महेंद्र के बच्चे अपने भाई बहनों से मिलने को बेताब थे,ठाकुरो की हवेली तो दुल्हन की तरह से सजी हुई थी,मेहमानों का आना जाना सुबह से शुरू हो चुका था,सभी व्यस्त थे अपने अपने कामो में लगे हुए थे.सीता मौसी अपने बच्चे से मिलने को बेताब थी तो सुशीला अपने पति से….वही तिवारियो की हवेली में भी हलचल सुबह से ही थी,सभी लोग तैयार बैठे थे,लेकिन एक शख्स की धड़कने बड़ी हुई थी वो थी खुसबू...उसे ये सोचकर ही डर लग रहा था की जब नितिन और सोनल को पता लगेगा तो अंजाम क्या होगा,के ये भी पता था की उनके बारे में विजय को भी पता चल चुका है,विजय का रिएक्शन कैसा होगा….और सबसे ज्यादा अजय ...आज वो अजय से मिलने वाली थी,सोनल भी उसे अजय के नाम से चिढ़ाने लगी थी,लेकिन जब उसे पता लगेगा की वो उसके बुआ का ही लड़का है तो क्या रिएक्शन होने वाला है ये सोचकर ही उसका दिल जोरो से धड़क रहा था…..
आखिरकार सभी तैयार होकर वहां पहुच जाते है,,,जोरो से उनका स्वागत होता है….सभी बच्चे..
तिवारी परिवार का परिचय एक बार और दे देता हु…
दादा रामचंद्र,उसके 3 बेटे,गजेंद्र,महेंद्र और वीरेंद्र..वीरेंद्र मर चुका है,गजेंद्र के दो बच्चे -नितिन और खुसबू,महेंद्र के 3 -राकेश ,भूमिका,और धनुष ….
तीनो भाइयो की पत्नियां भी साथ आयी थी लेकिन उनका नाम समय पर ही बताऊंगा…
गाड़िया रुकती है और सभी बाहर आते है ,उनके हाथो में बड़े बड़े गिफ्ट के पैकेट थे,और आंखों में अपार खुशी...ठाकुरो का परिवार भी आरती और फूल मालाएं पकड़े उनका स्वागत करता है,तभी नजरे मिलती है और कुछ चहरो से खुशी अचानक ही गायब हो जाती है,हँसने की आवाजे तो ऐसे चारो ओर फैल रही थी पर फिर भी एक शांति सी कुछ मनो में चल रही थी,उन्हें समझ ही नही आ रहा था की कैसे रिएकट करे …
तभी अचानक अजय की नजर खुसबू पर पड़ती है और वो उसे पहचानने की कोशिस करता है,और तभी निधि की आवाज आती है,....
“अरे आप तो वही है ना वो पब वाली...जो अजय भइया को लाइन मार रही थी…आप तो सोनल दीदी की सहेली है ना …”
चहरो पर पसीने आ जाते है और अजय को भी सब याद आता है ,वो निधि के माथे में एक चपत मरता है,
“कुछ भी बोलती है,”
चोरी पकड़े जाने पर अनजान बनने की जरूरत अब किसी को भी नही थी,सोनल और खुसबू गले मिलते है वही रानी और भूमिका भी ,एक दूसरे से गले मिलते है,सोनल नितिन को हल्के से हाय कहती है,लेकिन जब बात विजय और नितिन की आती है तो विजय अब भी फैसला नही कर पा रहा था की वो क्या करे….नितिन अपना हाथ विजय की ओर बढ़ाता है,लेकिन विजय बस उसे घूरे जा रहा था…
तभी एक हाथ पीछे से विजय के कंधे पर आता है...वो बाली था.
“बेटा हमारे बीच जो भी गलतफहमियां थी उसे छोड़कर अब हाथ मिलने का समय आ गया है,ये तुम्हारा भाई है,इससे हाथ मिलाओ ...विजय की इस हरकत से सभी थोड़े स्तब्ध थे,अजय को भी ये समझ नही आ रहा था की विजय ऐसा क्यो कर रहा है,लेकिन सोनल और नितिन और खुसबू सब कुछ समझ रहे थे,विजय जैसे अचानक ही तंद्रा से उठता है,वो सीधे सोनल की ओर देखता है,सोनल हल्के से अपना सर सहमति में हिलती है और विजय नितिन के आंखों में देखता हुआ उसके हाथो से अपना हाथ नही मिलता बल्कि सीधा उसके गले से लग जाता है,सभी को इससे सकून आता है,और विजय नितिन के कानो में हल्के से कहता है…
“मुझसे अकेले में मिलना “
नितिन कुछ भी नही बोल पता उसकी खामोशी ही असल में उसकी हा थी,स्थिति कुछ अजीब सी तो थी लेकिन सभी उसे सम्हालने में लगे थे….
“कुदरत का करिश्मा देखो सभी भाई -बहन एक ही जगह पर पढ़ रहे थे और ना इन्हें कुछ पता था ना ही हमे ,,,चलो अच्छा है ये एक दूसरे को पहले से ही जानते है…”
गजेंद्र ने कहा….अजय ने सभी को अंदर बुलाया ,और फिर मेहमान ,खाना, परिचय, और भी बहुत कुछ सबसे ज़्यादा इंजॉय धनुष और निधि कर रहे थे,सभी उनपर जी भरकर प्यार भी लुटा रहे थे,सुमन का भाई वरुण जैसे इन सबसे अछूता अकेले बैठा था उसे तो अपने पिता से मिलने की भी कुछ खास खुसी नही हुई,उसे ये सब ऐसा लग रहा था जैसे की सब दिखावा हो रहा है,निधि और धनुष ने उसे कई बार पकड़कर ले जाने की कोशिस की ,कभी उसे डांस करने की कोशिस करते तो कभी उसे किसी गेम में पार्टिसिपेट कराने की कोशिस करते लेकिन वो साला पूरा सुस्त आदमी था,उसे अपनी किताबे ज्यादा याद आ रही थी और उसकी मा ने उसे सख्त हिदायत दे रखी थी की आज पढ़ाई नही करेगा...उसे असल में सबपर ही बहुत गुस्सा आ रहा था,उसे ये सब सिर्फ वक़्त की बर्बादी ही लग रही थी,वो बेचारा करता भी तो क्या,आज इतने सालो के बाद एक आदमी उसपर इतना प्यार देखके कहता है की वो उसका बाप है,उसे तो बचपन से ही बस अपनी माँ और बहन का पता था,और पता था तो बस इतना की जिंदगी कितनी कठिन है,मुफलिसी क्या होती है,जमाने की सामने जब कोई आपकी जवान बहन को जलील करता है ,मा को गली देता है तो वो दर्द क्या होता है,छोटी सी उम्र में ही उसे वो पता चला जो शायद लोगो को अपनी जिंदगी भर में पता नही चलता ,वो था दर्द एक अजीब सा दर्द ,जब से उसे समझ आयी थी उसे बस इतना ही समझ आया की दर्द क्या होता है और जीने के लिए कितनी मेहनत करनी पड़ती है….और उसे ये ही बताया गया था की उसे पढ़ना है इतना की वो अपनी बहन और माँ की अच्छे से परवरिस कर सके,उनकी जिम्मेदारी उठा सके…
वो जिम्मेदारी का अहसास उसमें बचपन से भर दिया गया था,सुमन उसे कभी भी कोई काम नही करने देती सब कुछ उसने अपने ही नाजुक कंधों में उठाया था,क्योकि वो चाहती थी की वो अपने भाई को खूब पढ़ाये और खूब बड़ा आदमी बनाये,उसकी मा लगभग उसे ये अहसास दिलाती की देख तेरी बहन कितनी मेहनत करती है सिर्फ इसलिए की तू पढ़ सके ….और इसी सब बातो का असर ये था की उसके लिए अगर जीवन में कुछ सबसे जरूरी था तो वो था पढ़ाई ….शायद सुशीला और सुमन भी ये कभी ना समझ पाते की वो वरुण को क्या बना दिए है,वो जज़्बातों से कोसो दूर हो चुका था,क्योकि उसे बचपन से भावनाओ से दूर रहना ही सिखाया गया था,नही तो शायद वो अपनी माँ और बहन की हालत को देखकर कुछ गलत रास्तो पर निकल पड़ता...बहुत ही खूबी से उसे पाला गया था और यही अब उसके लिए सबसे बड़ी मुसीबत बन गयी थी,सुमन और सुशीला भी समझ नही पाते थे की इसे इस माहौल में कैसे ढाले वो तो अब भी वही पुराना वरुण था जो झोपड़ों में पला था,ऐसा नही था की वो संवेदनहीन हो उसे भी दुनिया की समझ थी पर एक अजीब सा डर उसे घेरे रहता एक असुरक्षा की भावना….की ये जो सब अच्छा है वो खत्म हो जाएगा और उसे फिर से वही जाना पड़ेगा जहा से वो आया है और इसलिए उसे पड़ना है और कुछ ऐसा बनाना है की वो अपनी माँ और बहन को एक अच्छी सी जिंदगी दे सके जो किसी की खैरात ना हो जो उनकी हो ….
और ये उसका बाप जो ना जाने कहा से अभी अचानक ही प्रगट हो गया है,क्या पता फिर से वो कब यहां से चला जाएगा…और आज माँ को क्या हो गया है हमेशा तो खुद ही कहती थी की तू बस पढ़ यही हमारी जिंदगी बदलेगा और अब पुस्तक से ही दूर कर दी….
वो बेचारा अपने सोच में बैठा हुआ था,एक कोने में एक कुर्सी में,उसने कभी भी कोई ढंग का कपड़ा भी तो नही पहना था और आज उसे जबरदस्ती कोई महंगा सा जैकेट पहना दिया गया था वो इसमें भी बहुत ही अनकंफर्टेबल फील कर रहा था ,
तभी उसके पास एक अधेड़ उम्र की एक औरत आकर बैठी ,
“हैल्लो ,क्या नाम है तुम्हारा,तुम बजरंगी भइया के बेटे हो ना,कितने क्यूट हो…”
उस महिला ने उसके गालो को खिंचा और वो गुस्से से उसे देखा ,सफेद साड़ी में लिपटी हुई वो महिला,वरुण शायद उसके हुस्न की कदर ना जानता हो पर वो बहुत ही खूबसूरत थी,मांग में सिंदूर नही था,हाथो में कुछ ही चूड़ियां थी वो भी सादी ,एक पतली सी घड़ी,और चहरे से बहुत सी शालीन और पढ़ी लिखी लग रही थी,गोरा रंग पर कोई भी श्रृंगार नही ,उज्वल चहरा ,और भरा हुआ शरीर ,लेकिन वरुण ने तो शायद उसके चहरे को ही देखा वो भी गुस्से से और वो फिर से आगे देखेने लगा..
“अरे बहुत गुस्से में दिख रहे हो ,आदत डाल लो तुम्हे मेरे ही साथ रहना है,”वो खिलखिलाती है और उसके कसे हुए सुंदर दांतो की पंक्तिया चमक उठती है,
वरुण भी उसे घूरकर देखता है,
“हा तुम्हारी माँ और तुम अब बजरंगी भइया के साथ ही रहोगे ना ,तो मुझसे दोस्ती कर लो मैं तुम्हारे काम आऊंगी “
वो हँसते हुए उसके सामने अपना हाथ बढ़ाती है पर वरुण कोई भी इंटरेस्ट नही दिखता …
“और मैं तुम्हे पढ़ाऊंगी भी,मुझे सब आता है,जो तुम्हे सीखना है “इस बार उसकी बात में थोड़ी शरारत और थोड़ी मदहोशी भी थी जिसे वरुण समझ ही नही पता लेकिन उसके चहरे को वो एक बार फिर से देखता है उसे अपने स्कूल टीचर की याद आ जाती है और वो खुस होकर उससे हाथ मिलता है,चलो कोई थो था जो उसे पढ़ाई की बातें कर रहा था….
तभी बाली और बजरंगी मंच पर चढ़ते है ,और बाली माइक पकड़कर सुमन और किशन की सगाई की अलाउंसमेन्ट कर देता है,सभी खुस हो जाते है,सुमन और किशन को स्टेज में बुलाया जाता है,सुमन इधर उधर देखती है उसे वरुण एक कोने में बैठा दिखता है,वो पहले दौड़कर वरुण के पास आती है ,
“अरे मेरे साथ चल आज मेरी सगाई है और तू यहां बैठा है,”
वो उसका हाथ पकड़कर उसे खड़ा करती है वरुण बड़े ही बेमन से खड़ा होता है,
“चाची जी आप भी चलिए ना …”
वो उस महिला को देखकर कहती है,
“हा बेटा तुम चलो मैं आती हु”सुमन वरुण को लेकर वहॉ से चली जाती है और वो महिला उन्हें जाते हुए देखती है,उसकी आंखों से शायद कोई भारी दर्द फूटने को होता है पर वो जैसे तैसे उस दर्द को सम्हालती है,उसके चहरे पर खुसी तो आ ही नही पा रही थी ,पर वो अपने आंसुओ को निकलने से जैसे तैसे रोकती है,और स्टेज की तरफ देखने लगती है,इस भीड़ में कोई ऐसा नही था जिसे उसकी फिकर थी,सभी अपने बच्चों के साथ खुस थे ,हा ये उसका ही परिवार था लेकिन शायद सिर्फ कहने को….
ये महिला वीरेंद्र की विधवा थी,...नाम था आरती,,,
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