RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
निधि और सुमन को इसका कोई भी ज्ञान नही था उन्होंने तुरंत उनके पैर छू लिए पर विजय तो सब जानता था और उन्हें ही अपने मा बाप का कातिल मानता था,वो कैसे उसके पैर छुता विजय की नाराजगी तो अजय समझ चुका था पर वो उसे कुछ भी नही कहा…
महेंद्र ना चाहते हुए भी अपने भांजे भांजियों को आशीर्वाद दे डाला ,निधि को देखकर तो उसके आंखों में आंसू ही आ गए बड़ी ही मुश्किल से वो उसे सम्हाल पाया ,निधि में उसे अपनी बड़ी बहन का चहरा दिखा उसकी वही लाडली बहन जिसके लिए तीनो भाई अपना सबकुछ हस्ते हस्ते नॉछवार कर देने को तैयार थे ,पर एक गलती और सब कुछ बदल गया इतने सालो से वो दर्द उसके अंदर था वो आज फिर से ताजा हो गया और वो ना चाहते हुए भी निधि के बालो बड़े प्यार से सहला गया,बड़ी ही मुश्किल से उसने अपने आंसुओ को सम्हाल था,लेकिन निधि ने अपने बालो पर रखे हाथ से आने वाले प्यार के अहसास को समझ लिया और वो बड़े ही प्यार से महेंद्र को देखने लगी ,
“मामाजी ….हमे तो पता भी नही था की हमारे मामा भी है..आप कहा थे मामाजी..”निधि की बातें महेंद्र को फिर से चुभ गयी ,
“इतने दिनों तक आपको क्या हमारी याद नही आयी और जब माँ चली गयी तो क्या आपने हमसे रिश्ता ही खत्म कर दिया”
निधि की बातो से महेंद्र ही नही साथ खड़े सभी लोग हस्तप्रद थे क्योकि जवाब किसी के भी पास नही था,पर निधि ने जो किया वो महेंद्र के लिए सहन के बाहर था,वो जाकर सीधे महेंद्र के गले से लग गयी ….और रोने लगी ...महेंद्र को अपनी बहन की छवि उसमे दिख रही थी पर उसके इस तरह उससे लिपटना उसके लिए बहुत ही भावुक हो गया वो अपने को रोक नही पाया और फुट फुट कर रोने लगा जैसे कोई जवालामुखी सा आज फुट गया हो ….उन्हें दूर से देख रहे कलवा,चम्पा और बजरंगी भी वहां आ चुके थे और इस नजारे को देख कर थोड़े भावुक हो गए थे...उसके साथ आया उसका बेटा भी बड़े ही आश्चर्य से उन्हें देखे जा रहा था,पर कुछ कह नही पा रहा था ,आज तक उसने अपने पिता को दुसरो को रुलाते ही देखा था पर ये लोग कौन थे जिसे देखकर उसके पिता यू रो रहे है…
महेंद्र ने निधि को गले से लगा कर अजय को भी अपने पास बुलाया और उसे अपने गले से लगा लिया विजय को ये बिल्कुल भी पसंद नही आ रहा था पर वो मजबूरी में वहां खड़ा था …
“मेरे बच्चों मुझे माफ कर देना मेरे बच्चों ,हमारे ही कारण मेरी बहन को इतना दुख उठाना पड़ा,वो हमसे अलग हो गयी वो इस दुनिया से चली गयी हमारे ही कारण …..”
विजय को और भी गुस्सा आया ,महेंद्र अजय और निधि से अलग हुआ और दोनो के माथे पर अपना हाथ फिराया और अजय की तरफ देख कर बोला,
“मुझे पता है की तुम शायद यही सोचते होंगे की हमने ही तुम्हारे माता पिता का एक्सीडेंट करवाया है पर मेरा यकीन मानो हम आज भी अपने बहन से उतना ही प्यार करते है जितना पहले करते थे ,आज भी हमारी प्रोपर्टी का एक हिस्सा उसके नाम पर है ,लेकिन भाई (वीरेंद्र ) की मौत के बाद मैं और भइया (गजेंद्र ) तुम्हारे पापा और चाचा से बदला लेना चाहते थे जो भी हुआ पर हम अपनी बहन को चोट भी नही पहुचा सकते थे ……….”अचानक ही महेंद्र की आंखे लाल हो गयी ..
“जिसने भी मेरी बहन को मारा है मैं उसे कभी नही छोडूंगा,हम आज भी उसकी तलाश में है…”
ये वहां खड़े सभी लोगो के लिए बड़ा सा शॉक था क्योकि सभी को लगता था की तिवारियो ने ही वो एक्सीडेंट करवाया था..पर अजय को ये बात पता थी
“मुझे पता है मामाजी की आप लोग इतना नही गिर सकते की अपनी ही बहन को इस तरह से ……...लेकिन जिसने भी ये किया है उसे मैं ढूंढ कर रहूंगा,पर अब ये दुश्मनी मुझसे बर्दाश्त नही होती हमे एक हो जाना चाहिए कितनो दिनों तक हम यू ही लड़ते रहेंगे और इस जहर से अपने परिवार के लोगो की खुशियो की बलि देंगे...प्लीज् मामाजी अब ये बंद होना चाहिए ..”महेंद्र ने अजय को ध्यान से देखा वही चमक जो वीर में थी वही सोच,....अब उसे अपने और अपने भाई के ऊपर ही गुस्सा आ रहा था ,पर शायद अब भी सब कुछ ठीक हो सकता था...उसने अजय के कन्धे पर अपना हाथ रखा…
“हाँ बेटा अब ये दुश्मनी खत्म होनी चाहिये पर भईया ...मैं अपने तरफ से पूरी कोसिस करूँगा..और अभी भैया विदेश में है शायद कुछ ही दिनों में वो आने वाले है ,जब वो आय तो तुम सब एक बार हमारे घर जरूर आना ,पिताजी तुम्हे देखकर बहुत खुस होंगे…”
अब अजय ने उस लड़के की तरफ चहरा किया …
“बिल्कुल मामाजी ,और ये हमारा भाई है ,अब तुम अपनी बहन के साथ ही पढोगे क्या नाम है तुम्हारा “
“जी धनुष “
सभी के चहरो पर हसी और मुस्कान था यहां तक की विजय की आंखों में भी कुछ आंसू आ चुके थे हालांकि विजय ने उसे छुपा लिया था…
पर एक चहरा किसी को घूर रहा था...वो था बजरंगी ….
सुमन को देखने के बाद से ही उसे कुछ अपनापन सा महसूस हो रहा था ,कलवा ने इस बात को ताड़ लिया और इससे अच्छा समय क्या हो सकता था इस राज को खोलने के लिए ,उसने बजरंगी के कंधे पर हाथ रखा
“भैया जब ये अपने इतने पुराने दुश्मनी को रिस्तो के प्यार की खारित भुला सकते है तो हम क्यो नही ,”
बजरंगी ने कलवा का हाथ अपने कंधे से हटा लिया,
“ये दुश्मनी नही है कलवा तुमने जो किया उसे विश्वासघात कहते है”
महेंद्र को उनकी बातें समझ आ रही थी क्योकि उसने ही उन दोनो के बीच ये आग लगाई थी ,बच्चों के इस प्यार ने उसे पिघला दिया था वो अब इन भाइयो के बीच भी सुलह करना चाहता था ,वो आगे बढ़कर बजरंगी के कंधे पर हाथ रखता है …
“जिस तरह से आज तक सभी इसी गलत फहमी में थे की वीर का एक्सीडेन्ट हमने कराया है उसी तरह तुम भी एक गलतफहमी में जी रहे हो बजरंगी असल में ऐसा कुछ भी नही था जैसा तुम सोच रहे हो …..इनके बीच का रिश्ता बहुत ही पवित्र था पर शायद हम ही थे जो तुम्हे इस बात को मानने नही दिए हमारा भी इसमें एक स्वार्थ था जो तुम समझ सकते हो,पर यकीन मानो ये बस एक गलतफहमी ही थी जिसकी सजा तुम दिनों ने भुगती ही ……”महेंद्र के इतना कहने से बजरंगी थोड़ा समझ तो गया पर उसे इस बात से बिल्कुल भी फर्क नही पड़ रहा था की उसके और कलवा के संबंध कैसे है उसे तो हमेशा से ही सुशील और अपने बच्चों की तलाश थी जिसे उसने अनजाने में ही अपने से अलग कर दिया था...बजरंगी ने हा में सर हिला दिया पर वो ग्लानि का भाव जो उसे इतने दिनों तक खाये जा रहा था वो कैस कम होता …...उसकी दुविधा कलवा समझ चुका था..
“भैया ये आपकी सुमन है जिसे हम दोनो सालो से ढूंढ रहे है वो हमे अभी अभी ही मिली ,आपकी बेटी सुमन “
सुमन और बजरंगी दोनो के लिए ये शायद जिंदगी का सबसे हसीन छन था पर वो उसे कैसे इजहार करे ये उनके समझ से बाहर था....वो बस एक दूजे को देख रहे थे देख रहे थे और बस देख रहे थे...ना आंखों में आंसू ना होठो में कोई भी मुस्कुराहट बस एक अजीब सी खामोशी सी छाई हुई थी ….की अचानक बजररंगी सुमन के पास आकर उसे अपने सीने से लगा लेता है और वो धार टूट जाती है जो अब तक सम्हाल कर रखी गयी थी ….बस आंसू और मोहोब्बत…
प्यार हवाओ में था और बस प्यार था ….ना जाने कितना समय बीत गया जब चपरासी डरते हुए उनके पास आया …
“ठाकुर साहब ,तिवारी साहब वो ...एडमिशन ..”
उसे देख सभी हंस पड़े और फिर से महेंद्र ने सुमन, निधि और धनुष को अपने साथ लेकर प्रिंसिपल की आफिस की तरफ चल पड़ा साथ ही अजय और विजय उसके पीछे चलने लगे ….
सभी अंदर गए काव्या सभी को देख कर खड़े हो गई, विजय की आंखें जैसे ही काव्य के ऊपर गई उसके होठों पर एक मुस्कुराहट आ गई, दोनों की नजरें मिली लेकिन काव्या बहुत डरी हुई थी, ठाकुरों और तिवारियो की लड़ाई के बारे में उसे पता था जिसके कारण वह घबराई हुई थी घबराती भी कैसे नहीं इस इलाके में उनके जितना दमदार ताकतवर दूसरा कोई नहीं था काव्या ने ऐसे तो ठाकुरों का रुतबा भी देखा था, काव्या को देखते ही सभी लोगों ने उसे नमस्ते किया काव्या घबराई हुई अपनी जगह से उठकर आगे को आ गई, दोनों परिवारों के सदस्यों को एक साथ देख कर काव्य को ऐसे तो कुछ समझ नहीं आया इस पर विजय ने हल्की सी हंसी के साथ आंखों ही आंखों में उसे समझाया,
“ अरे मैडम आप खड़ी क्यों हो गई बैठीये बैठिए”
महेंद्र ने तत्परता से कहा,
“ हम अपने बच्चों का एडमिशन कराने लाए हैं अब इनका भविष्य आपके हाथों में मैंने आपके बारे में बहुत सुना है आप बहुत ही स्ट्रिक्ट और मेहनती शिक्षक हैं ऐसा मुझे बताया गया है, आशा करता हूं कि आप हमें निराश नहीं करेंगे,”
काव्य जैसे-तैसे अपने को संभाल रही थी, विजय ने आगे बढ़कर सब का परिचय दिया और काव्य से निधि सुमन और धनुष का परिचय कराया, एडमिशन की सारी फॉर्मेलिटी पूरी होने के बाद सभी वहां से वापस चले गए बाहर जाकर सभी फिर से एक बार इमोशनल से हो गए,
“ मामाजी अभी आप हमारे घर आइए साथ में नानाजी को भी लाइए हम बच्चे आपका प्यार पाने के लिए तरस रहे हैं,”
अजय ने फिर भरी हुई आंखों से कहां,
मैंने अजय के कंधों को कसकर पकड़ा और अपने गले से लगा लिया,
“ बेटा बात तो तुम्हारी ठीक है लेकिन बाली इस बात से कभी सहमत नहीं होगा मैं उसे जानता हूं वह अपने भाई के लिए जान छिड़कने वाला था शायद वह हमें कभी माफ न करें, वह कभी यह मानने को तैयार नहीं होगा उसके भाई का कत्ल हमने नहीं करवाया है,”
“ मामा जी मैं चाचा को समझाऊंगा वह मेरी बात समझ जाएंगे मैं चाहता हूं कि हम दोनों परिवार साथ साथ रहें हम परिवार हैं और हमें परिवार की तरह रहना है,”
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