RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
इधर काव्या को समझ नहीं आ रहा था की आखिर वो उसे बोले क्या ,
"तो तुम सोनल के भाई हो ,"अपने सूखे गले से थूक की एक घुट गटकते हुए कहा
"जी मेडम जी " विजय के चहरे पर वही मुस्कान अब भी थी
"अच्छा यहाँ पर गुंडा गर्दी करने आये हो ,मैं इस कॉलेज का अनुशासन कभी ख़राब नहीं होने दूंगी "काव्या का धयान बार बार उसके मुसल पर चले जाते थे,
"मैं यहाँ करने तो कुछ भी नहीं आया था ,पर अब लग रहा है कुछ तो करना ही पड़ेगा "विजय काव्या के थोड़े और पास जाता है ,उसका चहरा काव्य के चहरे के बिलकुल नजदीक था ,काव्या की भार्री होती सांसे विजय के चहरे से टकरा रही थी,काव्या के नथुनों में एक अजीब सी गंध आई मर्दाना शारीर की ,वैसे ही शारीर की जिसकी वो भूखी थी ,उसने एक गहरी साँस लेकर पूरी खुसबू अपने अंदर उतार ली ,विजय तो खिलाडी था उसे लडकियों से खेलना बहुत अच्छे से आता था,वो अपने हाथ काव्या के कमर पर ले जाता है उसे जकड़ता नहीं बल्कि हलके से उसके पेट पर हाथ चला देता है ,काव्या के शारीर में एक झुनझुनाहट सी दौड़ जाती है ,उसके मुह से एक गर्म आह छूटती है ,विजय अपने हाथ बढाता है और बड़े ही हलके हाथो से उसे ऊपर की ओर ले जाने लगता है वो उसके साड़ी के पल्लू को गिरा देता है उसके कसे हुए ब्लाउस से उसके तने हुए भराव लिए हुए स्तन विजय के सांप में एक जोरदार हलचल मचा देते है और वो उसकी कमर को पकड़ कर उसे अपनी ओर खीच लेता है ,
"आहाह्ह्ह नहीं बाह र सभी खड़े है ,"काव्या के मुह से अनायास ही निकल जाता है ,
"अरे मेडम जी दुनिया की इतनी भी क्या चिंता ,उन्हें खड़ा रहने दो ,मेरा भी तो खड़ा है उसका कुछ सोचो ,"वो उसे और कसकर अपनी ओर खिचता है ,काव्या की कमर जाकर विजय की कमर से सट जाती है उसका लिंग सीधे उसकी योनी से टकराता है की काव्या की आह ही निकल जाती है ,विजय उसके मासल निताम्भो को अपने हाथो से भरकर जोर से अपनी ओर खिचता है ,फिर उसमे भरा मांस अपने हाथो से मसलता है काव्या ऐसे तो विरोध ही नहीं कर पा रही थी पर उसे अपने सम्मान की चिंता होने लगी ..........
ना जाने कितने सालो से वो अपने काम की आग को दबा कर रखी थी,जब उसने पहले पहल नितिन को देखा था तभी उसके काम की अग्नि ने सर उठाया उसे एक मर्द दिखा जो उसे संतुस्ट कर सकता था ,पर नितिन तो जैसे सोनल का दीवाना था और उसका शांत स्वभाव ...........बहुत कोसिसो पर भी वो कुछ नहीं किया ,और एक ये था नितिन के टक्कर का मर्द साले ने आते ही .....हे भगवन मैं क्या करू ,कैसे सम्हालू खुद को मैं अपने को रोक क्यों नहीं पा रही ,कितना मजबूत है ये ,कितना जालिम है हे भगवान ...काव्या अपने ही खयालो में खोयी थी और विजय ने उसे मसलना शुरू कर दिया ,उसके पिछवाड़े को मसल मसल कर लाल कर दिया इतने कोमल की विजय को मजा ही आ गया था ,लेकिन काव्या जैसे भी थी वो इस कॉलेज की प्रिंसिपल थी और इस समय वो अपने ऑफिस में थी जहा कोई भी आ सकता था ,ऑफिस का गेट अब भी अंदर से बंद नहीं था इसका सवाल ही पैदा नहीं होता ,कोई भी बिना नोक किये ऐसे तो अंदर नहीं आता पर अगर आ गया तो ..........क्या करू इतने सालो की मेहनत और परिश्रम से ये इज्जत बनायीं है और एक ही पल में सब खत्म हो जाएगा ,पर इस आग को बुझाने वाला भी तो इतने सालो बाद ही मिला है ,...हे भगवान .....
काव्या जहा भगवान् से सलाह मशवरा कर रही थी वही विजय तो अपनी ही धुन में था उसे क्या पड़ी थी इज्जत की या किसी और चीज की ,वो तो काव्या के अंगो से ऐसे खेल रहा था जैसे उसकी ही जागीर हो वही काव्या के अंग भी उसे अकड़कर समर्थन दे रहे थे ...विजय के हाथ काव्या के पीठ तक पहुचता है वो उसके ब्लाउस के चैन को खोलने लगता है ,काव्या जैसे बेसुध हो चुकी थी उसे इतना मजा आ रहा था की वो कुछ नहीं कर पा रही थी उसका दिमाग अब भी एक अजीब द्वन्द में फसा था ,पर वो उसे रोक नहीं पा रही थी ...
विजय काव्य के ब्लाउस की चैन खोलकर उसके ब्रा की हुक भी खोल देता है ,जैसे अचानक ही काव्या को होस आया वो उसके बांहों में मचलने लगी ,
"प्लीज् छोड़ दो ना ये ऑफिस है मेरी इज्जत है "
विजय उसके चहरे को देखता है उसकी सूरत रोनी सी हो गयी है ,ये उस मज़बूरी के कारन जो काव्या को जकड़े हुए था ,वो बेचारी चाहती भी थी और नहीं भी चाहती थी ,,,दोनों ही पक्ष बड़े ही मजबूत थे ....उसे जितना प्यार अपनी इज्जत से था उतना ही अपने शारीर की आग को बुझाने की तलब भड़क उठी थी ,इसी द्वंद ने उसके आँखों में वो पानी ले आया था ,विजय को उसकी मज़बूरी से ऐसे तो कोई भी फर्क नहीं पड़ने वाला था पर उसके चहरे पर वो पहली बार एक मासूमियत देखता है जो उसे भा जाता है ,वो उसके सर को अपने हाथो में लेकर अपने होठो को उसके होठो से सटा देता है ,काव्या तो ऐसे भी सब कुछ हार ही चुकी थी ,वो उसके होठो में समाते चले गयी ,दोनों के होठ एक दूजे में खो ही गए काव्या की आँखे बंद हो गयी और वो अपनी सभी दुविधा से मुक्त हो गयी उसे तो बस अब विजय में सामना था उसकी हो जाना था ..............साला ये प्यार और वासना बड़े ही अजीब तरह से एक दुसरे से मिलते है एक पतली लकीर होती है दोनों के बीच ,जब प्यार उमड़ता है तो एक समर्पण का भाव पैदा होता है और जब वासना जागती है तो कुछ पाना चाहता है,पर प्यार कब वासना बन जाय और बासना कब प्यार बन जाय कोई नहीं कह सकता ...यहाँ भी कुछ ऐसा ही हो रहा था काव्या और विजय वासना के एक तूफान से शुरू हुए थे और प्यार के एक झोके पर आकर खो जा रहे थे ................
दोनों की लबो की गहराइया एक दूजे में मिल रही थी वो काव्या के मन में समर्पण आ गया था वही विजय के मन से उसे पाने का भाव चला गया था ,दोनों ही पागल हो रहे थे पर उतावले नहीं ,विजय हाथ बड़ा कर उसकी नग्गी पीठ को सहलाने लगा ,उसके दांत काव्या के होठो को हलके हलके से काटते थे..जिससे काव्या के अंदर भी एक हल्का हल्का सा नशा छा रहा था ,वो भी अब विजय के बालो को अपने पंजे ने दबाये जा रही थी और उसके चहरे को अपनी ओर खीच रही थी ,
इधर बहार सभी बेचैन थे की आखिर अंदर हो क्या रहा होगा ,सोनल और किशन के अलावा,
सबसे जादा बेचैन तो खुशबु लग रही थी ,तभी सामने से एक चपरासी हाथ में फाइल लेकर आता हुआ दिखाई दिया ,वो अपनी ही धुन में मगन सा सर निचे किये चला आ रहा था ,किशन की नजर उसपर पड़ी उसने सोनल को इशारा किया सोनल भी थोड़ी सी डर गयी पर जैसे ही वो चपरासी उनके पास पंहुचा ,
"भईया आराम से मेडम बहुत गुस्से में है आज ,"सोनल ने तीर छोड़ दिया ,उसका उद्देश्य था की वो चपरासी अंदर ना झाके और बाहर से ही नोक करे ताकि विजय और मेडम को सम्हालने का थोडा समय मिल जाय ,मेडम के गुस्से में होने की बात सुनकर वो थोडा सचेत हो गया और धीरे धीरे केबिन की तरफ बढ़ने लगा ,जैसे ही उसने दरवाजा नोक किया ...
अंदर काव्या अपने नशे से छुटी और उसने विजय को झटके से अपने से अलग किया और अपने कपडे ठीक किये विजय पहले की तरह उससे दूर खड़ा हो गया था ,उसके होठो काव्या के लिपस्टिक से सने हुए थे ,वही काव्या का लिपस्टिक पूरी तरह से फ़ैल चूका था ,वो प्यार से विजय को देखती है और अपने पर्स से एक रुमाल निकल कर उसके होठो से अपने लिपस्टिक को पोछती है वही फिर एक छोटा सा दर्पण निकल कर अपने होठो के लिपस्टिक को भी सही करती है और अपने बालो को सवरती है ,,,इशार चपरासी देरी होते देख फिर से एक बार दरवाजे में दस्तक देता है ,
"कौन है क्या हो गया "एक गरजती हुई आवाज उसके कानो में पड़ती है ,काव्या को सचमे उसपर बहुत गुस्सा आ रहा था ,वो एक शेरनी से गरजती है जिससे वो बेचारा सहम सा जाता है ,
"मेडम वो आज शिक्षा मंत्री का दौरा होना है यहाँ ,सर ने ये फाइल तत्काल देने को कहा था ,वो दरवाजा खोलने की भी हिम्मत नहीं करता ,वही काव्या के दहाड़ से खुसबू और बाकियों का दिल भी थोडा सा काप जाता है उन्हें लगता है की ये विजय को लेकर गुस्से में है ,सभी जानते थे की वो नितिन को कितना लाइन मारती थी ....
"ठीक है आ जाओ "चपरासी जब अंदर पहुचता है विजय सर निचे किये खड़ा होता है और काव्या अपने चेयर पर बैठी होती है ,
"मेडम ये "
"ह्म्म्म कितने समय आ रहे है मंत्री जी "
"मेडम मंत्री है कभी भी पहुच सकते है " तभी एक सायरन की आवाज सुनाई देती है
"मेडम लगता है वो आ गए "
"ह्म्म्म और बहार ये क्या भीड़ लगा के रखा है सबने सबको भेजो यहाँ से "चपरासी जल्दी से जाता है और सबको वहा से जाने को कहता है
"क्या हो रहा है अंदर "खुसबू बड़े ही बेचैनी से पूछती है
"वो लड़का सर झुकाए खड़ा था ,और मेडम बहुत गुस्से में थी ,लड़का तो आज बच गया मंत्री जी आ रहे है ना ,चलो सब यहाँ से भागो जल्दी "सभी वहा से ना चाहते हुए भी चले जाते है
इधर काव्या उठकर विजय से लिपट जाती है ,
"सॉरी जान पर आज कुछ नहीं वो बस पहुचते ही होंगे ,"
"कोई बात नहीं तुम्हे मैं इतनी जल्दी तो नहीं छोडूंगा ,पर क्या करू कल ही गांव जाना पड़ेगा,पता नहीं फिर कब मिल पाए हम "काव्या का चहरा उदास हो जाता है वो उससे अलग होकर थोड़ी दूर चले जाती है और उदास आँखों से विजय को घूरने लगती है विजय आगे बदने ही वाला होता है की दरवाजा फिर से खुलता है इसबार बिना किसी भी पूर्व अनुमति के ,,,,कुछ लोग सीधे अंदर आ जाते है ,
"क्या मेडम जी आज तो आप हमारे स्वागत में भी नहीं आई "एक अधेड़ सा शख्स जो इस राज्य का शिक्षा मंत्री था ललचाई नजर से काव्या के भरपूर जवानी को देखता हुआ कहता है ,इससे पहले की काव्य कुछ जवाब देती ....
"बिना अनुमति किसी के ऑफिस में घुस जाना कहा की सराफत है मंत्री साहब ,"विजय की आवाज से सब चौक जाते है वही काव्या के चहरे पर एक डर फ़ैल जाता है ,मंत्री को गुस्सा आता है वो मुड़कर उस शख्स को देखता है और उसे देखते ही उसका सारा गुस्सा काफूर ..........
"अरे विजय तुम यहाँ ,"विजय के चहरे में एक मुस्कान तैर जाती है ,
"हां आया था किसी काम से ,आप तो बड़े आदमी हो गए हो आते ही नहीं अब घर "दोनों आगे आकर एक दुसरे से हाथ मिलाते है ,
"अरे क्या करे यार जब विधायक थे तब तक तो समय मिल ही जाता था जब से मंत्री बने है साला समय ही नहीं होता ,आखरी बार कॉलेज के सिलसिले में ही तुम्हारे घर गया था ,अब तो कॉलेज बन गया है इस साल से तुम्हारी प्यारी बहन की पढाई भी शुरू हो जायेगी ,अजय का बहुत प्रेसर था इस कॉलेज का काम जल्दी करवाने को लेकर ..."सबी लोग इस लम्बे चौड़े शख्स को धयान से देखने लगते है ,कुछ लोग इसे पहचान भी लेते है या अंदाजा लगा लेते है की ये अजय ठाकुर का भाई है ,
"हा तो क्या मेरी बहन एक साल बर्बाद करती कॉलेज के लिए ,,ऐसे मुझे आपसे एक काम है अभी ,"
"हां बोलो बोलो "
"काव्या मेडम का यहाँ से ट्रांसफर करा दो "सभी चौक से जाते है बेचारी काव्या भी ,यहाँ शहर में पोस्टिंग के लिए उसने कितने पापड़ बेले थे और ये ....
"क्या???? यानि क्यों ?? कुछ गलती हो गयी क्या मेडम से "
"नहीं मंत्री मोहोदय हम चाहते है की ये हमारे कॉलेज का भार सम्हाले ,उस क्षेत्र का ये पहला कॉलेज है ,हम चाहेंगे की किसी बड़े ही जिम्मेदार और मेडम जैसी स्ट्रिक्ट प्रिंसिपल वहा रहे ,इससे वहा का स्तर बढेगा "विजय के चहरे में एक मुस्कान फ़ैल गयी वही काव्या ने एक झूठे गुस्से से विजय को देखा
"हा ये तो ठीक है ,पर वहा तो दूसरा प्रिंसिपल पहले से अपोइन्ट कर चुके है और अगले ही सप्ताह से वहा क्लास शुरू होने वाली है,ऐसे में ,और मेडम तो खुद ही बड़ी मुस्किल से शहर में तबादला कराया था वो फिर किसी छोटी जगह नहीं जाना चाहेंगी "इससे पहले कोई कुछ बोले काव्या बोल पड़ी
"मैं तैयार हु "वो इतनी उत्सुक्रता से कह गयी की सभी उसे देखने लगे वो थोड़ी असहज हो गयी ,विजय के चहरे में भी एक मुस्कान आ गयी ,वो थोड़ी सम्हली
"यानि मुझे वहा कोई दिक्कत नहीं होगी ठीक है मैं जाने को तैयार हु ,कम से कम बच्चो का भविष्य तो सुधरेगा "
"ओके ठीक है मैं आज ही उस प्रिंसिपल को यहाँ के लिए और मेडम को वहा के लिए ट्रांसफर आर्डर निकलवाता हु "
"धन्यवाद "विजय एक मुस्कान देता है और वहा से निकल जाता है ..........
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