Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
12-24-2018, 01:08 AM,
#17
RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
आधे घंटे कैसे बीते किसी को कुछ पता ही नहीं चला ,बाबा आँखे खोल चुके थे पर अभी भी गहरे ध्यान से उठाने के कारन उनकी आँखे अधखुली ही थी बड़ी मुस्किल से वो अपनी आँखों को खोल पा रहे थे ,जैसे संसार को देखना उनकी मज़बूरी हो वरना बस समधी में चले जाते ,वह मौजूद लोग बारी बारी से उनसे मिलाने लगे किसी ने कोई प्रश्न किया कोई अपना दुखड़ा रो रहा था ,किसी की कोई मांग थी बाबा सभी की बातो को ध्यान से सुनते और आराम से उत्तर देते थे ,लगभग आधे धंटे और निकल चुके थे बाबा की आँखे भी अब पूरी तरह से खुल चुकी थी और उनके बोलने में एक तीव्रता भी आ चुकी थी ,सभी के जाने के बाद बस ठाकुर परिवार ही वहा बचा था बाली ने जाकर उनके चरण स्पर्श किये सभी ने फिर उसका अनुकरण किया ,
"कहो बाली कैसे हो "
"सब आपकी कृपा है बाबा कालवा से मिलाने आये थे ,"बाबा के चहरे पर एक मुस्कान आ गई 
"ह्म्म्म और तुम कैसे हो अजय "
"अच्छा हु बाबा "
"बहुत दिन हुए इधर आये हुए ,"अजय ने अपना सर झुका लिया 
"हा बाबा बहुत दिन हो गए "बाली ने डॉ और बाकियों का परिचय दिया उन्होंने सभी का अभिवंदन किया ,डॉ आज बहुत प्रसन्न दिख रहे थे ,किसी महात्मा से मिलाना और आजकल तो महात्मा मिलना ही बहुत बड़ा सौभाग्य होता है ,
"आप कुछ कहना चाहते है डॉ साहब "बाबा ने धयन से डॉ को देखा 
"आपसे मिलने के बाद सारे प्रश्न खत्म हो गए प्रभु "डॉ ने अनुग्रह के भाव से बाबा को देखा बाबा के आँखों में भी एक स्नेह डॉ के लिए छलक पड़ा ,तभी कलवा भी आ चूका था वो सभी को देख बहुत खुश हुआ ,सभी उससे मिलाने बहार आये और एक बरगद के पेड़ के निचे बने चबूतरे में बैठे बाते हरने लगे पर डॉ अब भी वही बैठे थे ,
"तो तुम कलवा को ले जाने आये हो "
"हा बाबा आज उसके परिवार को उसकी जरुरत है ,कोई तो है जो इस परिवार को बहुत ही नुकसान पहुचना चाहता है ,और मैं जनता हु जब तक कलवा रहेगा इस परिवार को कोई हाथ नहीं लगा पायेगा ,"बाबा जोरो से हस पड़े 
"डॉ जो होना है वो तो हो कर रहेगा ,कलवा के रहते भी तो वीर और उसकी पत्नी की मौत हो गयी ना ,उन्हें तो वो नहीं बचा पाया ,ना ही अपने भाभी और उसके बच्चो को आजतक ढूंढ पाया और देखो आज उसके दुःख ने उसे प्रभु के शरण में ला दिया ,और तुम कितने सालो बाद आये यहाँ "
दोनों के चहरे पर एक रहस्यमयी मुस्कान आ गयी मतलब साफ़ था की डॉ यहाँ पहले भी कई बार आ चुके थे ,
"हा बाबा आपसे दूर रहने का तो मन मुझे भी नहीं करता ,मैं भी चाहता हु की आपके शरण में आकर अपने को ध्यान की गहराईयो में डूबा हु पर क्या करू ,ध्यान मजबूर होकर तो नहीं किया जा सकता ना जैसे आज कलवा कर रहा है "
"बेटा जो ध्यान करता है उसके लिए कोई मज़बूरी होती ही नहीं है "बाबा ने एक मनमोहक मुस्कान दि ,
"जाओ कलवा से मिल लो "डॉ उठकर बाबा के चरणों को स्पर्श करते है और बहार कलवा से मिलने चले जाते है ,कलवा डॉ को देखकर आगे बढता है और उसके गले लग जाता है ,कलवा के चहरे पर एक अदुतीय तेज दिखाई दे रही थी जो उसके साधना के कारन उसके चहरे पर खिली थी ,शारीर से वो किसी पौरुष की मूर्ति लगता ही था ,डॉ ने अजय और बाली को इशारे से कुछ कहा दोनों ही समझ गए की ये अकेले हे कलवा से कुछ बात करना चाहते है ,अजय ने सभी को झरना दिखने के बहाने निचे ले गया साथ ही बाली भी हो लिया ,
"कहिये डॉ साहब बहुत दिनों बाद याद किया लगता है कुछ काम आ पड़ा है ,"डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी 
"हा काम तो आ पड़ा है ,ऐसे भी अब मैं अकेला सा हो गया हु ,तुन्हें मेरे साथ चलना चाहिए "
"भूल जाओ डॉ बस अब और नहीं ऐसे भी दुनिया में मेरा अब है ही कौन और किसके लिए करू मैं ये सब ,एक माँ है जो उस परिवार में है जहा उसे इतना प्यार और सम्मान मिलता है और एक भाई है (बजरंगी )जो मुझे देखना भी पसंद नहीं करता अब बचा ही क्या है ,और मेरी काबिलियत ही क्या है डॉ देखो ना ,ना ही मैं वीर भईया और भाभी को बचा पाया और ना ही अपनी भाभी और उनके मासूम बच्चो को ढूंड पाया ,"डॉ थोडा गंभीर हो जाते है 
"कलवा ये तुम्हारी गलती नहीं थी ,वीर का एक्सीडेंट का तो मैंने भी पता नहीं लगा पाया और तुम्हारी भाभी और उसके बच्चे वो तुम्हारी गलती नहीं थे ,बजरंगी ने उनके साथ क्या किया ये किसी को नहीं पता वो बेचारे तो तिवारियो के साजिस का शिकार हो गए ,"
"साजिश कोई भी रचे पर मैं तो अपने भाई को नहीं समझा पाया ना की मेरी भाभी पवित्र है ,नहीं डॉ अब मुझसे ये नहीं हो पायेगा अब मैं नहीं कर सकता ये सब ,अब आप ही सम्हालो इन समस्याओ को मुझे यहाँ बहुत शुकून है मैं यहाँ ध्यान करता हु अपने आप के पास रहता हु ,खुश हु और मेरी मनो तो आप भी यहाँ आ जाओ शांति से बढकर कोई चीज नहीं है दुनिया में "डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी 
"किस शांति की बात कर रहे हो कलवा अच्छा ये बताओ की आँखे बंद करने पर क्या तुझे वीर और सुशीला (बजरंगी की बीवी और कलवा की भाभी ) का चहरा नहीं दीखता "
कलवा एक गहरे सोच में पड़ जाता है ,मानो डॉ ने जो कहा वो सच ही था ,
"अभी तुम्हारी जरुरत है इस परिवार को ,अजय पर बहुत खतरा है ,और मुझे कुछ अनहोनी की भी आशंका दिख रही है ,पता नहीं दिल क्यों कहता है की तुम्हे इनके साथ होना चाहिए ,"
कलवा अब भी गहरे सोच में पड़ा था ,
"डॉ बजरंगी कैसा है "डॉ के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी 
"आज भी उससे प्यार करते हो "
"भाई है डॉ वो मेरा "कलवा के आँखों में आंसू आ जाते है और डॉ उसके कंधे पर हाथ रखता है कलवा के आँखों के सामने बिता हुआ कल घुमने लगता है ,
बचपन में ही कलवा को उसकी माँ सीता उसके नाना के पास ले आई और कलवा और बजरंगी अलग हो गए कलवा वीर और बाली के साथ बड़ा हुआ,लेकिन दोनों भाइयो में गजब का प्रेम था जो सभी को पता था ,कलवा कभी कभी छुप कर बजरंगी से मिलने जाता था और बजरंगी भी उससे मिलने ठाकुरों के गाव आया करता था ,समय बिता और ठाकुरों और तिवारियो में दुश्मनी बढती गयी बजरंगी तिवारियो का तो कलवा ठाकुरों के सेनापति की हैसियत में आ चुके थे दोनों भाइयो का सामना अकसर होता रहता था लेकिन सभी को पता था की ये एक दुसरे पर हाथ नहीं उठा सकते दोनों अपने अपने खेमे के वफादार थे और इसपर किसी को कोई भी संदेह नहीं था ,दोनों अपने जिम्मेदारियों से हटकर शहर में मिला करते थे वीर के खास दोस्त डॉ चुतिया भी थे ,वीर डॉ कलवा और बजरंगी सभी अपनी जिम्मेदारियों और आपसी रंजिश से दूर शहर आकर मौज मस्ती करते थे ,वक़्त ने करवट ली और वीर ने सुलेखा से शादी कर ली दोनों परिवारों में तनाव इतना बढ़ गया की कलवा और बजरंगी का मिलना लगभग बंद ही हो गया पर ,पर दोनों कभी कभी छुपकर शहर में जाकर मिल ही लिया करते थे ,वही वक अनाथ लड़की से बजरंगी को प्यार हो गया और उसने वही उससे शादी भी कर ली ,ये बात सिर्फ उसे और कलवा को ही पता था ,लड़की का नाम था सुशीला ,सुसीला और बजरंगी एक दुसरे से बहुत प्यार करते थे और सुशीला ने दो बच्चो को जन्म दिया ,लेकिन ये बात तिवारियो तक पहुच गयी वो सीधे तो बजरंगी को कुछ नहीं बोल सकते थे पर उन्होंने एक साजिस रची ये ही एक ऐसा मौका था जिससे कलवा और बजरंगी में दुश्मनी करा कर वो ठाकुरों को तबाह करने के लिए बजरंगी का उपयोग कर सकते थे ,उन्होंने बजरंगी के दिमाग में शक का कीड़ा डाला और अपनी साजिस के तहत बहुत ही आराम से इसे पनपने दिया ,एक दिन जब बजरंगी शहर पहुचा तो वहा कलवा को देखकर भड़क गया कलवा उसे समझाता रहा की सुशीला उसके लिए माँ के समान है पर ........बजरंगी अपने बीवी बच्चो के साथ वहा से चला गया उसके बाद उनका कुछ भी पता कलवा को नहीं चल पाया ,बजरंगी ने सुशीला से भी सम्बन्ध खत्म कर लिया ,और ऐसा बोखलाया की ठाकुरों और कलवा के खिलाफ एक जंग सी छेड़ दि ,और इसी का नतीजा हुआ की एक बार लड़ाई में उसने वीर पर गोली चला दि वो गोली कलवा ने अपने सीने में खाई और दोनों भाइयो का रिश्ता हमेशा के लिए खत्म हो गया वो कभी मिलते नहीं थे ,और अगर किसी काम से मिलते भी तो बात नहीं करते ,कलवा ने बाली और वीर को सभी बाते बताई डॉ के साथ मिलकर उसने अपने भाभी को ढूंढने की भी बहुत कोसिस की पर कोई नहीं मिला ,उन्हें लगा की बजरंगी ने उन्हें मार दिया हो उसका गुस्सा था ही ऐसा ,पर कलवा आज भी अपने बड़े भाई से बहुत प्यार करता था और वीर की मौत के बाद से ही वो सब कुछ छोड़कर आश्रम में आ गया था,
कलवा की आँखे नम थी और वो शून्य आकाश को देखे जा रहा था,डॉ ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा 
"जो हो चूका है उसे याद करने से क्या मतलब है ,घर चलो अपने परिवार के साथ रहो अजय में मुझे वीर की छबि दिखाती है सायद तुम भी उसमे वीर को ढूंड पाओ "कलवा डॉ के गले से लग गया ,थोड़ी देर में ही उसने मनो कुछ फैसला कर लिया था ,
"आऊंगा डॉ घर भी आऊंगा पर अभी नहीं कुछ दिनों के बाद "कलवा के चहरे पर एक मुस्कान खिल गयी थी ,

इधर घर में विजय और मेरी का घमासान जारी था,की तभी किशन भी वापस आ गया सबसे पहले उसके मन में विजय और मेरी के बारे में ही विचार आया ,वो मेरी के कमरे की तरफ जाने को हुआ ,लेकिन उसने देखा की सुमन बगीचे में एक पेड़ के निचे अकेले ही बैठी है दोनों की नजरे मिली और किशन ने अपनी नजरे झुका ली और अंदर चला गया ,मेरी के रूम में पहुचने पर उसने दोनों की आहे सुनी और मजे लेने लगा तभी उसे लगा की कोई उसके पीछे है उसने मुड़कर देखा तो सुमन खड़ी थी ,सुमन को देखकर वो फिर से झेपा और वहा से जाने लगा लेकिन सुमन ने दौड़कर उसका हाथ थाम लिया ,किशन अब भी अपने चहरे को झुकाए खड़ा था ,
"आपसे कुछ बात करनी है "
"हा कहो "
"यहाँ नही गार्डन में चले "सुमन उसके जवाब का इतजार करे बिना ही उसे अपने साथ गार्डन की तरफ ले जाने लगी वो किसी पुतली सा उसके पीछे पीछे आने लगा,क्या था इस लड़की में जिसने किशन जैसे कमीने लड़के को इतना कमजोर बना दिया था ,दोनों बगीचे में पहुचे उसी पेड़ के निचे जहा पर सुमन बैठी हुई थी ,पूरा बगीचा खाली था और हलकी धुप में मौसम बड़ा ही सुहाना और मनमोहक लग रहा था,किशन अब भी सर गडाए वही खड़ा था ,
"आप मेरे साथ ऐसे क्यों बिहेव कर रहे है ठाकुर साहब ,आपके इस बिहेब को घर के सभी लोग केयर कर रहे है आज ही मेरी मेडम ने भी मुझे ये पूछ लिया ,प्लीज मन की आप अपने किये पर दुखी होंगे पर मुझे किश्मत से ये परिवार मिला है ऐसी कोई हरकत मत कीजिये की किसी को आपपर शक को और वो मुझे यहाँ से निकल दे "
सुमन की बातो से किशन चौक पड़ा और पहली बार उसके खून की धार थोड़ी तेज हुई 
"तुम्हे क्या लगता है मेरी हरकत के बारे में जानकर मेरे परिवार के लोग तुम्हे निकल देंगे और मुझे शबासी देंगे ,तुमने समझ के क्या रखा है मेरे परिवार को ,यहाँ लड़की की इज्जत के बहुत मायने है ,हा हा हम कमीने है हा हम लडकियों के साथ सब कुछ करते है पर उनकी मर्जी से ,हम ठाकुर है हम बलात्कार नहीं करते ,"
अपने परिवार के बारे में बोलकर किशन का चहरा खिल गया था और सुमन के होठो पर एक मुस्कान आ गयी थी 
"अच्छा तो वो क्या था जो आप ने मेरे साथ किया "सुमन के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी वही किशन झेप सा गया 
"वो वो तो तुम मुझे अच्छी लगती हो इसलिए ,माफ़ी तो मांगी ना तुमसे नजर भी नहीं मिला पा रहा हु "किशन आज कुछ बोल पाया था ,सुमन खिलखिलाकर हस पड़ी किशन ने अपना चहरा उठाकर उसके चहरे को देखा पता नहीं क्या आकर्षण था उस लड़की में जो किशन उसकी तरफ खीचा जा रहा था,उसकी पर्सनल रखेल लाली भी उससे कही जादा सुन्दर थी पर कभी कभी सुन्दरता ही सब कुछ नहीं होता उसके व्यक्तित्व में एक निखर था ,एक दृढ़ता थी जो किशन को उसकी ओर आकर्षित करती थी ,किशन उसके चहरे को ऐसे देख रहा था अब झेपने की बारी सुमन की थी उसका चहरे पर शर्म उतर आई ,उसने अपने बालो की लटो से खेलना शुरू कर दिया ,उसका सावला चहरा रंगत से भर गया था,वही उसके आँखों का काजल किशन के दिल में छुरिया चला रहा था ,आजतक कोई भी लड़की ने उसके दिल पर ऐसा जादू नहीं किया था जो उसे हो रहा था ,वो आगे बढ़ना चाहता था पर अपनी आदत से बिलकुल विपरीत वो घबरा रहा था ,उसने अपने हाथ आगे कर उसके गालो को छूने की कोसिस की पर फिर कुछ सोचकर वापस खीच लिया ,ये देख सुमन के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,
"क्या हुआ ठाकुर साहब आज आप इस कनीज को छूने से भी डर रहे है "सुमन फिर खिलखिला उठी उसका खिलखिलाना जैसे किशन के दिल में जाकर लग गया उसने सुमन के कमर को पकड़ा और अपने तरफ खीचा वो कटपुतली सी उसके तरफ खिची चली आई ,सुमन की सांसे ही रुक गयी उसकी धड़कने बाद रही थी पर वो कुछ भी नही कर रही थी बस किशन का चहरा देखे जा रही थी ,किशन ने अपना चहरा उसके चहरे के पास लाया ,किशन की सांसे उसके सांसो से टकराने लगी ,दोनों की सांसो में गर्मी का अहसास आ रहा था,उसनके होठ एक दुसरे के नजदीक जा रहे थे ,सुमन के होठ फडफडाने लगे थे ,
तभी किशन उससे अलग हो गया उसने अपना सर झटका,जैसे सुमन को भी होश आया हो ,वो लाज से गडी जा रही थी पर उसने हिम्मत करके बोला 
"किशन मुझे माफ़ कर दो मेरा मतलब वो नहीं था,"
उसकी बाते किशन को समझ ही नहीं आई 
"मतलब ,तुम क्यों माफ़ी माग रही हो माफ़ी तो मुझे मंगनी चाहिए "
"मतलाब की मेरा इरादा वो नहीं था की आपको अकेले में लाकर ,,,,यानि आपको फसाऊ ,आप मुझसे नजरे चुराते थे वो मुझे पसंद नहीं आ रहा था इसलिए मैंने आपको अकेले में बुला लिया "
किशन चौक सा गया उसने तो कभी ऐसा सोचा भी नहीं था ,
"फसाऊ मतलब ,तुम मुझे कैसे फसा सकती हो ,मेरा मतलब है की तुमने ऐसा कैसे सोचा की मैं ऐसा सोचूंगा "
सुमन की आखे कुछ भीग गयी थी,
"शायद आप नहीं जानते पर जब एक गरीब लड़की किसी आमिर लड़के के प्यार में पड़ जाती है तो लोग कहते है की लड़की ने लड़के हो अपने जाल में फसाया है ,आप करोडो के मालिक है और मैं आपके पैरो की जुती की तरह हु,मैं वो गलती नहीं कर सकती जो मेरी माँ ने किया था एक अमीर लड़के से प्यार ,मेरे बाप ने ही उन्हें ये कहकर छोड़ दिया की तुमने मुझे मेरे पैसो के लिए फसाया है ,"
सुमन के आँखों से पानी की धार बहने लगी किशन से ये बर्दास्त नहीं हुआ और उसने उसकी कमर में हाथ डालकर उसे अपनी ओर खीच लिया ,वो उसके गले से लग गयी लेकिन वो अपने को छुड़ाने की कोसिस करने लगी 
"नहीं ठाकुर साहब मुझ गरीब पर दया करो मुझसे प्यार ना दिखाओ ,मैं कोई ऐसा सपना नहीं देखना चाहती जो पूरा ना हो ,"
किशन उसके चहरे को बड़े ही प्यार से अपने हाथो से सहलाता है सुमन की आँखे गंगा जमुना बहा रही थी ,वो उसकी आँखों के पानी को अपने होठो में भर लेता है सुमन एक और जोरदार कोसिस छूटने की करती है ,वो प्यार में नहीं पड़ना चाहती थी ,उसे किशन का खालिस पाक प्यार साफ साफ महसूस हो रहा था,
किशन ने उसके झटपटाते जिस्म को अपनी बांहों में भरा और उसके होठो में अपने होठ को डाल दिया ,सुमन रोती हुई कुछ देर तक उसका विरोध करती रही पर उसके प्यार भरे अहसास से वो टूट गयी और किशन के बांहों में समां गयी वो किशन के सर को पकडे उसका साथ देने लगी ............. दोनों जब अलग हुए तो दोनों के आँखों में पानी और होठो में मुस्कान थी,सुमन फिर किशन के बांहों में आकर समां गयी वो पेड़ के निचे बैठ गए ,
"किशन सोच लो प्यार की राह आसान नहीं होती ,कही तुम मेरा दिल ना तोड़ देना ,बहुत टूटी हु अब और नहीं सह पाऊँगी ,"
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RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस) - by sexstories - 12-24-2018, 01:08 AM

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