Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
12-24-2018, 01:06 AM,
#15
RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
निधि के होठ फिसल कर अजय के होठो के पास आता है और दोनों के गिले होठ आपस में मिल जाते है ,थोड़ी देर तो यु ही दोनों आपस में अपने होठो को रगड़ते है पर अजय के हाथो के स्तनों तक पहुचने और उसके स्तनों को हलके हाथो से सहलाने से निधि को इतना मजा आता है की उसके होठ अनायास ही खुल जाते है और अजय की जीभ मानो इसी क्षण की प्रतीक्षा में था वो उसके होठो के अंदर चला जाता है निधि बस आँखे बंद किये पहली बार घट रहे इस सुखद आभास को महसूस कर रही थी वही अजय भी अपनी सबसे प्यारी बहन के होठो को चूस रहा था ,दोनों की आँखे बंद थे और दोनों ही प्यार के सागर की लगारो में झूम रहे थे उन्हें समाज के बंदिशों का नहीं पता था ना ही वो जानना भी चाहते थे ,सही गलत के उनके लिए कुछ भी मायने नहीं रह गए थे ,वो तो बस एक ही भाष को समझने लगे थे वो थी प्यार की भाषा ......निधि ने भी अपने भाई के जीभ का स्वागत किया और अपने होठो से उसके जीभ को जकड कर चूसने लगी,पता नहीं इस खेल में एक बात और हुई की अजय ने निधि के स्तनों को हलके हाथो की जगह थोड़ी जोर से दबाया ये भी अजय ने जानबूझ के नहीं किया था पर निधि और अजय के ऊपर इसका सीधा प्रभाव हुआ और निधि ने अजय के सर को जोर से जकड लिया वही अजय के लिंग में भी एक हलचल सी हो गयी ,वो पूरी तरह से अकड़े इससे पहले ही दोनों का चुम्मन समाप्त हुआ और दोनों एक दुसरे को देखकर मुस्कुराने लगे ,निधि ने नजर उठा कर जैसे ही अजय के मुस्कुराते हुए चहरे को देखा तो निधि शर्मा गयी और अजय के सीने में जा लगी ,थोड़ी देर तक ऐसे ही लेटे रहे ,
"भईया ये क्या था ,बहुत अच्छा था "
अजय क्या कहता की ये क्या था उसे तो खुद भी इसका पता नहीं था की ये क्या था ,
"ये किस था बहन और क्या था ,और चल अब सोते है बहुत रात हो गयी है ,"निधि ने अजय को और जोरो से पकड़ लिया 
"नहीं मुझे नहीं सोना यही अच्छा लग रहा है मुझे आपकी बांहों में "
अजय उसके सर को सहलाता है और प्यार से उसकी ओर देखता है वो एक मासूम से बच्चे की तरह उससे लिपटे हुए सो रही थी ,अजय उसकी इस ख़ुशी में खलल नहीं डालना चाह रहा था ,इसलिए वो उसे ऐसे ही छोड़ देता है और उसके बालो को सहलाता हुआ अपनी भी आँखे बंद कर लेता है ,उसकी आँखे कब लगती है उसे भी पता नहीं चलता ,जब उसकी नींद खुलती है तो वो उठकर निधि को पोछता है और उसे उठाकर अपने बिस्तर पर लिटाता है ,......

आज सुबह कुछ अजीब थी ,ना जाने कल रात क्या हुआ था की एक मदहोशी ने विजय और अजय का अपने बहनों से सम्बन्ध की परिभाषा ही बदल दि थी ,वो आज भी उन्हें उतना ही प्यार करते थे जितना की पहले किया करते थे पर बस प्यार करने का तरीका बदल गया था,वो अब और जादा अपने प्यार की गहराईयो ने जा सकते थे ,
शादी के खत्म होने से घर में एक तूफान के बाद आया सन्नाटा था वही अजय को आज डॉ और मेरी की मेहमान नवाजी करनी थी ,नाश्ते के टेबल पर आज सभी मौजूद थे जो कभी कभी ही होता था,मेरी विजय को देख देख कर मुस्कुरा रही थी ,वही किशन सुमन से आँखे ही नहीं मिला पा रहा था पर सुमन जरुर उसे चुपके चुपके देख लिया कर रही थी,सीता मौसी घर के मुखिया के खुर्सी में बैठी थी उसके बाजु में बाली फिर डॉ और मेरी बाली के सामने अजय और विजय ,चंपा समेत घर की सभी लडकिय उन्हें नाश्ता दे रही थी और पास ही खड़ी थी ,निधि अभी तक वहा नहीं पहुची थी,सीता मौसी का स्थान इस घर में बहुत जादा था माना की वो ठाकुर नहीं थी पर उसको इतना महत्व आखिर कारन क्या था ,कारन तो सभी को पता था ,की उनके बेटे ने वीर की जान बचाने के लिए अपने सीने में गोली खायी थी ,सीता को वीर और बाली भी अपनी माँ जैसा मानते थे ,
डॉ ने आखिर वो पुरानी बात छेड़ ही दि ,वो बाली की तरफ देखते हुए बोले ,
"क्यों बाली कलवा कही दिखाई नहीं दे रहा है ,"कलवा का नाम सुनते ही सभी थोड़ी देर के लिए चुप हो गए ,अजय ने सीता के तरफ देखा जिसकी आँखों में पानी आ चूका था ,बाली भी थोडा उदास सा हो गया आखिर उसने भी तो हमेशा ही कलावा को अपने छोटे भाई की तरह ही माना था,
"डॉ साहब वो यहाँ नहीं रहता कुछ सालो से पता नहीं उसे क्या हुआ है ,घर की तरफ आता ही नहीं यही पास में जो जंगल है वहा एक पहाड़ पर छोटी सी कुटिया बना कर रहता है ,कहता है सब कुछ माया है ,और मुझे इसमें नहीं पड़ना है ,सन्यासी बन गया है ,साला "बाली ने साला तो कह दिया पर अचानक उसे अहसास हुआ की सीता भी वही बैठी है और वो उसे देखकर झेप गया ,सीता ने बाली को देखकर हलके से मुस्कुरा दि ,पर उसके चहरे का वो दर्द जो एक माँ के अपने बेटे से बिछड़ने पर होता है उसके चहरे पर साफ़ दिखाई दे रहे थे ,अजय ने अपने हाथो को बड़ा कर सीता के कंधे पर रख दिया ,जिसे सीता ने चूम लिया ,उसके आँखों में अतीत की सारी बाते एकाएक ही तैर गयी ,
बात तब की थी जब जब 9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आन्दोलन चलाया गया ,सीता के पिता ने उसमे बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया जोकि तब बच्चे ही थे ,,देश आजाद हुआ और सीता ने भी एक नए भारत को बनते देखा ,उसकी शादी जमीदार तिवारियो के खानदान के ही एक व्यक्ति से हुई जोकि खुद भी तिवारी था और जमीदारो का वफादार था ,सीता के पिता एक समाज सेवक थे और हमेशा से गरीबो और पिछडो की मदद को तैयार रहते थे ,उन्ही के गाव में ठाकुरों का परिवार था जोकी गरीबो की मदद को हमेशा तैयार रहता ,वीर और बाली के पिता सीता के पिता के सहयोगी बन चुके थे ,बात कुछ खासी जादा नहीं बढही थी जब तक की 1967 में नक्सलबाड़ी की घटना नहीं हुई ,सीता अपने पिता के आदर्शो और पति की वफादारी के बीच पिसती रही थी ,वीर और बाली जब 5-6 साल के थे तब सीता ने भी दो बच्चो को जन्म दिया जिनका नाम कलवा और बजरंगी रखा गया ,1967 में नक्सलबाड़ी की घटना हुई जहाँ भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता चारू मजूमदार और कानू सान्याल ने 1967 मे सत्ता के खिलाफ़ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत की। मजूमदार चीन के कम्यूनिस्ट नेता माओत्से तुंग के बहुत बड़े प्रशंसकों में से थे और उनका मानना था कि भारतीय मज़दूरों और किसानों की दुर्दशा के लिये सरकारी नीतियाँ जिम्मेदार हैं जिसकी वजह से उच्च वर्गों का शासन तंत्र और फलस्वरुप कृषितंत्र पर वर्चस्व स्थापित हो गया है। इस न्यायहीन दमनकारी वर्चस्व को केवल सशस्त्र क्रांति से ही समाप्त किया जा सकता है।(विकिपीडिया से लिया गया है)
इस घटना का प्रभाव ठाकुरों पर भी दिखाई देने लगा और उन्होंने भी जमीदारो के खिलाफ एक सशस्त्र आंदोलन की शुरुआत कर दि ,बात बढ़ने लगी और जमीदारो ने आन्दोलन को कुचलने में अपनी पूरी ताकत झोक दि ,सबसे पहले उन्होंने इसके नेता की हत्या की जो की बाली और वीर के माता पिता थे ,इससे सीता के पिता को दुःख तो हुआ पर वो अहिंसा का रास्ता अपनाने वालो में से थे उन्होंने ठाकुरों को रोका भी था पर कोई फायदा नहीं हुआ ,आखिरकार वही हुआ जिसका डर था ,भयानक नरसंहार कई मासूम और निर्दोष लोगो मारे गए ,जिसका पूरा जिम्मा सीता के पति पर था ,सीता उसके इस दानवी स्वरुप को देख उससे नफरत करने लगी लेकिन लेकिन फिर भी वो वहा से जा नहीं पायी,उसके पिता ने उसे लाने की कोसिस की और आख़िरकार 18 साल की सीता अपने एक बच्चे कलवा के साथ अपने पिता के पास चली आई लेकिन बजरंगी को उसका पति छोड़ने को तैयार नहीं हुआ ,बजरंगी बिना माँ के और फिर बिना बाप के बड़ा हुआ और तिवारियो का सबसे बड़ा वफादार साबित हुआ वही सीता के पिता के रहते और उनके मौत के बाद भी सीता ने ही वीर बाली और कलवा को शेरो की तरह बड़ा किया ,वीर और बाली की जोड़ी ने जहा जमीदारो का वर्चस्व खत्म कर दिया वही कलवा उनका सबसे बड़ा वफादार दोस्त भाई और लगभग सेनापति बनकर उभरा ,जिसने एक बार वीर को बचने के लिए गोली तक खायी और ना जाने कितनी चोटे खायी ,आज बजरंगी तो तिवारियो के यहाँ उनकी सेवा में था पर कलवा शांति की तलाश में ,,,,,,,,,,,,,........डॉ की आवाज से सीता अपने सपने से बहार आई ,
"ह्म्म्म चलो आज कलवा से मिल कर आते है ,क्यों अजय चलोगे हमारे साथ "अजय भी उसी खयालो में डूबा था जिसमे सीता ,वो अचानक हुए प्रश्नों से हडबडा गया ,और वो कुछ बोल पाता उससे पहले ही निधि की आवाज आई ,
"वाओ कलवा चाचा के पास मैं भी जाउंगी "निधि एक हाफ निकर और टी-शर्ट में जो की घर में उसका परिधान ही था ,में निचे आई चहरे से लग रहा था अभी अभी जगी हो ,वो आकर सीधे अजय के पीछे खड़ी हो चुकी थी ,जब डॉ ने सवाल किया था ,और जवाब देते हुए उसने अजय के गले में अपना हाथ डाल दिया ,अजय ने मुस्कुराते हुए देखा वो आकार अजय की गोदी में बैठ गयी और उसके ही प्लेट से नाश्ता करने लगी ,उसकी इस बचकाना हरकत को देख कर सभी के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,
"कब बड़ी होगी रे मेरी ये गुडिया ,"सीता मौसी ने अपने हाथ को निधि के सर पर फेरते हुए कहा ,........
कालवा से मिलने जाने सभी तैयार हो चुके थे ,लेकिन विजय और किशन को कुछ काम आ गया था ,वही मेरी ने तबियत ख़राब होने का बहाना बनाया और सुमन को मेरी की देखभाल के लिए छोड़ दिया गया ,निधि ,डॉ,अजय ,सोनल रानी और बाली तैयार होकर कलवा से मिलने चल दिए ..............

सभी के जाने के बाद विजय और किशन ही बचे थे ,मेरी और सुमन मेरी के कमरे में चले गए क्योकि मेरी ने कहा की उसके सर में दर्द हो रहा है ,
"भाई आज तू अकेला ही चले जा ना ,मेरे सर में थोडा दर्द हो रहा है,"विजय ने अपना सर पकड़ते हुए कहा ,किशन ने एक बार विजय को देखा ,
"क्या बात है आपका और मेरी मेडम का सर एक साथ दर्द दे रहा है ,"विजय के चहरे में भी एक मुस्कान आ गयी ,जिसे किशन समझ चूका था ,
"भाई बचकर वो हमारी मेहमान है ,कोई उलटी सीधी हरकत मर कर देना "
"अबे साले हरकत तो पहले ही हो चुकी है आज तो घमासान होगा ,"विजय हसने लगा ,किशन को कुछ समझ आ चूका था की बंदी इससे पट चुकी है ,
"ओके भाई ऐश करो ,मैं भी एक दो घंटे में आ जाऊंगा "किशन के जाने के बाद विजय ने जल्दी से मेरी के रूम का रुख किया वहा सुमन को देखकर वो थोडा उदास हो गया ,
"अरे विजय आओ आओ तुम्हारा ही इन्तजार कर रही थी ,"मेरी ने बड़े ही मादक अंदाज में उसका स्वागत किया सुमन ने दोनों के चहरे के भावों को पढ़ लिया वो नर्वस सी हो गयी ,
"साला पूरा परिवार ही ठरकी है इनका "सुमन ने मन में ही सोचा विजय आकर मेरी के साथ एक खुर्सी में बैठ गया मेरी ने एक लाल रंग की साड़ी पहने हुए थी ,जो हमेशा की तरह उसके अंगो को छुपा कम और दिखा जादा रहा था,उसके नीले कलर के ब्लाउज में उसके बड़े बड़े स्तनों को समाने की ताकत नहीं थी फिर भी बेचारी पूरी तरह फैले हुए उन्हें समाने की कोसिस कर रहे थे,अंदर कोई अन्तःवस्त्र नहीं पहने होने के कारन उसके निप्पल का उभार साफ दिख रहा था,मेरी पास की खुर्सी पर बैठी थी और उसके पैर सुमन के हाथो में था जो की निचे बैठे उन्हें दबा रही थी ,सुमन उसके एडियो की मसाज कर रही थी ,विजय ललचाई नजरो से मेरी के स्तनों को देखता है पर सुमन का लिहाज उसे कुछ करने या कहने नहीं देता ,
"ये सुमन बहुत एक्सपर्ट है कितने अच्छे से मसाज करती है की मेरे सर का दर्द पूरी तरह से खत्म हो गया ,"
विजय में सुमन को देखा वो अपने सर निचे किये हुए बड़े प्यार से मसाज कर रही थी ,विजय की बेचैनी बढ़ रही थी उससे अब इन्तजार नहीं हो रहा था,
"बहन एक काम करो तुम आराम करो मैं यहाँ मेडम के साथ हु,किसी चीज की जरुरत होगी तो तुम्हे बुला लूँगा ,"सुमन ने सर उठा कर विजय को देखा आज फिर इस परिवार के एक शख्स ने उसे बहन कहा था ,कैसा परिवार है ये कोई इतने प्यार से बहन बोलकर मान देता है तो दूसरा उसे रंडी कहकर उसकी इज्जत पर हाथ डालता है ,ऐसे उसके दिल में अब किशन के लिए कोई भी द्वेष नहीं था ,वो जानती थी की किशन अपने किये पर कितना पछता रहा है और उसके कारण ही उसके दिल में उसके लिए एक सम्मान का जन्म हो चूका था ,वो इस परिवार से प्यार करने लगी थी सभी उसे इतना प्यार और सम्मान देते है जो उसे अपनी जिंदगी में कभी नहीं मिला था ,वो तो बस आभाव की जिंदगी जानती थी ,उसका जन्म किसी रहिस आदमी के हवस का नतीजा थी जिसने उसकी माँ को माँ बनाया था और फिर पता नहीं कहा चला गया ,और उन्हें छोड़ गया तकलीफों को भोगने के लिए और उसनके हिस्से में आई बस तकलीफे...सुमन के आँखों में आंसू की कुछ बुँदे आ गयी जिसे विजय और मेरी दोनों ने देख लिया था ,दोनों ही ऐसे तो सेक्स के भूखे थे पर एक मासूम सी लड़की के आँखों से बहते हुए आंसू ने उन्हें कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया ,विजय चाहे कितना कमीना क्यों ना हो उसका दिल बहुत ही नर्म था ,वही मेरी का भी यही हाल था ,मेरी ने झुक कर सुमन के चहरे को उठाया ,सुमन को अपने गलती का अहसास हुआ और वो अपने आंसुओ को पोछने लगी ,
"क्या हुआ बहन रो क्यों रही है कुछ तकलीफ है क्या यहाँ तुझे ,"विजय ने अपना चहरा उसके पास लाते हुए कहा ,
"नहीं भईया कोई तकलीफ नहीं है बस आपलोगों का प्यार देखकर मुझे रोना आ गया ,इतना सम्मान और प्यार मुझे कभी किसी ने नहीं दिया ,कोई इतने प्यार से मुझे कभी भी बहन नहीं बुलाया जितना आप और अजय भईया ने बुलाया है ,"विजय ने उसके कंधे पर अपना हाथ रखा और उसे सांत्वना दिया वो कुछ बोला नहीं क्योकि उसे खुद भी समझ नहीं आया की अपनी बहनों के अलावा उसने कभी किसी को इतने प्यार से कभी भी बहन नहीं बुलाया था ,वही मेरी के दिमाग में एक बात आ गयी 
"और किशन ने वो तुझे बहन नहीं बुलाता क्या ,"मेरी के चहरे पर एक मुस्कान भी फ़ैल गयी ,वो जब से आई थी वो किशन और सुमन को नोटिस तो कर रही थी सुमन का उसे देखना और किशन का यु उससे भागना कुछ तो था इनके बीच ,,ऐसे बात तो विजय को भी समझ आ गयी थी क्योकि किशन ने इसका हिंट पहले ही दे दिया था ,उसने बात को सम्हाला 
"कोई बात नहीं ठीक है अपने कमरे में जाओ आराम करो और हम सब हमेशा तुम्हारे साथ है ,और तू इतनी प्यारी और समझदार है की तू इस प्यार और सम्मान की हक़दार भी है "सुमन के चहरे पर एक ख़ुशी के भाव आये और वो अपने कमरे के लिए चले गयी उसके जाते ही विजय ने कमरे का किवाड़ बंद किया और मेरी के तरफ घुमा ,उसके मन में एक ही बात आई ,
"सनी लीओन इन साड़ी "
मेरी भी मुस्कुराते हुए उसे देखने लगी और अपनी अदाओ का जाल फेकना शुरू किया ,उसने एक मादक अंगड़ाई ली और अपने उंगलियों को अपने मुह के अंदर बहार करने लगी विजय भी देर ना करता हुआ उसके पास पंहुचा और उसे उठा कर सीधे बिस्तर में पटक दिया ,
"अरे राजा इतनी क्या बेचैनी है ,"
"क्या करू मेरी रानी तुझपर टूटने के लिए तो कब से इन्तजार कर रहा हु ,"
"चल झूठे कही के ऐसा होता तो कल रात में ही आ जाता ना "रात की बात याद करके विजय को हसी आ गयी और सोनल का चहरा भी सामने आ गया उसने अपने सर को एक झटका दिया ,
"अरे जानेमन छोडो कल की बाते कल की बात पुरानी ,"विजय मेरी के ऊपर खुद पड़ता है और उसके गालो को अपने मजबूत हाथो से दबाकर उसके लाल रसदार होठो को चूसने लगता है ,मेरी को इससे ही उसके ताकत का अहसास हो जाता है और उसके मन में एक उमंग जग जाती है ,
"हाय तेरे जैसे मर्द के लिए ही तो मैं बनी हु,कब से तडफ रही थी तेरी बांहों में कुचले जाने के लिए ,"
"तो कुचल देते है ना "विजय ने अपने हाथो को उसके बड़े बड़े कबुतारो पर ले गया और उसे निचोड़ने लगा ,उसके ब्लाव्स को जैसे फाड़ता हुआ अलग किया और उन मखमली पहाड़ो को अपने दांतों से काटने लगा ,
"आह्ह्ह आह्ह अह कमीने साले काट मत ना "
"चुप मदरचोद ,"विजय हवस के नशे में बोखला गया था उसका लिंग इतना तना हुआ था की उसे भी दर्द होने लगा था ,उसने उरोज को चुसना नहीं खाना शुरू किया उसके दांतों के निशान मेरी के दुधिया उरोजो को लाल कर रहे थे उसके निप्पल विजय के थूक से भीगे हुए तन कर विजय के दांतों में आ जाते और वो उन्हें हलके से काटकर मेरी को जन्नत में पंहुचा देता ,
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RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस) - by sexstories - 12-24-2018, 01:06 AM

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