RE: Nangi Sex Kahani जुनून (प्यार या हवस)
बहनों को माल में छोड़ अजय ने उन्हें कपड़ो की लिस्ट पकड़ा दि और अपना कार्ड देने लगा ,
"अरे भईया आप लोग आ जाओ ना फिर पेमेंट कर देना ,आप लोगो के लिए भी तो कपडे लेने है ना "सोनल ने टाइम देखते हुए कहा
"नहीं बेटा हमें देर हो जाएगी शादी का पूरा समान लेना है ,जो जो गाँव में नहीं मिलेगा ,और फिर उसे अपनी किसी गाड़ी में भरकर भिजवा देंगे फिर आयेंगे,"ठाकुरों का अपनी ट्रेवल एजेंसी थी ,ठाकुर ट्रेवल्स जिसे वीर बाली ने शुरू किया था और अजय विजय ने बढाया था,आज इनके बसे कई जगह चलती थी ,और एक ही कॉम्पिटिटर था जी हा तिवारी ट्रेवल्स ..
"पर भईया हमें और भी देर लगेगी आप चिंता मत करो "निधि हस्ते हुए बोली अजय ने उसे आँखे दिखाई और फिर मुस्कुराता हुआ ओके कहकर वह से निकल गया उसने पीछे अपने साथ आये पहलवानों और बाकि लोगो को वही छोड़ दिया ताकि उन्हें कोई प्राब्लम ना हो ,उन्होंने पूरा समान खरीद कर लोड करा 3-4 घंटे में भेज भी दिया...जब वो माल पहुचे तो शाम के 5 बजे हुए थे , अजय और विजय खुस थे क्योकि वो अब रात तक गाव भी जा सकते थे पर माल पहुचने पर उनके आशा पर पूरी तरह से पानी फिर गया ....
मॉल में घुसते ही उसने देखा की उनके पहलवान किसी आदमी के चारो और हाथ बांधे खड़े है साथ में एक इंस्पेक्टर भी बैठा है वो शख्स अपने सर पर हाथ रखे हुए है ,इंस्पेक्टर ने अजय को पहचान लिया
"अरे ठाकुर साहब बढ़िया हुआ आप आ गए अब मुझे छुट्टी दीजिये "इंस्पेक्टर को देख अजय और विजय घबरा गए,
"अरे सिंग साहब आप ,क्या हुआ कुछ प्रोब्लम तो नहीं है "इंस्पेक्टर सिंग पहले अजय के ही इलाके में पोस्टेड था और ठाकुरों को अच्छे से जनता था,अजय से ही सिफारिश करा कर उसे पैसे वाले जगह में (शहर में )अपनी पोस्टिंग करायी थी ,अजय आगे बढ़ कर उससे हाथ मिलाता है ,
"अरे कुछ नहीं वो आपकी तीनो देवियों के कारन यहाँ आना पड़ा ,ये जो बैठा है वो यहाँ का मनैंजर है ,उसने ही हमें बुलाया था,वो क्या है निधि बिटिया को एक कपडा पसंद नहीं आया तो उसने उसे फेक दिया इस बात पर यहाँ की सेल्स गर्ल से उसका झगडा हो गया ,निधि को तो आप जानते है ना उसने दो हाथ उसे लगा दिए और उसने मनेजर और बाउंसर को बुला लिया बाउंसरो बिटिया को बाहर जाने कहा और उसने पहलवानों को बुला लिया ,पहलवानों ने बाउंसरो को तो मारा ही तोड़ फोड़ भी चालू कर दि,तो इसने (मनेजर की तरफ उंगली दिखाते हुए )मुझे बुला लिया ,मैंने निधि को समझा लिया और इसे भी पर निधि ने आप को कुछ ना बताने की कसम दे दि और कहा की जब तक आप ना आओ इसे यही बैठे रहने दो और मुझे भी यही बैठा दिया है ,अब उनकी बात तो नहीं टाल सकता ना तो ..."इंस्पेक्टर के चहरे में एक मुस्कान आई वही विजय ने मनेजर को घुर के देखा की उसकी सांसे ही रुक गयी वो कुछ बोलने की हालत में नहीं था,अजय के चहरे पर पहले एक मुस्कान आई फिर उसका चहरा गंभीर हो गया ,
"थैंकस थैंकयु सो मच सिंग साहब ,ये लडकिय ना ..."अजय एक गहरी साँस लेता है
"ओके आप को तकलीफ हुई इसके लिए माफ़ करे ,थैंक्स "
"अरे ठाकुर साहब आप भी क्यों हमें जलील कर रहे है,हम तो आपके सेवक है "अजय इंस्पेक्टर के हाथो को पकड़कर उसे माफ़ी मांगता है और धन्यवाद देता है इंस्पेक्टर के जाने के बाद पहलवानों को इशारे से जाने को कहता है ,और मेनेजर के पास जाकर हाथ जोड़ लेता है जो की विजय को बिलकुल भी पसंद नहीं आता ,
"माफ़ कीजिये सर मेरी बहनों के कारण आपको तकलीफ हुई ,"मनेजर उठ कर लगभग उसके पैर पकड़ने की मुद्रा में बोला ,
"नहीं नहीं सर मुझसे गलती हो गयी की मेडम को परेशानी हुई सॉरी ,मुझे पता नहीं था की वो कौन है ,मैंने उस लड़की को भी निकल दिया है सर काम से "उसने हाथ जोड़ते हुए अजय से कहा विजय उसे ऊपर से निचे तक देखा
"साले तुझे अभी भी नहीं पता की वो कोण है नहीं तो तेरी पैन्र्ट अभी तक गीली हो जाती "अजय ने घूरकर उसे देखा विजय को अपनी गलती का अहसास हुआ और वो चुप हो गया ,
"उस लड़की को बुलाओ जिसको निधि ने मारा था "मेनेजर ने तुरंत 'जी सर' कहते हुए फोन घुमाया और 10 मिनट में ही वो लड़की उनके सामने थी,अजय ने उसे धयान से देखा ,माल का ही ड्रेस(लाल रंग की टी शर्ट और जीन्स) पहने वो पतली दुबली सवाली सी लड़की अपने सर को झुकाय खड़ी थी,उसके चहरे से ही आभाव और गरीबी झलक रही थी ,7-8 हजार महीने की तनख्वाह के लिए उसे इतना जलील होना पड़ा था,जितना वो महीने भर में अपने खून पसीने से कमाती थी उतना तो यहाँ आने वाले एक दिन में उड़ा कर चले जाते थे ,फिर भी अपने आत्मसम्मान के लिए उसने झगडा कर लिया पता नहीं अब उसकी नौकरी रहे या ना रहे ,
गरीबो का कोई आत्मसम्मान नहीं होता ये उसकी माँ उसे कहा करती थी ,और सेल्स वालो का तो होता ही नहीं ये उसका मनेजर,, फिर भी उसने झगडा किया ,
अजय के पास आते ही उसकी पर्सनाल्टी और रौब देखकर उसे ये तो समझ आ चूका था की किसी बड़े आदमी से पंगा हो गया है,वो कपने लगी जिसे देखकर अजय को बहुत ही बुरा लगा ,उसने अपने हाथ बढ़ाते हुए उसके कंधो पर रखा वो सिहर उठी थी,
"तुम्हारा क्या नाम है बहन "बहन उस लड़की ने अपना चहरा उठाया अजय की आँखों में उसके लिए गुस्सा नहीं दया और प्रेम दिखाई दिया इतने देर से मन में चल रही शंकाओ का एक प्यार भरे शब्द ने निराकरण कर दिया था ,जो शख्स एक अदन सी लड़की को इतने प्यार से बहन पुकार सकता है वो गलत तो नहीं हो सकता ना ही क्रूर उसका मुरझाया चहरा खिला तो अजय को भी थोडा शकुन आया ...
"जी सर वो सुमन "अजय ने उसे देखा पता नहीं क्यों वो लड़की उसके दिल को कही छू गयी थी ,अजय बहुत ही संवेदनशील था जो उसकी कमजोरी और ताकत दोनों थी,
"अच्छा चलो मेरे साथ ,और आप भी "अजय ने मनेजर को कहा सभी वह चलने लगे जहा तीनो देविया खरीदी कर रही थी ,वो एक बड़ा सा किसी डिजायनर ब्रांड का शाप था,पुरे माल में इन तीनो की दहशत सी हो गयी थी वो जहा भी जाती उस शॉप का मनेजर खुद आ कर उन्हें अटेंड करता ,अपने भाइयो को आता देख निधि दौड़कर आई और अजय के गले लग गयी उसके हाथो में एक लहंगा था ,जो बहुत ही महंगा लग रहा रहा था ,निधि जब उस लहंगे को घसीटते हुए भागी तो सभी कर्मचारियों के दिल से एक चीख निकली लेकिन दिल में ही दब गयी ,
"भईया देखो ये कैसा है "अजय ने उसे अपने से दूर किया
"वो सब छोड़ पहले ,इससे माफ़ी मांग ,"अजय ने सुमन के तरफ इशारा करते हुए कहा
निधि उसे देख कर नाक मुह सिकोड़ ली पर सामने अजय था ,वो हिली तो नहीं पर कुछ बोली भी नहीं ,अजय ने सुमन को आगे किया सभी की सांसे रुकी हुई थी की क्या होने वाला है ,अजय ने वही खड़े एक सेल्समेन को बुलाया और निधि जिस लहंगे को पकडे थी उसके तरफ इशारा करते हुए कहा ,
"इस लहंगे का रेट कितना है "
:सर 15 हजार "
"ओके, निधि मेरी बात धयान से सुनना तुम अपने लिए 15 हजार के कोई 3-4 लहंगे लेने वाली हो जिसे तुम सिर्फ रेणुका की शादी में पहनोगी या शायद उसके बाद कभी कभी "अजय सुमन की तरफ मुड़ता है ,
"तुम्हारी सेलरी कितनी है ,"
"सर 7 हजार "
"बस या और कुछ "
"सर इंसेंटिव मिलता है,कुछ बेचने पर महीने का टोटल 10-12 तक पहुच जाता है "
"कितने लोग है तुम्हारे घर में "
"सर माँ है और एक छोटा भाई है "
"क्या करती है माँ और भाई "
"सर माँ कुछ नहीं करती वो बीमार रहती है ,और भाई अभी पढ़ाई कर रहा है ,"
"तो तुम इतने कम पैसे में ही पुरे घर का खर्च चलती हो ,और अपनी माँ का इलाज और भाई की पढ़ाई भी "
"जी सर "सुमन की नजरे अभी भी निचे ही थी
"जितना तुम 5 महीने में कमाती हो उतने की मेरी बहन अपने लिए सिर्फ लहंगा ले के जा रही है,फिर भी तुमने इससे लड़ाई क्यों की "सुमन के आँखों में आंसू था पर वो सर झुकाय ही थी
"बोलो जो पूछ रहा हु"अजय ने थोड़ी उची आवाज में कहा
"सर मैंने कोई लड़ाई नहीं की मैंने तो बस मेडम को समझाया की कपडे को ऐसे मत फेके ,सर इतना महंगा कपडा होता है अगर फट जाय तो हमारी सैलरी से कट जाएगा ,उतनी तो हमारी सेलरी भी नहीं होती ,अगर मुझे सेलरी नहीं मिली तो मेरे घर वाले खायेंगे क्या ,लेकिन मेडम गुस्से में आ गयी और मुझे मार दिया ,"सुमन सिसकने लगी अजय ने अपना हाथ बढाया और उसके कंधे पर अपना हाथ रखा ,वो निधि की तरफ घुमा
"निधि तुम इससे माफ़ी मांगना चाहो या नहीं तुम्हारा डिसीजन है,पर तुम्हारे कारन इसे जॉब से भी निकल दिया गया है ,हा ये गरीब है पर इनका भी आत्मसम्मान है ,ये भी इन्सान है और इन्सान को इन्सान की इज्जत करनी चाहिए ,वरना हममे और जानवरों में फर्क ही क्या रह जायेगा ,"निधि की आँखों में पानी आ चूका था ,उसे अपनी गलती का अहसास हो चूका था ,वो आगे बड़ी और सुमन को अपने गले से लगा ली और बच्चो जैसे पुचकारने लगी ,
"सॉरी बहन मुझे माफ़ कर दे ,"वो उसे ऐसे मना रही थी जैसे बच्चे एक दुसरे को मानते है ये देखकर सभी के चहरे में स्माइल आ गयी ,मनेजर और कर्मचारियों ने चैन की साँस ली और सुमन भी उसके मानाने और प्यारी बातो से हस पड़ी ,लेकिन निधि ने फिर एक तीर छोड़ दिया
"मनेजर अंकल आप इसे जॉब से नहीं निकालेंगे "मनेजर ने हां में सर हिलाया
"और भईया मुझे ये माल बहुत पसंद आया ,इसे खरीद लो ना ,"सब फिर आँखे फाडे उसे देखने लगे,और निधि सुमन को अपने साथ ले गयी कपडे की चोइस कराने लेकिन अजय और विजय के चहरे पर एक मुस्कान आ गयी ,विजय ने अजय की ओर देखा
"भईया ऐसे भी खरीदने की सोच ही रहे थे गुडिया का दिल भी रख लेते है और अपना काम भी हो जाएगा कोई दूसरा क्यों यही ले लेते है "अजय मेनेजर की तरफ मुड़ता है ,
"किसका है ये माल और कहा रहता है "मनेजर भी उन्हें आँखे फाडे देख रहा था
"सर ये सिंघानिया साहब का है ,मुंबई में रहते है "
"विवेक सिंघानिया "
"जी सर उन्ही का "
"ठीक है विवेक सर तो हमारे खास आदमी है ,उनसे मैं बात कर लूँगा "मनेजर हाथ जोड़ कर खड़ा रहता है उसके दिमाग में विजय की बात गुज रही थी ("साले तुझे अभी भी नहीं पता की वो कोण है नहीं तो तेरी पैन्र्ट अभी तक गीली हो जाती ").....................
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