RE: vasna kahani चाहत हवस की
अब मेरी यानि विशाल की कहानी
मैं एक बार से पाठकों को अपने परिवार के बार में एक बार फिर से याद दिला दूँ, मेरे परिवार में मेरे पापा, मम्मी मेरी गिफ़्टी दीदी और मैं चार लोग हैं। हम लोग नोएडा में रहते हैं। मेरे पापा और मम्मी दोनों सरकारी जॉब में हैं। दीदी की पिछले साल ही शादी हुई है, अजय जीजू की लन्दन में बैंक में अच्छी जॉब है, लेकिन जीजू शादी के बाद दीदी को वीसा प्रॉब्लम के कारण लन्दन नहीं ले जा पाये हैं, गिफ़्टी दीदी अभी भी हमारे साथ ही रहकर अपनी सॉफ़्ट्वेयर कम्पनी में जॉब कर रही है। जीजू हर दो तीन महिने में आते जाते रहते हैं।
गुड़िया के जाने के कुछ देर बाद ही दीदी और जीजू एक साथ वापस आ गये। दीदी अपनी चाबी से मेन गेट का दरवाजा खोला, और वो दोनों दीदी के रूम में चले गये। मैं दबे पाँव दीदी के रुम के पास गया, और दरवाजे की झिर्री में से अन्दर का नजारा झाँक कर देखने लगा। जीजू का लण्ड दीदी के मुंह में पूरा घुसा हुआ था, दीदी जीजू के मोटे लण्ड को अपने होंठों के बीच लेकर अन्दर बाहर करते हुए चूस रही थी। जीजू दीदी को मस्ती में अपना लण्ड चूसते हुए देख रहे थे।
अपने दीदी और जीजू को काम क्रीड़ा में लगे हुए देखत हुए, मैंने भी अपने लण्ड को बॉक्सर से बाहर निकाल कर मुट्ठी में ले लिया, और कल्पना करने लगा कि मेरा लण्ड दीदी में मुँहे में घुसा हुआ है। थोड़ा हिलाने के बाद जब लण्ड पूरा खड़ा हो गया तो मैं उसे दीदी के मुँह में पेलने की कल्पना करते हुए मुठियाने लगा। मेरा मन कर रहा था कि काश मैं भी इस वक्त बाहर झिर्री से झाँकने की जगह कमरे के अंदर होता। लेकिन ऐसा होना असम्भव था। लेकिन मुझे मन ही मन इस बात कि खुशी हो रही थी कि मेरा लण्ड जीजू से कहीं ज्यादा बड़ा और मोटा था।
मैं दीदी को मस्त होकर जीजू का लण्ड चूसते हुए देख रहा था। दीदी का छरहरा इकहरा बदन और बार बार जब दीदी के खुले हुए बाल चेहरे पर आ जाते तो दीदी उनको एक हात से पीछे कर देतीं। मैं दीदी के रसीले होंठों को जीजू के लण्ड के सुपाड़े के गिर्द जकड़े हुए देख रहा था। क्या मस्त गुलाबी होंठ थे दीदी के, उनके उभरे हुए गाल, हिरनी जैसी आँखें आह्ह्…
मेरी नजर नीचे आते हुए दीदी के मस्त उभारों को निहारने लगीं। जीजू अब बैड पर लेटकर दीदी को लण्ड चूसते हुए देख रहे थे, और दीदी के झुकने की वजह से उनकी चूँचियाँ नीचे लटक रही थीं। इतनी दूर से भी दीदी के एकदम कड़क और खड़े निप्पल साफ़ दिखायी दे रहे थे। दीदी की पतली कमर, मोटी गाँड़ और गोरी लम्बी पतली टाँगें किसी को भी पानी निकालने पर मजबूर कर देते।
मैं दीदी के नग्न बदन को निहारते हुए मुठिया रहा था, और उधर दीदी इतने दिनों बाद मिले लण्ड को मस्त होकर चूस रही थी। कुछ समय बाद जीजू के लण्ड ने पानी छोड़ दिया और दीदी उसको पूरा निगल गयी, ये सब देख मुझसे भी और बर्दाश्त नहीं हुआ और मेरे लण्ड ने भी अपना लावा दरवाजे की किवाड़ पर पिचकारी मार मार के उन्डेल दिया।
मेरा मन ही मन सोच रहा था कि काश जीजू की तरह मैं भी अपने लण्ड से निकला वीर्य का पानी दीदी के मुँह में निकाल पाता। लेकिन शायद अपनी सगी बड़ी बहन के साथ ऐसा कर पाना सम्भव था। मैं कुछ देर और उनके आगे की हरकतों को वहीं पर खड़ा होकर देखता रहा, लेकिन शायद दीदी को एहसास था कि मम्मी पापा के ऑफ़िस से आने का टाईम हो रहा था, इसलिये वो तुरंत अटैच्ड टॉयलेट में घुस गयीं। मैं भी ड्रॉईंगरूम में आकर टीवी देखने लगा और दीदी जीजू के बाहर आने का इंतजार करने लगा।
उस शाम मम्मी पापा को किसी शादी पार्टी में जाना था, इसलिये वो हम तीनों को घर पर टीवी पर मूवी देखता हुआ छोड़कर चले गये। मम्मी पापा के जाने के कुछ मिनट बाद ही दीदी जीजू अपने रूम में चले गये, और मैं बेवकूफ़ों की तरह टीवी देख रहा था उस वक्त जब दीदी जीजू अपने रूम मे नंगे होकर लण्ड चूत का चुदाई का खेल, खेल रहे थे। मेरे कदम बरबस ही दीदी के रुम की तरफ़ बढ चले, मुझे ये देख कर आश्चर्य हुआ कि उन्होने अपने रूम का दरवाजा थोड़ा खुला छोड़ दिया था, और रूम की लाईट भी जल रही थी। मुझे गैलरी में से अंदर का साफ़ साफ़ नजर आ रहा था।
जीजू ने दीदी का टॉप उठाकर सिर के ऊपर से निकाल दिया था और वो दीदी की ब्रा में कैद चूँचियों को निहार रहे थे। मैं पिछले कुछ सालों से जब से दीदी पर कमसिन जवानी चढने लगी थी, तब से उनकी चूँचियों को निरंतर निहारा करता था, और वो कब नींबू के साईज से C कप साइज की हुई थीं, इसका मेरे पास पूरा लेखाजोखा था।
जीजू ने दीदी की ब्रा खोलकर उनके मम्मों को दबाना और चूसना चालू कर दिया था, और जब जीजू दीदी के निप्पल को मींज रहे थे तब मेरे दिमाग में अंतर्द्वंद चल रहा था कि क्या इस तरह अपनी सगी बड़ी बहन को अपने पति के साथ काम क्रीड़ा में रत देख कर मुट्ठ मारना सही है या नहीं। दीदी ने जीजू के धकेलकर बैड पर लिटा दिया और उनके लोअर को नीचे खींच कर उतार दिया, और फ़िर जीजू के लण्ड को चूसने लगी। मैंने गुड़िया को हजार रुपये देकर चोदा तो कई बार था, लेकिन इस तरह तन्मयता से उसने मेरे लण्ड को कभी नहीं चूसा था, जैसा दीदी जीजू के लण्ड को चूस रही थी।
मैं जब इन्ही विचारों में मग्न था तभी मेरा लण्ड फ़िर से फ़नफ़ना कर खड़ा हो गया, लेकिन तभी दीदी और जीजू ने अपने कपड़े पहनने शुरु कर दिये, मैं तुरंत ड्रॉईंगरूम में आकर सोफ़े पर बैठ कर टीवी पर चल रही मूवी देखने लगा। कुछ पल बाद ही दीदी और जीजू भी ड्रॉईंगरूम में मेरे पास आकर मूवी देखने लगे। दीदी की नजर बार बार मेरे बॉक्सर में बने तम्बू पर जा रही थी, वो कनखियों से जीजू को भी देख रही थीं कि उन्होने मेरे लण्ड से बॉक्सर में बने तम्बू को नोटिस किया है या नहीं, लेकिन जीजू मूवी देखने में मग्न थे। दीदी ने उस दिन से पहले मेरे लण्ड को इस तरह कभी नहीं देखा था, और देखती भी क्यों आखिर मैं उनका छोटा भाई था। लेकिन आज जिस तरह मेरा लण्ड बॉक्सर में तम्बू बनाकर खड़ा था, तो उनकी नजर का मेरे लण्ड पर जाना लाजमी थी।
दीदी के मुँह में अभी भी जीजू के वीर्य का स्वाद आ रहा था, और आज उनकी पिछले दो महिने से बिना चुदी चूत की आग अभी तक जीजू के लण्ड ने शांत नहीं की थी। दिन में दो बार जीजू का लण्ड चूसने के बाद, और अब अपने भाई के लण्ड के साइज का अनुमान लगाते हुए उनकी चूत ने पनिया कर पैण्टी को गीला कर दिया था।
दीदी को अपने आप पर भरोसा नहीं हो रहा था कि वो अपने छोटे भाई के लण्ड के बारे में सोच रही थीं, वो मूवी देखत हुए बीच बीच में अब मेरे बैठते जा रहे लण्ड को कनखियों से देख लेतीं।
मूवी के खत्म होने से कुछ देर पहले ही मम्मी पापा वापस घर आ गये, और मूवी खत्म होने के बाद हम सभी अपने अपने कमरों में चले गये। मैं बैड पर लेटा लेटा सोच रहा था कि जीजू किस तरह दीदी को पूरा नंगा कर के, उनकी गोरी लम्बी टाँगों को फ़ैला कर, मसल मसल कर चोद रहे होंगे। ये सोचते हुए मैं मुट्ठ मार रहा था।
और उधर शायद गिफ़्टी दीदी भी जीजू के लण्ड को पकड़कर अपनी चूत में घुसा रही थीं तो उनके जेहन में भी अपने छोटे भाई के बॉक्सर में, लण्ड के बने तम्बू की तस्वीर घूम रही थी। अगले दिन अजय जीजू फ़िर से लण्दन जाने वाले थे इसलिये उस रात दीदी को जीजू से चुदना लाजमी था।
हम दोनों भाई बहन अपने अपने जिस्म की आग को शांत करके, अलग अलग रूम में जब नींद के आगोश में आ रहे थे, तब भी दोनों के दिमाग में एक दूसरे के जिस्म को नंगा देखने के नये नये तरीके आ रहे थे।
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