RE: vasna kahani चाहत हवस की
''ओह मम्मी हम ऐसे ही चुदाई किया करेंगे, हमेशा… ऐसी ही चुदाई… बहुत मजा आता है मम्मी…आई लव यू मम्मी…!"
''म्म्मुआआ… आई लव यू बेटा!" मैं धीमे से बोली, अपने बेटे के लण्ड को एक बार फ़िर से अपनी चूत में जड़ तक घुसा कर, मैं खुशी के मारे काँप रही थी।
मुस्कुराते हुए मैं थोड़ा आगे झुक गयी, मेरे मम्मे विजय की छाती से मसलने लगे, हम दोनों के होंठ एक दूसरे को छूने लगे, मैं अपनी प्यासी चूत को विजय के फ़नफ़नाते लण्ड पर रगड़ते हुए मानो दही बिलोने लगी। मुझे विजय के लण्ड का अपनी चूत में घुसे होने का एहसास बहुत अच्छा लग रहा था, जिस तरह से विजय का लण्ड मेरी चूत को पूरी तरह भर देता था, चूत के छेद को खोलते हुए, चूत की गुफ़ा में मजे से अंदर घुस जाता था, और चूत के अंदर हर संवेदनशील हिस्से को प्यार से सहला देता था, वो एक मस्त एहसास था।
मैं आनंदित होकर मस्ती में डूबी हुई थी, और विजय अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसाकर, हर झटके के साथ अपनी गाँड़ ऊपर करते हुए, मुझे अपने ऊपर उछाल रहा था, हम दोनों के बदन स्वतः ही चुदाई की ताल से ताल मिला रहे था।
अपने बेटे विजय के खुले हुए होंठों को चूसते हुए, एक माँ के मुँह से जो वाक्य निकला उसके हर शब्द में सच्चाई थी : "बेटा, हम दोनों हमेशा ऐसे ही किया करेंगे… हाँ सच में बेटा… हाँ…''
***
गुड़िया के मुँह से उसकी मम्मी की अपने बेटे से चुदाई की दास्तान सुनने के बाद मेरे लण्ड में भी हरकत होने लगी थी। मेरा भी मन गुड़िया से लण्ड चुसवाने का करने लगा, मैंने अपने वॉलट में से हजार रुपये का नोट निकाला और गुड़िया की चुँचियों को दबाते हुए, और अपने लण्ड को पाजामे में से बाहर निकलाते हुए मैंने गुड़िया को एक हजार रुपये देते हुए पूछा से , “लेकिन तुम तो बता रहीं थीं कि तुमको भी विजय कई बार चोद चुका है, उसकी शुरूआत कब और कैसे हुई, उसके बारे में भी बताओ ना।
गुड़िया मेरे लण्ड को अपने सीधे हाथ में लेकर हिलाने लगी, और अपने मुँह में लेकर चूसने से पहले, उसने अपने भाई विजय से अपनी चुदाई की जो कहानी सुनाई वो कुछ इस तरह थी:
अब आगे की कहानी गुड़िया की जुबानी
मम्मी की विजय से हुई चुदाई के किस्से सुनकर मुझे भी विजय से चुदवाने का मन करने लगा था, जब मम्मी को अपने सगे बेटे विजय से चुदने में कोई एतराज नहीं था, तो मैं तो उस समय कच्ची कली थी, जिसकी चूत में हमेशा खुजली मची रहती थी।
जब विजय और मैंने जवानी की दहलीज पर कदम रखा तो एक बार मम्मी को हम दोनों को एक साथ अकेला छोड़कर किसी वजह से मामा के घर जाना पड़ा, उस दिन से हमारी जिन्दगी ही बदल गयी। जाने से पहले मम्मी मुझे विजय का ठीक से ध्यान रखने का बोल कर गयी थीं।
मुझे अच्छी तरह याद है, वो जून का महीना था, रात में खाना खाने के बाद, लाईट ऑफ़ होने के कुछ देर बाद ही विजय खिसक कर मेरे पास आ गया और उसने कुछ देर बाद ही विजय ने मेरी पैण्टी में हाथ घुसा दिया था, और मैने भी अपनी टाँगें फ़ैलाकर मेरी पनिया रही चूत के साथ खेलने का उसको भरपूर मौका दिया था। विजय मुझे खींच कर कमरे में ले गया था, और जल्दी से घुटनों के बल बैठकर उसने एक झटके में उसने मेरी पैण्टी उतार कर मेरे घुटनों तक ला दी थी।
मैं खिसक कर बैड के सिरहाने पर सहारा लगा कर बैठ गयी, और अपनी टाँगें फ़ैला दी। विजय ने जब मेरी पैण्टी उतारनी शुरु की तो मैंने भी अपनी गाँड़ उठा दी, और उसे ऐसा करने में उसका सहयोग दिया। विजय मेरी नरम मुलायम और इर्द गिर्द झाँटों के हल्के हल्के बालों से घिरी खूबसुरत चूत को देखकर दीवाना हो गया। मैंने अपनी टाँगें थोड़ी और फ़ैला दी, जिससे उसको मेरी चूत का और बेहतर दीदार हो सके। जैसे ही मैंने अपनी टाँगें थोड़ा और फ़ैलायीं, मेरी चूत के दोनों होंठ अलग अलग हो गये और मानो मेरी गुलाबी चूत मेरे भाई विजय को सामने देख मुस्कुराने लगी।
विजय का लण्ड उसके पाजामे में तम्बू बना रहा था। विजय ने अपने पाजामे का नाड़ा खोला और पाजामे और अन्डरवियर को नीचे खिसका दिया, उसका लण्ड एकदम लोहे के डण्डे की तरह सख्त हो चुका था, लण्ड का सुपाड़ा फ़ूल कर लाल हो रहा था, जैसे ही विजय अपने लण्ड को मेरी चूत के मुँह की तरफ़ लाया, मैं सिहर उठी। जैसे ही उसने अपने लण्ड को मेरी चूत के होंठो पर रगड़ा, मैं बिन पानी मछली की तरह तड़पने लगी।
जैसे ही विजय ने अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसाने का प्रयास किया, मैं दर्द के मारे चील्लाने लगी। मेरी कुँवारी चूत में पहली बार किसी का लण्ड घुस रहा था। कुछ देर प्रयास करने के बाद जब विजय का बड़ा लण्ड मेरी छोटी सी चूत में घुसने में असफ़ल रहा, तो विजय ने ढेर सारा थूक अपने लण्ड के सुपाड़े पर लगा लिया। हम दोनों ने पापा को मम्मी को चोदते हुए ऐसा करते हुए देखा था। विजय की ये ट्रिक कार कर गयी और मेरी चूत की दोनों पन्खुड़ियाँ अलग अलग होकर विजय के लण्ड का स्वागत करने लगी, विजय के लण्ड का सुपाड़ा और लण्ड भी कुछ ईन्च मेरी चूत में आसानी से अन्दर घुस गया।
मेरा भाई विजय मेरी चूत की चिकनाहट और गर्माहट को अपने लण्ड से मेहसूस कर रहा था, मेरी चूत चुदने को बेकरार होकर बेपनाह पनिया रही थी। विजय का लण्ड मानो कोई गर्म छुरी हो जो अमूल बटर को काट रहा हो। मेरी चुदने को बेकरार चूत उसके लण्ड की पुरी लम्बाई पर चिकने लिसलिसे पानी की एक पतली सी परत चढा रही थी, जिससे उसके लण्ड को और ज्यादा गहराई तक जाने में आसानी हो सके।
किसी रोबोट की मानिंद मेरे भाई विजय की कमर स्वतः ही आगे पीछे होने लगी और उसका लण्ड मेरी चूत में हल्के हल्के धीरे धीरे अन्दर बाहर होने लगा। विजय के लण्ड और मेरी चूत में मानो आग लगी हुई थी। मेरी चूत में विजय के लण्ड के अन्दर बाहर होने से जो घर्षण हो रहा था वो दोनों के बदन में बेपनाह आग रही था। उस दिन मुझे एहसास हुआ कि क्यों चुदाई रिश्ते नाते मर्यादा सब कुछ भुलाने पर मजबूर कर देती है।
विजय के टट्टों में उबाल आना शुरु हो गया था, और मैं भी अपनी चूत की आग बुझाने के लिये अपनी गाँड़ उठा उठाकर अपने भाई विजय से मस्त चुदाई करवाने में उसका भरपूर सहयोग कर रही थी। एक बारगी जब हम दोनों, की आँख आपस में मिली तो मुझे एहसास हुआ कि विजय अपना पूरा लण्ड मेरी चूत में पेलकर मेरी चूत की पूरी गहराई को अपने लण्ड से नाप रहा था। मेरी चूत अब बड़ी आसानी से उसके पूरे लोहे जैसे लण्ड को निगलकर उसके लण्ड के झटकों के साथ खुल और सिंकुड़ रही थी। ये मेरी पहली चुदाई थी, लेकिन मैं अपने भाई विजय के लण्ड के झटकों से ताल से ताल मिलाते हुए कराह रही थी। मेरा भाई विजय मेरी चूत को अन्दर बाहर, ऊपर नीचे तो कभी साईड से, हर तरफ़ से चोद रहा था, और मेरी चूत उसको हर तरह से चोदने के लिये आमंत्रित कर रही थी। अपने माँ बाप और माँ और भाई की चुदाई देख देख कर ही शायद मैं एक्स्पर्ट हो गयी थी। विजय क लण्ड मेरी कुँवारी चूत का भोग करते हुए और मेरे करहाने की आवाज सुनकर मेरी छोटी सी चूत पर और ज्यादा ताबड़तोड़ प्रहार कर रहा था। जो कुछ हो रहा था वो नैचुरल था, मेरी चूत ने शुरु में जो प्रतिरोध किया था, उसे भूलकर वो अब चुदाई में सह्योग कर रही थी।
|