vasna kahani चाहत हवस की
12-20-2018, 01:23 AM,
#16
RE: vasna kahani चाहत हवस की
शाम हो गयी थी, बाहर अंधेरा होने लगा था, और मैं बिस्तर पर घोड़ी बनी हुई कराह रही थी, विजय पीछे से अपना लण्ड मेरी चूत में तेजी से पेल रहा था, तभी उसने मेरी वीर्य से भरी चूत में से अपना लण्ड फ़च्च की आवाज के साथ बाहर निकाल लिया, मुझे रिक्तता का अनचाहा अनुभव होने लगा। लेकिन जैसे ही विजय के लण्ड ने मेरी गाँड़ के छेद को छुआ तो मेरी नाराजगी खुशी में तब्दील हो गयी। हाँफ़ते हुए विजय ने अपने फ़नफ़नाते वीर्य के पानी से चिकने हुए लण्ड के सुपाड़े को मेरी गाँड़ की मोटी गुदाज गोलाईयों के बीच की दरार में घुसाते हुए मेरी गाँड़ के छेद पर सहलाना शुरू कर दिया। 

सिर उठाकर कंधे के ऊपर से पीछे देखते हुए मैंने शैतानी भरे अंदाज में कहा, ''ओह बेटा, मैं तो सोच रही थी कि कहीं तू मेरे उस छोटे से छेद को भूल तो नहीं गया!"

विजय थोड़ा शर्माते हुए हँस दिया, लेकिन जब उसकी आँखें मेरी आँखों से मिली तो उनमें वासना साफ़ झलक रही थी। ''ऐसा हो सकता है क्या मम्मी! मैं तो आपकी चूत को बस थोड़ा आराम देना चाह रहा था बस…''

''ऑ… मेरा प्यारा बेटा, कितना समझदार है!"

बैड पर उल्टा लेटे हुए अपनी गाँड़ की गोलाईयों को अपने दोनों हाथों में भरकर मैंने अपनी गाँड़ को चौड़ा करके खोल दिया, जिससे विजय मेरी गाँड़ के छोटे से गुलाबी छेद में लण्ड आसानी से घुसा सके, ऐसा करते हुए मेरे चेहरे पर चिर परिचित मुस्कान आ गयी। जैसे ही विजय ने मेरे ऊपर आते हुए अपने बदन का भार मेरे ऊपर डाला, मैं मस्त होकर कसमसाकर उठी और मेरे मुँह से हल्की सी चीख निकल गयी। जब विजय मेरी गाँड़ में अपने लण्ड को आसानी से घुसाने के लिये अपने वीर्य के पानी और मेरी चूत के रस से चिकना कर रहा था, तो बस उसकी हल्के हल्के गुर्राने की आवाज और मेरे कराहने की धीमी आवाजों के सिवा और कोई वार्तालाप नहीं हो रहा था। 

इससे पहले कि विजय का लण्ड मेरे गुदाद्वार में प्रवेश करता, मैं अपनी गाँड़ में विजय के लण्ड के घुसने की उत्सुकता के कारण अपने बेटे के सामने पूर्ण रूप से समर्पण कर चुकी थी। मैंने अपनी गाँड़ की माँसपेशियों को ढीला कर दिया, और विजय के वीर्य के वीर्य के पानी से चिकने हुए लण्ड को मेरी रबर समान लचीली गाँड़ में घुसने में जरा भी दिक्कत नहीं हुई। जैसे ही विजय के मूसल जैसे लण्ड ने मेरी गाँड़ के छेद को चौड़ा करते हुए धीरे से अंदर प्रवेश करना शुरू किया, मैं कराह उठी। विजय जैसा पहले कई बार कर चुका था, उसी तरह आराम से मेरी गाँड़ में अपना लण्ड घुसाकर, उसको अंदर बाहर करते हुए पेलना शुरू कर दिया। मेरी गाँड़ के द्वार को पूरी तरह खुलने के लिये शुरू में वो हल्के हल्के झटके मार रहा था, और साथ साथ मेरी अनोखी टाईट गाँड़ की गर्माहट का मजा ले रहा था। और फ़िर उसने अपना पूरा लण्ड मेरी गाँड़ में घुसा दिया, उसके टट्टे मेरी चूत से टकराने लगे।

विजय ने अपना एक हाथ बैड पर टिका कर अपना वजन उस प ले लिया, और दूसरे हाथ से वो मेरी चूत के दाने को सहलाने लगा। विजय का मांसल बदन मेरे गदराये गुदाज शरीर के ऊपर छाया हुआ था, और मेरी गाँड़ उसके लण्ड की मोटाई के अनुसार अपने आप को ऐड्जस्ट कर रही थी। विजय का सिर मेरे कन्धे पर टिका हुआ था, और वो मेरी गर्दन को चूमते हुए अपनी कमर को आगे पीछे कर अपने लण्ड से मेरी गाँड़ में आराम से धीरे धीरे गहरे झटके मार रहा था। 

मजे से गाँड़ मरवाने का जुनून इस कदर मेरे ऊपर सवार हो गया था कि मैं विजय के गुर्राने का जवाब भी अपनी धीमी चीखों के साथ नहीं दे रही थी। हर झटके के साथ जब उसका लण्ड मेरी गाँड़ में अंदर घुसता तो बार बार विजय अपनी मम्मी की गाँड़ की भक्ती की गवाही देता, और मेरे कान को चूसते हुए, धीमे से मेरी तारीफ़ के कुछ शब्द कह देता। जिस तरह से मेरी चूत के दाने के सहला कर गोलाई में मसलते हुए विजय मेरी टाईट गाँड़ के छेद में अपने मोटे लण्ड को अंदर गहराई तक पेल रहा था, मैं मस्त होकर निढाल होते हुए लम्बी लम्बी साँसे लेते हुए खुशी से काँप रही थी।

और फ़िर जब विजय झड़ा तो जितना भी वीर्य उस दिन के चुदाई समारोह के दौरान उसकी गोटियों में बचा था उसने मेरे गुदा द्वार को भर दिया। मैं तो इतनी बार झड़ चुकी थी कि मानो मैं निढाल होकर बेहोश हो चुकी थी। लेकिन एक बार अंत में फ़िर से मेरा बदन में झड़ते हुए काँप उठा, ऐसा विजय के मेरे चूत के फ़ूले हुए दाने को रगड़ने की वजह से हुआ। लेकिन मुझे पता नहीं चल रहा था कि मस्ती मेरी चूत में आ रही थी या फ़िर ऐंठते हुए संवेदनशील गाँड़ के छेद में से। 

उस वक्त ये बात कोई मायने नहीं रखती थी। चरमोत्कर्ष की ऊँचाई से नीचे आते हुए हम दोनों माँ बेटे अगल बगल टाँग में टाँग फ़ँसा कर, दोनों पसीने में तरबतर निढाल होकर हाँफ़ रहे थे, और एक दूसरे को जकड़े हुए लेटे हुए थे। नींद के गहरे आगोश में जाते हुए मेरी आँखों के बंद होने से पहले मुझे बस इतना याद है कि विजय मेरे मम्मों को अपनी बाहों में जकड़ते हुए मेरी गर्दन को चूम रहा था।

अगले दिन जब मेरी आँख खुली तो होटल के रूम की खिड़की से आती तेज धूप बता रही थी कि दोपहर हो गयी थी। मैंने विजय को अपने पास बैठकर मुझे निहारते हुए पाया। 

''गुड मॉर्निंग मम्मी,'' विजय ने मुझसे कहा, और फ़िर मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिये। ''मैं तो बहुत देर से जागा हुआ हूँ, शायद मेरा छोटू तो मेरे से भी पहले उठ गया था,'' विजय मुस्कुराकर अपने लण्ड की तरफ़ इशारा करते हुए बोला। 

मैं खिलखिला कर हँस दी, और विजय के लण्ड को हल्का सा सहलाकर अपने हाथ में पकड़ में पकड़ कर हिलाने लगी। 

विजय खुश होकर मुझसे जोरों से चिपक गया, और मेरे होंठों को चूमने लगा। शायद विजय मुझे इतना प्यार से चूमकर अपनी व्यक्त ना की जा सकने वाली खुशी और प्रसन्नता का इजहार कर रहा था। 

मैं उसके लण्ड को जल्दी तेजी से मुठियाने लगी, विजय ने एक पल को चूमना छोड़ कराहने लगा। 

''जोर से करो मम्मी, आह्ह्…'' विजय चीख कर बोला। 

''ना बेटा,'' मैंने मुस्कुराकर जवाब दिया। और फ़िर विजय को सीधा लिटाते हुए, उसके ऊपर सवार होकर मैंने थोड़ा गम्भीर होते हुए कहा, ''मैंने ठान लिया है कि जब भी हम दोनों साथ होंगे, मैं एक पल भी जाया नहीं होने दूँगी बेटा।''

विजय ने हामी में सिर हिला दिया, और मैंने उसका लण्ड पकड़कर अपनी चूत के छेद पर लगा दिया। ''अगले हफ़्ते जब तक गुड़िया बुआ के घर से वापस नहीं लौटकर आती, मैं हर एक पल को जीवन भर सहेज कर रखना चाहती हूँ, विजय बेटा,'' मैंने उसके मूसल जैसे लण्ड के ऊपर अपनी पनियाती मुलायम चूत को रगड़ते हुए कहा। ''और गुड़िया के लौटने के बाद तब की तब देखेंगे।''

जैसे ही विजय के लण्ड के ऊपर बैठते हुए उसको अपनी चूत के अंदर लिया, हम दोनों एक साथ कराह उठे। लण्ड ईन्च दर ईन्च मेरी चूत में घुसता जा रहा था, मैंने आह भरते हुए विजय से पूछा, ''अपनी मम्मी को ऐसे ही प्यार करते रहोगे ना बेटा?"
मैं एक गहरी साँस लेकर रुक गयी, विजय का लण्ड अभी आधा ही मेरी चिकनी चूत में घुसा था, तभी हम दोनों की आँखें मिल गयी। विजय रूँधे गले के साथ किसी तरह बोला, ''हाँ मम्मी हमेशा…''

और फ़िर मेरी गाँड़ की गुदाज गोलाईयों को अपने हाथों में भरकर विजय मुझे अपने लण्ड के ऊपर उछालने लगा, बस एक दो बार उछालने के बाद उसका लण्ड पूरा मेरी चूत के अंदर घुस गया। जब मैं विजय के ऊपर सवारी कर रही थी, तब अपनी माँ की चूत की चिकनी मखमली दीवार का घर्षण अपने लण्ड पर ऊपर से नीचे तक मेहसूस करते हुए विजय गुर्राने लगा था, मेरी आँखें बंद होने लगी थीं, और मेरे बड़े बड़े मम्मे हर उछाल के साथ उछल रहे थे।
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RE: vasna kahani चाहत हवस की - by sexstories - 12-20-2018, 01:23 AM

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