RE: vasna kahani चाहत हवस की
विजय का दिमाग घूम रहा था, और उसके कानों में मेरी दर्खाव्सत गूँज रही थी, फ़िर उसने अपने लण्ड को मेरी चूत में अंदर बाहर करना शुरू कर दिया। मेरी पनिया रही चिकनी चूत जिसने उसके लण्ड को जकड़ रखा था, उसमें उसने अपने मूसल लण्ड के धीरे धीरे झटके मारने शुरू किये। लेकिन कुछ ही सैकण्ड में उसकी बलवती होती चुदास और मेरी कामुक बातों का उस पर असर होने लगा, और वो मेरी चूत में अपने लण्ड के जोर जोर से झटके मारने लगा। और फ़िर वो अपनी मम्मी को पागलों की तरह चोदने लगा।
जब उसका लण्ड मेरी चूत में घुसता तो हर झटके के साथ हर बार उसकी स्पीड और गहराई तेज होती जा रही थी। विजय मस्ती में डूबकर आहें भर रहा था। मेरी मखमली चिकनी चूत के एहसास के साथ मेरी चूत जो उसके लण्ड को निचोड़ रही थी वो उसका हर झटके के साथ मजा दोगुना कर रही थी।
हम दोनों माँ बेटे ताल से ताल मिलाते हुए, स्वतः ही झड़ने के करीब पहुँच चुके थे। मेरी घुटी दबी आनंद से भरी आवाजें, उसके हर झटके की थाप के साथ चुदाई का मधुर संगीत बना रही थी। मैं अपने बेटे का लण्ड अपनी चूत में घुसवाकर मस्त हो रही थी, और विजय अपनी मम्मी की मुलायम मखमली चूत जिसने उसके लण्ड को अपनी चिकनाहट में जकड़ रखा था में अपने लण्ड को घुसाकर, अपनी मम्मी को मसलते हुए ताबड़तोड़ चोदे जा रहा था।
सारी दुनिया से बेखबर हम दोनों माँ बेटे आलिंगनबद्ध, दो जिस्मों को एक बनाकर, हर वर्जना को तोड़ते हुए चुदाई का अपार आनंद ले रहे थे। उस वक्त चूत और लण्ड का मिलन ही सर्वोपरी था। विजय के हर झटके के साथ ताल में ताल मिलाते हुए, मैं अपनी गाँड़ ऊपर उछाल रही थी, जिससे मेरी चूत का चिकना छेद उसके लण्ड को हर झटके को आराम से ऊपर होकर लपक लेता था, विजय मेरी गर्दन को तो कभी मेरी उभरे हुए निप्पल को चूस रहा था। विजय मेरे प्यार में वशीभूत, वासना में डूबकर अपनी खूबसूरत माँ को चोदे जा रहा था।
चुदाई के चरमोत्कर्ष पर पहुँच कर मैं एक अलग ही दुनिया में मानो जन्नत की सैर कर रही थी, तभी विजय बोला, ''मेरा पानी निकलने ही वाला है, मम्मी,'' और फ़िर उसने अपने लण्ड अंधाधुंध मेरी रस टपका रही चूत में पेलना शुरू कर दिया। ''ओह मम्मी मैं बस आपकी चूत में झड़ने ही वाला हूँ, ओह्ह्ह मम्मी…''
अपने बेटे के लोहे के समान सख्त लण्ड के अंतिम झटकों को झेलते हुए मैं कुछ भी बोलने की स्थिति में नहीं थी। जैसे ही विजय के लण्ड ने अंतिम झटका मारा, मेरी चूत में से भी मानो ज्वालामुखी की तरह विस्फ़ोट हो गया। विजय अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसाये गर्म गर्म वीर्य की धार पर धार से मेरी प्यासी चूत में बौछार कर रहा था। उसने इतना ज्यादा पानी छोड़ा कि मेरी चूत की सुरंग में मानो बाढ ही आ गई। वीर्य निकालते हुए विजय के मुँह से जो संतुष्टी भरी आवाज निकल रही थी, मेरी चीख उसका बराबर मुकाबला कर रही थी। मेरे गर्भाशय से टकराती उसके वीर्य के गर्म पानी की पिचकारी को मेहसूस करते हुए, मैं मन ही मन सोचने लगी कि विजय की जवानी में निकले इतने सारे वीर्य के पानी से कोई भी लड़की एक बार में ही गर्भवती हो जाये।
जैसे ही मैं अपने चर्मोमत्कर्ष पर पहुँची तो मेरी चूत ने विजय के लण्ड को कसकर जकड़ लिया, और उसको निचोड़ने लगी, और उसके तने हुए लण्ड को चूत के रस से नहलाने लगी। मैं अपने बेटे विजय के लण्ड से निकले वीर्य के पानी को अपनी चूत में मेहसूस करते हुए इस वर्जित सुख का आनंद ले रही थी। मैं विजय के कन्धों को अपने नाखून से नोंचने लगी, और अपनी टाँगें उसकी कमर पर कसकर लपेट लीं, और अपने बेटे के नीचे लेट हुए मैं काँप रही थी, मैं और विजय दोनों कामोन्माद में डूब रहे थे।
विजय इतना अच्छा वाला झड़ा था, कि जैसे ही उसके लण्ड से स्खलन बंद हुआ, वो मेरे गुदाज बदन पर निढाल होकर लेट गया। उसने अपना सिर मेरे मम्मों पर टिका लिया, और मेरे बदन की जानी पहचानी गंध को सूँघने लगा, मेरी सामान्य होती साँसें मानो उसको थपकी दे रही हों। विजय मेरी दिल की धड़कन को धीरे धीरे सामान्य होता सुन रहा था, मेरे पैरों की जकड़ उसकी कमर पर ढीली हो गयी थी, और मेरी बाँहों की जकड़ में भी अब हताशा की जगह प्यार था। अभी भी हम दोनों के यौनांग आपस में जुड़े हुए थे, और हम माँ बेटे दो संतुष्ट प्रेमियों की तरह कामोन्माद के अंतिम प्रहर का मजा ले रहे थे।
जब विजय ने आँखें खोलकर मेरी तरफ़ देखा, तब भी उसका सिंकुड़ा हुआ लण्ड मेरी रस से डूबी हुई चूत के अंदर था। मुझे उसकी तरफ़ मुस्कुराता हुआ देखता हुआ पाकर उसको थोड़ा अचरज हुआ, मेरा चेहरा दमक रहा था, मेरी आँखों में अजीब चमक थी। लेकिन मेरी आँखों से आँसू निकल कर मेरे गालों पर लुढक रहे थे।
''मम्मी…'' उसने गहरी साँस लेते हुए घबराकर मुझसे पूछा, ''क्या हुआ मम्मी?"
मेरी बगल में साईड से लेटते हुए, उसको लगा कि शायद मुझे कहीं दर्द हो रहा है, और उसने तुरंत अपने लण्ड को मेरी चूत से बाहर निकाल लिया। चूत में से लण्ड के बाहर निकलते ही मुझे कुछ रिक्तता का एह्सास हुआ, और मैं फ़िर से होश में आ गयी। मैंने पलक झपकाई और सिर को हिलाया, मानो मेरे खुद समझ नहीं आ रहा था कि मेरे गाल आँखों से निकले आँसू से क्यों भीग रहे थे। जैसे ही विजय पींठ के बल सीधा लेटा, मैं उसके पीछे पीछे उसके ऊपर सवार हो गयी, और अपनी चूत जिससे वीर्य चूँ कर बाहर टपक रहा था, उसको विजय के सिंकुड़े हुए मुलायम लण्ड पर रख कर दबा दिया।
विजय की गोद में बैठकर, मैं उसके उदास चेहरे को सहलाने लगी, और मुस्कुराते हुए उसको खुश करने का प्रयास करने लगी। और फ़िर भावुक भरभराई आवाज में बोली, ''कुछ नहीं हुआ बेटा, परेशान होने की कोई बात नहीं है, सब ठीक है।''
''तो फ़िर आप रो क्यों रहीं थीं?" विजय हकलाते हुए बोला, वो मेरे होंठों पर लगातार बनी मुस्कान देखकर वो थोड़ा उलझन में पड़ गया। ''अगर मेरी वजह से आपको दर्द हुआ है, तो मुझे माफ़ कर दो मम्मी, लेकिन…''
"सच में बेटा, सब ठीक है,'' विजय के होंठों को चूमने के लिये जैसे ही मैं आगे झुकी, मेरे मम्मे विजय की बलिष्ठ छाती को दबाने लगे। ''कुछ नहीं हुआ, तुम्हारी वजह से कुछ दर्द नहीं हुआ है, असल में तो तुमने तो मुझे बहुत अच्छा प्यार किया, मजा आ गया, मैं तो…''
मैं आह भरकर गुस्से में दूसरी तरफ़ देखने लगी। मुझे अपने आप पर बहुत गुस्सा आ रहा था, कि मैंने बेकार में इतने अच्छे खासे अपने बेटे से चुदाई के सुंदर मौके को बेकार कर दिया था। अपनी असुरक्षा के बारे में इस वक्त सोचना बेमानी था।
''सच सच बताओ, मम्मी,'' विजय जिद करते हुए बोला, वो समझ गया था कि मैं कुछ छुपा रही थी। ''मैं आपको रोता हुआ नहीं देख सकता, कभी नहीं।''
जैसे ही मैंने उसकी तरफ़ चेहरा घुमाया, उसने मेरे गालों को अपने हाथों में भर लिया, और अपनी ऊँगलियों से मेरे आँसू पोंछने लगा। हम दोनों माँ बेटे एक दूसरे की आँखों में देख रहे थे, मैंने एक आह भरकर सिर हिलाते हुए बात को टालने की कोशिश की।
''अरे बेटा, कुछ नहीं, मैं तो बस वैसे ही…हम दोनों के बार में सोच रही थी। मैं भी कभी कभी कैसी बच्चों जैसी स्वार्थी हरकत कर बैठती हूँ।'' मैं झेंप कर हँसते हुए बोली, जिस से बात आई गयी हो जाये।
"आप स्वार्थी नहीं हो मम्मी,'' विजय ने मेरी पींठ और गदराये बदन को सहलाते हुए कहा। ''एक बार आप बताओ तो सही कि आप किस बात से परेशान हो, हम मिल कर कोई समाधान निकालेंगे। मैं आपसे बहुत प्यार करता हूँ, बस आप बताओ मुझे।''
''ओह बेटा, तू नहीं मानेगा,'' उसकी बात सुनकर मैं पिघल गयी। मैं अपने आप पर काबू नहीं रख पायी, और मैंने झुककर विजय के होंठों को चूम लिया, और फ़िर अपने मम्मे उसकी छाती पर दबाते हुए उसके कन्धे पर अपना सिर रख दिया।
विजय मेरे गालों को अपने हाथों से सहला रहा था, और उसका लण्ड मेरी वीर्य से भीगी चूत की फ़ाँकों के बीच दबा हुआ था। मैंने सिर घुमाकर विजय की निश्चल सतेज आँखों में देखा। उसके प्यार से अभीभूत होकर, उसकी बलिष्ठ बाहों में आ रहा सुरक्षा का एहसास, मुझे सब कुछ सच सच बोलने को मजबूर कर रहा था। मैं ऐसे सच्चे भरोसेमंद प्यार करने वाले से कुछ भी नहीं छुपाना चाहती थी, और अपनी असुरक्षा वाली बात उसको बताने को मजबूर हो गयी थी।
''मैं तो बस भविष्य के बारे में सोच रही थी, बेटा,'' मैं धीमे से बोली, आर फ़िर अपने आप शब्द मेरे मुँह से निकलते चले गये। ''कुछ साल बाद जब तुम्हारी शादी हो जायेगी बेटा, मुझे डर है कहीं हमारा ये सब खत्म ना हो जाये,'' मैं गहरी साँस लेते हुए बोली। फ़िर इससे पहले कि मैं हताश होती, मैंने अपने आप को हिम्मती बहादुए दिखाते हुए कहा, ''और शायद वो ही ठीक भी होगा, और ऐसा ही होना चाहिये। मुझे पता है लेकिन मैं बर्दाश्त करने को तैयार हूँ, लेकिन मैं अपने आप को उस वक्त के लिये मानसिक रूप से तैयार कर रही हूँ। और वो सब सोच के ही मैं उदास हो जाती हूँ, मुझे माफ़ कर दो, मैंने तुम्हारा मूड खराब कर दिया।'' मैंने विजय के गालों को सहलाकर उसको चूमते हुए कहा, ''बस इसीलिये मैं थोड़ा परेशान थी, तुम्हारी मम्मी तुम्हारी कमी को बहुत ज्यादा मेहसूस करेगी बेटा…।''
विजय की आवाज भर्रा कर काँपने लगी, वो किसी तरह बोला, ''आप कहना क्या चाहती हो, खत्म हो जायेगा, क्यों खत्म हो जायेगा, और मेरी शादी तो होने में अभी काफ़ी साल बाकी हैं, पहले तो हम गुड़िया की शादी करेंगे, और फ़िर…''
और फ़िर मैं कुछ देर तक विजय को लगातार चूमती रही, और उसको खामोश रहने पर मजबूर कर दिया। जैसे ही मैंने अपने होंठ उसके होंठों पर से हटाये, मैं तुरंत बोली, "बेटा, मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूँ, मैं चाहती हूँ कि तुमको दुनिया की सारी खुशियाँ मिलें, तुम हमेशा खुश रहो। मुझे पता है तुम उस बारे में अभी सोचना भी नहीं चाहते हो, लेकिन मुझे पक्का विश्वास है कि एक बार जब तुम्हारी शादी हो जायेगी तो तुम अपनी जवान बीवी से प्यार करने लगोगे। मुझे गलत मत समझो लेकिन ऐसा होना निश्चित है… मुझे तुमको खुश देखकर खुशी होगी, मैं अपनी बहू यानि तुम्हारी बीवी का बाँहें खोलकर स्वागत करूँगी, और तुम दोनों को एक साथ खुश देखकर, मैं दुनिया की सबसे खुश माँ होऊँग़ी। विजय मैं चाहती हूँ कि तुमको दुनिया की सब कामयाबी मिले और तुम हँसी खुशी अच्छा जीवन बिता सको। मैं तुमको अभी और हमेशा इतना ही प्यार करती रहूँगी। बस ये ही बात थी।''
एक बार फ़िर, मेरे चेहरे पर आँखों मे आँसू और होंठों पर मुस्कान एक साथ आ गये। मैंने विजय को कसकर अपनी बाँहों में जकड़ लिया, विजय मेरे उसके प्रति प्यार की गहराई देखकर अचम्भित हो रहा था। मेरी निष्ठा और दुलार ने उसको अभिभूत कर दिया था। मेरा प्यार हमारे भावनात्मक लगाव और शारीरिक सम्बंधों से आगे निकल चुका था। ये उस ऊँचाई को छू गया था कि मैं उसका त्याग करने को तैयार थी, जिससे वो मुझे पीछे छोड़कर, अपनी जिंदगी के रास्ते अपने आप तय कर सके। हाँलांकि विजय जानता था कि वो ऐसा कुछ नहीं करेगा, लेकिन फ़िर भी वो अपनी मम्मी की त्याग भावना को देखकर अवाक था। मैं तो उससे विरह का दर्द झेलने के लिये तैयार थी, क्योंकि ये उसके भले के लिये अच्छा था।
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