RE: vasna kahani चाहत हवस की
अपनी मम्मी के गर्म गर्म मुँह में अपने लण्ड को घुसाकर विजय जन्नत की सैर कर रहा था। मेरे सिर को अपने हाथों से पकड़े हुए, विजय अपनी गाँड़ को आगे पीछे करने लगा, और मेरे मुँह की चुदाई के साथ ताल में ताल मिलाने लगा। और कुछ देर बाद विजय बुदबुदाया, ''मैं झड़ने ही वाला हूँ… मम्मी…''
जैसे ही विजय के लण्ड से निकली वीर्य की पिचकारी मेरे गले से जाकर टकरायी, मैंने अपनी उँगली चूत के दाने को मसलते हुए, चूत में अंदर तक घुसा दी, और विजय के साथ मैं खुद भी झड़ गयी। विजय के लण्ड से मेरे गले में जो घुटन हो रही थी, वो मुझे और ज्यादा मजा दे रही थी। विजय का लण्ड मेरे मुँह में पूरा घुसा हुआ था, और वीर्य की पिचकारी पर पिचकारी मेरे गले में छोड़े जा रहा था, जिसको मैं साथ साथ निगले जा रही थी।
जब विजय का लण्ड फ़ड़कना बंद हो गया, और मैंने उसके लण्ड से निकली वीर्य की आखिरी बूँद चाट ना ली, तब जाकर मैंने उसके लण्ड को अपने होंठों के बीच से नहीं निकलने दिया। और फ़िर सारा वीर्य चाटने के बाद मैंने उसकी गोलीयों को टट्टों के ऊपर से चूम लिया, और फ़िर अपने होंठों पर जीभ फ़िराकर साफ़ करते हुए मैंने विजय की तरफ़ देखा।
''वाह मम्मी मजा आ गया,'' अपनी मम्मी को लण्ड से निकलती वीर्य की आखिरी बूँद चाटते हुए देख विजय बोला, ''इतना अच्छा वाला तो पहली बार झड़ा हूँ!" विजय जब ये बोल रहा था, तो मैंने अपने घुटनों के बल बैड पर बैठते हुए, उसके सिंकुड़ते हुए लण्ड को अपने मम्मों के बीच दबा लिया।
''मुझे भी बहुत मजा आया बेटा!" मैंने कहा, और फ़िर उसके लण्ड को अपने मम्मों के बीच लेकर, मम्मों को उसके लण्ड ऊपर नीचे करने लगी, और बीच बीच में उसके सुपाड़े के अग्र भाग को अपनी जीभ से चाट लेती, मैं उसके लण्ड को खड़ा ही रखना चाहती थी। विजय ने अपने हाथों से मेरे मम्मों को साइड से पकड़कर, लण्ड के ऊपर दबाते हुए, मेरे मम्मों को चोदने लगा। इस बीच मेरा भी एक हाथ मेरी चूत पर पहुँच गया, और मैं उस हाथ की ऊँगलियों को चूत की पनिया रही फ़ाँकों पर लगे जूस से गीला करने लगी।
"ये देखो?" मैंने विजय को अपनी चुत में डूबी ऊँगली दिखाते हुए कहा। और विजय की वासना में लिप्त आँखों के सामने ही अपनी जीभ से चाटकर साफ़ कर दिया, और मेरी जीभ विजय के लण्ड से निकले वीर्य और मेरी चूत के रस के मिश्रित स्वाद का मजा लेने लगी।
विजय ऐसा होता देख और ज्यादा उत्तेजित हो गया, और तेजी से अपने लण्ड को मेरे मम्मों के बीच की दरार में अंदर बाहर करने लगा। अपने बेटे के लण्ड को अपने मम्मों के बीच की मुलायम खाई में फ़ँसाकर, मैं एक बार फ़िर से अपनी ऊँगली से चूत से टपक रहे रस में भिगोने लगी। और एक बार फ़िर से मादक आवाज निकालते हुए और विजय को तरसाते हुए उस ऊँगली को चाटा तो विजय गुर्राते हुए और जोरों से मेरे मम्मे चोदने लगा।
विजय का लण्ड हर सैकेण्ड और ज्यादा कड़क होता जा रहा था, और मैं उसे अपनी मादक और कामुक अदाओं से और ज्यादा तरसा रही थी। ''म्म्म्म्ह्ह्ह्… टेस्टी है,'' मैं कामुक अंदाज में बोली, और चूत के रस में गीली दूसरी ऊँगली को अपने होंठों पर रख लिया, ''तुमको पता है, मेरी चूत का रसीला पानी बहुत टेस्टी है… और अब तुम्हारे वीर्य से मिक्स होकर तो और भी ज्यादा अच्छा लग रहा है, बेटा।''
''हाँ मुझे पता है मम्मी,'' मेरे मम्मों के बीच अपने लण्ड को जोरों से पेलता हुआ विजय बोला, ''आपकी चूत तो वाकई में बहुत टेस्टी है मम्मी।'' और एक पल के लिये मेरे मम्मों को चोदना रोक कर वो बोला, ''मेरा तो मन कर रहा है अभी इसी वक्त आपकी चूत के रस को थोड़ा चाट ही लूँ।
इससे पहले की मैं सम्भल पाती, विजय ने मेरी टाँगों के बीच अपना चेहरा घुसा दिया, और अपने होंठों से मेरी चूत की फ़ाँकों पर लगे रस को अपनी जीभ से चाटने लगा। लेकिन ऐसा करते हुए उसको संतुष्टी नहीं मिली, तो विजय ने मुझे गोदी में उठा लिया, और मेरे गुदाज माँसल चूतड़ों को मसलते हुए मुझे बैड पर लिटा दिया। मैं किसी कच्ची कुँवारी लड़की की तरह उसकी इस हरकत से अचम्भित होते हुए खिलखिलाने लगी।
जैसे ही मैं बैड पर लेती, मैंने अपनी टाँगें फ़ैला कर चौड़ी कर दिया, और जैसा वो चाहे वैसा करने के लिये, विजय के सामने मैंने अपने आप को प्रस्तुत कर दिया। विजय के फ़ुँकारते हुए लण्ड को देखकर, मेरे मन में जल्द से जल्द उसको अपनी चूत में घुसवाने का मन करने लगा, और इसी इच्छा में मैं अपने होंठों को अपने दाँतों से काटने लगी। हाँलांकि उस वक्त विजय मन ही मन कुछ और ही करने की सोच रहा था।
''आप तो बहुत ज्यादा पनिया रही हो मम्मी!" विजय मेरी केले के तने मानिंद चिकनी जाँघों पर हाथ फ़िराते हुए, मेरी टाँगों के बीच आते हुए बोला। विजय मेरी पनिया कर रस से भीगी हुई चूत की दोनों फ़ाँकों और चूत के दाने को देखकर विस्मित हो रहा था। एक पल को उसकी नजर मेरी परोसी हुई सुंदर चूत से हटकर, ऊपर फ़ूले हुए चूत के दाने पर जाकर टिक गयी, और फ़िर वो मेरे शर्मा कर लाल हुए चेहरे को देखने लगा।
''मुझे विश्वास नहीं हो रहा कि मैं अपने जीवन में पहली बार किसी चूत को चोदने जा रहा हूँ,'' वो वासना में डूबकर उत्तेजित होकर हाँफ़ते हुए बोला, उसको अभी भी अपनी किस्मत पर विश्वास नहीं हो रहा था। ''और वो चूत भी किसी और की नहीं आपकी है, मम्मी, बहुत मजा आ रहा है।''
अपने मम्मों को अपने हाथों से मसलते हुए, और अपनी टाँगों को और ऊपर उठाकर चौड़ा करते हुए, मैं अपने बेटे के सामने अपनी चूत चोदने के लिये परोस रही थी, मैंने फ़ुसफ़ुसाते हुए कहा, ''हाँ… बेटा… हाँआआ… चूस लो, चोद लो अपनी मम्मी की चूत को, जैसे चाहे जो चाहे कर लो बेटा हाँआआ!"
जैसे ही विजय अपनी जीभ लपलपाता हुआ मेरी चूत की तरफ़ बढा, मैं आनंदातिरेक में आहें भरने लगी। और जैसे ही उसने मेरी चूत को चाटना शुरू किया, मेरी आँखें स्वतः ही बंद हो गयी और मेरा पूरा बदन उत्तेजना में काँपने लगा। उसने मेरी चूत की दोनों फ़ाँको को अपने मुँह में भर लिया, और सपर सपर कर मेरी चूत को चुमते हुए चूसने लगा। बेहद उत्तेजित होने के कारण, कुछ ही सैकण्ड में मेरी चूत ने झड़ते हुए विजय के मुँह पर ही पानी छोड़ दिया, और मैं चरमोत्कर्ष पर पहुँचते हुए अपनी निप्पल को मींजते हुए जोर जोर से आहें भरने लगी।
''ओह्ह्ह्ह्ह्… विजय बेटाआआ, हाँआआआ…!"
जैसे ही मैं अपनी गाँड़ को उठाकर उसके खुले मुँह की तरफ़ उछालने लगी, विजय पागलों की तरह अपनी मम्मी की चूत को चाटकर खाने लगा, और बरसों से किसी चूत के रस के प्यासे की तरह चूत के पानी को पीने लगा। चूत के रस का स्वाद, मेरा कामुक अंदाज में कराहना, और अंततः अपनी मम्मी की चूत में लण्ड घुसाकर चोदने की आशा के साथ विजय मेरी चूत को दोगुने जोश के साथ चूसने लगा, और फ़िर उसने पहले एक और फ़िर दूसरी ऊँगली मेरी चूत में घुसा दी।
''हाँ बेटा, ऐसे ही!" मैं धीमे से बोली, लग रहा था कि मैं फ़िर से झड़ने वाली थी। ''बस ऐसे ही… ऐसे ही ऊँगली घुसाते रहो, बस ऐसे ही चाटते रहो! आहह्ह… तुम तो बहुत अच्छे से मजा दे रहे हो बेटा, अपनी मम्मी को!''
विजय पहले भी कई बार मेरी चूत को चूस और चाट चुका था, इसलिये वो मेरी हर हरकत से वाकिफ़ था, इसलिये इससे पहले कि मैं एक बार और झड़ जाती, विजय ने मेरी चूत को चाटना बंद कर दिया। मैं एक पल को नाखुश हो गयी। लेकिन फ़िर जैसे ही विजय ने अपनी जीभ से मेरी चूत के दाने को सहलाया, मेरे सारे बदन में एक तरंग सी दौड़ गयी और मेरे मुँह से जोर की आहह्ह निकल गयी।
''आह विजय बेटा!" मैं आनंदातिरेक में पूरे बदन को हिलाते हुए बोली, मेरा बेटा जो मजा मुझे दे रहा था वो अविस्मर्णीय था। जैसे ही विजय ने मेरी चूत में दो ऊँगलियाँ घुसाकर, चूत के दाने को अँगूठे से मसलना शुरू किया, मैंने बैडशीट को अपनी मुट्ठी में भर कर पकड़ लिया, और चीखते हुए बोली, ''आह्ह्ह्ह मेरा बेटा… हे भगवान…''
जब विजय ने मेरी चूत में ऊँगली घुसाना और जीभ से चाटना बंद किया, तब वासना मुझ पर पूरी तरह हावी हो चुकी थी। जब मैंने अपनी मस्ती में बंद आँखो को खोला तो विजय को मेरे चेहरे की तरफ़ देखते हुए पाया। जब वो मेरी नंगी गोरी चिकनी चौड़ा कर फ़ैली हुई टाँगों के बीच झुका तो उसके मुँह और ठोड़ी पर मेरे चूत का रस लगा हुआ था, और उसका लण्ड फ़नफ़ना रहा था।
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