RE: vasna kahani चाहत हवस की
विजय मुस्कुराते हुए मेरी मोटी मस्त गाँड़ में अपने लण्ड के लम्बे अंदर तक झटके मारे जा रहा था, वो मानो कोई सपना देख रहा था, और उस सपने को देखता रहना चाहता था। उसका अपनी मम्मी की गाँड़ मारने से मन ही नहीं भर रहा था। उसको विश्वास नहीं हो रहा था कि लण्ड चुसवाने से इतना ज्यादा मजा गाँड़ मारने में आता है।
मेरी गाँड़ की गोलाईयों पर हर झटके के साथ आ रही थप थप की आवाज पूरे कमरे में गूँज रही थी। मेरी हल्के हल्के कराहने की आवाज माहौल को और ज्यादा मादक बना रही थी। विजय को इस तरह हर वर्जना को तोड़ते हुए महुत मजा आ रहा था, वो समाज द्वारा वर्जित अपनी सगी माँ के साथ शारीरिक सम्बंध बनाते हुए उनके वर्जित गाँड़ के छेद में अपना लण्ड अपना लण्ड घुसाकर अंदर बाहर कर रहा था।
मैंने एक बार फ़िर से पीछे विजय की तरफ़ घूमकर देखत हुए कहा, ''और जोर से मारो बेटा, और जोर से… हाँ… ऐसे ही… आह्ह्ह्… अंदर तक घुसा दो बेटा अपना मोटा लण्ड अपनी मम्मी की गाँड़ में...ढंग से मार लो अपनी मम्मी की गाँड़,'' अपने बेटे के लण्ड को अपनी गाँड़ में घुसवाकर, और उसे पिस्टन की तरह अंदर बाहर करवाते हुए मैं मस्त हुए जा रही थी।
अपनी मम्मी के मुँह से ऐसी मस्त बातें सुनकर विजय का लोहे जैसा सख्त लण्ड और तेजी से मेरी टाईट गाँड़ के छेद के अंदर बाहर होने लगा, और वो भी झड़ने की कगार पर पहुँच गया था।
''आह्ह, मम्मी बस मैं झड़ने ही वाला हूँ… आपकी मस्त गाँड़ में मैं सारा पानी निकाल दूँगा… ओह मम्मी आपकी गाँड़ तो कमाल की है।''
''हाँ बेटा निकाल दो अपना सारा पानी अपनी मम्मी की गाँड़ में…भर दो इसको अपने पानी से…'' मैं हांफ़ते हुए झड़ने के करीब पहुँचते हुए बोली।
विजय तो मानो जन्नत की सैर कर रहा था, उसने अपने लोहे की रॉड जैसे लण्ड के अपनी मम्मी की गाँड़ में दो चार जोर जोर के झटके लगाने के बाद, एक बार जोर से अंदर तक लण्ड पेलते हुए ढेर सारा वीर्य का पानी मेरी गाँड़ में निकाल दिया। मैंने जैसे ही अपनी गाँड़ में उसके गरम गरम पानी को महसूस किया मैं भी उसी वक्त झड़ गयी। हम दोनों माँ बेटे एक साथ झड़ते हुए खुशी से जोर जोर से तरह तरह की आवाजें निकालने लगे।
झड़ने के कुछ देर तक विजय मेरी गाँड़ में वैसे ही अपना लण्ड घुसाये रहा, झड़ने के बाद मेरी गाँड़ का छेद सिंकुड़ कर विजय के लण्ड को भींच कर दबा रहा था। और फ़िर जब विजय ने अपना लण्ड मेरी गाँड़ में से बाहर निकाला तो मेरी गाँड़ का खुले हुए छेद में से फ़च्च की आवाज आयी। विजय फ़िर मेरे पीछे पींठ के पास निढाल होकर लेट गया, और मुझे अपनी बाँहों में भर लिया।
कुछ देर बाद मेरे बदन को सहलाते हुए जब विजय का एक हाथ मेरी चूत पर पहुँचा, तो दो ऊँगलियाँ मेरी चूत में घुसाते हुए विजय मेरे कान में फ़ुसफ़ुसाया, ''मम्मी आप तो बहुत ज्यादा पनिया रही हो, क्या मुलायम मस्त चिकनी गीली चूत हो रही है।''
विजय का लण्ड मेरी चिकनी गाँड़ की दरार में घुसने का प्रयास कर रहा था, और उसकी ऊँगलियाँ मेरी चूत में अंदर बाहर हो रही थी। मैंने अपना सिर घुमा कर विजय के चेहरे की तरफ़ देखा, मैं उसकी कराह में चूत में लण्ड घुसाने की तड़प को समझ रही थी।
''अपने लण्ड को मम्मी की चूत में घुसाना चाहते हो,'' मैंने उसके गाल पर हाथ फ़िराते हुए मुस्कुराते हुए पूछा, ''क्यों बेटा मन कर रहा है ना अपनी मम्मी की चूत को चोदने का?"
विजय ने अपने लण्ड को मेरी गाँड़ की दरार में जोर से घिसते हुए, और मेरी चूत में जोरों से अपनी ऊँगलियाँ अंदर बाहर करते हुए, हामी में सिर हिला दिया। विजय के चेहरे पर मासूमियत थी, मुझे उस पर प्यार आ गया, और मैंने उससे पूछा, ''लेकिन क्यों बेटा? मम्मी की गाँड़ मार के मन नहीं भरा क्या?"
''ओह्ह्ह, नहीं मम्मी ऐसी बात नहीं है, आपकी गाँड़ तो बहुत अच्छी है, बहुत बहुत अच्छी है।''
मुझे उसकी बात में इमानदारी और धन्यवाद के भाव प्रतीत हुए। मैंने विजय को अपने आप से और जोरों से चिपका लिया, और उसके होंठों को जोर से चूम लिया। असलियत में मेरी चूत विजय के लण्ड को अपने अंदर लेना चाहती थी, और इस मुकाम तक आने के बाद वापस लौटने का कोई मतलब नहीं था। मैं विजय के लण्ड को अपने हाथों से मुठिया चुकी थी, उसको अपने मुँह में और मम्मों के बीच ले चुकी थी, और तो और अपनी गाँड़ भी मरवा चुकी थी। हम दोनों वासना और हवस के खेल में बहुत आगे निकल चुके थे, हम दोनों के जिस्म की जरूरत हम दोनों को बेहद करीब ले आयी थी।
समाज की वर्जनाओं को तोड़ते हुए हम माँ बेटे जिस पड़ाव पर पहुँच चुके थे, वहाँ पहुँचने के बाद चूत में लण्ड को घुसवाने या ना घुसवाने का कोई अर्थ नहीं बचा था। और वैसे भी विजय का लण्ड पहली बार किसी चूत का स्वाद चखने वाला था, तो फ़िर वो मेरी चूत का ही क्यों ना चखे? विजय पहली बार किसी चूत को चोदने वाला था, और वो भी अपनी मम्मी की चूत।
उस वर्जित कार्य को करने से पहले ये सब सोचते हुए मेरे गदराये बदन में उत्तेजना की एक लहर सी दौड़ गयी। मेरा बेटा विजय अपना लण्ड उस चूत में घुसाने वाला था, जिस में निकल कर वो इस दुनिया में आया था, और ये वो ही चूत थी, जिस में वो अपने जीवन के पहले तजुर्बे में किसी चूत में अपना लण्ड घुसाने वाला था। इससे बेहतर और क्या हो सकता था?
ये सब सोचकर, मैंने किस तोड़ते हुए कहा, ''हाँ, बेटा।''
विजय ने अविश्वास में अपनी आँख झपकाईं, उसकी ऊँगलियाँ मेरी पनिया रही चूत में कोई हरकत नहीं कर रही थी, और उसके लण्ड के मेरी गाँड़ की दरार में झटके भी शांत थे। वो मेरी बार सुनकर तुरंत समझ गया, लेकिन फ़िर भी उसने हकलाते हुए पूछा, ''सचमुच मम्मी?''
मैं विजय की बाहों में मचल रही थी, विजय के लण्ड को अपनी गाँड़ के छेद पर दस्तक देते, और उसकी ऊँगलियों को मेरी चूत में घुसे हुए, उसके लण्ड को अपनी चूत में लेने का ख्याल ही मुझे कई गुना उत्तेजित कर रहा था। ''हाँ, बेटा,'' मैंने हामी में सिर हिलाया और अपनी गाँड़ को थोड़ा पीछे खिसकाते हुए उसके लण्ड पर घिस दिया। ''हाँ, बेटा जिस दिन तुम मेहनत कर के इतना पैसा जोड़ लोगे और अपनी टैक्सी खरीद कर ले आओगे, उस दिन मैं तुमको वो इनाम दूँगी जो तुम कभी नहीं भूल पाओगे, तुम को ईनाम में मेरी चूत चोदने को मिलेगी, हाँ बेटा, मैं तुझे बहुत प्यार करती हूँ बेटा।
छः महीने बाद जब विजय ने अपनी टैक्सी खरीद कर घर के सामने खड़ी की, तो जब मैंने घर से बाहर निकलकर टैक्सी देखने के बाद जब विजय के चेहरे की तरफ़ देखा, तो हम दोनों के चेहरे पर गर्व, खुशी और वासना की मिश्रित मुस्कान थी।
उस दिन सुबह जब विजय टैक्सी खरीदने के लिये घर से जाने वाला था, उस से पहले किचन में मैंने उसके लण्ड को चूस कर उसका पानी निकाला था।
सड़क पर खड़े होकर मैं जब विजय की नयी टैक्सी को देख रही थी, तो मैं अपने होंठों पर अपनी जीभ फ़िरा रही थी। मुझे अपने आप पर गर्व महसूस हो रहा था कि मैंने किस तरह मैंने विजय को सैक्स के इनामों से प्रेरित कर मेहनत करने को उकसाया था कि वो आज टैक्सी का मालिक बनकर मेरे सामने खड़ा था।
कहीं मेरे मन में ये डर भी था कि कहीं विजय अब जब ठीक ठाक कमाने लगेगा, उसके बाद शादी कर ले अपनी नयी नवेली दुल्हन की कच्ची कोमल टाईट चूत के सामने मुझे भूल ना जाये, लेकिन फ़िर मैंने अपने आप को समझाया कि पहले विजय को समझा कर पहले गुड़िया की शादी करेंगे और उसके बाद विजय की शादी का नम्बर आयेगा, और उस में अभी काफ़ी समय था।
वो दिन हमारे लिये किसी त्योहार से कम नहीं था, और मैं उस दिन को विजय के लिये यादगार बनाने वाली थी। नारियल फ़ोड़ कर और मंदिर में गाड़ी की पूजा करवा कर जब हम दोनों वापस घर लौटे तो मेरी चूत बुरी तरह पनिया कर चुदने को उतावली हुए जा रही थी। मैंने विजय को एक नयी माला देते हुए उसके पापा की तस्वीर पर टँगी माला को बदलने के लिये कहा। विजय के पापा की मुस्कुराती हुई फ़ोटो मानो हम माँ बेटे के शारीरिक सम्बंधों को स्वीकृति प्रदान कर रही थी।
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