RE: vasna kahani चाहत हवस की
अपने बेटे के लण्ड से निकले वीर्य मिश्रित पानी को अपने मुँह में लेकर गले से नीचे सटकने में जो मुझे आनंद आ रहा था वो लाजवाब था। विजय अपने लण्ड का सारा पानी मेरे मुँह में निकालने के बाद वो निढाल होकर बैड पर लेट गया। शायद उसकी आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया था, वो आँखें बंद करके साँस लेकर संयत होने का प्रयास कर रहा था। मैं भी बैड पर विजय के पास ही बैठ गयी, मुझे अपने आप पर गर्व हो रहा था, पहला तो इस बात का कि मैंने अपने प्यारे बेटे को खुशी प्रदान की थी, और दूसरा इस वजह से कि मेरा रंडीपना अभी भी किसी मर्द को पानी छोड़ने को मजबूर कर सकता था।
इतने सालों बाद किसी मर्द के लण्ड को छूकर देखकर मुझे उत्तेजित कर रहा था, और वो भी अपने सगे बेटे का लण्ड, ये आग में घी का काम कर रहा था। हम दोनों वो शारीरिक सम्बंध बना रहे थे जिसकी समाज मान्यता नहीं देता, लेकिन वही करने में मुझे और मेरे बेटे विजय को जो आनंद मिल रहा था, तो फ़िर हम दोनों को किसी की परवाह नहीं थी।
बिना कुछ सोचे मैंने विजय के मुर्झाते हुए प्यारे से लण्ड को अपने मुँह में भर लिया, मैं एक हाथ से विजय के टट्टों में गोलियों को सहला रही थी, तो दूसरे हाथ से उसके सुडौल पेट को, एक माँ अपने बेटे के लण्ड को सहला रही थी, उसे चूम रही थी, उसके लण्ड के सुपाड़े को अपनी जीभ से चाट रही थी, और उसके लण्ड को फ़िर से खड़ा करने का प्रयास कर रही थी। मैं अपने मुँह में विजय के लण्ड को फ़िर से खड़ा होता हुआ मेहसूस कर रही थी।
मैं इस सब में इतना ज्यादा डूब गयी थी कि जब विजय ने मेरा सिर पकड़कर मुझे अपनी तरफ़ खींचा तो मुझे एहसास हुआ कि हम दोनों 69 की पोजीशन में आ चुके थे। विजय ने जैसे ही अपना हाथ मेरी गाँड़ पर रखा तो मेरे पूरे बदन में करंट सा दौड़ गया, और मेरे मुँह से आह निकल गयी, जिससे विजय का लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकलकर मेरे गालों से टकराने लगा।
मैं उत्तेजित और चुदासी हो रही था, किसी तरह मेरे मुँह से निकला, ''क्या कर रहे हो बेटा!?"
मैं जड़वत विजय को मेरा पेटीकोट और पैण्टी उतारते हुए देख रही थी, उसने एक झटके में दोनों को मेरी टाँगो से नीचे निकालते हुए मुझे मादरजात नंगा कर दिया। तब मुझे एहसास हुआ कि आज पहली बार मैं अपने बेटे के सामने पूरी नंगी हुई थी। इससे पहले कि मैं कुछ समझ पाती, विजय ने मेरी दोनों टाँगों को चौड़ा कर के फ़ैला दिया, और मेरी गोरी गोरी अंदरूनी चिकनी जाँघों को सहलाते हुए मेरी चूत की तरफ़ बढने लगा। इस व्याभिचार का परम सुख मुझे बेहद आनंदित कर रहा था, जब मैंने विजय की साँसों को अपनी चूत के ऊपर मेहसूस किया तो फ़िर भी मैं ना चाहते हुए बोली, ''विजय, ऐसा मत करो बेटा, हे भगवान!"
जब मैंने विजय की उँगलियों को मेरी चूत की फ़ाँकों को अलग करते हुए, और मेरी पनिया रही फ़ूली हुई चुत को सहलाते हुए मेहसूस किया तो मानों मेरी साँसे गर्दन में ही अटक गयीं। और कुछ ही पल बाद विजय की साँसों की जगह उसके होंठों की किस ने ले ली थी, और विजय की जीभ मेरी चूत के छेद में अंदर तक घुस रही थी।
''ओह्ह्ह्ह्… विजय बेटा, ऐसा मत करो बेटा…''
विजय ने एक बार चूत में से जीभ बाहर निकाली, और फ़िर चूत के होंठों को नीचे से ऊपर तक पूरी तरह चाटते हुए बोला,''कर लेने दो ना मम्मी, जैसा मजा आप मुझे देती हो, वैसा ही मजा मैं भी आपको देना चाहता हूँ,'' वो हाँफ़ते हुए बोला। अपनी मम्मी की चूत को पहली बार चाटने में उसे बहुत मजा आ रहा था। हम दोनों हवस के तूफ़ान में बहे जा रहे थे। विजय ने फ़िर से अपना मुँह मेरी टाँगों के बीच घुसा दिया, और अपनी माँ की स्वादिष्ट चूत को चूसने लगा।
कुछ ही देर बाद मेरा बनावटी प्रतिरोध स्वीकृति में बदल गया, और मैं बड़बड़ाने लगी, ''ओह विजय बेटा, हाँ ऐसे ही करो बेटा… ओह तुम तो मुझे बहुत अच्छा चूस रहे हो…!"
जब विजय ने मेरी चूत के होंठों के साथ मेरी चूत के दाने को चूसना शुरू किया तो मेरा सिर चकराने लगा, और मेरे दिमाग में बस एक ही बात घूम रही थी कि ''मेरा बेटा मेरी चूत को चूस और चाट रहा है।''
हर बार, बार बार विजय की जीभ के हर झटके के साथ मरी चूत और पूरे बदन में आनंद की एक लहर सी दौड़ जाती, और मेरी चूत फ़ड़क कर और ज्यादा पनिया जाती। मैंने एक बार फ़िर से विजय के लण्ड को अपने मुँह में ले लिया और विजय मेरी चूत को इस कदर चूस रहा था मानो उसका जीवन का यही लक्ष्य हो। मैं सोच रही थी कि, ''हमको ऐसा नहीं करना चाहिये, लेकिन फ़िर विजय कितना प्यार से मेरी चूत को चूस रहा है, और मजा तो मुझे भी आ ही रहा था।''
मेरी चूत झड़ने ही वाली थी, और मेरे चुसने के कारण विजय के लण्ड का सुपाड़ा भी फ़ूल गया था। और जब मैं झड़ी तो मैंने विजय का लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकाल दिया, जिससे विजय मेरी सिस्कारीयाँ सुन सके और उसको पता चले कि उसकी मम्मी कितना अच्छा वाला झड़ी हैं।
मैं हाँफ़ते हुए बोली, ''ओह बेटा,'' और उसके लण्ड को अपने हाथों से जोर जोर से झटकने लगी।
हम दोनों इसी तरह 69 की पोजीशन में एक दो घण्टे लेटे रहे, और पूरे कमरे में बस हमारी कराह और सिसकारियाँ ही सुनाई दे रही थीं। और जब विजय के लण्ड से फ़िर से पानी निकला तो मैंने अपना मुँह खोल दिया, जिससे उसके वीर्य के पानी की सारी पिचकारियाँ ने मेरे चेहरे और मुँह को पूरी तरह भिगो दिया।
और फ़िर हम दोनों वैसे ही नंगे निढाल होकर बैड पर लेटे रहे। कुछ देर बाद जब मैं उठी तो मैंने अपने चेहरे पर लगे वीर्य को अपनी उँगलियों से पोंछा, और फ़िर उँगलियों को अपनी जीभ से चाट लिया। विजय तकिये का सहारा लगाकर बैड पर बैठे हुए अपनी मम्मी को पूर्ण नग्नावस्था में खुद का वीर्य उस दिन दूसरी बार चाटते हुए देख रहा था।
''बहुत मजा आया मम्मी,'' विजय कुछ समय बाद बोला, ''आपको भी आया ना, आप मुझसे गुस्सा तो नहीं हो ना, मम्मी? मैं तो बस…''
मुझे उसकी बात सुनकर बरबस उस पर प्यार आ गया, और मैंने उसके होठों को चूम लिया।
''अरे, नहीं बेटा, तुम्हारी खुशी के लिये तो मैं कुछ भी कर सकती हूँ। तुम मेरा और गुड़िया का कितना ख्याल रखते हो, और ये तो तुम्हारे जवान जिस्म की जरूरत है, बाहर जाकर किसी रन्डी के ऊपर रुपये उड़ाने से तो अच्छा ही है कि तुम अपने जिस्म की जरूरत मेरे साथ ही पूरी कर लो, किसी बीमारी होने का खतरा भी नहीं रहेगा। आज के बाद जब भी तुम्हारा मन मेरी चूत को चाटने का करे, तो चाट लिया करना, और मैं तुम्हारे लण्ड को चूस कर उसका पानी निकाल दिया करुँगी, ठीक है?''
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