RE: vasna kahani चाहत हवस की
विजय अब पहले से कहीं ज्यादा खुश रहने लगा था, और उसकी भूख भी खुल गयी थी। वो खुशी खुशी फ़ैक्ट्री पर काम करने जाता और हँसता खिलखिलाता रहता। हर रात सोने से पहले वो मुझसे मुट्ठ मरवाता और ढेर सारा वीर्य का पानी मेरे हाथ पर निकाल कर, थक कर सो जाता। जब चाहे जब मैं उसका लण्ड चूम लेती, और जब चाहे जब वो अपना पानी मेरी गोल गोल नितम्बों पर निकाल देता। उसके बाद मुझे गुड नाईट विश करके वो थक कर सो जाता। उसके बाद मैं उसके वीर्य के गाढे पानी को चाटकर, बाथ रुम में जाकर अपनी चूत की आग को ऊँगली डालकर शांत करती, और फ़िर हम दोनों अगल बगल नंगे ही सो जाते।
कुछ दिन इस रूटीन के बाद, मैं एक हाथ से विजय को लण्ड को मुठियाती और दूसरे हाथ से अपनी चूत को सहलाने लगती, इस तरह हम दोनों एक साथ झड़ जाते।
एक दिन शाम को विजय ने फ़क्ट्री पर काम से लौटने के बाद बताया कि मालिक ने उसकी लगन, समय पाबंदी और ईमानदारी से खुश होकर उसकी पगार 5000 बढा दी है। ये सुनकर मैंने विजय को गले लगा लिया, और कहा, ''आज तो तुमको कुछ स्पेशल मिलेगा।'' और फ़िर अपना ब्लाउज खोलकर उसके सामने बैठ गयी, ''तुम्हारी पगार बढने की खुशी में, तुम क्या करना चाहोगे, मेरे मम्मे चोदना या चुसवाना, या चाहो तो दोनों कर लो।''
''थैन्क यू, मम्मी,'' विजय हकलाते हुए बोला। मेरे हिलते हुए मम्मे देखकर उसका लण्ड पहले ही खड़ा हो चुका था। जैसे ही मैंने उसका पाजामा खोलकर, अन्डर वियर की इलास्टिक को नीचे किया, उसका फ़नफ़नाता हुआ तना हुआ लण्ड फ़टाक से जाके उसके पेट से टकराया।
अपने बेटे के लण्ड को देखकर मेरी भी साँसें तेज हो गयी, जो मैं करने जा रही थी, उसके बारे में सोचकर मुझे कुछ कुछ होने लगा। मैं अपने बेटे का लण्ड चूसने वाली थी, चाहे मेरी चूत में ना सही लेकिन मैं अपने बेटे का लण्ड अपने शरीर में अंदर लेने वाली थी, वो चाहे मुँह में ही सही। मैं उस लक्ष्मण रेखा को पार करने ही वाली थी, मैं अपने बेटे के साथ सैक्स करने वाली थी, और मुझसे अब और ज्यादा इंतेजार नहीं हो रहा था।
जैसे ही मैंने विजय के लण्ड को अपने होंठों के बीच लिया, और धीरे धीरे एक एक ईन्च करके विजय के लण्ड को अपने मुँह में अंदर लेने लगी, विजय का लण्ड मेरे मुँह की चिकनाहट और गरमाहट पाकर आनंदित हो उठा।
अपने लण्ड को मेरे मुँह में अंदर घुसते हुए देखकर, विजय के मुँह से निकल गया, ''ओह्ह्ह, मम्मी…''
विजय मेरे मुँह में अपने लण्ड को गले तक पेले जा रहा था, और मैं उसके प्रीकम का स्वाद ले रही थी।
मैं उसके लण्ड को अपने एक्सपर्ट जीभ से चाट और चूस रही थी, और ऐसा करते हुए मेरी चूत में भी आग लग रही थी। मैं अपने एक हाथ से अपनी चूत को सहलाने लगी।
''ओह्ह मम्मी बहुत मजा आ रहा है।''
मैंने उसके लण्ड को पूरा अपने थूक से गीला कर दिया था। ऐसा करते हुए बस कुछ देर ही अपनी चूत को सहलाने के बाद, मैं झड़ गयी, और मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, और मेरा मुँह खुला का खुला रह गया, और विजय का लण्ड मेरे मुँह से बाहर निकल गया।
''मम्मी, मैं बस होने ही वाला था, आप रुक क्यों गयीं?"
''बेटा, तुम मेरे मुँह में पानी बाद में निकालना, पहले तुम थोड़ा मेरे मम्मे चोद लो।'' मैंने अपने मम्मों को दोनों हाथ से टाईट पकड़ कर उसको उनके बीच अपना लण्ड उनके बीच घुसाने के लिये आमंत्रित करते हुए कहा।
''तुम अपनी मम्मी के मम्मों के बीच अपने लण्ड नहीं घुसाओगे? तुमने तो इनको अभी तक छुआ भी नहीं है, लो खेलो इनके साथ, दबाओ इनको, तुमको बहुत अच्छे लगते हैं ना, अपनी मम्मी के मम्मे?''
विजय तो अपनी मम्मी से लण्ड को चुसवाकर ही अपने आप को धन्य समझ रहा था, उसको मेरे मम्मों के साथ खेलने का ख्याल ही नहीं आया था। उसने झट से मेरे मम्मों को अपनी हथेलियों में भरकर, उनको दबाना शुरु कर दिया।
जब विजय मेरे निप्पल को मींजता तो मेरी आह निकल जाती। किसी मर्द से अपने मम्मों को दबवाते हुए मुझे बहुत मजा आ रहा था। विजय ने अपना लण्ड दोनों मम्मों के बीच रख दिया, और मजे से मेरे मम्मों को दबाने लगा और निप्प्ल के साथ खेलने लगा।
मेरी चूत में आग लगी हुई थी, मेरी पैन्टी चूत के पानी में भीगकर पूरी गीली हो चुकी थी, तभी मैंने अपने हाथों को विजय के मेरे मम्मों को मींजते हुए हाथों के ऊपर रख दिया, और उसके हाथों के साथ अपने हाथों से अपने मम्मे दबाने लगी। मैंने अपनी ऊंगलियाँ उसकी ऊंगलियों के बीच फ़ँसा ली, और फ़िर अपने होंठों पर मुस्कान लाते हुए उसकी तरफ़ देखा, और फ़िर विजय को लण्ड से मेरे मम्मों को चोदने में उसकी मदद करने लगी।
विजय अपने लण्ड को मेरे मम्मों के बीच फ़िसलते हुए देखकर पूरे जोश में आ चुका था। मुझे भी उसके फ़नफ़नाते लण्ड से अपने मम्मों को चुदवाने में अपार आनन्द आ रहा था।
''विजय बेटा, तुमको मेरे मम्मे अच्छे लगते हैं ना?" मैंने मुस्कुराते हुए उससे पूछा, ''तुमको अपने लण्ड को इनके बीच घुसाकर मजा आ रहा है ना बेटा?"
''हाँ मम्मी बहुत मजा आ रहा है, सच में!" वो हाँफ़ता हुआ बोला, और फ़िर से अपने लण्ड को मेरे मम्मों के बीच पेलने लगा। ''मुझे आपके मम्मे बहुत अच्छे लगते हैं मम्मी! ये कितने सॉफ़्ट और बड़े बड़े हैं... इतना मजा तो पहले कभी नहीं आया!"
मैं उसकी बात सुनकर बरबस मुस्कुरा दी। उसके लण्ड से मम्मों की पहली चुदाई को यादगार बनाने के लिये मैंने आगे बढकर उसके लण्ड के सुपाड़े को अपने होंठों से चूम लिया, और अपने बेटे के लण्ड को अपने चिकने बड़े बड़े मम्मों के बीच फ़िसलता हुआ महसूस करते हुए, विजय को प्रोत्साहित करने लगी।
कुछ ही समय बाद विजय अपने चरम पर पहुँच गया, और जब उसका लण्ड वीर्य मिश्रित पानी मेरे मम्मों पर उँडेलने वाला था, तभी मैं उसके लम्बे फ़नफ़नाते हुए लण्ड को अपनी हथेली की मुट्ठी बनाकर उसको आगे पीछे करने लगी, ताकि उसको चूत जैसा एहसास मिल सके।
इससे पहले की उसके लण्ड से वीर्य का लावा निकलता, मैंने उसको कहा, '' मेरे मुँह में पानी निकालना बेटा! ले अब अपने लण्ड को मेरे मुँह में घुसा दे, और अपने पानी से मेरे गले को त्रप्त कर दे बेटा!''
विजय तो अपनी मम्मी से ऐसे आमंत्रण को सुनकर मानो पागल ही हो गया। एक हाथ से वो मेरे मम्मे दबा रहा और और दूसरे हाथ से उसने मेरे सिर को पकड़कर अपनी तरफ़ खींचा, ऐसा करते ही उसका फ़नफ़नाता हुआ पूरा लण्ड मेरे गले तक घुस गया, और उसकी गोलियाँ मेरी थूक से भीग चुकी ठोड़ी से टकराने लगीं। विजय अपनी मम्मी के मुँह में अपने लण्ड को ताबड़तोड़ पागलों की तरह पेले जा रहा था।
अपने बेटे के सामने समर्पण कर और इस तरह लाचार होकर उसके लण्ड को अपने मुँह में पिलवाने में मुझे भी बहुत मजा आ रहा था, मैंने भी अपना एक हाथ अपनी पैण्टी में घुसाकर अपनी पनिया रही चूत को सहलाना शुरु कर दिया।
कुछ देर बाद विजय बोला, ''ओह, मम्मी मेरा पानी बस निकलने ही वाला है।''
मेरे मुँह में अपने लण्ड को जोरों से पेलते हुए जब उसके लण्ड से वीर्य मिश्रित पानी मेरे मुँह में निकलना शुरू हुआ तो वो आनंद से जोर जोर हुँकार भरने लगा। मेरी चूत भी और ज्यादा पनियाने लगी और मेरी उँगलियाँ भी मेरी चूत में अंदर तक घुस गयीं।
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