RE: vasna kahani चाहत हवस की
''विजय बेटा, ये सब तुम क्या कर रहे हो, मैं इस तरह तुमको अपनी जिन्दगी बर्बाद करते हुए नहीं देख सकती। तुमने अपने डिप्रेशन का इलाज इस चीज में ढूँढ लिया है, ये गलत है, जब से पापा की डैथ हुई है, मुझे पता है कि तुम कितने परेशान हो, लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि हर रात दो दो तीन तीन बार ये सब करोगे। इस कठिन समय में तुमको एक जिम्मेदार मर्द की तरह हिम्मत दिखानी होगी, अगर जरूरत लगे तो किसी डॉक्टर को दिखा लो।''
जिस तरह से मैं उसके सामने मादरजात नंगी बैठी हुई थी, वो बस ''मम्मी…'' बोलकर चुप हो गया, लेकिन उसका लण्ड अभी भी फ़नफ़नाकर खड़ा हुआ था। किसी तरह हिम्मत करके वो बोला, ''मुझे पता है कि जो कुछ मैं कर रहा था, वो गलत है, आई एम सॉरी, मेरे खुद समझ में नहीं आ रहा मैं क्यों ये सब कर रहा हूँ।''
मैंने उसके हाथ छोड़ दिये, और उसको समझाते हुए बोली, ''देखो इस उम्र में ऐसा करना स्वाभाविक है, लेकिन यदि तुम हद से ज्यादा करोगे तो तुम्हारा शरीर खराब हो जायेगा।''
जैसे ही मैंने विजय के गाल पर हाथ रखा, और उसके माथे को सहलाते हुए उसके बालों में अपनी ऊँगलियों से कंघी करने लगी, उसकि लण्ड ने एक जोरदार झटका मारा। फ़िर उसने बोलना शुरू किया, ''मम्मी मेरा किसी चीज में मन नहीं लगता, मुझे हल्का होने की बेहद जरूरत मेहसूस होती है, मुझे पता है कि ये असली सैक्स का विकल्प नहीं है, लेकिन मैं और क्या करूँ, मुझे खुद समझ नहीं आता, आई एम सॉरी मम्मी।''
मेरे होंठों पर एक ममता भरी कुटिल मुस्कान थी। मेरे अन्दर भी कुछ कुछ हो रहा था, मैने कहा, ''कोई बात नहीं बेटा, इसीलिये मैंने सोचा क्यों ना इस बारे में बात कर ही ली जाये, मैं तुम्हारी प्रॉब्लम सॉल्व करूँगी।''
जब मैंने उसके खड़े हुए लण्ड को अपने हाथ की नाजुक ऊँगलियों से पकड़ा तो एक बारगी विजय की साँस रुक सी गयी।
''ओह्ह्… मम्म्म्म्मी, ये आप क्या…''
मै उसके लण्ड को हिलाते हुए बोली, ''श्श्श्श्श्श्श्श्… बस चुप रहो और चुपचाप देखते रहो।''
जब मैं उसके लण्ड को अपने हाथ से मुठिया रही थी, तो विजय के पास कराहने के सिवा और कोई विकल्प नहीं बचा था। दूसरे हाथ से मैंने विजय के टट्टे सहलाने शुरू कर दिये, विजय से ये बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपने हाथ पीछे ले जाकर बैडशीट को अपनी मुट्ठी में भींच लिया।
मैंने विजय से पूछा, ''अच्छा लग रहा है, बेटा?''
''ओह्ह्ह, हाँ मम्मी, बहुत मजा आ रहा है!" उसकी नजरें मेरे बड़े बड़े मम्मों पर टिकी हुई थीं।
''अपने आप करते हो, उससे तो ज्यादा अच्छा लग रहा होगा, क्यों बेटा?"
''हाँ, मम्मी बहुत अच्छा लग रहा है, बहुत ज्यादा…।, सीईईईई!"
अपने बेटे के इतने बड़े लण्ड को मुठियाते हुए मेरे होंठों पर बरबस मुस्कान आ गयी। जिस तरह आँखों में वासना भरकर वो मेरे मम्मों को देख रहा था, और मैं उसके जवान लण्ड को हिला रही थी, ऐसा करते हुए मुझे बहुत मजा आ रहा था।
मैं उसकी मुट्ठ मारते हुए कई बार अपनी टाँगों को क्रॉस अनक्रॉस कर चुकी थी, जिस से विजय को मेरी चूत को कई बार कनखियों से देखने का मौका मिल चुका था। मेरी चूत में भी आग लगी हुई थी, और मेरा मन कर रहा था कि उसी वक्त विजय को नीचे लिटा कर उसके ऊपर चढ कर बैठ जाऊँ और उसके लण्ड को अपनी चूत में घुसाकर उसकी सवारी करने लगूँ। जैसे ही उसके लण्ड के शिश्न पर चूत को चिकना करने वाले पानी की कुछ बूँदे आयीं, मेरी नजर उसी पर जा टिकी। वो मेरे नग्न बदन को निहार रहा था, और मैं उसके शिश्न पर उभरती बूँदों को अपनी हथेली पर लेती और फ़िर पूरे लण्ड पर उसको लगा कर सारे लण्ड को चिकना कर देती। मैं उसके टट्टों से खेलते हुए उसके वीर्य की पिचकारी छोड़ने का इन्तजार कर रही थी। बस इतना सोचते ही मेरी जीभ बाहर निकल कर मेरे होंठों को गीला कर गयी, मैं बस ये सोच कर उत्तेजित हो रही थी कि मेरे अपने बेटे के वीर्य के पानी का स्वाद कैसा होगा।
कुछ देर बाद विजय कराहते हुए बोला, ''ओह्ह, मम्मी… मैं बस… झड़ने…आह्ह्ह!"
''कोई बात नहीं बेटा, हो जाओ आराम से,'' मैं उसके लण्ड को मुठियाते हुए बोली। मैं दूसरे हाथ से उसके टट्टों को अब भी सहलाये जा रही थी, जिसमें कि उसकी गोलियाँ ऊपर चढ चुकी थीं। ''आराम से निकाल दो सारा पानी, अपनी मम्मी के हाथों पर!"
मैं वासनामयी नजरों से विजय के फ़नफ़नाते हुए लण्ड में से वीर्य का लावा उगलते हुए देखने लगी। उसके लण्ड से वीर्य की पिचकारी पर पिचकारी निकले जा रही थी, और उसका वीर्य युक्त पानी उसके पेट, उसकी छाती, मेरी बाँहों और मेरे हाथों को गीला कर रहा था। मैं अपने हाथ से उसके लण्ड को मुठियाते हुए आखिर बूँद तक निकालने का प्रयास कर रही थी, हाँलांकि ऐसा करते हुए मेरी चूत में भी आग और ज्यादा भड़कने लगी थी।
हल्का होने के बाद विजय निढाल हो गया और उसकी आँखें स्वतः ही बण्द हो गयीं। होश आने पर जब कुछ देर बाद विजय ने आँखें खोली तो उसने मम्मी को अपने पास पूर्ण रुपेण नग्न होकर बैठे हुए पाया। उसने जब मम्मी के मम्मों पर नजर डाली तो उनके निप्पल को हार्ड होकर चूसने के लिये आमंत्रित करते हुए पाया।
''ओह मम्मी आप बहुत अच्छी हो, बहुत सुंदर हो,… आपके…ये … ओह ये तो बहुत अच्छे हैं!"
अपने मम्मों की विजय के मुँह से तारीफ़ सुनकर बहुत अच्छा लगा। उसके लण्ड को एक हाथ से मसलते हुए मैंने कहा, ''ओह, थैन्क यू, बेटा, तुम इनको मम्मे, बोबे, चूँची जो चाहे बोल सकते हो, तुमको अच्छे लगते हैं ना अपने मम्मी के ये मम्मे?"
''हाँ, मम्मी आपके मम्मे बहुत अच्छे हैं, ये कितने बड़े बड़े हैं!"
"तुम छूना चाहोगे अपनी मम्मी के मम्मों को, बेटा ?"
विजय के लण्ड के शिश्न पर चूत को चिकना करने वाला पानी फ़िर से निकलने लगा। ''ओह, हाँ मम्मी, मैं छू लूँ इनको?" वो हाँफ़ते हुए हाथ बढाते हुए बोला।
मैं शर्माते हुए बोली, ''नहीं बेटा, आज नहीं फ़िर किसी दिन, तुम तो मेरे प्यारे बेटे हो ना…''
जैसे जैसे मेरे मुठियाने की स्पीड तेज होती जा रही थी, उसी तरह विजय के मुँह से निकलने वाली कराहने की आवाज तेज होती जा रहीं थीं ।
''बेटा, अब तुम को अपने आप दो-तीन बार अपने आप मुट्ठ मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी, अब मैं तुम्हारा ख्याल रखा करूँगी, मैं तुमहारे इस लण्ड की इसी तरह मालिश करके इसका पानी निकाल दिया करूँगी। बस तुम को मेरी एक बात माननी पड़ेगी।''
''हाँ मम्मी, बहुत मजा आयेगा,'' वो मस्ती में आँखें बंद करके कुछ कुछ बरबड़ाये जा रहा था। उसको रोजाना अपनी मम्मी के हाथ से मुट्ठ मारने की बात सुनकर अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
''मैं आपकी हर बात मानने को तैयार हूँ।''
''बेटा, तुम अपनी सेहत पर ध्यान दो, तुम अच्छी अच्छी बातें सोचा करो, सुबह उठ कर घूमने जाया करो।
इसके बदले तुम्हारा जब भी मुट्ठ मारकर पानी निकालने का मन किया करे, मुझे बता दिया करना। तुम चाहो तो मेरे मम्मे दबा भी सकते हो, और चाहो तो इनके बीच अपने लण्ड को घिस भी सकते हो।'' मैं अपने मम्मे हिलाते हुए बोली। विजय चरम पर पहुँचने ही वाला था और उसके लण्ड से पानी निकलने ही वाला था।
''लेकिन अगर तुम ऐसे ही मेरी बात मानते रहे और अच्छी तरह से खुश रहते रहे तो मैं तुमको कुछ और भी तोहफ़ा दे सकती हूँ,'' मैं इस अंदाज में बोली कि विजय कयास लगाने लगा कि मैं किस हद तक जा सकती हूँ।
''हो सकता है, मैं तुमको अपने इन चूतड़ों के साथ खेलने दूँ? तो फ़िर डील पक्की?"
ये सब विजय के लिये कुछ ज्यादा ही हो गया था। वो बेहद खुश था क्योंकि उसने इस सब की कल्पना भी नहीं की थी। अपनी मम्मी के हाथों से मुट्ठ वो पहले ही मरवा चुका था, और अब मम्मों या चूतड़ों को छूने या फ़िर मम्मी के फ़ूले हुए मोटे होठों से लण्ड चुसवाने की कल्पना मात्र से वो बेहद उत्तेजित हो गया था, उसको अपने कानों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
वो इतना ज्यादा उत्तेजित हो गया कि उसके लण्ड ने तुरंत अपनी मम्मी के हाथ पर वीर्य का लावा ऊँडेलना शुरु कर दिया। अपने बेटे के वीर्य से मेरे हाथ, मम्मे पेट सब सन चुका था। विजय चरम पर पहुँच कर निढाल होकर लेट गया।
''अब सो जाओ बेटा,'' मैंने विजय के नंगे बदन पर एक निगाह डालते हुए, और उसके लण्ड को निहारते हुए कहा।
इस एपिसोड के बाद मैं भी बेहद गरम हो चुकी थी, और फ़िर मैं भी बाथरूम में जाकर अपने आप को पानी से साफ़ किया, और अपनी चूत में ऊँगली डालकर, और चूत के दाने को घिसकर उसकी आग को बुझाया। मैं अपने बेटे के खड़े फ़नफ़नाते हुए लण्ड को कुछ ही मिनट पहले देखकर इतनी ज्यादा उत्तेजित और गरम हो चुकी थी कि बस एक दो मिनट में ही में ही मेरी चूत ने पानी छोड़ दिया, और बरबस अपने आप मेरे मुँह से निकल गया, ''ओह, विजय…''
अगले कुछ दिनों तक मैंने विजय की मुट्ठ मारने का कोई चान्स मिस नहीं किया। जो कुछ हो रहा था वो दोनों की सहमती से हो रहा था, और दोनों ही ऐसा करके खुश थे।
मित्रो मेरे द्वारा पोस्ट की गई कुछ और भी कहानियाँ हैं
|