RE: vasna kahani चाहत हवस की
जवानी की दस्तक होते ही मेरे बदन में बदलाव आने शुरू हो गये थे, माहवारी शूरु होने के साथ साथ मेरे उभार नजर आने लगे थे। चुँचियां अपने नैचुरल आकार लेने लगी थीं, मेरी चूत के ऊपर बालों के रोयें अब झाँटों का रूप लेने लगे थे। शरीर के अन्दर जो बदलाव आ रहे थे, उनका असर मेरे जेहन पर भी होने लगा था। जब भी मैं बाथरुम में नहाने को जाती तो अपनी चूँचियों को अपनी चूत के दाने को सहलाने में मुझे बहुत मजा आता।
मेरे पास पहनने के लिये ज्यादा कपड़े नही थे, और जो थे वो भी सभी होली दिवाली पर उपहार के तौर पर दिये हुए हुए थे, उन महिलाओं द्वारा जिनके घर मैं और मम्मी काम करने जाया करते थे। जैसा मैंने पहले भी बताया कि हमारे घर में बस एक ही कमरा था, जिस में मैं मम्मी और विजय एक साथ सोया करते थे। सर्दियों मे सब अलग अलग खटिया पर अपनी अपनी रजाई में, और गर्मियों मे एक साथ जमीन पर कूलर के सामने। जिस तरह मुझ पर जवानी चढ रही थी उसी तरज विजय पर भी जवानी चढनी शुरु हो गयी थी, और जब कभी सुबह मैं उससे पहले उठ जाती तो देखती कि उसके लण्ड ने उसके पाजामें मे टैण्ट बना रखा होता।
मम्मी रात को सिर्फ़ पेटीकोट और ब्लाउज पहन कर सोतीं, शायद माहवारी बंद होने के बाद से ही उन्होने पैण्टी पहनना छोड़ दिया था, और मैं किसी का दिया हुआ गाउन, जिसने आगे की तरफ़ बट्न थे, और विजय पाजामा और टी-शर्ट पहन कर सोता। एक बार गर्मियों की रात में एक बजे जब मैं पानी पीने के लिये मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि विजय ने मम्मी का पेटीकोट ऊपर कमर तक उठाया हुआ था, और उनकी काली काली झाँटों से ढकी चूत को देखकर हाँफ़ता हुआ अपने एक हाथ से अपने लण्ड को पकड़कर जल्दी जल्दी मुट्ठ मार रहा था। मैंने उस वक्त चुप रहने में ही भलाई समझी और कुछ देर बाद जब विजय अपने लण्ड से पानी निकालकर फ़ारिग होने के बाद थक कर सो गया, तो मैं पानी पी कर सो गयी। उस रात के बाद मैं रोजाना सोने का नाटक करने लगी और चुपचाप रहकर विजय को मुट्ठ मारते हुए देखा करती, कभी वो मम्मी का पेटीकोट ऊपर कर देता और उनकी चिकनी गोरी जाँघों को देख उत्तेजित होकर मुट्ठ मारता, तो कभी पेटीकोट को पूरा ऊपर कर के उनकी गोल गोल गाँड़ को देख कर मुट्ठ मारता, तो कभी जब मम्मी पैर चौड़ा कर सो रही होतीं तो उनकी चूत के दर्शन करते हुए, अपनी जिस्म की आग को लण्ड हिलाकर उसका पानी निकालकर शांत करता। ये उसका रोजाना का रूटीन बन चुका था।
एक रात मैंने देखा कि उसने मम्मी के ब्लाउज के बटन खोल दिये और फ़िर उनकी गोल गोल मम्मों को देखकर उसने अपने लण्ड को मुठियाते हुए पानी निकाला और फ़िर सो गया, कुछ देर बाद मम्मी भी अपने ब्लाउज के बटन बंद कर के चुपचाप सो गयीं, तो मुझे लगा कि जरुर दाल में कुछ गड़बड़ है, और शायद मम्मी भी इस खेल में शामिल हैं।
मैंने अगले दिन जब विजय फ़ैक्ट्री चला गया तो मम्मी से अकेले में पूछा कि क्या उनको पता है कि विजय रात में क्या कुछ करता है, तो उन्होने बताया कि कुछ महीने पहले एक रात को उन्होने विजय को उनका पेटीकोट ऊपर कर मुट्ठ मारते हुए पकड़ लिया था, और अगले दिन उसको समझाया भी लेकिन जो कुछ मम्मी ने आगे बोला वो सुनकर मैं भी चुप हो गयी। मम्मी ने बताया, ''लड़कों कि ये उम्र होती ही ऐसी है, इस उम्र में उनको नाते रिश्तों का कोई ख्याल नहीं रहता, उनके दिमाग में बस एक ही चीज घूमती रहती है और वो है सैक्स। इस उम्र में लड़के अपनी जिस्म की प्यास बुझाने को किसी भी हद तक जा सकते हैं। इस उम्र में जब बाकि सब लड़के पढ लिख रहे होते हैं, तब विजय मेहनत कर अपने परिवार का भरण पोषण करने में जिस तरह हमारी मदद कर रहा है, ये सब सोचकर ही मैंने भी उसकी इन सब हरकतों को नजर अंदाज करना शुरु कर दिया है, और रात में यदि वो मेरे बदन के किसी हिस्से को पाँच दस मिनट देखकर अपनी जिस्म की आग को शांत कर शांति से सो जाता है, तो इसमें कुछ बुरा भी नहीं है। यदि मान लो वो दोस्तों के साथ रण्डियों के पास जाना शुरु कर दे और उन पर अपनी मेहनत की कमाई उन पर उड़ाने लगे, उससे तो ये अच्छा ही है।''
मुझे मम्मी की बातें सुनकर थोड़ा अटपटा तो जरूर लगा लेकिन फ़िर कुछ देर सोचने के बाद मैं भी इसी निश्कर्ष पर पहुँची कि जो हो रहा था, उसको वैसे ही होने देना चाहिये।
कुछ दिनों के बाद मेरी बुआ की बेटी की शादी थी, हमारी बुआ जयपुर में ही रहती थीं, और मम्मी ने बुआ की मदद करने के लिये मुझे उनके घर शादी से कुछ महीनों पहले भेज दिया। शादी होने के बाद जब मैं फ़िर से अपने घर लौट आयी, तो लौटने के बाद मुझे सबसे ज्यादा उत्सुकता रात में विजय के मम्मी का पेटीकोट उठाकर मुट्ठ मारते हुए देखने की थी।
रात होने के बाद जब मैं आँखें बंद कर सोने का नाटक कर रही थी, तो कुछ देर बाद मैंने देखा, विजय अपनी जगह से उठा और मम्मी के पास जाकर बैठ गया। कुछ देर वैसे ही मम्मी के बदन को निहारने के बाद उसने अपना पाजामा और कच्छा उतारकर पास में रख दिया, और फ़िर मम्मी के ब्लाउज के बटन खोलने लगा, बलाउज के सारे बटन खोलकर उसने मम्मी के दोनों मम्मों को नंगा कर दिया, और फ़िर अपने लण्ड को सहलाने लगा। कुछ देर बाद उसने मम्मी के पेटीकोट के नाड़े को खोला और पेटीकोट को नीचे खिसकाने लगा, मम्मी ने अपनी गाँड़ थोड़ी सी ऊपर उठाकर उसको पेटीकोट को उतारने में उसकी मदद की, अब मम्मी सिर्फ़ बाँहों मे ब्लाऊज पहने उसके सामने नंगी लेटी हुई थीं। कुछ देर मम्मी के नग्न बदन को निहारते हुए अपने लण्ड को सहलाने के बाद विजय ने मम्मी की दोनों टाँगों को चौड़ा किया और फ़िर उनके बीच आकर अपने लण्ड को अपने थूक से चिकना कर, मम्मी की चूत के मुँह पर रख दिया, और फ़िर एक झटके के साथ उसको अंदर घुसाकर मम्मी को चोदने लगा, कुछ देर बाद उसने अपने दोनों हाथों से मम्मी के मम्मों को अपनी हथेलियों में भरकर उनको मसलने लगा, और फ़िर मम्मी की चूत में अपने लण्ड के झटके मारने लगा, कुछ देर बाद जब उसके लण्ड से वीर्य का पानी निकल गया तो वो चुपचाप अपने कपड़े पहन कर अपनी जगह जाकर सो गया। थोड़ी देर बाद, मम्मी भी उठीं अपने ब्लाउज के बटन लगाये, अपना पेटीकोट पहना और फ़िर सो गयीं।
अगले दिन सुबह जब मैं उठी तो सब कुछ नॉर्मल था, विजय काम पर जा चुका था, मैं मम्मी के पास जाकर चुपचाप खड़ी हो गयी। शायद मम्मी मेरी मंशा समझ गयीं और मेरे बिना कुछ पूछे बोलीं, ''रात को तूने सब कुछ देख लिया ना, चलो अच्छा ही हुआ, ये बात कब तक छुपने वाली थी। हाँ, मुझे पता है कि जो कुछ मैं और विजय कर रहे हैं वो गलत है, लेकिन यदि ऐसा करके हम दोनों को खुशी होती है, तो मेरी बला से भाड़ में जाए दुनिया।''
मैंने किसी तरह हिम्मत करके पूछा, ''आप तो उस कह रही थीं कि आप विजय की खुशी के लिये करती हो, तो क्या आप को भी उसके साथ करवाने में मजा आता है।'' कुछ देर खामोश रहने के बाद मम्मी ने जो कुछ मुझे बताया वो सुनकर मैं निरुत्तर हो गयी।
|