RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने अपने हाथ को जैसे ही उसकी मुनिया के उपर रखा, मेरा हाथ गीला हो गया, मतलब… वो एक बार झड चुकी थी, और अभी भी लगातार पानी बहा रही थी.
हाथ की रगड़ पाते ही रेहाना के मुँह से एक सिसकी निकल गयी और उसने मेरे हाथ को अपनी जांघों में भींच लिया.
रास्ते का हमें पता ही नही चला कब हम उस जगह पहुँच गये, जहाँ से चले थे, लेकिन तब तक मेरा भी पाजामा गीला हो चुका था…!
घर पहुँच कर जैसे ही साइकल खड़ी हुई, वो उतर कर नज़रें झुकाए घर में घुसने लगी, मैने उसको पुछा- ये साइकल कहाँ रखूं..?
मेरे से बिना नज़रें मिलाए, वो किसी रोबोट की तरह मूडी, मेरे हाथ से साइकल ली और अंदर ले गयी.
घर में एक लालटेन जला कर रोशनी कर रखी थी.
उसका घर एक सामान्य रहने लायक साधारण सा घर था, आगे एक वरामदा जैसा था, उसके बाद एक बड़ा सा कमरा, उसके पीछे एक रसोई जैसी बनी थी.
वरामदा से ही साइड में दूसरा कमरा वो भी काफ़ी बड़ा था, जिसके दो गेट थे, एक वरामदा से था और दूसरा पीछे की ओर किचेन से था.
किचेन को कमरों से होकेर ही जाया जा सकता था.
अमीना बी और शाकीना भी हमें देख कर बाहर आ गयी.
सबसे पहले अमीना बी ने शाकीना को बोल कर मेरे लिए गुनगुना पानी वरामदे के ही साइड में बने एक ओट से में बड़ा सा पत्थर डाल कर रखा था उस पर रखवा दिया.
अमीना बी मेरे कंधे की चोट को देखकर बोली - ओह्ह.. तुम्हें तो चोट लगी है बेटा, जाओ पहले ये कपड़े उतार कर पानी से अपने बदन को साफ कर्लो, फिर मे तुम्हारी दवा दारू कर देती हूँ.
और शाकीना ! बेटी वो देख असलम के कपड़े रखे होंगे उसमें से एक जोड़ी ले आ.
मैने अपनी कमीज़ उतार कर साइड में रख दी और अपने शरीर को गरम पानी से साफ किया,
मेरे पीछे खड़ी दोनो बहनें मेरी चौड़ी पीठ को देख कर ही मेरे शरीर की बनावट का अनुमान लगा रही थी.
पाजामा मैने नही उतारा, क्योंकि वो साला लंड के पानी से गीला हो रहा था.
अमीना बी ने कुछ जड़ी बूटियाँ पत्थर पर पीस कर मेरे जख्म पर रख दी, बड़ी जलन सी हुई, मेरे मुँह से ना चाहते हुए सीत्कार निकल गयी,
वो बोली- बेटा ये शर्तिया दवा है, थोड़ा जलेगा ज़रूर लेकिन देखना सुबह तक ही ये आधा ठीक हो चुका होगा.
फिर एक कपड़े से जख्म को बाँध दिया, और मैने असलम की कमीज़ को पहन लिया जो मुझे टाइट पड़ रही थी, पर जैसे-तैसे आ गयी.
कमीज़ में से मेरा आधा सीना बाहर दिख रहा था, जिसे रेहाना नज़र गढ़ाए देखे जा रही थी गुम सूम सी खड़ी.
यहाँ आने के बाद से ही उसने मुझसे नज़र ही नही मिलाई थी, शायद रास्ते में हुए उत्तेजक एनकाउंटर की वजह से उसे शर्म आ रही थी.
हमारे लौटने तक माँ बेटी ने खाना बना के रखा था, हम सबने खाना खाया, और आपस में कुछ देर बात-चीत करते रहे,
मैने उनसे उनके परिवार के बारे में पुछा जो उन्होने मुझे सब डीटेल में बता दिया.
रात काफ़ी हो चुकी थी, सो अमीना बी ने मेरे सोने के लिए साइड वाले कमरे में बिस्तेर करने को बोला, मैने कहा में वरामदे में ही सो जाउन्गा, आप लोग अंदर अपने हिसाब से सो जाओ.
उन्होने मेरी बात मान ली और एक चारपाई पर मेरा बिस्तेर लगा दिया, और वो लोग अंदर चली गयी सोने,
अमीना और शाकीना दोनो माँ-बेटी सामने वाले कमरे में सोती थी और रेहाना अकेली साइड वाले कमरे में.
मे बिस्तर पर लेटते ही गहरी नींद में डूब गया, क्योंकि पूरे दिन की थकान से बदन टूटा पड़ा था, उपर से 4 किमी डबल सवारी साइकल खींची थी, जो ना जाने कितनी मुद्दतो के बाद चलाई थी, मेरी जांघें एक दम टाइट हो रखी थी साइकल चलाने से.
वैसे तो मार्च एप्रिल का महीना था, लेकिन वो इलाक़ा एक तो पहाड़ी था, उपर से उत्तरी छोर पर, तो आधी रात से ही मौसम ठंडा सा हो जाता था,
नींद की वजह से में कुछ ओढ़ भी नही पाया था, तो ठंड से में उकड़ूं लेटा पड़ा था, मेरे दोनो घुटने पेट से लगे पड़े थे.
पता नही रात का कौन सा प्रहार हुआ होगा, कि मुझे अपने बालों में किसी की उंगलियों का स्पर्श महसूस हुआ, शरीर पर भी एक कंबल पड़े होने का एहसास हुआ, मेरी नींद टूट गयी और मैने धीरे से अपनी पलकें खोली..
अमीना बी मेरे सर के पास चारपाई पर बैठी मेरे सर को सहला रही थी, और मेरे सोते हुए मासूम से चेहरे को देखे जा रही थी.
मैने जान बूझकर करवट बदली और उसकी तरफ मुँह करके अपना हाथ उसकी जांघों पर रख दिया, अमीना बी का शरीर हल्के से काँपा जो मुझे महसूस हुआ,
फिर उसने मेरे चेहरे पर नज़र डाली, जब मुझे सोते हुए पाया तो झुक कर मेरे माथे पर एक चुंबन लिया जिससे उनकी भारी अधेड़ चुचियाँ मेरे सर से दब गयी.
कितनी ही देर वो इसी पोज़िशन में झुकी रही मेरे उपर और मेरे सर और गालों को सहलाती रही,
मेरा हाथ जो शुरू में सीधा था जो उसकी दूसरी जाँघ तक चला गया था, मैने खींच कर उसके जांघों के बीच में कर लिया, अब मेरे हाथ और उसकी चूत के बीच कुछ ही इंच का फासला बचा था.
उसने अपने गान्ड को थोड़ा खिसका कर नीचे को किया और मेरे हाथ को पकड़ कर अपनी चूत के उपर दवा दिया, अब मेरा मुँह भी उसकी कुरती के उपर से ही उसके पेट के बगल में घुसा हुआ था और वो मेरे उपर झुकी हुई थी.
मेरा पप्पू ये सब कहाँ झेलने वाला था, औरत के अंगों का स्पर्श पाते ही औकात में आ गया.
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