Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:23 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
अभी वो सीधा खड़ा भी नही हो पाया था कि एक और प्रहार उसकी पीठ को झेलना पड़ा. 

नतीजा वो अब उस दारोगा के उपर ही गिरने को हुआ, तभी एक साथ तीन काम हुए.

उस युवक ने ये भाँप लिया था कि दारोगा समेत उनकी गने उसकी ओर तनी ज़रूर थी, लेकिन वो अभी तक अनलॉक नही कर पाए थे.

एक जैसे ही वो युवक उस दारोगा के उपर गिरने को हुआ, उसने उस युवक का गिरहवान थाम कर उसे अपने उपर गिरने से रोका.

दूसरा युवक का बाँया हाथ दारोगा के हाथ में पकड़ी हुई गन वाली कलाई पर गया, और तीसरा झुकने का नाटक करते हुए उसने ना जाने कब अपना खंजर अपनी कमर से निकाला और दारोगा के पेट में मूठ तक घुसा दिया.

दारोगा दर्द से अभी ठीक से चीख भी नही पाया था, कि उसकी गन उस युवक के हाथ में आ गई, खंजर को एक राउंड उसके पेट में घुमा कर उसने बाहर खींचा.

भलभलाकार खून की एक तेज धार दारोगा के पेट से उबल पड़ी, उसके छोड़ते ही, वो त्योराकर ज़मीन पर गिरकर तड़पने लगा…
जब तक वो पोलीस वाले अपने दारोगा की हालत देख कर बौखलाए से खड़े अपनी-2 गन को अनलॉक करके चलाने की स्थिति में आते, 

कि एक साथ चार फाइयर हुए और वो चारों भी ज़मीन पर पड़े तड़प्ते नज़र आने लगे.

अभी ये वाकीया हो ही रहा था कि शाकीना की चीख सुन कर उसकी अम्मी और बड़ी बेहन दौड़ती हुई वहाँ पर आ पहुँची. 

शाकीना ने ये मंज़र अपनी आँखों से देखा था, डर के मारे उसकी चीखें लगातार निकल रही थी, वो खड़ी-2 सूखे पत्ते की तरह काँप रही थी.

जैसे ही उसकी अम्मी और अप्पा वहाँ पहुँची, वो भागती हुई अपनी अम्मी के गले से लग कर रोने लगी.

वहाँ का खूनी मंज़र देख कर उन तीनों की हालत जुड़ी के मरीज़ जैसी हो रही थी. जब उस युवक ने शाकीना से पुछा- तुम ठीक तो हो..?

शाकीना ने अपनी गर्दन हां में हिला दी, उसके मुँह से कोई बोल ना निकल सका.

थोड़ा होश में आकर उसकी अम्मी ने उस युवक से कहा- तुम्हारा बहुत-2 शुक्रिया बेटा, जो तुमने मेरी बेटी को बचा लिया इन दरिंदों से, वरना ना जाने ये इसका क्या हश्र करते.

युवक - इसमें शुक्रिया की कोई बात नही है बीबी, ये तो मैने इंसानियत के नाते किया है, जब मैने इनका विरोध किया तो इन्होने मुझे ही मारना शुरू कर दिया, 

तो अपनी जान बचाने के लिए मुझे मजबूरन इन हैवानो को मारना ही पड़ा, वरना ये लोग मुझे मार डालते.

वो तीनों ही उसे किसी फरिस्ते की तरह देख रही थी, फिर कुछ देर बाद अमीना ने पुछा- बेटा तुम्हारा नाम क्या है और कहाँ के रहने वाले हो.

युवक- बीबी ! मेरा नाम अशफ़ाक़ है, मेरा घर यहाँ से दूर गिलगित के पास एक छोटे से गाँव सांप्ला में है, मेरा भरा पूरा परिवार था, 

अम्मी, अब्बू, 3 भाई और 2 बहनें, जिनमें मे सबसे बड़ा था. सभी खुश हाल जिंदगी जी रहे थे.

अब आगे की कहानी अशफ़ाक़ की ज़ुबानी……

मेरे अब्बू और कुछ लोगों ने मिलकर हुकूमत की नाइंसाफी और दहशतगर्दी के खिलाफ आवाज़ उठाने की कोशिश की, 

इसके एवज में हमें आए दिन धमकियाँ मिलती रहती, 
एक दिन मे घर पर नही था तो कुछ फ़ौजी जवानों ने गाँव पर हमला कर दिया और मेरे पूरे खानदान को हलाक़ करके घर को आग के हवाले कर दिया.

उस घटना के बाद से ही अब मे भी इन नकारा हुकूमत के नुमाइन्दो से और फौज से छिप्ता फिर रहा हूँ, ना अब कोई मेरा घर है, और ना कोई ठिकाना.

जहाँ रात हो जाती है, सो जाता हूँ, जब भूख लगती है, तो जो भी मिलता है खाकर पेट की आग को शांत कर लेता हूँ.

लेकिन अब वक़्त की बेरहम मार ने मुझे ऐसा बना दिया है, कि जब भी कोई ज़ुल्म मेरी आँखों के सामने होता दिखता है, मेरे पूरे बदन में आग सुलगने लगती है, और मे उन दरिंदों को उनके अंजाम तक पहुँचा कर ही दम लेता हूँ.

हो सकता है, किसी दिन कोई गोली मेरा भी ख़ात्मा कर दे, लेकिन तब तक मे इन दरिंदों से लड़ता ही रहूँगा.

वो तीनों उस युवक की आप बीती सुनकर इतनी भावुक हो गयी की उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े, और वो अपने गमो को छोटा महसूस करने लगी.

तभी अमीना की बड़ी बेटी रेहाना बोली- लेकिन अब क्या होगा, जैसे ही हुकूमत को पता चलेगा कि उनके पोलीस के जवानों को किसी ने हलाक़ कर दिया है, तो वो इस सारे इलाक़े में तबाही मचा देंगे.

मे - आप लोग इनकी फिकर ना करो, मे इन सब को जीप में डालकर यहाँ से 3-4 किमी दूर एक घाटी है, जिसकी पहाड़ी पर एक मोड़ है, मे इन्हें जीप समेत उस पहाड़ी से सेकड़ों फीट गहरी घाटी में फेंक दूँगा, 

पोलीस यही समझेगी, कि नशे और अंधेरे के कारण जीप स्पीड में कंट्रोल नही हुई और मोड़ से घाटी में गिर गयी. आप लोग आराम से अपने घर जाओ.

अमीना - नही बेटा ! अब तुम भी हमारे साथ ही रहोगे, कब तक अकेले यूँही भटकते रहोगे..?

मे - नही बीबी ! मेरी वजह से खंखाँ आप लोगों पर कोई मुशिबत आ बने ये मे नही चाहता.

रहना - वैसे भी हम लोग क्या कम मुशिबत झेलते हैं..! आए दिन ऐसे हादसे लोगों के साथ होते ही रहते हैं, आप हमारे साथ रहोगे तो मूषिबतों का मिल जुल कर सामना कर लेनेगे.

मे - लेकिन मे आप लोगों……!

अमीना - बस बेटा अब और आगे कुछ नही सुनना, तुम्हें हमारे साथ ही रहना है तो रहना है बस… !

मे - तो ठीक है बीबी ! आप लोगों की यही ज़िद है तो मे इन लोगों को ठिकाने लगा कर लौटता हूँ.

अमीना - लेकिन बेटा इतनी दूर से लौट कर आओगे कैसे, पैदल तो बहुत समय लग जाएगा, फिर कुछ सोच कर बोली-

रेहाना तू एक काम कर, अपनी बाइसिकल ले आ, इधर से जीप में डाल कर ले जाना और उधर से तुम दोनो उससे लौट आना.

ये ठीक रहेगा अम्मी, कहकर रहना दौड़ गयी घर की तरफ और कुछ ही देर में साइकल लेकर आ गयी, 

तब तक मैने उन पाँचों को जीप में डाला, और हम तीनों ने मिलकर खून के निशान मिटा दिए.

अंधेरा हो चुका था, साइकल को भी पीछे डालकर, रेहाना को बगल की सीट पर बिठाया और मे चल दिया उन कुत्तों को ठिकाने लगाने,

शाकीना और उसकी अम्मी अपने घर की तरफ बढ़ गयी….!

रेहाना को मैने मोड़ से पहले ही उतार दिया, साइकल नीचे रख के वो वहीं खड़ी हो गयी, मैने जीप स्टार्ट की और उसको स्पीड देकर मोड़ से हल्का सा टर्न दिया और सीधी खाई की तरफ दौड़ा दी.

जैसे ही जीप खाई के पास पहुँची, मैने जीप से जंप लगा दी, और उसको खाई में कुदा दिया, 

किसी पत्थर से टकरा कर जीप में आग लग गयी और जलती हुई जीप उन हरामजादो की लाशों के साथ सेकड़ों फीट गहरी खाई में जा गिरी.

अंधेरे के कारण मेरा शरीर एक पत्थर से जा टकराया, मेरा बाँया कंधा पत्थर की रगड़ से छिल गया था, मेरी कमीज़ भी उस जगह से फट गयी और उसमें से खून रिसने लगा. 

चोट थोड़ी ज़्यादा लगी थी, जिसकी वजह से मे कुछ देर यूँही पड़ा रह गया, फिर थोड़ा हाथ से सहारा लेकर उठा और धीरे-2 रेहाना के नज़दीक पहुँचा, वो साइकल का हॅंडल पकड़े खड़ी मेरा इंतजार कर रही थी.

मुझे कंधे पर हाथ रखे और धीमे कदमों से आते देख उसने साइकल वहीं छोड़ी और दौड़ते हुए मेरे नज़दीक आई, 

मेरा बाजू थाम कर सहारा देते हुए बोली- आप ठीक तो हैं..? हाथ हटाइए ज़रा, और फिर जब उसने मेरे कंधे से खून रिस्ता देखा तो घबरा कर बोली-

अरे आपको तो चोट लगी है..! आप बैठो मे कुछ बाँध देती हूँ इस पर, वरना खून बहता रहेगा, और फिर उसने अपने दुपट्टे से मेरे कंधे के जख्म को बाँध दिया और बोली- 

आपको दर्द हो रहा होगा, आप साइकल पर बैठो मे चलाकर ले चलती हूँ.

मे उसकी मासूमियत पर मुस्करा उठा और बोला- अरे ऐसी चोटें तो आए दिन लगती ही रहती हैं, इसकी मुझे आदत सी हो गयी है तुम चिंता मत करो मे साइकल चला लूँगा, 

फिर साइकल ज़मीन से उठा कर उसकी सीट पर बैठ गया और उसको पीछे कॅरियर पर बैठने को बोला.

जब वो बैठ गयी तो मैने साइकल पर पैदल मार कर आगे बढ़ाया. 

उसका कॅरियर कमजोर सा था, रेहाना के वजन की वजह से वो इधर-उधर लचक्ने लगा, जिसकी वजह से साइकल भी इधर-उधर लहराने लगी.

मुझे साइकल को संभालने में दिक्कत हो रही थी, जिसकी वजह से पैडल पर ज़ोर नही दे पा रहा था.

मैने साइकल खड़ी कर दी, और बोला- ये ऐसे तो नही चल पाएगी, कॅरियर कमजोर है, तुम्हारे वजन से ही कहीं टूट ना जाए, और साइकल भी लहरा रही है, अब तो पैदल ही चलना पड़ेगा. 

और मे एक हाथ से उसका हॅंडल पकड़ कर चलने लगा, रेहाना मेरे बगल में चल रही थी.
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