RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
मैने चारों ओर से सारी इन्फर्मेशन कलेक्ट करके पूरी रिपोर्ट होम मिनिस्ट्री को भेज दी, प्रताप आंड कंपनी कुट्टी के द्वारा बहुत बड़े नर संहार को अंजाम देने की तैयारी में थे.
दुसरे के दिन रायगढ़ के मैदान में होने वाले उत्सव में वो कोई बड़ा हमला करने वाले हैं, जिसमें सैकड़ों जानें जाने की पूरी संभावना थी.
मेरी रिपोर्ट के आधार पर होम मिनिस्ट्री से कर्प्फ़ के एरिया कमॅंडर को विशेष सूचना मिली कि वो हमारे ग्रूप से मिलकर कोई ठोस योजना बना कर इस ख़तरे से निपटने का प्रयास करें.
सूचना बहुत ही गोपनिया रखी जाए.
कमॅंडर का कॉल आने के बाद हमने मीटिंग का समय और जगह निर्धारित कर ली, और समय पर एक गोपनीय स्थान पर हम लोग मिले.
हम दो ही जाने थे, रणवीर तो अपनी ड्राइवर की ड्यूटी पर तैनात था और चौधरी के पल-2 के मूव्मेंट की जानकारी दे रहा था.
हमारी खबर के मुताविक कम-से-कम 100 से ज़्यादा नक्सली ऑटोमॅटिक हथियारों से लेश उत्सव में आई भीड़ पर हमला करने वाले हैं,
ये भी संभव था, कि वो लोग बॉम्ब वग़ैरह का भी स्तेमाल कर सकते हैं.
अगर ये हमला हुआ तो भारी जान माल के नुकसान से कोई नही बचा सकता.
हमें किसी भी सूरत में हमले से पहले ही उन नकशालियों को घेर कर ख़तम करना होगा.
उनका संभावित ठिकाना भी हमने खोज लिया था, जहाँ वो हमले से पहले इकट्ठा होने वाले थे,
फिर तय हुआ कि कम से कम 200 के करीब हमारे जवान रात के अंधेरे में उस इलाक़े को शांति पूर्वक घेर लेंगे और उचित समय पर एक साथ अटॅक करके उन्हें ख़तम कर देंगे.
चूँकि विक्रम को वो जगह पता थी, और उसके आस-पास किस तरह से घेरा बनाना था, वो भी हमने खाका तैयार कर लिया था.
तय हुआ कि हम दोनो जवानों की टुकड़ी के साथ जाएँगे.
मीटिंग ख़तम करके कमॅंडर अपने कॅंप को लौट गये और अपनी गुप्त तरीक़ा से तैयारियों में जुट गये…!
कल दशहरा है, हिंदू मान्यता के हिसाब से कल के दिन हिंदुओं के ईष्ट मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम ने बुराई के प्रतीक रावण पर विजय प्राप्त की थी.
आज भी बहुत सारे रावण हमारे समाज में मौजूद हैं और अपनी झूठी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए जन साधारण को भेड़ बकरियों से ज़्यादा महत्व नही देते हैं,
लोगों की जान से खेलना तो जैसे इन्होने अपना पेशा और शौक बना लिया है.
आज की राजनीति भी इससे अछुति नही है, नेताओं के दबाब में आकर प्रशासन भी असमर्थ हो जाता है, जब कुछ नही कर पता तो वो भी स्वार्थवस उनके साथ मिल जाते हैं.
ऐसे ही कुछ रावण, कल के उत्सव में होने वाली बर्बरता के सूत्रधार हैं, जिन्हें उनके अंजाम तक पहुँचाने की ज़िम्मेदारी कुछ देशभक्तों के कंधों पर थी, जिसे वो अपनी जान की परवाह ना करते हुए भी निभाने में जुटे हुए थे.
हमारे दिशा निर्देशन में सीआरपीएफ के 200 शसस्त्र जवान इस धुंधली चाँदनी रात में घने जंगलों के बीच दम साधे, इशारों के मध्यम से बढ़े चले जा रहे थे.
विक्रम द्वारा बताए गये अनुमानित जगह से हम अभी भी 2 किमी दूर थे.
हमने सबको रुकने का इशारा किया, फिर दो-2 के हिसाब चारों दिशाओं का निरीक्षण करने के लिए एक दम चुस्त, चालाक और दुर्दांत जवानों को चुना.
दो-दो को चारों दिशाओं मे जाने का सिग्नल देकर 4-4 लोगों को उनके पीछे बॅक-अप के लिए भेजा, जो शीघ्र लौट कर अपनी-2 दिशाओं की वास्तु-स्थिति से भी अवगत करते.
इस काम में हमें दो घंटे गुजर गये, रास्ते में एक दो जगह नक्सली भी फैले हुए थे, जिन्हें बड़ी सावधानी से बिना आवाज़ किए ठिकाने लगा दिया गया.
करीब 120-125 नक्सली, घने जंगलों के बीच स्थित एक मैदान में जमा थे, जो सुबह होते ही वहाँ से निकलते और दोपहर बाद तक वो अपने टारगेट तक पहुँच जाने थे.
चूँकि मैदान के चारों ओर घना जंगल होने से वो अपने आप को सुरक्षित मान रहे थे, और सावधानी के लिए उन्होने अपने आदमी भी फैला रखे थे, जो हमने उनके सोचने समझने से पहले ही ठिकाने लगा दिए.
आगे वाले दो-2 जवान अभी भी अपनी पोज़िशन पर सतर्क थे, इधर हमने फिर जल्दी से आगे बढ़ना शुरू किया और जल्दी ही चार टुकड़ियों बाँट कर चारों ओर से मैदान को घेर लिया और घने जंगलों के बीच पोज़िशन ले ली.
हमने उस मैदान को एक तरह लॉक कर दिया था, अब अगर कोई नक्सली बच कर निकलना भी चाहे तो वो निकल नही सकता था.
रात का अंतिम पहर था, ज़्यादातर नक्सली गहरी नींद में डूबे हुए थे,
कुछ ही थे जो जगह-2 पहरे पर तैनात थे, लेकिन आख़िरी पहर होने के कारण वो भी उन्घ रहे थे.
मे, विक्रम और कमॅंडर तीनो एक जगह मजूद थे, वो सब हमारे निर्देश के इंतजार में थे, मुझे सिचुयेशन कुछ आसान सी दिखी, बेमतलब की ज़्यादा गोलीबारी से बचा जा सकता था.
मैने कमॅंडर को कहा- क्यों ना हम किसी तरह इनके चारों ओर बॉम्ब फिट कर दें, और एक साथ धमाका करदेने से ये लोग यूँही ख़तम हो जाएँगे. हमें ज़्यादा गोलीबारी नही करनी पड़ेगी.
एक ही बार में ये आधे से ज़्यादा मारे जा चुके होंगे, जो बचेंगे उन्हें आसानी से काबू कर लिया जा सकेगा.
मेरी बात उनको जमी, और तय हुआ कि अब हम धमाका ही करेंगे.
गस्त पर तैनात नक्सली ज़्यादा तर ऊंघ ही रहे थे, सो हमारे कुछ जवान चारों टुकड़ियों से रेंगते हुए उनके बीच तक पहुँच गये, और बड़ी आसानी से उन्होने बॉम्ब प्लांट कर लौट लिए.
चाँद आसमान में अपनी चाँदनी समेट कर विदा ले चुका था, पूरव में आसमान का रंग कुच्छ लालिमा लिए हुए सूरज के स्वागत की मानो तैयारिया शुरू कर रहा था.
हमने अपने जवानों को थोड़ा और पीछे जंगल में सेफ दूरी पर रहकर पोज़िशन पर लगाया और एक साथ चारों बॉम्ब को रिमोट से उड़ा दिया.
धमाके इतने तेज हुए कि 600-700 मीटर दूर होने के बावजूद भी हमारे पास तक की ज़मीन भूकंप की तरह काँप उठी.
नक्सलियों के कॅंप में चीखो-पुकार मच गयी, मानव अंग हवा में उड़ने लगे,
धमाके से आधे से ज़यादा नक्सली मारे गये, बचे-खुचे घायल थे, कुछ 10-5 ने भाग निकलने की कोशिश तो उन्हें गोली से भून दिया गया.
मिसन शत-प्रतिशत कामयाब रहा था, हम दोनो दोस्त कमॅंडर को फाइनल एक्सेक्यूशन का बोल कर अपने ठिकाने की ओर लौट लिए,
क्योंकि अब जो असली रावण बचे थे उनको भी अंजाम तक पहुँचना वाकी था.
हमने अपनी कामयाबी की खबर रणवीर तक पहुँचा दी थी. सुबह 10 बजे तक हम अपने ठिकाने पर लौट आए….
रणवीर ने उन लोगों के प्लान के बारे में सब पता लगा लिया था…
उसकी खबर के मुतविक चौधरी आंड कंपनी प्रताप के घर पर ही मेले का प्रशारण टीवी पर देखते हुए जश्न मनाने की तैयारी में थे…
वो इस सबसे दूर बैठ कर तमाशा देखना चाहते थे, उन्हें सपने में भी ये गुमान नही था, कि कोई तो हैं जो उनके इस प्लान की धाज़ियाँ उड़ा चुके हैं,
और अब वो यमदूत बनकर उनके सरों पर पहुँचने वाले हैं… थे…..!
आज दशहरा है, रायगढ़ का विशाल मैदान लोगों के हुज़ूम से भरा हुआ है, जहाँ तक नज़र जाती है, लोगों के सर ही सर नज़र आते हैं,
चारों ओर चहल-पहल दिखाई दे रही थी, लोग आज का सारा दिन मेले का आनंद उठाने पहुँचे हैं.
मैदान के एक सिरे पर एक विशाल स्टेज सजाया गया था, जहाँ रामलीला के दृश्य दिखाए जाने थे और शाम ढलते-2 रावण, मेघनाथ, कुम्भकरण आदि के पुतलों को जलाया जाना था.
उधर दिन के 12 बजते-बजते प्रताप के घर पर सुंदर चौधरी, एंपी और उनका चौथा पार्ट्नर राइचंद भी आ चुके थे.
चौधरी के साथ उसका विश्वसनीय ड्राइवर सज्जाक उसके साथ था, जो फिलहाल बाहर गेट पर ही रह गया था.
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