Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:19 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
32 के उसके कसे हुए सुडौल बूब, जिनका चौड़े गले के उपर में से क्लीवेज दिख रहा था, एकदम पतली कमर 20-22 की, 30 के कूल्हे, जो एक दम टाइट कसे हुए, थोड़ी सी पीछे को गोलाई लिए.

मेरे मुँह से अनायास ही निकल पड़ा, ग़ज़ब ! नीरा तुम तो बहुत सुंदर लग रही हो इन कपड़ों में.

वो - सच बाबूजी..! 

मे - हां ! मैने उसका हाथ पकड़ के ड्रेसिंग टेबल के सामने ला कर खड़ा कर दिया. वो आदमकद शीशे में अपना ही अक्श देख कर शरमा गयी, और नज़ारें झुका के खड़ी हो गयी.

अपने आप को देखो नीरा इसमें, तुम्हें खुद अपनी सुंदरता दिखाई देगी. किसी और से पुच्छने की ज़रूरत ही नही है.

वो - मुझे शर्म आरहि है बाबूजी.

मे - अपने से क्या शरमाना पगली.. और उसकी थोड़ी को उंगली के सहारे से उपर किया, देख और जी भरके जी अपनी जिंदगी ये सोचके कि तुम किसी से कम नही हो. 

आज के बाद मुझे वो गाँव की डरी सहमी सी नीरा नही दिखनी चाहिए इस घर में. 

अब एक नये रूप में आना है तुम्हें वो नीरा बन कर जो इस भेड़ियों से भरे समाज में एक शेरनी की तरह निकले.

मेरी बातों को वो टक-टॅकी लगा कर सुनती रही, मे उसका आत्म विश्वास बढ़ाना चाहता था, जिससे वो भविष्य में किसी की मोहताज़ बन कर ना रहे.

ना चाहते हुए भी वो मेरी चौड़ी छाती में समा गयी और सूबकते हुए बोली- सभी आप जैसे क्यों नही होते बाबूजी ? 

मैने उसके सर पर हाथ फेरा और उसको चुप करा कर कहा- सब तेरे जैसे भी तो नही हैं..? कितनी मासूम, भोली, किसी परी जैसी. 

अब चल खाना तैयार करते हैं, भूख लगी है.

फिर वो कपड़े चेंज करने चली गयी, और उसके बाद खाने के इंतेज़ाम में लग गयी, तब तक में कुछ नये एलेक्ट्रॉनिक आइटम्स जैसे माइक्रो कॅमरा, माइक्रो-फोन लाया था उन्हें लॅपटॉप से कनेक्ट करके कॅलिब्रेट करने लगा.

जब खाना तैयार हो गया तो हम दोनो ने खाना खाया और थोड़ा बहुत बाहर टहलने निकल गये, और फिर आकर सो गये.

सुबह मैने नीरा को 4: 30 बजे ही जगा दिया, आज से उसको योगा-प्राणायाम, फिर और एक्सर्साइज़ सिखानी थी.

जब तक वो अपने नित्य कामों से फारिग हुई तब तक मैने ध्यान मुद्रा लगाई और फिर 5 बजे से 7 बजे तक हम दोनो ने मिलकर खूब पसीना बहाया. 

वो थक कर चूर हो गयी, आधे घंटे बाद जब उसको एक बड़ा ग्लास जूस पिलाया तो उसमें फिर से जान आ गई और घर के काम निपटाने चली गयी.

दिन में पार्ट्नर भी आ गये, और वो भी नीरा का काया कल्प देख कर हैरान रह गये. इसी दिनचर्या में 1 महीना बीत गया, 

अब नीरा वो नीरा नही रही थी, जिसे कोई भी भेड़ बकरी की तरह हाथ पकड़े और जहाँ चाहे ले जाए.

आज की नीरा वो नीरा बन चुकी थी, जो हम जैसे ट्रेंड कमॅंडोस से भी दो-दो हाथ करने से नही हिचकिचाती थी. 

साथ ही साथ हमने उसको बात-चीत करने का ढंग और रहन-सहन का तरीक़ा भी सिखा दिया था, 

अब कोई उसको गाँव की अनपढ़ गँवार लड़की नही कह सकता था.

हमें लगने लगा था कि अब हमारे मिसन का असली मोहरा अब तैयार हो चुका है, और अब उसे चलाने का समय आ गया है.

इसी बीच एक दिन ट्रिशा का फोन आया, उसने बताया कि वो माँ बनने वाली है, साथ ही निशा ने भी खुशख़बरी उसे बता दी थी.

एक साथ दोनो बहनों के माँ बनने की खबर सुनकर मेरी खुशी का तो जैसे ठिकाना ही नही था,

बस्तर सिटी का नामी गिरामी होटेल जिसका डाइनिंग हॉल इस समय नीली-पीली रंग बिरंगी मद्धिम रोशनी में नहाया हुआ था.

कस्टमर अपनी अपनी टेबल पर बैठे या तो लज़ीज़ खाने का मज़ा ले रहे थे, या अपने खाने के आने का इंतजार कर रहे थे, 

ऑर्केस्ट्रा की मद्धिम लेकिन मधुर धुन हॉल के कोने-2 से उठ रही थी.

तभी, वहाँ रोकी , राकेश खांडेकर अपने 5-6 दोस्तों के साथ प्रेवेश करता है, वो सब शराब के नशे में धुत्त इधर-उधर को हिलते डुलते हुए दिखाई दे रहे थे, मतलब नशा उन पर पूरी तरह हावी था.

रोकी का बाप शहर का एक मशहूर लीडर जो कि एक पॉल्टिकल पार्टी का नेता था नाम था प्रताप खांडेकर, 

उसकी पार्टी देश में कभी सत्ता में तो नही आई थी लेकिन मौजूदा कोलिशन सरकार में भागेदारी अवश्य थी, कुछ राज्यों में भी उनकी सरकार थी.

रॉकी और उसके दोस्तों ने पूरे डाइनिंग हॉल में हंगामा मचा रखा था, जिसकी वजह से वहाँ मौजूद लोगों को असुविधा होने लगी.

होटेल मॅनेजर की इतनी हिम्मत नही थी कि वो उनको रोक सके. 

आख़िर में जब पानी सर गुजरने लगा, तो एक टेबल के इर्द-गिर्द बैठे तीन व्यक्तियों में से एक उठा और उन लफंगों को समझाने लगा.

वो शराब और ताक़त के नशे में चूर कहाँ समझने वाले थे, उल्टा उस आदमी के साथ ही हाथापाई करने लगे, 

जब उसके साथियों ने देखा कि वो लोग उसके साथ कुछ ग़लत ना करदें तो वो दोनो भी उठ कर आ गये और उनमें से एक ने एक गुंडे के कान के नीचे बजा दिया.

अब तो मामला ज़्यादा तूल पकड़ने वाला ही था कि होटेल का मॅनेजर वहाँ आ गया और उन तीनो से माफी माँगते हुए मिन्नतें करने लगा, कि आप लोग समझदार हो इनके मुँह मत लगो और यहाँ चले जाओ जिससे मामला शांत हो जाए, वरना 
मेरे होटेल का माहौल खराब होगा, हो सकता है कुछ टूट-फुट भी हो जाए.

वो तीनों वहाँ से निकलने लगे, अभी वो डाइनिंग हॉल के मेन गेट से निकल कर सामने बने पोर्च तक ही पहुँचे थे कि उन नशेडियों में से एक ने उन तीनो में से एक का पीछे से कॉलर पकड़ लिया, 

उस बंदे ने उसका हाथ पकड़के ज़ोर दबाया तो उसका कॉलर छूट गया, उस बंदे ने पीछे मूड के उस नशेड़ी को एक ज़ोर का धक्का दिया जिससे वो धडाम से पीछे को गिर गया.

देखते-2 वहाँ घमासान छिड़ गया, उन तीन बन्दो ने 10 मिनट तक उन गुण्डों की जम के धुलाई की अब वो सभी अर्ध बेहोसी की हालत में ज़मीन पड़े-2 कराह रहे थे.

रोकी हक्का वाक्का खड़ा उन्हें देख रहा था, उसकी टाँगें काँप रही थी, ठीक से खड़ा भी नही हुआ जा रहा था उससे.

फिर भी उसने अपने डर को काबू में करके किसी तरह वो उनसे भिड़ा रहा, लेकिन जल्दी ही पस्त हो गया, उन बन्दो में से एक ने उसको फाइनल एक घूँसा उसकी कनपटी पर मारा, प्रहार इतना पवरफुल था कि रोकी के फारिस्ते कून्च कर गये.

लाख कोशिशों के बाद भी वो अपनी टाँगों पर खड़ा नही रह पाया और वो भी गिरने ही वाला था कि दो हाथों ने उसे थाम लिया.

रोकी ने अपनी बंद होती आँखों से उस थामने वाले की ओर देखा और बस अपने घर का पता ही बोल पाया और उसकी बाहों में बेहोश हो गया.

उसका बेहोस शरीर एक लड़की की बाहों में झूल गया, जिसे उसने किसी तरह से एक रिक्शे में डाला और उसके बताए पते की ओर ले चली.

ये एक हवेली नुमा बहुत ही बड़ा सा मकान था जो शहर के सबसे रहिषी इलाक़े में था. उसने रिक्शे वाले को उस हवेली नुमा मकान के सामने रोकने को कहा, और खुद बाहर आकर दरबान से गेट खोलने को कहा.

दरवान ने रोकी को पहचान कर गेट खोला और उस रिक्शे वाले की मदद से उसे अंदर तक ले गयी.

एक बड़े से हॉल में एक अधेड़ महिला जो ना ज़्यादा सुंदर थी, तो बदसूरत भी नही कह सकते, थोड़ी भारी शरीर की हल्का साँवली रंगत की एक बड़े से सोफे पर बैठ कर टीवी देख रही थी.
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