Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:15 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
इस समय भानु अपने सरपरस्त ** मिनिस्टर के पास बैठा एक 7स्टार होटेल में शराब की चुस्कियाँ ले रहा था. 

फिर वो टाय्लेट का इशारा करके वहाँ से उठा और बाहर लॉबी में आकर उसने सूरज को कॉल बॅक किया.

जब सूरज ने नमक मिर्च मसाला लगा कर उसे सारी घटना बताई तो उसका घमंड फट पड़ा और उसने हुकुम दनदना दिया कि उठा ले साली को लेकिन मेरे आने तक कुछ करना मत उसके साथ.

उधर एसपी आवास पर इस समय ट्रिशा के मम्मी-पापा और उसकी छोटी बहन निशा भी आए हुए थे, 

निशा इस समय लखनऊ से एमसीए का कोर्स कर रही थी, और अपने पेरेंट्स के साथ बड़ी बहन से मिलने के लिए आई हुई थी. 

उनका छोटा बेटा सोनू, इस समय अपने बड़े भाई ऋषभ शुक्ला के पास रहकर इंजीनियरिंग कर रहा था, उसका ये फाइनल एअर था.

एसपी ट्रिशा अपनी ड्यूटी ऑफ करके घर पहुँचती है, आज की घटना और फिर भानु के रतवे का डर उसकी नयी-2 नौकरी पर हावी हो गया था, तो उसका असर उसके चेहरे पर साफ झलक रहा था. 

अनुभवी पिता आरके शुक्ला ने बेटी के चेहरे के तनाव को भाँप लिया.

सब लोगों ने मिल बैठ कर खाना खाया और थोड़ी बहुत देर इधर-उधर की बातें की और सब अपने-2 रूम में सोने चले गये. 

कुछ देर के बाद आरके शुक्ला जी अपनी पत्नी को बोलकर बेटी के रूम में गये, जो इस समय हाथों में कोई फाइल लिए पलंग के बॅक से टेक लिए बैठी थी.

वो उसके पास जाकर बैठ गये और उसके सर पर हाथ फेर कर बोले- ट्रिशा बेटी लगता है आज तुम कुछ टेन्षन मे हो..!

ट्रिशा बोली - नही पापा ऐसी कोई बात नही है, आप सो जाओ मे ठीक हूँ.

पापा - देख बेटी में तेरा पिता हूँ.. भली भाँति समझ सकता हूँ अपने बच्चों की परेशानी को, बता बेटा क्या बात है, हो सकता है बात चीत से उसका कोई हल निकल आए.

फिर ट्रिशा ने आज के पूरे घटना क्रम को उन्हें बता दिया, 

पहले तो वो सुन कर थोड़ा चिंतित हुए, फिर कुछ सोच कर बोले- बेटी तुम कल ही भैया जी से मीटिंग फिक्स करके उनको समझाओ कि पोलीस के साथ ऐसा व्यवहार उनकी छवि को ही धूमिल कर रहा है, हो सकता है कि वो समझ जाए.

इसी तरह की मंत्रणा बाप-बेटी के बीच कुछ देर होती रही, 

अभी वो वहाँ से अपने रूम में जाने के लिए उठे ही थे कि, मेन गेट को तोड़ कर 15-20 गुंडे जैसे लोग धडधडा कर घर के अंदर घुस आए.

आते ही उन गुण्डों ने सबके साथ मार पीट शुरू करदी, माँ-बाप को घर में ही बंद करके, वो लोग उनकी दोनो बेटियों को उठा ले गये….!
............................

मे सुबह 4 बजे अपने नित्य कार्यों से निवृत होकर ध्यान क्रिया के लिए बैठा था, 

मेरे पैर का प्लास्टर कट चुका था, बस थोड़ी मालिश करनी होती थी, वो भी अब ज़रूरत नही लग रही थी.

बार-2 कोशिश करने के बाद भी मेरा मन विचलित सा हो रहा था, ध्यान लगाने की काफ़ी कोशिश के बाद भी नही लग पा रहा था, मन मैं आजीव सी वैचैनि होने लगती. 

आप लोगों ने अनुभव किया होगा, जब आपके दिल के कोई ज़यादा करीब होता है, और उसके साथ कोई प्रिय-अप्रिय घटना घटित हो, तो उसका प्रभाव जाने-अंजाने आपके मन मस्तिस्क पर अवश्य होता है.

साधारणतया, हम उस पर ज़्यादा मनन नही करते, लेकिन जब उसके बारे में ग्यात होता है, तब ज़रूर सोचते हैं, कि इसलिए उस समय हमें ऐसा भान हुआ था….

लेकिन अषधारण मनुश्य, उसकी गहराई को भाँप लेते हैं...

कुछ देर की कोशिश के बाद में ध्यान मुद्रा में चला गया, ध्यान की गहराई में पहुँचते ही, मेरी अन्तरआत्मा में हलचल शुरू हो गयी, 

जिसे एक साधक अपने साक्षी भाव से देख-सुन सकता है. 

मैने अपने साक्षी भाव को एकाग्र किया तो देखा, कि मेरी अंतरआत्मा भौतिक शरीर को छोड़कर वायुमंडल में विलुप्त होती जा रही है, 

मेरा साक्षी भाव भी उसके साथ ही साथ है, 

मेरे अंतरात्मा को क्षण मात्र में ही पता चल गया, कि ट्रिशा किसी मुसीबत में है, और वो उसकी खोज में उसके आवास पर पहुँच जाती है, लेकिन वो उसे वहाँ कहीं नज़र नही आती.

वो फिर से उसकी सूंघ लेते हुए, उसकी तलाश में भटकती हुई उस जगह पहुँचती है, जहाँ एक बड़े से हवेली नुमा मकान में एक अंधेरे कमरे में वो अपनी छोटी बेहन के साथ बँधी पड़ी थी.

मेरी अंतरात्मा विचलित हो उठती है, बिना भौतिक शरीर के वो कुछ भी नही कर सकती थी, सो अविलंब वो अपने भौतिक शरीर की तरफ लौटी.

जैसे ही वो अपने शरीर में वापस प्रवेश करती है, मेरा शरीर मारे उत्तेजना के काँपने लगता है और एक अनचाहे भय से मेरी आँखें खुल जाती हैं. 

मेरा शरीर मारे उत्तेजना के इस समय थर-2 काँप रहा था, आवेश और उत्तेजना मेरे उपर बुरी तरह हाबी थी.

जैसे ही मेरे साक्षी भाव ने मेरी भौतिक चेतना को परिस्थिति से अवगत कराया, क्रोध के मारे मेरे मुँह से हुंकार सी निकल पड़ी और मे अविलंब अपनी जगह से उठ खड़ा हुआ,

झट पट मैने अपना ज़रूरत का सामान पॅक किया और लखनऊ जाने वाली पहली ही फ्लाइट पकड़ ली जो एक चेंज ओवर थी विया देल्ही.
……………………………………………………………….

भौ प्रताप पूरी रात *** मिनिस्टर के साथ अयाशी करने के बाद सुबह-2 अपनी गाड़ी से अपने घर को निकल पड़ा, 

3-4 घंटे लगातार चलने के बाद वो जब घर पहुँचा तो सूरज ने उसे सारी बातें बता दी. 

दो कमसिन जवानियों को अपने महल में होने के एहसास से ही उसके अंदर फिर से वासना के कीड़े कुलबुलाने लगे.

उसने चाइ नाश्ता किया और फिर अपने खास आदमियों को लेकर उस तरफ चल दिया जहाँ वो दोनो बहनें बँधी पड़ी थी, 

सूरज को उसने बाहर ही रोक दिया जहाँ और लोग भी थे जो उस हॉल नुमा कमरे के बाहर खड़े पहरा दे रहे थे.

भानु की नज़र जैसे ही ट्रिशा और निशा पर पड़ी, उसकी आँखें चौड़ी हो गयी और उसके मुँह से लार टपकने लगी.

उसने अपने आदमियों को बोलकर उन दोनो को खड़ा करवाया और ट्रिशा को एक खंबे से बँधवा दिया, 

निशा को वैसे ही खड़ा कर रखा था, दोनो बहनों के मुँह पर टेप चिपका रखा था.

भानु ट्रिशा के सामने आकर खड़ा हो गया, और उसकी आँखों में झाँकते हुए उसने उसके मुँह से टेप हटा दिया और बोला- 

कहिए एसपी साहिबा, आपको कोई बोला नही का.., कि हियाँ हमार राज चलत है, पोलीस का नाही.

ट्रिशा बस उसको खा जाने वाली नज़रों से देखती रही…!

फिर वो निशा के पास गया और उसके गाल पर हाथ फेरते हुए बोला- वाह ! क्या गदर माल है ये छुकरिया, बहुत मज़ा देगी ये तो..! 

निशा बस कश मसा कर रह गयी, उसकी आँखों से आँसू निकल रहे थे.

लेकिन ट्रिशा से नही रहा गया और वो गुर्रा कर बोली- भानु प्रताप अपने गंदे हाथों से मेरी बहन को मत छूना, वरना ये तेरे लिए ठीक नही होगा.

भानु - वाह मेरी चिरैया ! इस हालत में भी फडफडा रही है..! अब तू देखती जा, तेरी आँखों के सामने मे तेरी इस मस्त जवान बहन की इज़्ज़त की कैसे धज्जियाँ उड़ाता हूँ ?

ट्रिशा भभक्ते हुए स्वर में बोली - उसको हाथ भी मत लगाना हरामज़ादे, वरना में तेरा खून पी जाउन्गि. 

भानु - अच्छा ! तू मेरा खून पी जाएगी, बताना ज़रा कैसे पिएगी, ले मैने हाथ तो लगा दिया इसको, और इतना बोलके उसने निशा का नाइट गाउन उसके सीने के उपर से फाड़ दिया, 

अब उसके 34डी साइज़ के गोरे-2 बूब्स उसकी आँखों के सामने नुमाया हो गये जिन्हें देख कर उस शैतान की हवस उसकी आँखों में और बढ़ गयी..

उसके बदन की झलक देख कर ही उसकी लार टपकने लगी, और उसने उसके गालों को सहलाते हुए उसके हाथ नीचे की तरफ बढ़ने लगे…

इससे पहले कि वो उसके नग्न वक्षों तक पहुँचते, वातावरण गोलियों की आवाज़ से गड़गड़ा उठा,

धाय…धाय.. धाय…लगातार 6 गोलियाँ चली और उसके आस-पास खड़े उसके 6 गुंडे ज़मीन पर पड़े तड़प्ते नज़र आने लगे.

भानु भोचक्का सा खड़ा, ज़मीन पर पड़े अपने तड़पते हुए गुण्डों को देख रहा था, 

अभी वो इस असमजस की स्थिति से उबर भी नही पाया था, कि उसके आदमियों को किसने उड़ा दिया ? 

कि एक हथोडे जैसा घूँसा उसकी कनपटी पर पड़ा और वो चीख मारता हुआ 10-12 फुट दूर जाकर गिरा.

ट्रिशा मन ही मन बुदबुदाई.. आ गया हमारा रखवाला..! 
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