RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
कितनी ही देर तक में उसे अपने से चिपकाए पड़ा रहा, वो भी मेरे सीने से चिपकी पड़ी रही, शायद नींद में ही चली गयी थी, मैने भी उसे ऐसे पड़े रहने दिया,
बेचारी थक गयी थी, इतनी देर कमर चलाते-2.
कुछ देर बाद वो खुद ही कुन्मुनाई और मेरे उपर से उठ गयी.
जैसे ही वो उठी, एक पुच.. की आवाज़ के साथ मेरा लंड उसकी परी से बाहर आया, जो शायद उसकी गर्मी पाकर फिर से अकड़ने लगा था.
उसकी नव-विक्षित योनि से खून के साथ-2 हम्दोनो का मिश्रित वीर्य भी बाहर निकला और बेड शीट को गीला करने लगा.
वो मेरे सीने पर हाथ रख कर मेरी बगल में पड़ी थी, मैने उसको पुछा - ट्रिशा अब दर्द तो नही है..?
वो - नही ज़्यादा नही, थोड़ा सा फील हो रहा है, वैसे मज़ा बहुत आया, सच में मुझे नही पता था कि इसमें इतना मज़ा है, वरना मे अभी तक आपको नही छोड़ती.
मे - अच्छा अब इतनी डेरिंग आ गयी मेरी थानेदारनी में..?
वो थोडा चिढ़कर बोली - आप मुझे क्यों छेड़ते रहते हैं, ये थानेदारनी -2 बोल-2 कर, मे सिर्फ़ आपकी पत्नी हूँ बस.
मैने उसके होठों को चूमते हुए कहा - अरे मे तो बस ऐसे ही मज़ाक में बोल देता हूँ, अगर तुम्हें अच्छा नही लगता है तो अब आगे से नही कहूँगा..
सॉरी..!!
वो बोली - अरे..! प्लीज़ सॉरी नही, बस बार -2 सुनना अच्छा नही लगा सो बोल दिया, प्लीज़ आप माइंड मत करना..!
मुझे भी लगा की ज़्यादा मज़ाक हर किसी को असह्नीय हो सकता है, तो आज के बाद बंद…!
ऐसी ही बातें करते-2 हम एक दूसरे की बाहों में समाए हुए सो गये.
यूपी पूर्वांचल का एक छोटा सा शहर प्रीतम नगर, जहाँ के एक बाहुबली ठाकुर साब का एक तरह से इस शहर में एक छत्र राज था,
नाम था भानु प्रताप सिंग उर्फ भैया जी.
यहाँ की जनता आज़ादी के 45 साल के बाद भी इनको अपना राजा ही मानती थी, और जो नही मानता था, उससे इनके गुंडे मार-2 कर मनवा लेते थे.
आज़ाद हिन्दुस्तान की यहाँ पर कोई छाप अभी तक दिखाई नही पड़ती थी, वजह थी, हमेशा ही भैया जी विधायक का चुनाव जीत जाते थे,
अब्बल तो कोई इनके सामने खड़ा ही नही होता था, और अगर ग़लती से हो भी जाए तो किसी की हिम्मत नही कि इनके खिलाफ वोट दे सके.
इतने चालू भैया जी कि चुनाव तो निर्दलीय का ही लड़ते थे, लेकिन सरकार किसी भी पार्टी की हो, उसमें इनकी भागीदारी ज़रूर रहती थी.
8-10 एमएलए हमेशा इनकी जेब में रहते थे, तो जाहिर सी बात है कि, सरकार में इनका दबदबा भी रहता होगा.
यहाँ की शहर कोतवाली में नयी-2 भरती हुई लेडी एसपी ट्रिशा शुक्ला जो अब शादी के बाद ट्रिशा शर्मा हो चुकी थी.
अभी एसपी साहिबा को यहाँ आए हुए 2-3 महीने ही हुए थे, आइपीएस की ट्रैनिंग के बाद यहाँ इनकी पहली पोस्टिंग थी एसपी के तौर पर.
अभी उनका इंट्रोडक्षन भी ठीक से नही हो पाया था पूरे स्टाफ के साथ,
कोतवाली से शहर और उसके आस-पास के कई थाने लगते थे.
इस समय वो ऐसे ही एक थाने का विज़िट करने पहुँची थी,
एसपी साहिबा के आने से कुछ ही समय पहले ही उस थाने के एक सब इंस्पेक्टरर निर्मल कुमार जो 6 महीने पूर्व ही भरती हुआ था, और उसके साथ दो कॉन्स्टेबल एक गुंडे को पकड़ कर थाने लाए थे.
ये महोदय अपने दो मुस्टांडों के साथ बाज़ार में हफ़्ता बसूली कर रहे.
सब इंस्पेक्टरर के मना करने पर ऐंठ दिखाने लगे सो उठा लाए थाने.
जैसे ही इनके सरपरस्तो को खबर मिली, तो चले आए थाने दनदनाते हुए.
उससे ठीक दो मिनट पहले ही एसपी साहिबा विज़िट में पहुँची थी उसी थाने में, जो इस समय स्टाफ के साथ इंट्रोडक्षन कर रही थी.
ओये..! किस मादरचोद पोलीस वाले ने मेरे आदमी को पकड़ने की जुर्रत की है ? बुलाओ उसको मेरे सामने..!
जानता नही सूरज प्रताप सिंग के आदमी को हाथ लगाने का अंजाम क्या होता है..?
सब इंस्पेक्टरर निर्मल कुमार सामने आकर बोला- मैने पकड़ा है इसको, ये मार्केट में लोगों को धमका कर उनसे पैसे ले रहा था, एक-दो के साथ इसने मार-पीट भी की है.
आव ना देखा ताव की तडाक..! एक झन्नाटेदार चान्टा रसीद कर दिया उस सब इंस्पेक्टरर के गाल पर उसने, और बोला-
मैने कहा था उसको हफ़्ता बसूलने के लिए, तू कॉन होता है उसे रोकने वा..लाअ..?
सत्तकक.. ! अभी सूरज अपना वाक्य पूरा भी नही कर पाया था कि एक पोलीस की रोड उसके कूल्हे पर रसीद हो गयी,
मार इतनी पवारफ़ुल्ल थी कि सूरज महाराज खड़े नही रह पाए और बिल-बिला कर अपनी चोट वाली जगह पर हाथ रखते हुए बैठते चले गये.
तभी उसको लेडी एसपी की गुर्राहट सुनाई दी - यहाँ सरकार का राज चलता है, तेरे बाप का नही,
सरकार हमें क़ानून व्यवस्था ठीक रखने के पैसे देती है, तुम्हारे जैसे गुण्डों से मार खाने के लिए.
अपने दर्द पर काबू करके गुराते हुए बोला सूरज - ओ एसपी साहिबा, नयी -2 आई हो, पता नही तुम किससे पंगा ले बैठी हो, सूरज प्रताप नाम है मेरा, भैया जी का भतीजा हूँ मे.
एसपी - तो.. ! वैसे है कॉन ये भैया जी जो इतने गिरी हुए काम करता है.
कान खोल कर सुन्ले, तू भले ही कोई भी हो, पोलीस के काम में हस्तक्षेप कतयि बर्दास्त नही होगा समझे, अपनी खैर चाहता है तो निकल ले यहाँ से वरना ये डंडा देख रहा है.
इतने लगाउन्गी पिछवाड़े पर कि ठीक से बैठ भी नही सकेगा.
सूरज वहाँ से एसपी साहिबा को धमकाकर निकल गया, फिर एसपी ने सब इंस्पेक्टरर को शाबासी दी और उस गुंडे को किसी भी हालत में ना छोड़ने की हिदायत की.
तभी थाने का इंचार्ज यादव आगे आया और उसने उसे भैया जी के बारे में बताया, जिसे सुन कर वो कुछ देर सोच में पड़ गयी, लेकिन फिर कुछ निश्चय करके बोली-
देखो अगर भैया जी सरकार के नुमाइंदे हैं तो उनको भी समझना पड़ेगा कि पोलीस का काम क़ानून व्यवस्था सुधारना होता है,
अब अगर गुंडे उनके नाम की आड़ में ये सब करेंगे तो पोलीस का तो कोई काम ही नही रहेगा इलाक़े में.
तुम लोग चिंता मत करो और अपना काम क़ानून के मुताबिक करते रहो.
इंस्पेक्टरर यादव एसपी की बात से कुछ नाखुश दिख रहा था, लेकिन इस समय वो अपने सीनियर ऑफीसर से ज़्यादा कुछ आर्ग्युमेंट नही कर सकता था सो चुप हो गया.
उधर सूरज प्रताप भनभनाता हुआ थाने से निकला और अपने चाचा भानु को फोन कर दिया..! एक-दो बार तो बेल बजती रही लेकिन फोन नही उठाया गया,
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