Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:14 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
माथे पर छोटी सी बिंदिया, कमान जैसी उसकी भवें (आइ ब्रो) हल्के काजल से भरी उसकी हिरनी जैसी चंचल आँखें मानो कुछ कहना चाहती हों, 

मैने अपने तपते होंठो से उसकी बंद आँखों की पलकों को चूम लिया.

सुराई दार गर्दन, जिसके नीचे पतली सी एक रेखा नीचे को जाती हुई, जो आगे जाते-2 चौड़ाई में बदल रही थी. 

सुर्ख कपड़े के ब्लाउस में क़ैद उसके सुडौल वक्ष जो अभी 24” के भी नही हुए थे. 

ट्रैनिंग में किए गये अथक मेहनत की वजह से एकदम ठोस टेनिस की बॉल की तरह गोल-गोल संतरे जैसे उसके उरोज.

उसके नीचे उसका एक दम पतला सा सपाट पेट, जिसके मध्य में एक चबन्नी के साइज़ की नाभि, जो कभी-2 हिलने लगती थी. 

कमर इतनी पतली हो गयी थी उसकी कि दोनो हाथों के बीच में समा जाए.

वो अपनी दोनो टाँगें जोड़े हुए लेटी थी, पेटिकोट में धकि उसकी गोल लेकिन सख़्त जांघे, थोड़ी मोटाई लिए, जांघों के बीच जहाँ उसके पेटिकोट का कपड़ा थोड़ा चारों तरफ से सिकुड गया था, 

ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो किसी नदी में तेज बहाव के कारण भवर पड़ गये हों.

उसके रूप सौन्दर्य में खोया हुआ मे उसके पैरों तक चला गया, और उसके महाबर से रंगी मुलायम पैरों की उंगलियों को मुँह में लेकर चूसने लगा.

ट्रिशा ने चोंक कर अपनी गर्दन उठाई.. और झट से अपना पैर खींचते हुए बोली..

नाथ ! ये क्या अनर्थ कर रहे है आप..? मेरे पैरों को तो आपको छुना भी नही चाहिए और आपने तो..मुँह.. क्यों पाप चढ़ा रहे हैं मुझ पर.

मैने उसका चाँद सा मुखड़ा अपने हाथों में लेकर कहा – क्या तुम सच में आइपीएस ऑफीसर हो..?

मेरी बात सुनकर वो बोली - क्या मतलब..? इसका इस बात से क्या लेना देना..?

मैने कह - तुम्हारे ये पैर शरीर से अलग हैं क्या..? नही ना.. तो जब मुझे तुम्हारे शरीर का जो अंग अच्छा लगेगा उसको में मन मर्ज़ी प्यार कर सकता हूँ, फिर पैरों को क्यों नही.

वो तुनकते हुए बोली – वो सब मुझे कुछ नही पता, माँ कहती है, पत्नी को हमेशा पति के चरणों में रहना चाहिए. 

ग़लती से भी पति, पत्नी के पैर छु भी ले तो वो पाप की भागीदार होती है.

मे - अरे यार तुम तो उपदेश देने लगी, चुप करो ये बाबा आदम के जमाने के दकियानूसी उपदेश और मुझे प्यार करने दो तुम्हें.

वो मेरी बात सुन कर चुप हो गयी…

अब मे उसको पैरों से चूमता हुआ धीरे-2 उपर को बढ़ने लगा, जहाँ मेरे होंठ लगते ही ट्रिशा का वही अंग कंपकंपाने लगता.

चूमते-2 मे उसके पेट पर आ गया और जब मैने उसकी नाभि के उपर चूमा, तो वो खिल-खिला कर उठ कर बैठ गयी.. और बोली..

अरुण प्लीज़ यहाँ नही…हहहे.. नही..नही.. प्लीज़.. हहहे…हहुउ.. मुझे गुदगुदी होती है, 

मैने और जान बूझकर उसके पेट को सहला दिया, गुदगुदी के मारे उसके आँसू निकल आए..! अब कुछ ज़्यादा ना हो जाए इसलिए मे उपर को बढ़ने लगा.

मैने उसके गोल सुडौल वक्षों को ब्लाउस के उपर से ही चूमता हुआ उसकी घाटी की दरार पर से गर्दन पर पहुँच गया. 

वो अबतक हल्की-2 सिसकियाँ लेने लगी थी, आँखें बंद हो रही थी उसकी, अंत में मैने उसके होठों को चूमा और देर तक चूस्ता रहा, उसको भी बोला तो वो भी मेरी तरह कोशिश करती रही और फिर हम लंबी स्मूच में डूब गये.

मैने उसके ब्लाउस के बटन खोलने शुरू कर दिए, और उसको उतार कर पलंग के नीचे फेंक दिया, ब्रा में कसे उसके उन्नत सुडौल वक्ष इलाहाबादी अमरूद के साइज़ के बड़े आकर्षक लग रहे थे,

जब मैने उनको अपनी मुत्ठियों में कस्के मसला तो ट्रिशा सिसक पड़ी…

आहह… सस्सिईइ… जोरे से नहियीई…प्लस्ससस्स… आहह…दर्द होता है..उईई.. माआ… ऊहह….जानणन्न्… मारीइ..

अब मेरा एक हाथ उसकी चुनमुनिया पर पहुँच चुका था जो उसको प्यार से सहला रहा था.. 

मैने आपने सारे कपड़े निकाल फेंके सिवाय अंडरवेर के, मुझे रुखसाना वाला अपना एनकाउंटर याद आया और ट्रिशा की ब्रा खोल कर बिस्तर पर लेट गया.

मे- जान तुम मेरे उपर बैठ जाओ, तो वो मेरे पेट पर बैठ गयी, मैने कहा तोड़ा और नीचे तो वो समझ गयी, 

तब तक मैने अपने मूसल महाराज को अंडरवेर में हाथ डालकर उपर को करके अपने पेट से लगा लिया.

अब वो मोटी ककड़ी जैसा अंडरवेर में मेरी नाभि की ओर मुँह करके अंडरवेर को फ़ाडे दे रहा था. ट्रिशा अपनी परी की अनखूली फांकों को उसके उपर रख कर बैठ गयी.

मैने उसको अपने उपेर झुका लिया और उसकी कमर को दोनो तरफ से पकड़ कर आगे-पीछे करने लगा, जब उसको तरीक़ा समझ में आ गया,

अब वो खुद से ही अपनी कमर चलाने लगी और अपनी अन्छुइ मुनिया को मेरे लंड के उपेर घिसने लगी, उसके अमरूद मेरी हथेलियों में थे.

हम दोनो मज़े में डूबते चले गये, मुझे तो बहुत मज़ा आ रहा था, जब वो पीछे को कमर ले जाती मेरा सुपाडा खुल जाता और अंडरवेअर के कपड़े के रगड़ से सुरसूराहट और बढ़ जाती.

कमर हिलाते-2 ट्रिशा ने अपना मुँह उपर को उठाया और एक लंबी सी सिसकी भरी कराह मुँह से निकाल कर लंबी-2 साँसें लेने लगी. 

उसकी पेंटी कामरस से एक दम तर हो गयी थी, मेरा भी कुछ ऐसा ही हाल था, अगर वो एक दो रगड़े और कस कर लगा देती तो शायद मेरा पानी भी निकल जाता.
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